गायन
गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है।
गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है।[1] पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं।
मानव स्वर
अपने भौतिक पहलू में, गायन एक अच्छी तरह से परिभाषित तकनीक है जो फेफड़ों के प्रयोग पर, जो हवा की आपूर्ति, या धौंकनी की तरह कार्य करते हैं, स्वर यंत्र जो बांसुरी या कम्पक का काम करता है, वक्ष और सिर की गुहाएं, जो वायु वाद्य़ में नली की तरह, ध्वनि विस्तारक का कार्य करती हैं और जीभ जो तालू, दांतों और होठों के साथ मिलकर स्वरों और व्यंजनों का उच्चारण करती है, पर निर्भर होती है। हालाँकि ये चारों प्रणालियां स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं, उन्हें एक मुखऱ तकनीक की स्थापना के लिये समन्वित किया जाता है और वे एक दुसरे के साथ अंतर्क्रिया करने के लिये बनी होती हैं।[2] निष्क्रिय श्वास क्रिया के समय, हवा मध्यपटल के साथ अंदर ली जाती है जबकि उच्छ्वास की क्रिया बिना किसी प्रयास के हो जाती है। पेट, आंतरिक अंतर्पसलीय और अधो श्रोणिक पेशियां उच्छ्वास की क्रिया में सहायक हो सकती है। बाह्य अंतर्पसलीय, स्केलीन और स्टर्नोक्लीडोमैस्टायड पेशियां उच्छ्वास में सहायता करती हैं। स्वर रज्जु आवाज की पिच में परिवर्तन करते हैं। होठों को बंद रख कर स्वर उत्पन्न करने को गुनगुनाने की संज्ञा दी जाती है।
प्रत्येक व्यक्ति के गायन की अद्वितीय न केवल आवाज रज्जुओं के वास्तविक आकार व बनावट के कारण ही नहीं होती बल्कि उस व्यक्ति के शेष शरीर के आकार और बनावट पर भी निर्भर होती है। मनुष्य के स्वर रज्जुओं की मोटाई ढीली की जा सकती है या, कसी जा सकती है या बदली भी जा सकती है और उन पर से हवा बदलते हुए दबाव के साथ प्रवाहित की जा सकती है। वक्ष और गर्दन का आकार, जीभ की स्थिति और अन्यथा असंबंधित पेशियों के तनाव को बदला जा सकता है। इनमें से किसी भी कार्य के होने पर उत्पन्न आवाज की पिच, आयतन, लय या सुर में परिवर्तन हो जाता है। ध्वनि शरीर के विभिन्न भागों में भी प्रतिध्वनित होती है और एक व्यक्ति का आकार और हड्डियों का ढांचा उस व्यक्ति द्वारा उत्पन्न ध्वनि को प्रभावित कर सकता है।
गायक आवाज को कुछ इस तरह प्रस्तुत करना भी सीख सकते हैं जिससे कि वह उनके स्वर तंत्र में बेहतर तरीके से गूंज सके। इसे मुखर प्रतिध्वनिकरण के नाम सो जाना जाता है। मुखर स्वर और उत्पादन पर एक प्रमुख प्रभाव स्वर यंत्र के कार्य से होता है, जिसे लोग भिन्न तरीकों से प्रयोग करके भिन्न प्रकार के स्वर उत्पन्न करते हैं। स्वर यंत्र के इन भिन्न प्रकार के कार्यों का भिन्न प्रकार की मुखर पंजियों के रूप में वर्णन किया जाता है।[3] इस सफलता के लिये गायकों द्वारा प्रयुक्त विधि में गायक के फार्मेंट का प्रयोग किया जाता है, जिसे कान के आवृति दायरे के सबसे अधिक संवेदनशील भाग से खास तौर पर अनुकूल पाया गया है।[4][5]
मुखर पंजीकरण
साँचा:Vocal registration मुखर पंजीकरण मानव की आवाज के भीतर स्थित मुखर रजिस्टरों की प्रणाली को संदर्भित करता है। मानव आवाज की पंजी एक विशेष सुरों की श्रृंखला होती है, जो स्वर रज्जुओं के समान कंपनों में उत्पन्न होती है और एक समान गुणवत्ता लिये होती है। पंजियों का मूल स्वर यंत्र के कार्य में होता है। वे इसलिये होती हैं क्योंकि स्वर रज्जुओं में कई अलग अलग तरह के कंपन उत्पन्न करने की क्षमता होती है। कम्पन के ये प्रकार पिचों के एक विशेष दायरे में प्रकट होते हैं और खास तरह के स्वर उत्पन्न करते हैं।[6] शब्द "पंजी" कुछ भ्रामक हो सकता है क्यौंकि यह मानव आवाज के कई पहलुओं को अपने में संजोए होता है। पंजी शब्द का प्रयोग निम्न में से किसी के संदर्भ में भी किया जा सकता है:[7]
- गायन के दायरे के किसी खास भाग जैसे ऊपरी, मध्यम या निचली पंजियां
- कोई प्रतिध्वनि क्षेत्र जैसे, वक्ष स्वर या शीर्ष स्वर।
- स्वरीकरण प्रक्रिया (स्वरीकरण प्रक्रिया में स्वर रज्जु के कंपन द्वारा मुखर स्वर उत्पन्न किया जाता है जिसे फिर स्वर प्रणाली की प्रतिध्वनि द्वारा संशोधित किया जाता है)।
- कोई निश्चित मुखर लय या गायन "रंग"
- आवाज का एक क्षेत्र जिसे स्वर के व्यवधान द्वारा परिभाषित या सीमांकित किया जाता है।
भाषा विज्ञान में, एक पंजीकृत भाषा वह भाषा है जो सुर और स्वर को एक एकल स्वर विज्ञान प्रणाली में संयुक्त करती है। वाक रोगविज्ञान में शब्द मुखर पंजी के तीन तत्व होते हैं - स्वर राज्जों का कोई निश्चित कम्पन प्रकार, पिचों की कोई निश्चित श्रंखला और कोई निश्चित प्रकार की आवाज। वाक रोगविशेषज्ञ स्वरयंत्र के शरीर विज्ञान क्रिया के आधार पर चार मुखर पंजियों की पहचान करते हैं - मुखर फ्राई पंजी, मोडल पंजी, फाल्सेटो पंजी और सीटी पंजी। यही नजरिया कई मुखर शिक्षाविदों ने भी अपनाया है।[7]
स्वर प्रतिध्वनिकरण या स्वर गुंजन
स्वर प्रतिध्वनिकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा स्वर उत्पादनक्रिया के मूल उत्पाद के सुर या गहराई को हवा से भरी गुहाओं द्वारा उस समय बढ़ाया जाता है जब वह उनमें से बाहरी हवा तक जाते हुए गुजरती है। प्रतिध्वनि क्रिया से संबंधित कई शब्दों में ध्वनि-विस्तारण, प्रचुरीकरण, विस्तार, सुधार, तीव्रीकरण और दीर्घीकरण शामिल हैं, हालाँकि पक्के वैज्ञानिक प्रयोग के लिये स्वर के अधिकारी उनमें से अधिकांश पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। किसी गायक या वक्ता द्वारा इन शब्दों से निकाला जाने वाला मुख्य निष्कर्ष यह होता है कि प्रतिध्वनि का अंतिम परिणाम एक बेहतर आवाज होनी चाहिये।[7] शरीर में सात ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें संभावित स्वर प्रतिध्वनिकारकों के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है। शरीर में सबसे नीचे की स्थिति से सबसे ऊपर की स्थिति की श्रंखला में ये क्षेत्र हैं, वक्ष, वायुनली वृक्ष, स्वरयंत्र, गला, मुखगुहा, नासगुहा और साइनस।[8]
