गैरसैंण
गैरसैंण | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | चमोली |
जनसंख्या • घनत्व | ७,१३८[1] (२०११ के अनुसार [update]) • ९४७.९४ प्रति वर्ग किमी |
लिंगानुपात | 862 ♂/♀ |
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) | ७.५३[1] कि.मी² • 1,750 मीटर (5,741 फी॰) |
जलवायु तापमान • ग्रीष्म • शीत | ऑलपाइन आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबन्धीय (कॉपेन) • 28 - -2 °C (84 °F) • 28 - 12 °C (70 °F) • 15 - -2 °C (61 °F) |
आधिकारिक जालस्थल: uk.gov.in |
निर्देशांक: 30°04′21″N 79°17′08″E / 30.0725°N 79.2856°Eगैरसैंण भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक शहर है। यह समूचे उत्तराखण्ड राज्य के मध्य है और उत्तराखण्ड राज्य की ग्रीष्मकालीन अस्थाई राजधानी भराड़ीसैंण के नजदीक स्थित है।[2][3][4][5][6][7][8]
क्षेत्र में लगने वाले मेलों में से मां गंगा माई का मेला है, जो वहां के मुख्य गांव गैड की कुलदेवी है
गैरसैंण नामक शब्द का उद्भव
गैरसैंण नाम का शब्द स्थानीय बोली के शब्दों से मिलकर बना है। "गैर" तथा "सैंण"। गैर गढ़वाली भाषा में गहरे स्थान को कहते हैं तथा सैंण नामक शब्द मैदानी भू-भाग का पर्याय है। जिसका अर्थ स्पष्टत: गैर + सैंण = गैरसैंण है, यानि "गहरे में समतल मैदान"। (जैसे गैरसैंण के समीपवर्ती भिकियासैंण, चिन्यालीसैंण, थैलीसैंण, भराड़ीसैंण इत्यादि कुमांऊँ व गढ़वाल के दोसॉंद यानि दो सीमाओं का सीमावर्ती भूभाग) दूसरा अब कुछ लोग गैरसैंण को इस प्रकार भी परिभाषित करने लगे हैं कि यह समीपवर्ती गैड़ नामक गॉंव के नीचे स्थित है, जिस कारण यह गैरसैंण कहलाता है। परन्तु यह तथ्य सटीक होने में संदेहात्मक प्रतीत होता है।
इतिहास
प्राचीन इतिहास
गैरसैंण गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है, जिसे प्राचीन कथाओं तथा ग्रन्थों में केदार क्षेत्र या केदारखण्ड कहा गया है। सातवीं शताब्दी के आस-पास यहां आये चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने इस क्षेत्र में ब्रह्मपुर नामक राज्य होने का वर्णन किया है। यह क्षेत्र अर्वाचीन काल से ही भारतवर्ष की हिमालयी ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व सॉस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है। लोकप्रचलित कथाओं के अनुसार प्रस्तुत इलाके का पहला शासक यक्षराज कुबेर था। कुबेर के पश्चात् यहां असुरों का शासन रहा, जिनकी राजधानी वर्तमान उखीमठ में हुआ करती थी। महाभारत के युद्ध के बाद इस क्षेत्र में नाग, कुनिन्दा, किरात और खस जातियों के राजाओं का वर्चस्व भी माना जाता रहा है। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र कत्यूरियों के अधीन रहा, तत्पश्चात तेरहवीं शताब्दी से लगभग सन् १८०३ तक गढ़वाल के परमार राजवंश के अधीन रहा। सन् १८०३ में आये एक भयंकर भूकंप के कारण इस क्षेत्र का जन-जीवन व भौगोलिक-सम्पदा बुरी तरह तहस-नहस हो गया था, और इसके कुछ समय बाद ही गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया और १८०३ से 1815 तक यहां गोरखा राज रहा। 1815 के गोरखा युद्ध के बाद 1815 से 14 अगस्त, 1947 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। इसी ब्रिटिश शासनकाल के अन्तराल 1839 में गढ़वाल जिले का गठन कर अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्षेत्र को कुमाऊँ से गढ़वाल जिले में स्थानांतरित कर दिया तथा 20 फरवरी 1960 को इसे चमोली जिले बना दिया गया।
स्थापना
