गटापारचा
गटापारचा | |
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पैलाक्विम गटा | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | आवृतबीजी |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Asterids |
गण: | Ericales |
कुल: | Sapotaceae |
वंश: | पैलाक्विम ब्लांको |
प्रजातियां | |
लगभग 100-120 प्रजातियां, जिनमें शामिल हैं: |
गटापारचा (पैलाक्विम), एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष का वंश है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी आस्ट्रेलिया की एक मूल प्रजाति है। इसका विस्तार ताइवान से मलय प्रायद्वीप के दक्षिण और पूर्व में सोलोमन द्वीप तक है। इससे प्राप्त एक अप्रत्यास्थ प्राकृतिक रबड़ को भी गटापारचा के नाम से ही जाना जाता है जिसे इस पौधे के रस से तैयार किया जाता है। यह रबड़ विशेष रूप से पैलाक्विम गटा नामक प्रजाति के पौधों के रस से तैयार किया जाता है। रासायनिक रूप से, गटापारचा एक पॉलीटरपीन है, जो आइसोप्रीन या पॉलीआइसोप्रीन का एक बहुलक है, विशेष रूप से है (ट्रांस-1,4-पॉलीआइसोप्रीन)।
'गटापारचा' शब्द मलय भाषा में इस पौधे के नाम गेटाह पर्चा से आया है, जिसका अनुवाद “पर्चा का सार” है।
गटापारचा (पदार्थ)
गटापारचा (Sapotaceae) सैपोटेसिई कुल के तथा पालेंक्विअम् गट्टा (Palanquium gutta) और पालेंक्विअम औब्लौंगिफोलिया (P. oblongifolia) प्रजाति के कतिपय वृक्षों के आक्षीर (latex) को रबर की तरह ही सुखाने से जो पदार्थ प्राप्त होता है उसे गटापारचा कहते हैं। ये पेड़ प्रधानतया मलय द्वीपसमूह और ब्राजील में पाए जाते है। मलय के पेड़ो का गटापारचा सर्वश्रेष्ठ होता है। इसी कुल के कुछ अन्य पेड़ों से भी अपेक्षाकृत निकृष्ट कोटि का गटापारचा होता है। गटापारचा के पेड़ 70 से 100 फुट तक ऊँचे और धड़ पर तीन फुट व्यास तक के होते हैं। 30 वर्ष में पेड़ तैयार होता है। पेड़ की उपज के लिये आर्द्र जलवायु और 20 से 32 सें. तक का तापमान अच्छा होता है। बीज या धड़ की कलम से पेड़ उगाया जाता है। पेड़ की छाल को छेदने से आक्षीर निकलता है, पर मलाया में पेड़ों को काटकर धड़ में एक एक फुट की दूरी पर एक इंच चौड़ी नली बनाकर आक्षीर इकट्ठा कर लेते हैं और फिर वहाँ से निकालकर खुले पात्र में आग पर उबालकर गटापारचा प्राप्त करते हैं।
गटापारचा दो मणिभीय रूपों - एल्फा रूप, गलनांक 650 सें. तथा बीटा रूप, गलनांक 560 सें.-और अमणिभीय रूपों में पाया जाता है। यह ठोस, कड़ा और अप्रत्यास्थ होता है, किंतु गरम करने से कोमल हो जाता है। ऊँचे ताप से यह विघटित हो जाता है। क्षारों और तनु अम्लों का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सांद्र अम्लों से यह आक्रांत होता है। क्लोरीन और गंधक की इसपर क्रिया होती है। यह जल में घुलता नहीं, पर कार्बनिक विलायकों में घुल जाता है। रसायनत: यह (C5 H8) एककों से बना है। इसका अणुभार 30,000 के लगभग पाया गया है।
कड़ा और अभंगुर होने के कारण गॉल्फ की गेंदों और केबल के आवरणों, विद्युत विसंवाहक (electrical insulators), छड़ियों, छुरी की मूठों और चाबुकों, च्युइंग गम आदि इत्यादि के बनाने में प्रयुक्त होता है। इसके स्थान में अब सस्ते संश्लिष्ट प्लास्टिकों का प्रयोग बढ़ रहा है। गटापारचा से बहुत मिलता जुलता एक पदार्थ बलाटा (Balata) है, जिसे बलाटा गोंद या बलाटा गटा भी कहते हैं। यह अन्य पेड़ों से प्राप्त होता हैं। इसके भी उपयोग वे ही हैं जो गटापारचा के।