वक्ष स्वर और शीर्ष स्वर
वक्ष स्वर और शीर्ष स्वर मुखर संगीत में प्रयुक्त पद हैं। इन पदों का प्रयोग मौखिक स्वर शिक्षाविदों में बड़े पैमाने पर भिन्न तरह से होता है और वर्तमान में इन पदों के विषय में मुखर संगीत पेशेवरों में कोई स्थिर राय नहीं है। वक्ष स्वर का प्रयोग स्वर की सीमा के किसी विशेष भाग या स्वर पंजी के किसी विशेष प्रकार - स्वर गुंजन क्षेत्र, या विशिष्ट स्वर ताल - के संबंध में किया जा सकता है।[7] शीर्ष स्वर का प्रयोग भी स्वर की सीमा के किसी विशेष भाग या स्वर पंजी के प्रकार या स्वर गुंजन क्षेत्र के संदर्भ में किया जा सकता है।[7]
इतिहास और विकास
वक्ष स्वर और शीर्ष स्वर पदों का पहला लिखित संदर्भ 13वीं शताब्दी के आस-पास मिलता है, जब जोहान्स डी गार्लैंडिया और जेरोम ऑफ मोराविया नामक लेखकों द्वारा इसे गले के स्वर (पेक्टोरिस, गट्टोरिस, कैपिटिस - उस समय यह संभव है कि शीर्ष स्वर का अर्थ फाल्सेटो पंजी से था) से अलग पहचाना गया।[9] इन पदों को बाद में बेल कैंटो नामक इतालवी आपेरा गायन विधि में समाविष्ट कर लिया गया, जिसमें वक्ष स्वर को तीनों स्वर पंजियों-वक्ष, पैसेजियो और शीर्ष पंजी: में सबसे नीचे और शीर्ष स्वर को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया था।[10] यह बात आज भी कुछ स्वर शिक्षाविदों द्वारा पढ़ाई जाती है। आजकल प्रचलित बेल कैंटो माडल पर आधारित एक और पद्धति के अनुसार पुरूष और स्त्री के स्वरों को तीन पंजियों में विभाजित किया गया है। पुरूषों के स्वरों को वक्ष पंजी, शीर्ष पंजी और फाल्सेटो पंजी में और स्त्रियों के स्वर को वक्ष पंजी, मध्य पंजी और शीर्ष पंजी में विभाजित किया गया है। ये शिक्षाविद कहते हैं कि शीर्ष पंजी गायक के सिर में महसूस किये जाने वाले गुंजन का वर्णन करने के लिये गायन में प्रयुक्त एक स्वर तकनीक है।[11]
लेकिन पिछले दो सौ वर्षों में मानव के शरीरक्रिया विज्ञान की जानकारी और गायन और स्वर के उत्पादन की भौतिक क्रिया की समझ में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप कई स्वरशिक्षाविदों जैसे इंडियाना विश्वविद्यालय के राल्फ एप्पेलमैन और दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के विलियम वेनार्ड ने वक्ष स्वर और शीर्ष स्वर पदों के प्रयोग को पुनर्परिभाषित कर दिया है या उनका प्रयोग करना ही बंद कर दिया है।[10] खास तौर पर वक्ष पंजी और शीर्ष पंजी पदों का प्रयोग विवादास्पद हो गया है क्योंकि स्वर पंजी को आजकल स्वर तंत्र की क्रिया के उत्पाद के रूप में देखा जाता है जो कि वक्ष, फेफडों और सिर के शरीरक्रियाविज्ञान से असंबंधित है। इसी वजह से कई स्वर शिक्षाविद यह तर्क करते हैं कि पंजियों के वक्ष या सिर में उत्पन्न होने की बात करना अनर्गल है। वे कहते हैं कि इन क्षेत्रों में महसूस होने वाले कंपन प्रतिध्वनियां हैं और उनका वर्णन पंजियों की बजाय स्वर के गुंजन से संबंधित पदों में किया जाना चाहिये। ये स्वर शिक्षाविद पंजी के स्थान पर वक्ष स्वर और शीर्ष स्वर पदों का प्रयोग अधिक पसंद करते हैं। इस नजरिये के अनुसार जिन समस्याओं को लोग पंजी की समस्याएं मानते हैं वे दरअसल प्रतिध्वनि के समंजन की समस्याएं हैं। यह नजरिया वाक रोगशास्त्र, स्वर विज्ञान और भाषाविज्ञान सहित स्वर पंजियों का अध्ययन करने वाले अन्य शैक्षणिक क्षेत्रों के नजरियों से भी सामंजस्य रखता है। हालाँकि दोनो ही विधियां अभी भी प्रयोग में हैं, फिर भी वर्तमान स्वर शिक्षाविद व्यवसाय नए अधिक वैज्ञानिक नजरिये को अपनाना पसंद करता है। हां, कुछ स्वर शिक्षाविद दोनों नजरियों के विचारों का प्रयोग करते हैं।[7]
वक्ष स्वर शब्द का समकालीन प्रयोग अकसर किसी विशिष्ट स्वर वर्ण या स्वर के ताल के संदर्भ में होता है। शास्त्रीय गायन में, इसका प्रयोग पूरी तरह से मोडल पंजी या सामान्य स्वर के निचले भाग तक ही सीमित होता है। गायन के अन्य प्रकारों में वक्ष स्वर को अकसर समूचे मोडल पंजी में प्रयोग में लाया जाता है। वक्ष सुर गायक के स्वर की अर्थपूर्ण रंगपट्टिका में स्वरों की आश्चर्यजनक कतार लगा सकते हैं।[12] लेकिन वक्ष में ऊंचे स्वरों को उत्पन्न करने की कोशिश में ऊंची पंजियों में अधिक बलशाली वक्ष स्वर का प्रयोग बलप्रयोग उत्पन्न कर सकता है। बलप्रयोग से अंततोगत्वा स्वर का ह्रास हो सकता है।[13]
गायन के स्वरों का वर्गीकरण
साँचा:Vocal range यूरोपीय शास्त्रीय संगीत और आपेरा में, स्वरों का प्रयोग संगीत के वाद्यों की तरह किया जाता है। स्वर संगीत लिखने वाले गीतकारों को गायकों के हुनर और स्वर के गुणों की पहचान होना आवश्यक होता है। स्वर वर्गीकरण एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानवीय गायन स्वरों का मूल्यांकन करके उन्हें विभिन्न स्वर प्रकारों का नाम दिया जाता है। इन गुणों में स्वर का दायरा, स्वर का वजन, स्वर का टेसीट्यरा, स्वर की गहराई और स्वर के परिवर्तन बिंदु जैसे स्वर के तोड़ और उठाव आदि शामिल होते हैं। अन्य ध्यान देने योग्य बातों में भौतिक गुण, वाकस्तर, वैज्ञानिक परीक्षण और स्वर पंजीकरण शामिल हैं।[14] यूरोपीय शास्त्रीय संगीत में विकसित स्वर वर्गीकरण से संबंधित विज्ञान गायन के अधिक आधुनिक प्रकारों से अनुकूलन में पिछड़ गया है। आपेरा में स्वर वर्गीकरण का प्रयोग अकसर भावी स्वरों को संभावित भूमिकाओं से जोड़ने के लिये किया जाता है। शास्त्रीय संगीत में आजकल कई विभिन्न प्रणालियां हैं जिनमें शामिल हैं-जर्मन फैक प्रणाली और कोरल संगीत प्रणाली। कोई एक प्रणाली न तो सभी स्थानों में लागू है और न ही स्वीकृत है।[10]
