गार्गीय-ज्योतिष
गार्गीय-ज्योतिष पहली शताब्दी का संस्कृत भाषा का ज्योतिषीय ग्रंथ है। इसे गर्ग-संहिता के नाम से भी जाना जाता है। वृद्ध गर्ग को इसका रचयिता माना जाता है। यह भारतीय ज्योतिष ( ज्योतिषशास्त्र ) का सबसे प्राचीन प्रचलित ग्रन्थ है। यह गर्ग और क्रौष्टुकी के बीच संवाद के रूप में लिखा गया है।
संरचना
इसमें निम्नलिखित अध्याय (अङ्ग) हैं।
- कर्मगुण : नक्षत्र, तिथि, ग्रह और मुहूर्त के ज्योतिषीय गुण
- चन्द्रमार्ग (चन्द्रमा का मार्ग)
- नक्षत्र-केन्द्रभा (नक्षत्रों के वृत्त का निकलना)
- राहुचार (राहु का मार्ग)
- बृहस्पतिचार
- शुक्रचार
- केतुमाला (केतु की रेखा)
- शनैश्चरचार(शनि का मार्ग)
- अङ्गारकचार (मंगल का मार्ग)
- बुधचार (बुध का मार्ग)
- आदित्यचार (सूर्य का मार्ग)
- अगस्त्यचार (अगस्त्य का मार्ग)
- अन्तरचक्र ("Circle of intermediate region")
- मृगचक्र (मृग का वृत्त)
- श्वचक्र (कुत्तों का वृत्त)
- वातचक्र (वायु चक्र)
- वास्तुविद्या
- अङ्गविद्या (अंगों से सम्बन्धित ज्ञान)
- वायसविद्या (पक्षियों से सम्बन्धित विद्या)
- स्वातियोग ("Conjunction with Svāti")
- आषाढयोग
- रोहिणीयोग
- जनपदव्यूह (देशों का विन्यास)
- सलिल (वर्षा)
- ग्रहकोश (ग्रहों का समुच्चय)
- ग्रहसमागम ("Conjunction of planets")
- ग्रह-म्रादक्षिण्यम्
- ग्रहयुद्ध (ग्रन्हों का विरोध)
- ग्रहशृंगाटक ("Configuration of planets")
- ग्रहपुराण
- ग्रहपाक (ग्रहों का प्रभाव)
- यात्रा ("सैन्य ज्योतिष")
- अग्निवर्ण (अग्नि की प्रकृति)
- सेना-व्यूह (सेना का विन्यास)
- मयूर-चित्र ("Variegation of peacock")
- भुवनपुष्कर ("Lotus[-model] of the earth")
- बल्युपहार ("Offering of oblations")
- शान्तिकल्प ("Rules for propitiation")
- राष्ट्रोत्पात-लक्षण (आपदा के लक्षण)
- तुलाकोश ("Weighing on balance")
- युगपुराण (युगों का पुराण)
- सर्व-भूतरुत ("Cries of all creatures"), . Omens of various birds and animals
- वस्त्र-छेद ("Tears in clothes")
- बृहस्पतिपुराण
- इन्द्रध्वज (इन्द्र का ध्वज)
- अज-लक्षण (बकरा के लक्षण)
- कूर्म-लक्षण (कछुए के लक्षण)
- स्त्री-लक्षण"
- गज-लक्षण
- गो-लक्षण (गाय के लक्षण)
- भार्गवसंस्थान (बुध का उदय)
- गर्भसंस्था ("Appearance of embryos")
- दगार्गल ("Water-divining")
- निर्घाट ("Natural destructions")
- भूमिकम्प (भूकम्प)
- परिवेष ("Halos")
- उल्का-लक्षण (उल्का के लक्षण)
- परिवेष-चक्र ("Circle of halos")
- ऋतु-स्वभाव ("Nature of seasons")
- सन्ध्या-लक्षण ("Signs of twilight")
- उल्का-लक्षण ("Signs of meteors")
- नक्षत्र-पुरुष-कोश ("Compendium on nakṣatra-man")