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गैस वेल्डन

gas welding
oxygen -acetelyene cylinders
gas regulators



गैसों की सहायता से वेल्डन की क्रिया एक सी होती है, लेकिन उनका विभाजन उपयोग में आनेवाली गैस के अनुसार किया जाता है। ये गैसें बहुधा ऑक्सीजन और ऐसीटिलीन का मिश्रण, कोल गैस और हाइड्रोजन आदि हुआ करती हैं। इनमें से ऑक्सी-ऐसीटिलीन वेल्डन सबसे अधिक प्रचलित है। वेल्डनोपयोगी गैसें तैयार करनेवाली व्यापारिक कंपनियाँ इस्पात के मजबूत सिलिंडरों (cylinders) में गैस को कई वायुमंडलों के दबाव पर भरकर वेल्डन के लिए बेचा करती हैं। वेल्डन के बड़े-बड़े कारखानों में निजी गैस जनित्रों द्वारा कैल्सियम कार्बाइड और पानी के मिश्रण से यह गैस कम दाबस पर तैयार की जाती है। ऐसीटिलीन को ऐसीटोन में घुला देने से उसे विस्फोटन का डर नहीं रहता।

चाहे किसी भी प्रकार की गैस का व्यवहार किया जाए, वेल्डन के लिए उसे किसी प्रकार की फुँकनी (blowpipe) के द्वारा ही वेल्डन के स्थान पर पहुँचाया जाता है, जिनमें लगे एक बाल्व की सहायता से गैस के बहाव पर नियंत्रण कर उचित आकार की लौ बना ली जाती है। चित्र 4. की आकृति क में फुँकनी के मुँह पर लगनेवाली एक छुच्छी की बनावट दिखाई गई है और ख में लौ की आकृति है। लौ को छोटी, बड़ी, पतली या मोटी बनाने के लिए विभिन्न नापों के जेट फुँकनी पर अदल बदलकर लगाए जाते हैं। जेट की माप अर्थात् उसकी ताकत प्रति घंटा गैस के खर्चे के अनुसार निर्धारित की जाती है। सबसे छोटे जेट द्वारा एक घंटे में एक घन फुट और सबसे बड़े जेट द्वारा लगभग 200 घन फुट गैस खर्च हो जाती है तथा फुँकनी में गैस की दाब 2 से 8 पाउंड प्रति वर्ग इंच तक रखी जाती है। प्रयोग करते समय ऐसीटिलीन गैस को पहले खोलकर जेट के मुँह पर उसे जला दिया जाता है, फिर ऑक्सीजन के सिलिंडर का बाल्व धीरे-धीरे इतना खोला जाता है कि जिससे उचित प्रकार की लौ बन जाए।

जलनेवाली गैस के मिश्रण में अधिक ऐसीटिलीन होने से उसकी लौ कार्बुरीकर (carburising) होकर कुछ मोटी पड़ जाती है, लेकिन वह आरंभ से अंत तक एक सी तेज चमकदार बनी रहती है। यदि मिश्रण में ऑक्सीजन की अधिकता हो, तो लौ ऑक्सीकारक (oxidising) प्रभाव से युक्त हो जाती है और उसका सूंड लंबा तथा चमकदार हो जाता है, लेकिन दोनों प्रकार की गैसों की मात्रा में उचित समायोजन कर देने से जो लौ बनती है उसके सूंड का चमकदार भाग छोटा और स्पष्ट आकृतियुक्त होता है और उसी की नोंक पर सबसे अधि ताप होता है, जैसा चित्र 4. में दिखाया गया है। अत: झाल लगाते समय धातु को गलाने के लिए लौ को धातु की सतह से लगभग 1/8 इंच से 1/16 इंच तक दूर रखा जाता है।

वेल्डन

वेल्डन करते समय वेल्डन की जानेवाली वस्तुओं के टक्करों को मिलाकर, ऊपर से गैस की लौ द्वारा उनको जोड़ पर गला दिया जाता है जिससे दोनों पृथक् भागों की धातुएँ आपास में गलाकर मिल जाती है और साथ ही साथ उसी प्रकार की कुछ फालतू धातु, जो पतली बत्तियों के रूप में होती है तथा जिसे पूरक (फिलर) या बत्ती भी कहते हैं, गलाकर भर दी जाती है और इन सबके ठंढा हो जाने पर ठोस संधि बन जाती है।

फुँकनी को चलाने की दो तरकीबें होती हैं, एक तो बाएँ हाथ की और दूसरी दाहिने हाथ की। बाएँ हाथ की क्रिया में वेल्डन का काम दाहिनी ओर से बाई ओर को बढ़ता है जिससे लौ बिना झले हुए भाग की तरफ झुकी रहती है और फुँकनी को दाहिने हाथ से थामकर बत्ती को बाएँ हाथ से थामा जाता है। वेल्डन करते समय फुँकनी वेल्डन की जानेवाली वस्तु से 60 से 70 अंश का कोण और धातु की बत्ती 30 40 अंश का कोण बनाती है। दाहिने हाथ की क्रिया में लौ का मुँह झले हुए भाग की ओर झुका रहता है और झलाई की क्रिया बाई ओर से दाहिनी ओर को बढ़ती है। बाएँ हाथ से बेल्डन करते समय फुँकनी का पानी की लहरों जैसे चलाया जाता है और दाहिने हाथ के वेल्डन में फुँकनी को बहुत ही कम या बिलकुल ही नहीं लहराया जाता, लेकिन बत्ती को गोल छल्लों के आकार में घुमाते हुए, चलाया जाता है।

वेल्डन की बत्ती

बत्ती का व्यास वेल्ड की जानेवाली वस्तु की मोटाई और फुँकनी की नाप के अनुपात से होना चाहिए। पतली बत्ती स्वयं तो जल्दी गल जाएगी और वेल्डित किया जानेवाला जोड़ गरम होकर गलित अवस्था में आने भी नहीं पाएगा। यदि बत्ती अधिक मोटी होगी, तो वह स्वयं देर से गलेगी और वस्तु के पहले से गले हुए भागों को जल्दी से ठंडा कर देगी।

दोहरी लौ की फुँकनी

इस प्रकार की फुँकनी का रिवाज आजकल बढ़ता जा रहा है। इसमें दो लौ एक साथ निकलती हैं, आगेवाली लौ तो धातु को अगाऊ गरम करने का काम करती है, जिसमें थोड़ी अधिक ऐसीटिलीन खर्च हो जाती है लेकिन लाभ यह होता है कि व कार्बुरीकर होकर प्लेटों को ऑक्सीकरण होने से बचा लेती है, क्योंकि उस समय प्लेटों में कार्बन का अवशोषण हो जाने से उनका द्रवणांक घट जाता है और पिछली छोटी लौ वहाँ पहुँचते ही सरलता से अपना काम कर लेती है। इस प्रकार की लौ से वेल्डिंग किए जानेवाले भागों में सिकुड़न और ऐंठन के दोषों का भी परिहार हो जाता है तथा वेल्डन का काम भी शीघ्रता से होता है।

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