फिर भी अधिकांश शास्त्रीय संगीत प्रणालियां सात भिन्न मुख्य स्वर प्रकारों को मान्यता देती हैं। स्त्रियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है - सोप्रानो, मेज़ो-सोप्रानो और कान्ट्राल्टो। पुरूषों को सामान्यतः चार समूहों में बांटा गया है - काउंटरटीनॉर, टीनॉर, बैरिटोन और बैस। तरूण होने के पहले की उम्र वाले बच्चों की आवाजों पर ध्यान देते समय एक आठवें पद, ट्रेबल, का प्रयोग किया जा सकता है। इन सभी मुख्य प्रकारों में से हर एक के कई उपप्रकार होते हैं जो आवाजों की अलग पहचान के लिये विशिष्ट स्वर गुणों जैसे कलराटुरा सुविधा व स्वर के वजन की पहचान करते हैं।[7]
इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि कोरल संगीत में, गायकों के स्वर केवल आवाज की गहराई के आधार पर बंटे होते हैं। कोरल संगीत प्रत्येक लिंग में अधिकतर स्वर के भागों को ऊंची और नीची आवाजों (एसएटीबी (SATB), या सोप्रानो, आल्टो, टीनॉर और बैस) में बांटता है। परिणामस्वरूप, आदर्श कोरल स्थिति में दुर्वर्गीकरण हो जाने की बहुत संभावनाएं होती हैं।[7] चूंकि अधिकांश लोगों की आवाज मध्यम होती है, उन्हें उनके लिये या तो बहुत ऊंचा या बहुत नीचा भाग देना चाहिये; मेज़ो-सोप्रानो को सोप्रानो या आल्टो गाना चाहिये और बैरिटोन को टीनॉर या बैस गाना चाहिये। प्रत्येक विकल्प गायक के लिये कठिनाईयां प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन अधिकांश गायकों के लिये नीचे के सुर में गाने में ऊंचे सुर में गाने की अपेक्षा कम खतरा होता है।[15]
संगीत के समकालीन प्रकारों (जिन्हें कभी-कभी समकालीन व्यावसायिक संगीत का नाम दिया जाता है) में गायकों को उनके द्वारा गाए जाने वाले संगीत के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जैसे जैज़, पॉप, व्लूज़, सोल, कंट्री, फोक, या रॉक शैलियां। वर्तमान समय में गैर-शास्त्रीय संगीत में कोई आधिकारिक स्वर वर्गीकरण नहीं है। अन्य प्रकार के गायन में शास्त्रीय स्वर के प्रकारों का प्रयोग करने के प्रयत्न किये गए हैं लेकिन ऐसे प्रयत्न विवादग्रस्त हो गए हैं।[16] स्वर के प्रकारों के वर्गीकरण का विकास इस भरोसे पर किया गया था कि गायक शास्त्रीय स्वर तकनीक का प्रयोग एक खास दायरे में रहकर बिना विस्तारित स्वर उत्पादन के साथ करेगा। चूंकि समकालीन संगीतज्ञ भिन्न स्वर तकनीकों, माइक्रोफोनों, का प्रयोग करते हैं और विशिष्ट स्वर भूमिका में जमने के लिये मजबूर नहीं होते हैं, इसलिये सोप्रानो, टीनॉर, बैरिटोन जैसे पदों का प्रयोग भ्रामक या गलत हो सकता है।[17]
स्वर शिक्षाशास्त्र
गायन के अध्यापन के अध्ययन को स्वर शिक्षाशास्त्र कहते हैं। स्वर शिक्षाशास्त्र की कला और विज्ञान का एक लंबा इतिहास है जो प्राचीन ग्रीस में शुरू हुआ था और आज तक विकसित और परिवर्तित हो रहा है।[] स्वर के शिक्षाशास्त्र की कला और विज्ञान का व्यवसाय करने वाले पेशों में स्वर प्रशिक्षक, कोरल निर्देशक, मुखर संगीत शिक्षकों, ओपेरा निर्देशक और गायन के अन्य अध्यापक शामिल हैं।
स्वर शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत उपयुक्त स्वर तकनीक के विकास का भाग हैं। अध्ययन के लिये आदर्श क्षेत्रों में निम्न शामिल हैं:[18][19]
- मानवीय शरीर रचना शास्त्र और शरीरक्रियाविज्ञान जो गायन की भौतिक प्रक्रिया से संबंधित है,
- स्वर का स्वास्थ्य और गायन से संबंधित स्वर के विकार
- श्वास क्रिया और गायन के लिये वायु का समर्थन
- स्वर उत्पादन
- स्वर की प्रतिध्वनि या स्वर का प्रोजेक्शन
- स्वर का पंजीकरण: स्वर रज्जुओं के समान कंपन प्रकार में उत्पन्न समान गुणवत्ता वाले तालों या लय की विशिष्ट श्रंखला, जो स्वर यंत्र से उत्पन्न होती है, क्योंकि इन सभी कंपन प्रकारों में से प्रत्येक पिचों के एक विशिष्ट दायरे में आते हैं और कुछ खास तरह की ध्वनियों को उत्पन्न करते हैं।
- स्वर वर्गीकरण
- स्वर की शैलियां: शास्त्रीय गायकों के लिये, इनमें लाइडर से आपेरा तक की शैलियां शामिल हैं; पॉप गायकों के लिये, शैलियों में "बेल्टेड आउट" ब्लूज़ बैलाड-जाज़ गायकों के लिये, शैलियों में स्विंग बैलाड और स्कैटिंग शामिल हैं।
- सोस्टेनूटो और लोगाटो जैसी शैलियों में प्रयुक्त तकनीकें, दायरे का विस्तारण, सुर की गुणवत्ता, वाइब्रेटो और कलराटुरा
स्वर की तकनीक
उपयुक्त स्वर की तकनीक से किया गया गायन एक एकीकृत और समन्वयित क्रिया है जो गायन की भौतिक प्रक्रियाओं को प्रभावी रूप से संयोजित करती है। मौखिक स्वर के उत्पादन में चार भौतिक प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है - श्वसन क्रिया, स्वर उत्पादन, प्रतिध्वनि और उच्चारण। ये प्रक्रियाएं निम्न श्रंखला में होती हैं:
- सांस ली जाती है
- स्वर यंत्र में आवाज शुरू होती है
- स्वर प्रतिध्वनिकारक आवाज को ग्रहण करते और उसको प्रभावित करते हैं
- उच्चारक आवाज को समझी जा सकने योग्य इकाइयों का रूप प्रदान करते हैं
यद्यपि ये चारों प्रक्रियाएं अध्ययन के समय अलग-अलग पढ़ी जाती हैं, वास्तव में वे एक संयोजित कार्य में मिली होती हैं। किसी प्रभावशाली गायक या वक्ता के साथ सुनने वाले का ध्यान कभी उसमें होने वाली प्रक्रिया की ओर नहीं जाता है क्यौंकि मन और शरीर इस तरह से समायोजित हो जाते हैं कि सुनने वाले को केवल उसके फलस्वरूप उत्पन्न एकीकृत कार्य का ही ध्यान रहता है। इस प्रक्रिया में समायोजन की कमी होने पर कई स्वर संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।[17]
