गुड़हल
गुड़हल | ||||||||||||
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खिला हुआ गुड़हल का पुष्प | ||||||||||||
वैज्ञानिक वर्गीकरण | ||||||||||||
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जाति | ||||||||||||
गुड़हल या जवाकुसुम वृक्षों के मालवेसी परिवार से संबंधित एक फूलों वाला पौधा है। इसका वनस्पतिक नाम है- हीबीस्कूस् रोज़ा साइनेन्सिस। इस परिवार के अन्य सदस्यों में कोको, कपास, भिंडी और गोरक्षी आदि प्रमुख हैं। यह विश्व के समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और अर्द्ध उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। गुडहल जाति के वृक्षों की लगभग २००–२२० प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ वार्षिक तथा कुछ बहुवार्षिक होती हैं। साथ ही कुछ झाड़ियाँ और छोटे वृक्ष भी इसी प्रजाति का हिस्सा हैं। गुड़हल की दो विभिन्न प्रजातियाँ मलेशिया तथा दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय पुष्प के रूप में स्वीकार की गई हैं।
आकार
गुड़हल की पत्तियाँ प्रत्यावर्ती, सरल, अंडाकार या भालाकार होती हैं और अक्सर इनके किनारे दंतीय होते हैं। फूल आकार में बड़े, आकर्षक, तुरही के आकार के होते हैं। प्रत्येक पुष्प में पाँच या इससे अधिक पंखुड़ियाँ होती हैं। इन पंखुडियों का रंग सफेद से लेकर गुलाबी, लाल, पीला या बैंगनी भी हो सकता है और इनकी चौडाई ४-५ सेमी तक होती है। इसका फल सूखा और पंचकोणीय होता है जिसकी हर फाँक में बीज होते हैं। फल के परिपक्व होने पर यह अपने आप फूटता है और बीज बाहर आ जाते हैं
सामान्य उपयोग
गुड़हल की कुछ प्रजातियों को उनके सुन्दर फूलों के लिये उगाया जाता है। नीबू, पुदीने आदि की तरह गुड़हल की चाय भी सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। गुड़हल की एक प्रजाति ‘कनाफ’ का प्रयोग कागज बनाने में किया जाता है। एक अन्य प्रजाति ‘रोज़ैल’ का प्रयोग प्रमुख रूप से कैरिबियाई देशों में सब्जी, चाय और जैम बनाने में किया जाता है। गुड़हल के फूलों को देवी और गणेश जी की पूजा में अर्पित किया जाता है। गुड़हल के फूलों में, फफूंदनाशक, आर्तवजनक, त्वचा को मुलायम बनाने और प्रशीतक गुण भी पाए जाते हैं। कुछ कीट प्रजातियों के लार्वा इसका प्रयोग भोजन के रूप में करते हैं। दक्षिण भारत के मूल निवासी गुड़हल के फूलों का इस्तेमाल बालों की देखभाल के लिये करते हैं। इसके फूलों और पत्तियों को पीस कर इसका लेप सर पर बाल झड़ने और रूसी की समस्या से निपटने के लिये लगाया जाता है। इसका प्रयोग केश तेल बनाने में भी किया जाता है। इस फूल को परंपरागत हवाई महिलाओं द्वारा कान के पीछे से टिका कर पहना जाता और इस संकेत का अर्थ होता है कि महिला विवाह हेतु उपलब्ध है।
औषधीय उपयोग
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार सफेद गुड़हल की जड़ों को पीस कर कई दवाएँ बनाई जाती हैं। मेक्सिको में गुड़हल के सूखे फूलों को उबालकर बनाया गया पेय एगुआ डे जमाईका अपने रंग और तीखे स्वाद के लिये काफी लोकप्रिय है। अगर इसमें चीनी मिला दी जाय तो यह क्रैनबेरी के रस की तरह लगता है। डायटिंग करने वाले या गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं। ताइवान के चुंग शान मेडिकल यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि गुड़हल के फूल का अर्क दिल के लिए उतना ही फायदेमंद है जितना रेड वाइन और चाय। इस फूल में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित रखने में मददगार होते हैं। विज्ञानियों के मुताबिक चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि गुड़हल (हीबीस्कूस्) का अर्क कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक है। इसलिए यह इनसानों पर भी कारगर होगा।[1]
पुष्प
जवा एक पूर्ण एवं नियमित पुष्प का उदाहरण है। पुष्प के चारो भाग पुटचक्र, दलचक्र, पुमंग तथा जायांग इसमें पाएँ जाते हैं। पुटचक्र संख्या में पाँच तथा युक्तनिदल होते हैं। पुटचक्र के नीचे स्थित निपत्रों के चक्र को अनुबाह्यदल कहते हैं। दलचक्र पाँच एवं पृथकदल होते हैं परन्तु ये आधारतल पर कुछ दूर तक जुड़ा हुए होते हैं।. दलपत्रों की संख्या पाँच होती है। दलपत्रों का व्यास 4 से लेकर 15 सेंटीमीटर तक होता है। विभिन्न प्रजातियों के दलपत्र विभिन्न रंगों के एवं आकर्षक होते हैं। पुमंग अनेक एवं एकसंलाग होते हैं। तंतु संयुक्त होकर एक नली बनाते हैं परंतु परागशय अलग होते हैं। परागशय का आकार वृक्क के समान होता है। जायांग पाँच एवं प्रत्येक अंडप के अंतिम भाग में एक वर्तिकाग्र होते हैं।[2]
विभिन्न प्रजातियाँ
- ब्ल्यूटेन गुड़हल
- क्यूबा का बेई विनालेस
- पिपर सर्प्राइज़ (सघन प्रजाति)
- पिपर सर्प्राइज़
- पीला गुड़हल
- पीले गुड़हल पर परागकण
- गुलाबी गुड़हल
- नीला गुड़हल
- लाल गुड़हल (विरल प्रजाति)
- फूल और कली
इन्हें भी देखें
गुड़हल की चाय : गुड़हल फूल की जीवंत पंखुड़ियों से बनाया जाता है, जो अपनी उच्च एंटीऑक्सीडेंट सामग्री के लिए जाना जाता है।
सन्दर्भ
- ↑ "गुड़हल का फूल घटाएगा कोलेस्ट्रॉल". प्रजाभारत. मूल से 26 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २५ अगस्त २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ बनलग्रामी, कृष्णसहाय (1997). इंटरमीडिएट वनस्पतिविज्ञान. पटना: भारती भवन.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद);|access-date=
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(मदद)