उत्तराखण्ड राज्य के गठन से पहले से ही गैरसैंण को उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी के तौर पर प्रस्तावित करना शुरू कर दिया गया था। राजधानी के तौर पर गैरसैण का नाम सबसे पहले ६० के दशक में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने आगे किया था।[9] उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के समय भी गैरसैण को ही राज्य की प्रस्तावित राजधनी माना गया। सन् १९८९ में डीडी पंत और विपिन त्रिपाठी ने गैरसैंण को उत्तराखंड की प्रस्तावित राजधानी के रूप में शामिल किया था।[10] इसके बाद सन् १९९१ में गैरसैंण में अपर शिक्षा निदेशालय एवं डायट का उद्घाटन हुआ। उसी वर्ष भाजपा के तीन मंत्रियों और विधायकों ने गैरसैंण में जनसभा कर उत्तराखण्ड राज्य की मांग का समर्थन किया था।[10] उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने तो सन् १९९२ में गैरसैंण को उत्तराखण्ड की औपचारिक राजधानी तक घोषित कर दिया था।[11] उक्रांद ने पेशावर कांड के महानायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर गैरसैंण राजधानी क्षेत्र का नाम चन्द्रनगर रखा था। सन् १९९४ में गैरसैंण राजधानी को लेकर लेकर १५७ दिन का क्रमिक अनशन किया गया।[10] इसके अलावा, सन् १९९४ में ही तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा गठित रमाशंकर कौशिक की अगुआई वाली एक समीति ने उत्तराखण्ड राज्य के साथ-साथ गैरसैंण राजधानी की भी अनुशंसा की थी।[12][13]
९ नवम्बर २००० को उत्तराखण्ड के गठन के बाद गैरसैंण को राज्य की राजधानी घोषित करने की मांग राज्य भर में उठने लगी। सन् २००० में उत्तराखण्ड महिला मोर्चा ने गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर खबरदार रैली निकाली।[10][14] इसके बाद २००२ में गैरसैंण की मांग को लेकर श्रीनगर में जनता का प्रदर्शन हुआ, और फिर गैरसैंण राजधानी आंदोलन समिति का गठन किया गया।[10] इन्हीं आन्दोलनों के फलस्वरूप उत्तराखण्ड सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में दीक्षित आयोग का गठन किया, जिसका कार्य उत्तराखण्ड के विभिन्न नगरों का अध्ययन कर उत्तराखण्ड की राजधानी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल का चुनाव करना था। दीक्षित आयोग ने राजधानी के लिए ५ स्थलों को (देहरादून, काशीपुर, रामनगर, ऋषिकेश तथा गैरसैण) चिन्हित किया, और इन पर व्यापक शोध के पश्चात अपनी ८० पन्नो की रिपोर्ट १७ अगस्त २००८ को उत्तराखण्ड विधानसभा में पेश की।[15] इस रिपोर्ट में दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था, तथा विषम भौगोलिक दशाओं, भूकंपीय आंकड़ों तथा अन्य कारकों पर विचार करते हुए कहा था कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के लिये सही स्थान नहीं है।[16]
२०१२ में उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक कैबिनेट बैठक का आयोजन किया।[9] इस सफल बैठक के बाद वर्ष २०१३ में गैरसैण के जीआईसी मैदान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया गया। उसी वर्ष गैरसैंण से लगभग १४ किमी दूर स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। २०१४ में बनकर तैयार हुए इस विधानसभा भवन में पहली बार उत्तराखण्ड विधानसभा के तीन दिवसीय सत्र का आयोजन किया गया था। मई २०१४ में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जनपद चमोली के विकासखण्ड गैरसैंण और जनपद अल्मोड़ा के विकासखण्ड चौखुटिया को शामिल कर 'गैरसैंण विकास परिषद' गठित करने का निर्णय लिया गया, जिसका काम गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण के साथ-साथ इस क्षेत्र में अवस्थापना विकास से सम्बन्धित योजनाओं की स्वीकृति एवं क्रियान्वयन करान था।[17] इसके बाद २०१५-२०१६ में गैरसैण को नगर पंचायत का दर्जा दे दिया गया। अपनी स्थापना के समय ये नगर ७.५३ वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला था, और इसकी जनसंख्या ७,१३८ थी। २०१७ में गैरसैंण में फिर एक विधानसभा स्तर का आयोजन किया गया।[18][19]
४ मार्च २०२० को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान घोषणा की कि गैरसैंण के नजदीक स्थित भराड़ीसैंण राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी होगी।[20][21]
भौगोलिक स्थिति