चूंकि गायन एक समायोजित उपक्रम है, इसलिये किसी भी व्यक्तिगत तकनीकी क्षेत्र और प्रक्रियाओं के बारे में अन्य लोगों के संदर्भ के बिना कहना कठिन होता है। उदाहरण के लिये, स्वर निर्माण के बारे में तभी कह जा सकता है जब वह श्वसन क्रिया से जुड़ा हो, उच्चारक प्रतिध्वनि को प्रभावित करते हैं, प्रतिधवनिकारक स्वर रज्जुओं पर असर डालते हैं, स्वर रज्जु श्वास नियंत्रण को प्रभावित करते हैं, आदि। स्वर के विकारों के कारण अकसर उस समायोजित प्रक्रिया के एक भाग में रूकावट आ जाती है जिससे स्वर अद्यापक को अपने विद्यार्थी में प्रक्रिया के किसी एक भाग पर अधिक जोर देना पड़ता है जब तक कि वह समस्या ठीक न हो जाय। लेकिन गायन की कला के कुछ क्षेत्र समायोजित कार्यों के परिणामों से कि उनके बारे में पारम्परिक नामों जैसे स्वरीकरण, प्रतिध्वनिकरण, उच्चारण या श्वसनक्रिया के अंतर्गत बात करना कठिन है।
एक बार विद्यार्थी गायन की क्रिया में काम आने वाली प्रक्रियाओं व उनकी कार्यप्रणाली के प्रति सजग हो जाता है तो वह उनका समायोजन करने की कोशिश में लग जाता है। अपरिहार्य रूप से विद्यार्थी और अध्यापक किसी एक प्रकार की तकनीक के बारे में अधिक चिंतित हो जाते हैं। कई प्रक्रियाएं भिन्न दरों पर आगे बढ़ सकती हैं जिससे एक असंतुलन या समायोजन की कमी हो जाती है। विद्यार्थी की भिन्न कार्यों को समायोजित करने की क्षमता पर सबसे अधिक निर्भर स्वर की तकनाक के क्षेत्र हैं:[7]
- स्वर के दायरे को अपनी अधिकतम सीमा तक ले जाना
- एक समान सुर के गुण वाली एक समान आवाज की उत्पत्ति का विकास करना
- लचीलेपन और फुर्ती का विकास करना
- एक संतुलित वाइब्रेटो प्राप्त करना
गायन योग्य स्वर का विकास करना
गायन एक हुनर है जिसके लिये उच्च रूप से विकसित पेशी प्रतिवर्ती क्रियाओं की जरूरत होती है। गायन के लिये अधिक पेशीय शक्ति की जरूरत नहीं होती लेकिन पेशी के उच्च दर्जे के समायोजन की जरूरत पड़ती है। लोग अपने स्वरों को गीतों और स्वर के व्यायामों के ध्यानपूर्वक और व्यवस्थित अभ्यास द्वारा विकसित कर सकते हैं। स्वर शिक्षाविद अपने विद्यार्थियों से अपनी आवाज की कसरत बुद्धिमत्तापूर्वक करने का निर्देश देते हैं। गायकों को हमेशा यह सोचना होता है कि वे किस तरह की आवाज निकाल रहे हैं और गाते समय उन्हें किस तरह की अनुभूति हो रही है।[17] स्वर के व्यायामों के कई उद्देश्य होते हैं, जिनमें आवाज को गर्म करना, आवाज के दायरे को बढ़ाना, स्वर को क्षितिजवत और लंबवत कतार में लगाना और स्वर की तकनीकें सीखना जैसे, लेगेटो, स्टैकेटो, गतिकी का नियंत्रण, तेज बोलना, चौड़े अंतरालों पर आराम से गाना सीखना, कम्पित ध्वनि से गाना, मेलिस्मा गाना और स्वर की त्रुटियों का सुधार।[7]
आवाज के दायरे को बढ़ाना
स्वर के विकास का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, गुण या तकनीक में परिवर्तन की ओर बिना किसी तरह का ध्यान खींचे अपने स्वर के दायरे की प्राकृतिक सीमा के भीतर गाना सीखना। स्वर शिक्षाविद कहते हैं कि कोई गायक यह लक्ष्य केवल तभी प्राप्त कर सकता है जब गायन के लिये आवश्यक सभी भौतिक प्रक्रियाएं (जैसे स्वरयंत्र की क्रिया, श्वास का समर्थन, प्रतिध्वनि का समंजन और उच्चारण) प्रभावी रूप से एक साथ कार्य कर रही हों। अधिकांश स्वर शिक्षाविद इन प्रक्रियाओं के समायोजन के लिये (1) स्वर के सबसे आरामपूर्ण टेसीटूरा में अच्छी गायन की आदतों के निर्माण और फिर (2) अपने दायरे को धीरे-धीरे बढ़ाने में विश्वास करते हैं।[3]
ऊंचे या नीचे गाने की क्षमता को प्रभावित करने वाले तीन घटक हैं:
- ऊर्जा घटक - "ऊर्जा" के कई अर्थ हैं। इसका मतलब स्वर को बनाने में शरीर की संपूर्ण क्रिया से, भीतर सांस लेने वाली और सांस बाहर करने वाली पेशियों के बीच संबंध जिसे श्वास समर्थन प्रक्रिया कहते हैं, से, स्वर रज्जुओं पर श्वास से डाले गए दबाव और उस दबाव के प्रति उनके प्रतिरोध से, तथा आवाज के गतिकीय स्तर से होता है।
- स्थान घटक - "स्थान" से मतलब है मुंह के भीतर के स्थान का आकार और तालू और स्वरयंत्र की स्थिति। सामान्य तौर पर गायक का मुंह जितना ऊंचा वह गाता है, उतना ही अधिक खुलना चाहिये। भीतरी स्थान या नर्म तालू और स्वर यंत्र को गले को शिथिल करके चौड़ा किया जा सकता है। स्वर शिक्षाविद इसका वर्णन जम्हाई लेने की शुरूआत की तरह करते हैं।
- गहराई घटक - "गहराई" के दो अर्थ हैं। इसका मतलब शरीर और स्वर प्रक्रिया में गहराई के वास्तविक भौतिक अनुभव से और सुर के गुण से संबंधित गहराई के मानसिक सिद्धांतों से है।
मैककिनी का कहना है, ये तीनों घटक तीन मूल नियमों में व्यक्त किया जा सकते हैं - (1) जब आप ऊंचा गाते हैं, आपको अधिक ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिये, जब आप नीचे गाते हैं तो आप कम ऊर्जा का प्रयोग करना होता है। (2) जब आप ऊंचा गाते हैं, आपको अधिक स्थान का प्रयोग करना पड़ता है, जब आप निचले सुर में गाते हैं, आप कम स्थान का प्रयोग करते हैं। (3) जब आप ऊंचा गाते हैं, आप अधिक गहराई का प्रयोग करते हैं, जब आप निचले सुर में गाते हैं, आपको कम गहराई की जरूरत होती है।[7]
मुद्रा
गायन की प्रक्रिया शरीर की कुछ खास भौतिक दशाओं की उपस्थिति में सर्वोत्तम कार्य करती है। हवा को शरीर में मुक्त रूप से खींचने और बाहर निकालने और हवा की आवश्यक मात्रा के प्राप्त करने की क्षमता श्वसन प्रक्रिया के भिन्न भागों की मुद्रा द्वारा गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है। वक्ष का भीतर दबा होना फेफड़ों की क्षमता को सीमित कर देता है और सख्त पेट मध्यपट को नीचे की ओर आने से रोक सकता है। अच्छी मुद्रा श्वसन प्रक्रिया को अपना मूल कार्य ऊर्जा के व्यर्थ खर्च के बिना सुचारू रूप से करने देती है। अच्छी मुद्रा स्वर निर्माण को शुरू करना और प्रतिध्वनिकारकों की ट्यूनिंग को आसान बनाती है क्योंकि सही संयोजन शरीर में अनावश्यक तनाव उत्पन्न होने से रोकता है। स्वर शिक्षाविदों ने यह बात भी देखी है कि जब गायक अच्छी मुद्रा अपनाते हैं, तो उन्हें गाते समय अधिक आत्मविश्वास का अनुभव होता है। श्रोता भी अच्छी मुद्रा वाले गायकों के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया करते हैं। आदतन अच्छी मुद्रा बेहतर रक्त प्रवाह और शरीर को थकान व तनाव से बचाकर अंततोगत्वा शरीर के कुल स्वास्थ्य में सुधार लाती है।[3]
