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गुप्त (फ़िल्म)

गुप्त

गुप्त का पोस्टर
निर्देशकराजीव राय
लेखक नईम शाह (संवाद)
पटकथा शब्बीर बॉक्सवाला
राजीव राय
कहानी राजीव राय
निर्मातागुलशन राय
अभिनेताबॉबी देओल,
मनीषा कोइराला,
काजोल
छायाकार अशोक मेहता
संपादक राजीव राय
संगीतकारविजू शाह
वितरकत्रिमूर्ति फिल्म्स
प्रदर्शन तिथियाँ
4 जुलाई, 1997
देशभारत
भाषाहिन्दी
लागत10 करोड़ (US$1.46 मिलियन)
कुल कारोबार25 करोड़ (US$3.65 मिलियन)

गुप्त 1997 में बनी हिन्दी भाषा की रहस्यमयी थ्रिलर फिल्म है। इसका निर्देशन राजीव राय ने किया और बॉबी देओल, मनीषा कोइराला और काजोल इसमें प्रमुख भूमिकाओं में हैं। परेश रावल, ओम पुरी और राज बब्बर सहायक चरित्रों को निभाते हैं। गीतकार आनंद बख्शी है जबकि विजू शाह ने उनको संगीतबद्ध किया। जारी होने पर गुप्त आलोचनात्मक और व्यावसायिक सफलता रही थी। विशेषकर इसकी कहानी और संगीत प्रशंसा पाए थे।

संक्षेप

गवर्नर जयसिंह सिन्हा (राज बब्बर) राजनीति के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध रहता है और एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। साहिल सिन्हा (बॉबी देओल) उसका सौतेला बेटा होता है। उसकी माँ, शारदा अपने पति के मौत के बाद सिन्हा के साथ शादी कर लेती है। सिन्हा का एक छोटा बेटा, हर्ष है। ईश्वर दीवान (परेश रावल) उसका निजी सेक्रेटरी होता है, और उसकी बेटी ईशा (काजल) साहिल से बेहद प्यार करते रहती है। वहीं मेघनाद चौधरी की बेटी, शीतल (मनीषा कोइराला) भी साहिल से प्यार करते रहती है, लेकिन साहिल के मन में उसके लिए कुछ नहीं होता है।

एक शाम, साहिल के जन्मदिन को मनाने के लिए जयसिंह एक पार्टी का आयोजन करता है। इसी पार्टी में वो साहिल और शीतल की सगाई की घोषणा करता है। इसके बाद साहिल और जयसिंह के बीच कहा-सुनी हो जाती है। एक समय ऐसा आता है कि साहिल आवेश में आ कर अपने पिता को मारने की कोशिश करता है, पर बीच में शारदा आ जाती है। इसके दूसरे दिन डॉ॰ गांधी (कुलभूषण खरबंदा) के घर पर साहिल काफी शराब पी लेता है। डॉ॰ गांधी पूरे सिन्हा परिवार का डॉक्टर रहता है, वो उसे शीतल को अपनी पत्नी स्वीकार करने बोलता है, जिससे वो उसके साथ खुशी-खुशी जीवन बिता सकता है। नशे में धुत साहिल घर वापस आता है और अपने पिता से मिलने जाता है। वो ये देख कर हैरान रह जाता है कि किसी ने उसके पिता को मार दिया है। थोड़ी देर में शारदा आती है और देखती है कि साहिल अपने सौतेले पिता के पास चाकू के साथ खड़ा है। साहिल पर अपने सौतेले पिता की हत्या करने का आरोप लग जाता है और अदालत में उसी की माँ उसके खिलाफ गवाही देती है, जिसके कारण उसे 14 साल की जेल हो जाती है। जेल जाने से थोड़ी देर पहले वो शीतल को एक नेकलेस देता है और कहता है कि शायद इसे हत्यारे ने गलती से गिरा दिया था।

जेल में साहिल को एक पुराना कैदी मिलता है, जो उसे बेकसूर मानते रहता है। वो कैदी साहिल को बताता है कि जेल से भागने का बस एक ही रास्ता है, जो गटर से होते हुए बाहर की ओर जाता है। साहिल दूसरे कैदियों के साथ झगड़ा करता है, जिसके कारण उसे और दो अन्य कैदियों को जेलर (तेज सप्रू) एक चैंबर में बंद कर देता है। साहिल और वो दोनों कैदी जेल से निकल कर नदी में आ जाते हैं और शीतल के द्वारा लाये नाव की मदद से भागने में सफल रहते हैं। साहिल के जेल से भागने के बाद पुलिस कमिश्नर पटवर्धन (अंजान श्रीवास्तव) इस मामले को पुलिस अफसर उधम सिंह (ओम पुरी) को देते हैं। साहिल छुपते हुए ईशा के घर में उससे मिलता है। वो डॉ॰ गांधी को फोन कर सलाह लेती है, तो वो उसे अपने घर आने को कहता है। जब वो डॉ॰ गांधी के घर आता है तो वहाँ उनकी लाश मिलती है, और उसके द्वारा कुछ करने से पहले ही एक नौकर उसे देख लेता है और इस तरह साहिल पर एक और खून का आरोप लग जाता है।