गैरसैंण समुद्र सतह से लगभग 5750 फुट की ऊँचाई पर स्थित मैदानी तथा प्रकृति का सुन्दरतम भू-भाग है। यह समूचे उत्तराखण्ड के बीचों-बीच तथा सुविधा सम्पन्न क्षेत्र माना जाता है। उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में होने के कारण बर्षों से चले आ रहे पृथक उत्तराखण्ड राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में सर्वमान्य स्वीकार किया जाता रहा है। भौगोलिक दृष्टि से यहॉं की जलवायु को तरगर्म माना जाता है। गैरसैंण का उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊँ, गढ़वाल तथा मैदानी भूभागों के बीचों-बीच स्थित होना इसका मुख्य बिन्दु व बिषय है, जो पर्वतीय क्षेत्रों के विकास लिये नितान्त आवश्यक भी है।
जनसांख्यिकी
7.53 वर्ग किलोमीटर में फैले गैरसैंण नगर की २०११ की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 7,138 है।[1] नगर में पुरुषों की संख्या 3,582 तथा महिलाओं की संख्या 3,556 हैं।[1] कुल जनसंख्या में से 87.27 प्रतिशत लोग साक्षर हैं।[1]
सभ्यता एवम् संस्कृति
यह हिमालय क्षेत्र की ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी-गढ़वाली सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता है।
बोली भाषा
गैरसैंण क्षेत्र में आपसी वार्तालाप की बोली-भाषा गढ़वाली तथा कुमांऊॅंनी दोनों मिश्रित बोलियॉं पायी जाती हैं। सरकारी कामकाज में बोलने व लिखने की भाषा अधिकाॅशत: हिन्दी है, परन्तु अंग्रेजी का प्रयोग भी पाया जाता है। अध्ययन व अध्यापन हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होता है।
आवागमन के स्रोत
वायु मार्ग
- गैरसैंण पहुॅंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा रुद्रपुर व हल्द्वानी के मध्य में स्थित पंतनगर हवाई अड्डा है। प्रस्तुत एअरपोर्ट से गैरसैंण की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। जहॉं से सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- दूसरा गैरसैंण के लिये जॉलीग्राण्ट एअरपोर्ट से भी पहुॅंचा जा सकता है। यह देहरादून में है। जहॉं से गैरसैंण लगभग 235 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से भी सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार द्वारा गैरसैंण पहुँचा जा सकता है।
- गौचर, यह स्थान गैरसैंण से लगभग पचास-साठ किलोमीटर की दूरी पर है। यहॉं भी हवाई पट्टी बनी हुयी है, परन्तु यहॉं विशेष विमानों द्वारा ही पहुॅंचा जाता है। यहॉं से भी गैरसैंण पहुंचना आसान है।
- सबसे निकटतम प्रस्तावित हवाई अड्डा चौखुटिया है। यहॉं से मात्र 30-35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गैरसैंण।
रेल मार्ग
- फिलहाल भारतीय रेल द्वारा गैरसैंण पहुंचने के लिये दो रेलवे स्टेशन मौजूद हैं। पहला रेलवे जंक्शन काठगोदाम है, जहॉं से गैरसैंण लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।
- दूसरा रेलवे जंक्शन रामनगर में है, जहॉं से गैरसैंण की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। इन दोनों रेलवे स्टेशनों से सुविधानुसार उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसों अथवा टैक्सी कार द्वारा आसानी से गैरसैंण पहुंचा जा सकता है।
- गैरसैंण के लिए रामनगर-चौखुटिया-गैरसैंण रेलमार्ग काफी समय से प्रस्तावित है किंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से अभी तक अस्तित्व में नहीं आ पाया है भविष्य में इस मार्ग के बन जाने से सीधे रेलमार्ग द्वारा गैरसैंण पहुंचा जा सकेगा,
सड़क मार्ग
- भारत की राजधानी दिल्ली के आनन्द विहार आईएसबीटी से यहॉं के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की बसें नियमित रूप से उपलब्ध होती हैं। जिनके द्वारा 15-20 घंटों में गैरसैंण पहुंच सकते हैं। उत्तर भारत के अन्य प्रदेशों के विभिन्न स्थानों से भी गैरसैंण के लियें बसों की सुविधाऐं उपलब्ध हैं।
- दिल्ली से मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग 9 से हापुड़, गजरौला, मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर, भतरोंजखान या घट्टी से भिकियासैंण, पौराणिक बृद्धकेदार, मॉंसी, चौखुटिया होते हुए गैरसैंण आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ सांख्यिकी पत्रिका २०१६ (PDF). पपृ॰ ६१. मूल (PDF) से 14 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 नवंबर 2017.