आदर्श गायन मुद्रा के आठ अंश होते हैं:
- हल्का सा लग महसूस करना
- पैर सीधे लेकिन घुटने खुले हुए
- कमर सामने की ओर सीधे
- रीढ़ सही रेखा में जमी हुई
- पेट सपाट रखे हुए
- सीना आराम से सामने की ओर तना हुआ
- कंधे नीचे और पीछे की ओर
- सिर सीधे सामने की ओर
श्वास व श्वास का समर्थन
प्राकृतिक श्वसन की तीन अवस्थाएं होती हैं, भीतर को सांस लेना, सांस को बाहर निकालना और विश्राम की अवस्था, ये अवस्थाएं सामान्य तौर पर जानबूझ कर नियंत्रित नहीं होती हैं। गायन में श्वसन क्रिया की चार अवस्थाएं होती हैं, भीतर सांस खींचना, नियंत्रण बनाने की अवधि, एक नियंत्रित उच्छवास अवधि (स्वर निर्माण) और एक पुनर्वास अवधि।
ये अवस्थाएं तब तक गायक के नियंत्रण में होनी चाहिये जब तक कि वे प्रतिवर्ती क्रियाएं न बन जाएं। कई गायक सचेत नियंत्रणों को उनके प्रतिवर्ती क्रियाओं में बदलने के पहले ही छोड़ देते हैं, जिससे अंततोगत्वा दीर्घकालिक स्वर की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।[20]
वाइब्रेटो
वाइब्रेटो का प्रयोग गायकों (और कई साजवादकों द्वारा-जैसे डोरी युक्त साज जिन पर एक कमान का प्रयोग करके वाइब्रेटो धुन उत्पन्न की जा सकती है) द्वारा तब किया जाता है जब कोई अनवरत सुर तेजी से और लगातार ऊपर और नीचे की पिच में जाता है जिससे सुर में जरा सा कम्पन उत्पन्न हो जाता है। वाइब्रेटो किसी अनवरत सुर में एक लहर होती है। वाइब्रेटो प्राकृतिक रूप से होता है और उचित श्वास समर्थन और आराम की स्थिति में काम कर रहे स्वर यंत्र का परिणाम होता है।[] कुछ गायक वाइब्रेटो का प्रयोग अभिव्यक्ति के रूप में करते हैं। कई सफल कलाकारों ने गहरे, प्रचुर वाइब्रेटो की नींव पर अपने करियर का निर्माण किया है।
मुखर संगीत
मुखर संगीत एक या अधिक गायकों द्वारा, साजों के साथ या बिना साजों के, प्रस्तुत संगीत होता है, जिसमें गायन का मुख्य भाग होता है। मुखर संगीत शायद संगीत का सबसे प्राचीन प्रकार है, क्योंकि इसे मानवीय स्वर के अलावा और किसी साज की जरूरत नहीं होती। सभी संगीत संस्कृतियों में किसी प्रकार का मुखर संगीत पाया जाता है और सम्पूर्ण विश्व की सभी संस्कृतियों में गायन की दीर्घकालिक परंपराएं रही हैं।
ऐसा संगीत जो गायन का प्रयोग तो करता है पर उसे मुख्य रूप से पेश नहीं करता है, सामान्य तौर पर साज-संगीत माना जाता है। उदाहरण के लिये, कुछ ब्लूज़ रॉक गीतों में सादे बुलावे-व-प्रतिक्रिया वाले कोरस हो सकते हैं, लेकिन गीत में साज से उत्पन्न धुनों पर अधिक जोर होता है। मुखर संगीत आदर्श रूप से गाए हुए शब्दों जिन्हें गीत कहते हैं, को पेश करता है, हालाँकि मुखर संगीत के ऐसे भी उदाहरण हैं जिन्हें बिना भाषा वाले शब्दों या आवाजों - कभी-कभी संगीत के ओनोमोटोपिया के रूप में - का प्रयोग किये भी प्रस्तुत किया गया है। गीत के साथ गाए हुए किसी भी मुखर संगीत के छोटे से टुकड़े को गाना कहते हैं।
मुखर संगीत की विधाएं
मुखर संगीत को कई भिन्न तरीकों और शैलियों में लिखा जाता है जिन्हें अकसर किसी खास विधा का नाम दिया जाता है। इन विधाओं में शामिल हैं: कला संगीत, लोकप्रिय संगीत, पारम्परिक संगीत, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संगीत और इन विधाओं के मिश्रण। इन मुख्य विधाओं में कई उप-विधाएं होती हैं। उदा. लोकप्रिय संगीत में ब्लूज़, जाज़, देशी संगीत, ईज़ी लिसेनिंग, हिप हॉप, रॉक संगीत और कई अन्य विधाएं शामिल हैं। एक उप-विधा में एक और उप-विधा भी हो सकती है, जैसे, जाज़ में वोकेलीज़ और स्कैट गायन।
लोकप्रिय और पारम्परिक संगीत
कई आधुनिक पॉप संगीत समूहों में, एक मुख्य गायक गाने के प्राथमिक सुरों या धुन की प्रस्तुति करता है और कोई और गायक गाने के पार्श्व में गायन या स्वरसंगति का कार्य करता है। पिछले गायक गाने के कुछ, लेकिन सामान्य तौर पर पूरे नहीं, हिस्सों का गायन ही करते हैं और अकसर गाने के पार्श्व में गुनगुनाने जैसा कार्य करते हैं। पांच भागों वाला गॉस्पेल कपेला संगीत इसका एक अपवाद है, जिसमें मुख्य आवाज पांच आवाजों में से सबसे ऊंची होती है और वह गीत का नहीं, बल्कि, उतार-चढ़ाव का गायन करती है। कुछ कलाकार आडियो रिकार्डिंगों में रिकार्ड किये हुए संगीत को आच्छादित करके मुख्य और पिछले दोनों प्रकार का गायन कर लेते हैं।
लोकप्रिय संगीत में कई मुखर स्वर शैलियां शामिल हो सकती हैं। हिप-हॉप रैपिंग का प्रयोग करता है, जिसमें किसी ताल पर बिना किसी सहयोग के गीतों को तालपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाता है। कुछ प्रकार की रैपिंग में जमैकाई टोस्टिंग की तरह, पूरी या अधिकांश बोलचाल या शब्दों का उच्चारण होता है। कुछ अन्य प्रकार की रैपिंग में गायक छोटे या अधूरे गाए गए भागों को जोड़ सकते हैं। ब्लूज़ गायन ब्लू सुरों के प्रयोग पर आधारित होता है-ऐसे सुर जो अभिव्यक्ति के लिये मुख्य सुर से कम पिच पर गाए जाते हैं। भारी धातु और हार्डकोर पंक उपविधाओं में, मुखर शैलियों में चीख, चिल्लाहट और मौत के गुर्राने जैसे असामान्य स्वर शामिल हो सकते हैं।