साहिल अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए असल हत्यारे की तलाश करने लगता है। एक-एक करके वो कई लोगों पर शक करने लगता है, पर सभी बेकसूर निकलते हैं। वहीं उधम सिंह को भी लगने लगता है कि साहिल असल हत्यारा नहीं है। उधम सिंह को पता चलता है कि जिन दो चाकुओं से हत्या हुई थी, वो किसी एक सेट का हिस्सा है। वो चाकुओं का सेट उन्हें ईश्वर दीवान के घर से मिलता है। उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और वो पुलिस के सामने अपना गुनाह स्वीकार भी कर लेता है। वो बोलता है कि जयसिंह उसकी बेटी को अपनी बहू नहीं बनाना चाहता था, इस कारण उसने उसकी हत्या कर दी और डॉ॰ गांधी को अपराध छुपाने के लिए मार दिया। शीतल ये बात साहिल को बताती है कि असल हत्यारा ईश्वर दीवान था।

जयसिंह का बेटा, हर्ष उस नेकलेस के साथ खेलते रहता है, जो साहिल को घटना स्थल पर मिला था। वो उस नेकलेस को खोल लेता है, जिसमें ईशा की तस्वीर लगी होती है। जिससे पता चलता है कि असल में सारी हत्या ईशा ने की है। इसी दौरान ईशा, अफसर उधम सिंह के ऊपर हमला कर देती है, जिससे उधम सिंह को गंभीर चोट आ जाती है। नेकलेस में लगी तस्वीर को देख कर साहिल सीधे ईश्वर दीवान से मिलता है और उसके द्वारा उसे पता चलता है कि वो सारे खून असल में ईशा ने किए थे, ताकि वो साहिल से दूर न हो सके।

साहिल को समझ आता है कि ईशा जरूर शीतल पर अगला हमला करेगी, इस कारण वो शीतल को फोन कर बताने की कोशिश करते रहता है कि तभी दरवाजे की घंटी बजती है, वो दरवाजा खोल कर ईशा का स्वागत करती है। ईशा उस पर हमला करने लगती है और साहिल समय पर आ कर उसे बचा लेता है। ईशा जब मारने के लिए होते रहती है कि तभी पुलिस भी आ जाती है और उसे गोली मार देती है। इसके बाद ईशा की मौत हो जाती है।

मुख्य कलाकार

संगीत

सभी गीत आनंद बख्शी द्वारा लिखित; सारा संगीत विजू शाह द्वारा रचित।

क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."दुनिया हसीनों का मेला"उदित नारायण, सुनीता राव6:33
2."गुप्त गुप्त"कविता कृष्णमूर्ति, हेमा सरदेसाई, चेतन2:56
3."गुप्त गुप्त" (विस्तारित संस्करण)कविता कृष्णमूर्ति, हेमा सरदेसाई, चेतन4:53
4."मेरे ख्वाबों में तू"अलका याज्ञिक, कुमार सानु5:35
5."मेरे सनम मुझको तेरी कसम"साधना सरगम, उदित नारायण5:50
6."मुश्किल बड़ा ये प्यार है"अलका याज्ञिक, उदित नारायण5:54
7."ये प्यार क्या है"कुमार सानु, अलका याज्ञिक, कविता कृष्णमूर्ति6:35
8."ये प्यासी जवानी"अलका याज्ञिक6:02

नामांकन और पुरस्कार

वर्ष नामित कार्य पुरस्कार परिणाम
1998 गुलशन राय फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कारनामित
राजीव राय फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कारनामित
ओम पुरी फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कारनामित
काजोल फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कारजीत
विजू शाह फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कारनामित
अलका याज्ञिक ("मेरे ख्वाबों में तू") फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कारनामित
विजू शाह फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व संगीत पुरस्कार जीत
राजीव राय फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सम्पादन पुरस्कार जीत

बाहरी कड़ियाँ