- ↑ "where uncertainty over a long-standing demand to declare the village of Gairsain as Uttarakhand's permanent capital erupted again". The Hindu, English Daily. मूल से 30 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2017.
- ↑ "List of all towns and Villages in Gairsain". censun2011.co.in. मूल से 26 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2017.
- ↑ "Map of Gairsair". mapsofindia.com. मूल से 17 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2017.
- ↑ सरकार गैरसैंण में बनाएगी सचिवालय? "निशंक सरकार गैरसैंण में बनाएगी सचिवालय" जाँचें
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मान (मदद). नैनीताल समाचार. अभिगमन तिथि 19 नवम्बर 2017.[मृत कड़ियाँ] - ↑ बने तो कहां, गैरसैंण और देहरादून के बीच होड़ "राजधानी बने तो कहां, गैरसैंण और देहरादून के बीच होड़" जाँचें
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मान (मदद). नवभारत टाइम्स, हिन्दी, नई दिल्ली, उत्तराखण्ड संस्करण. अभिगमन तिथि 19 नवम्बर 2017.[मृत कड़ियाँ] - ↑ "NGT slams Uttarakhand government on new Assembly building at Gairsain". दि हिन्दुस्तान टाइम्स, अंग्रेजी, नई दिल्ली. मूल से 19 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 नवम्बर 2017.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". हिन्दू लाइव. मूल से 8 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 09 जून 2020.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ "सियासत के अलावा कुछ नहीं गैरसैंण मुद्दा". वेबदुनिया. मूल से 16 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ७ अप्रैल २०१८.
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- ↑ "Gairsain as capital earnest dream—a betrayal by political parties" [गैरसैंण राजधानी का सपना - राजनैतिक पार्टियों द्वारा विश्वासघात] (अंग्रेज़ी में). गैरसैंण: द ट्रिब्यून. ९ दिसंबर २०१६. मूल से 16 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १६ जुलाई २०१८.
- ↑ "धूल फांक रही है दीक्षित आयोग की रिपोर्ट". देहरादून: नवभारत टाइम्स. २७ जनवरी २०१३. मूल से 7 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ७ अप्रैल २०१८.
- ↑ दीवान, उमेश (१३ जुलाई २००९). "Dixit Commission disfavours Garsain as capital" [दीक्षित आयोग ने गैरसैण को राजधानी के तौर पर असंतोषजनक बताया] (अंग्रेज़ी में). देहरादून: द ट्रिब्यून. मूल से 27 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ७ अप्रैल २०१८.
- ↑ "'गैरसैंण विकास परिषद' के गठन का फैसला- Amarujala". देहरादून: अमर उजाला. १६ मई २०१४. मूल से 16 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १६ जुलाई २०१८.
- ↑ "विधानसभा सत्र : आज से हफ्तेभर गैरसैंण में सरकार,". हिन्दुस्तान, दैनिक, हिन्दी उत्तराखण्ड संस्करण. मूल से 26 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25, दिसम्बर 2017.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "सात दिसंबर से गैरसैंण में होगा विधानसभा का शीतकालीन सत्र". उत्तराखंड पोस्ट, उत्तराखण्ड. मूल से 1 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 नवम्बर 2017.
- ↑ [1]
- ↑ [2]