लोकप्रिय और शास्त्रीय विधाओं की जीवंत प्रस्तुतियों में एक अंतर यह होता है कि जबकि शास्त्रीय गायक अकसर छोटे या मध्यम आकार के हालों में बिना ध्वनि-विस्तारकों की सहायता के गाते हैं, लोकप्रिय संगीत में, लगभग सभी प्रस्तुतियों में माइक्रोफोन और पीए सिस्टम (ध्वनि विस्तारकों और प्रवर्द्धक) का प्रयोग किया जाता है, भले ही वह किसी छोटे से कॉफी हाउस नें भी क्यों न हो। माइक्रोफोन के प्रयोग का लोकप्रिय संगीत पर कई तरह से प्रभाव हुआ है। एक, इससे अंतरंग और अभिव्यक्तिपूर्ण गायन शैलियों जैसे क्रूनिंग का विकास हो सका है, जिसमें पर्याप्त प्रॉजेक्शन या आवाज का उत्पादन बिना माइक्रोफोन के संभव नहीं हो सकता था। इसी तरह, माइक्रोफोन का प्रयोग करने वाले पॉप गायक इतनी अन्य सुर शैलियों की प्रस्तुति कर सकते हैं जो बिना ध्वनि-विस्तारक के नहीं हो सकता है, जैसे, फुसफुसाहट की आवाज निकालना, गुनगुनाना और आधी और पूरी गाई हुई धुनों का मिश्रण करना। इसी प्रकार, कुछ गायक माइक्रोफोन का प्रयोग करके प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे माइक को मुंह के बहुत पास लाकर बढ़ा हुआ बैस प्रभाव प्राप्त करना या हिप-हॉप बीटबाक्सरों की तरह माइक में पी और बी के विस्फोटक स्वर निकाल कर तबले जैसा प्रभाव उत्पन्न करना।
जबकि कुछ बैंड पार्श्व में स्थित गायकों का प्रयोग केवल मंच पर गाने के समय ही करते हैं, लोकप्रिय संगीत में पार्श्विक गायकों की अन्य भूमिकाएं भी होती हैं। कई रॉक और मेटल बैंडों में पार्श्विक गायन करने वाले संगीतकार वाद्य भी बजाते हैं, जैसे रिद्म गिटार, इलेक्ट्रिक बैस या ड्रम। लैटिन या अफ्रो-क्यूबाई समूहों में, पार्श्विक गायक गाते समय ताल मिलाने वाले वाद्य या शेकर बजाते हैं। कुछ पॉप और हिप-हॉप समूहों और संगीत थियेटर में हेडसेट माइक्रोफोनों से गाते हुए पार्श्विक गायकों को विस्तृत रूप से तैयार किये गए नृत्य में अभिनय करना होता है।
गायन से आजीविका कमाना
गायकों के मेहनतानों और कार्य-दशाओं में बहुत भिन्नता देखने में आती हैं। जबकि संगीत के अन्य क्षेत्रों जैसे संगीत शिक्षा में नौकरियां पूर्णकालिक, तनख्वाह वाली होती हैं, गायन की नौकरियां एकल प्रस्तुतियों या प्रदर्शनों या उनकी श्रंखलाओं पर (जैसे, आपेरा या संगीत थियेटर प्रदर्शन की दो हफ्तों की श्रंखला) आधारित होती हैं। गायन की नौकरियों से आय चूंकि अनियमित होती है, गायक अकसर अपनी आय को संगीत से संबंधित अन्य काम, जैसे गायन का प्रशिक्षण देकर, स्वर के पाठ पढ़ाकर या चर्च में कोरल निर्देशक का काम करके बढ़ाते हैं। इच्छुक गायकों की संख्या काफी अधिक होने के कारण, गायन में नौकरी पाना बहुत प्रतिस्पर्धात्मक हो सकता है।
चर्च के गायकों के दल में एकल गायक 30 से 500 डालर तक कमा सकते हैं। सामुदायिक गायक समूह में गाने वाले लोग 200 से 3000 डालर प्रति वर्ष तक कमा सकते हैं, जबकि पेशेवर कार्यक्रम के कोरल समूह के सदस्य प्रति प्रदर्शन 80 डालर या अधिक कमा लेते हैं। रेडियो या टीवी के प्रदर्शनों में भाग लेने वाले गायक स्थानीय स्टेशन पर 75 डालर प्रति प्रदर्शन और राष्ट्रीय नेटवर्क शो (उदा. सीबीएस (CBS) या एनबीसी (NBC)) में 125 या अधिक डालर की कमाई कर सकते हैं। नृत्य बैंडों या नाइट क्लब प्रदर्शन समूहों में काम करने वाले जैज़ या पॉप गायक 225 या अधिक डालर प्रति सप्ताह तक कमा सकते हैं। पेशेवर आपेरा कोरस गायक 350 से 750 डालर प्रति सप्ताह तक लेते हैं। आपेरा एकल गायकों को, जिनके लिये नौकरियों के अवसर बहुत सीमित होते हैं, 350 से 20000 डालर तक मिल सकते हैं। शास्त्रीय कार्यक्रम के एकल गायक, जिनके लिये नौकरी के अवसर काफी सीमित हैं, प्रति प्रदर्शन लगभग 350 डालर या अधिक की कमाई करते हैं।[21]
गायक बनने के इच्छुक लोगों में संगीत का हुनर, उत्कृष्ट आवाज, लोगों के साथ काम करने की क्षमता और प्रदर्शन करने और नाटकीयता का शौक होना आवश्यक है। इसके अलावागायकों में लगातार सीखने और परिष्कार करने की आकांक्षा और लगन होनी चाहिये,[21] क्योंकि गायन का अध्ययन प्रारंभिक डिप्लोमा या डिग्री के समाप्त होने के साथ खत्म नहीं होता-पेशेवर गायक अपने प्रारंभिक प्रशिक्षण के समाप्त होने के कई दशकों बाद भी अपने हुनर को बढ़ाने और नई शैलियां सीखने के लिये संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त करने का प्रयत्न करते रहते हैं। साथ ही गायक बनने के इच्छुक लोगों को गानों को समझने के लिये, अपने चुने हुए संगीत की शैली के मुखर साहित्य को पढ़ने और कोरल संगीत की तकनीकों में माहिर होने के लिये, दृश्य गायन और गानों को याद रखने, पियानो के मूल हुनरों, नए गीत सीखने में मदद और कानों के अभ्यास या मौखिक कसरतों के लिये, मुखर तकनीकों में विशेष हुनर प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। शास्त्रीय गायन और कुछ अन्य विधाओं में, विदेशी भाषाओं जैसे फ्रेंच, इतालवी, जर्मन या अन्य भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। कॉलेज और विश्वविद्यालय के प्रशिक्षण के पहले, गायक बनने के इच्छुकों को संगीत पढ़ना सीखना, मूल पियानो का अध्ययन करना और समूह गान व एकल दोनों स्थितियों में गाने का अनुभव प्राप्त करना चाहिये।
कॉलेज और विश्वविद्यालय का प्रशिक्षण हमेशा जरूरी नहीं होता लेकिन उसके बराबर के प्रशिक्षण का होना आम तौर पर आवश्यक है।[21] सेकंडरी स्कूल के बाद गायन में शास्त्रीय व गैरशास्त्रीय दोनों तरह के गायकों के लिये प्रशिक्षण उपलब्ध है। शास्त्रीय श्रेणी में गायन का अध्ययन कंजर्वेटरियों और युनिवर्सिटी संगीत कार्यक्रमों में किया जा सकता है, इससे डिप्लोमा और बैचलर डिग्री से लेकर मास्टर की डिग्री और डॉक्टर ऑफ़ म्यूजिकल आर्ट्स तक की उपाधियां उपलब्ध हैं। लोकप्रिय और जैज़ शैलियों में, कॉलेज और युनिवर्सिटी डिग्रियां उपलब्ध हैं, हालाँकि इस तरह के कार्यक्रमों की संख्या कम है।
गायक बनने के इच्छुक विद्यार्थियों के अपने पेशेवर प्रशिक्षण को पूरा कर लेने के बाद, उन्हें किसी आपेरा निर्देशक, कोयरमास्टर या कंडक्टर के सामने गायन की परीक्षा देकर संगीत के हुनर के खरीदारों के सम्मुख स्वयं को बेचने के लिये कदम उठाने चाहिये। मुखर संगीत की जिस शैली में व्यक्ति प्रशिक्षित होता है, हुनर को खरीदने वाले लोग, रिकार्ड कम्पनी के प्रतिनिधि, आपेरा या संगीत थियेटर के निर्देशक, कौयर निर्देशक, नाइट क्लब मैनेजर या कान्सर्ट प्रोमोटर हो सकते हैं। अपने प्रशिक्षण और प्रदर्शन के अनुभव को दर्शाते हुए अपने संक्षि्त परिचय के अलावा गायक एक प्रोमोशनल किट तैयार करते हैं जिसमें पेशेवर तरीके से लिये गए फोटो, अपने गायन के अभिनय से युक्त (हेड शॉट्स) सीडी या डीवीडी और संगीत के आलोचकों या पत्रकारों की समीक्षाओं की प्रतियां होती हैं। कुछ गायक साक्षात्कार और अन्य अभिनय के अवसरों के लिये एक एजेंट या मैनेजर को भी रखते हैं, एजेंट या मैनेजर को अकसर मंच पर काम करने से प्राप्त फीस का कुछ प्रतिशत दिया जाता है।
स्वास्थ्य संबंधी लाभ
वैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि गायन का लोगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर हो सकता है। कोरल गायन में भाग ले रहे विध्यार्थियों के सर्वे से प्राप्त स्वयं दिये गए ब्यौरे के अनुसार किये गए एक प्राथमिक अध्ययन में फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि, बेहतर मूड, तनाव में कमी और सामाजिक व आध्यात्मिक लाभ महसूस किये गए।[22] फिर भी, फेफडों की क्षमता के एक काफी पुराने अध्ययन में पेशेवर गायन के प्रशिक्षण प्राप्त लोगों की तुलना बिना प्रशिक्षण वाले लोगों से की गई और फेफड़ों की क्षमता के बढ़ने के दावों के समर्थन में कोई बात नहीं पाई गई।[23] गायन तनाव को कम करके प्रतिरोधक्षमता प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। एक अध्ययन में पाया गया कि कोरल संगीत को गाने और सुनने दोनों से तनाव के हारमोनों के स्तर कम होते हैं और प्रतिरोधक्षमता बढ़ती है।[24] 2009 में गायन और स्वास्थ्य के बीच संबंध का अध्ययन करने के लिये एक बहुराष्ट्रीय सहयोग की स्थापना की गई, जिसका नाम गायन में प्रगत अंतरअनुशासनीय शोध (एर्स) रखा गया।[25]
गैर मानवीय जातियों में गायन
विद्वान लोग यह मानते हैं कि गायन कई गैर मानवीय जातियों में शक्तिशाली रूप में विध्यमान है।[26][27] बहुत भिन्न पशु जातियों में गायन के बर्ताव के विस्तृत फैलाव से लगता है कि गायन भिन्न जातियों जैसे (पक्षियों, गिब्बनों, व्हेलों और मनुष्यों) में स्वतंत्र रूप से प्रकट हुआ। वर्तमान में करीब 5400 पशुओं की ऐसी जातियां हैं जो गायन कर सकती हैं। कम से कम कुछ गाने वाली जातियां अपने गानों को सीखने, सुधारने और नई धुनों को बनाने की क्षमता का भी प्रदर्शन कर सकती हैं।[28] कुछ पशु जातियों में गायन एक सामूहिक गतिविधि होता है (देखिये, उदा. गिब्बन परिवारों में गायन[29]), हालाँकि केवल मनुष्य ही गाने वाली ऐसी जाति है जिसे ताल की समझ है और एकदम सही रूप से ताल में एकीकृत की जा सकती है।
विभिन्न प्राकृतिक पर्यावरणो में गायन
जोसेफ जोर्दानिया ने सुझाव दिया कि गायन का बर्ताव भिन्न पर्यावरणों में (जमीन पर, पानी में, पेड़ों पर) रहने वाली पशु जातियों में बहुत ही असमान रूप से वितरित होता है।[30] अधिकतर गाने वाली जातियां (जैसे कई पक्षी जातियां, या गिब्बन) पेड़ों पर रहती हैं, कुछ पानी में रहती हैं (व्हेल, डॉल्फिन, सीलें, समुद्री सिंह) और जमीन पर मनुष्य के अलावा अन्य कोई पशु जाति नहीं गाती[31] है। गायन का यह असमान वितरण पशुओं और मनुष्यों के गायन के बर्ताव के मूल को समझने के लिये महत्वपूर्ण हो सकता है। जोर्दानिया इस तथ्य को प्राकृतिक चयन के दबाव के परिणाम के रूप में समझाता है। गायन एक बहुत ही महंगा बर्ताव है न केवल इसलिये कि आवाजों के उत्पादन में ऊर्जा खर्च होती है, बल्कि सुरक्षा के कारणों से भी क्यौंकि सभी संभावित शिकारी गाने वाले पशु को आसानी से खोज सकते हैं। पेड़ों पर रहने वाली गायक जातियां काफी अधिक अनुकूल परिस्थिति में होती हैं क्योंकि पेड़ भिन्न जातियों को उनके शरीर के वजन के अनुसार रहने देते हैं। इस तरह भिन्न वजन वाले भिन्न जीव पेड़ों की शाखाओं पर भिन्न स्तरों पर रहते हैं। उदा. एक 50 किलो का चीता एक 50 किलो के बंदर द्वारा उत्पन्न आवाजों को देख और सुन तो सकता है पर चूंकि कम वजन वाला बंदर पेड़ों की शाखाओं पर काफी ऊपर रहता है, सलिये वह अधिक वजन वाले चीते की पहुंच के बाहर होता है। इसलिये पेड़ पर रहने वाली जातियां मुखर संकेतों के एक बड़े दायरे में गाने या संचार करने में सुरक्षित महसूस करती हैं। दूसरी ओर, जमीन पर रहने वाली सभी पशु जातियां, उनके वजन में बड़ी असमानताएं (खरगोश से लेकर सिंहों और हाथियों तक) होने पर भी भूमि के समान स्तर पर रहते हैं और चुप रहना उनके लिये बहुत आवश्यक होता है। अधिकांश पक्षी, अत्यंत शौकीन गायक भी जमीन पर बैठे होने पर गाना और अन्य स्वरों का उत्पादन बंद कर देते हैं।[32] इसलिये शिकारी का खतरा पेड़ों पर रहने वाली जातियों के साधारणतया जमीन पर रहने वाली जातियों की तुलना में काफी अधिक शोर करने का मुख्य कारण हो सकता है।[33]
इन्हें भी देखें: कला संगीत
|
|
इन्हें भी देखें: लोकप्रिय संगीत
- बिट बॉक्सिंग
- बेल्ट (संगीत)
- डेथ ग्राउल
- गुनगुनाना
- प्रमुख गायक
- रैपिंग
- चिल्लाना (संगीत)
- वोकोडर
सन्दर्भ
- ↑ Falkner, Keith, संपा॰ (1983). Voice. Yehudi Menuhin music guides. London: MacDonald Young. पृ॰ 26. OCLC 10418423. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 035609099X.
- ↑ "Singing". Britannica Online Encyclopedia. मूल से 6 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मार्च 2011.
- ↑ अ आ इ Vennard, William (1967). Singing: the mechanism and the technic. New York: Carl Fischer. OCLC 248006248. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0825800559.
- ↑ Hunter, Eric J; Titze, Ingo R (2004). "Overlap of hearing and voicing ranges in singing" (PDF). J Singing. 61 (4): 387–392. मूल (PDF) से 22 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मार्च 2011.
- ↑ Hunter, Eric J; Švec, Jan G; Titze, Ingo R (2006). "Comparison of the produced and perceived voice range profiles in untrained and trained classical singers". J Voice. 20 (4): 513–526. PMID 16325373. डीओआइ:10.1016/j.jvoice.2005.08.009. नामालूम प्राचल
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद) - ↑ Large, John W (फ़रवरी/March 1972). "Towards an integrated physiologic-acoustic theory of vocal registers". The NATS Bulletin. 28: 30–35. OCLC 16072337. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0884-8106.
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क McKinney, James C (1994). The diagnosis and correction of vocal faults. Nashville, Tennessee: Genovex Music Group. पृ॰ 213. OCLC 30786430. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1565939409.
- ↑ Greene, Margaret; Mathieson, Lesley (2001). The voice and its disorders (6th संस्करण). John Wiley & Sons. OCLC 47831173. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1861561961
|isbn=
के मान की जाँच करें: checksum (मदद). - ↑ Grove, George; Sadie, Stanley, संपा॰ (1980). The new Grove dictionary of music & musicians. 6. Macmillan. OCLC 191123244. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1561591742. नामालूम प्राचल
|volume-title=
की उपेक्षा की गयी (मदद) - ↑ अ आ इ Stark, James (2003). Bel Canto: A history of vocal pedagogy. Toronto: University of Toronto Press. OCLC 53795639. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0802086143.
- ↑ Clippinger, David Alva (1917). The head voice and other problems: Practical talks on singing. Oliver Ditson. पृ॰ 12. Singing ग्यूटेनबर्ग परियोजना पर
- ↑ Miller, Richard (2004). Solutions for singers. Oxford: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. पपृ॰ 286. OCLC 51258100. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0195160053.
- ↑ Warrack, John Hamilton; West, Ewan (1992). The Oxford dictionary of opera. Oxford: Oxford University Press. OCLC 25409395. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0198691645.
- ↑ Shewan, Robert (जनवरी/February 1979). "Voice classification: An examination of methodology". The NATS Bulletin. 35 (3): 17–27. OCLC 16072337. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0884-8106.
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Smith, Brenda; Sataloff, Robert Thayer (2005). Choral pedagogy. San Diego, California: Plural Publishing. OCLC 64198260. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1597560436
|isbn=
के मान की जाँच करें: checksum (मदद). - ↑ Peckham, Anne (2005). Vocal workouts for the contemporary singer. Boston: Berklee Press. पृ॰ 117. OCLC 60826564. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0876390475.
- ↑ अ आ इ Appelman, Dudley Ralph (1986). The science of vocal pedagogy: theory and application. Bloomington, भारतna: Indiana University Press. पृ॰ 434. OCLC 13083085. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0253351103. सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
अमान्य टैग है; "Appelman" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ Titze Ingo R (2008). "The human instrument". Scientific American. 298 (1): 94–101. PMID 18225701. डीओआइ:10.1038/scientificamerican0108-94.
- ↑ Titze Ingo R (1994). Principles of voice production. Prentice Hall. पृ॰ 354. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 013717893X. मूल से 2 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मार्च 2011.
- ↑ Sundberg Johan (जनवरी/February 1993). "Breathing behavior during singing". The NATS Journal. 49: 2–9, 49–51. OCLC 16072337. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0884-8106.
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ इ संगीत शिक्षक के राष्ट्रीय समिति "संगीत में करियर" (2001), MENC.org Archived 2012-04-20 at the वेबैक मशीन
- ↑ Clift, SM; Hancox, G (2001). "The perceived benefits of singing". The Journal of the Royal Society for the Promotion of Health. 121 (4): 248–256. PMID 11811096. डीओआइ:10.1177/146642400112100409.
- ↑ Heller, Stanley S; Hicks, William R; Root, Walter S (1960). "Lung volumes of singers". J Appl Physiol. 15 (1): 40–42. PMID 14400875.
- ↑ Kreutz, Gunter; Bongard, Stephan; Rohrmann, Sonja; Hodapp, Volker; Grebe, Dorothee (दिसम्बर 2004). "Effects of choir singing or listening on secretory immunoglobulin A, cortisol, and emotional state". Journal of Behavioral Medicine. 27 (6): 623–635. PMID 15669447. डीओआइ:10.1007/s10865-004-0006-9.
- ↑ Mick, Hayley (19 जून 2009). "Doctor's prescription: 2 arias + a chorus". The Globe and Mail. मूल से 12 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मार्च 2011.
- ↑ मार्लर, पीटर (1970)। बर्डसॉन्ग और भाषण विकास: क्या समानताएं हो सकते है? अमेरिकन साइंसटिस्ट 58:669-73
- ↑ वैलिन, निल्स, बॉर्न मर्कर, स्टीवन ब्राउन। (संपादक) (2000)। संगीत का निकास। कैम्ब्रिज, एमए: एमआईटी (MIT)
- ↑ पायेन, कैथरीन (2000)। "कुबड़े व्हेल्स के उत्तरोत्तर बदलते गाने: जंगली जानवर में रचनात्मक प्रक्रिया पर एक विंडो।" संगीत के मूल में। एन. एल. वैलिन, बी. मर्कर और स्टीवन ब्राउन द्वारा संपादित, पीपी 135-150। कैम्ब्रिज, एमए: एमआईटी (MIT)
- ↑ गिसमैन, थॉमस. 2000। "विकासवादी दृष्टिकोण से गिबन गाने और एक मानव संगीत।" संगीत के मूल में। एन. एल. वैलिन, बी. मर्कर और एस. ब्राउन द्वारा संपादित, पीपी 103-124. कैम्ब्रिज, एमए: एमआईटी
- ↑ Joseph Jordania (2006). Who Asked the First Question? The Origins of Human Choral Singing, Intelligence, Language and Speech. Tbilisi: Logos. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 99940-31-81-3.
- ↑ जौर्डनिया, जोसेफ (2009)। "टाइम्स टू फाईट एंड टाइम्स टू रिलैक्स: सिंगिंग एंड हमिंग एट द बिगनिंग ऑफ़ ह्युमन एवल्यूशनेरी हिस्ट्री". कैड्मोस 1, 2009: 272-277
- ↑ कैचपोल, क्लाइव के. और पीटर जे. बी. स्लेटर (1995). बर्ड सॉन्ग: बायोलॉजिकल थीम्स एंड वेरीएशंस. कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस.
- ↑ जौर्डनिया, 2009:272-273