गंगोत्री हिमानी
गंगोत्री हिमानी | |
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Gangotri glacier | |
गौमुख, गंगा का स्रोत | |
उत्तराखण्ड में स्थान | |
स्थान | उत्तरकाशी ज़िला, गढ़वाल हिमालय, उत्तराखण्ड, भारत |
निर्देशांक | 30°49′59″N 79°10′01″E / 30.833°N 79.167°Eनिर्देशांक: 30°49′59″N 79°10′01″E / 30.833°N 79.167°E |
गंगोत्री हिमानी (Gangotri Glacier) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित हिमालय की एक हिमानी (ग्लेशियर) है। यह क्षेत्र हिन्दुओं के लिए एक तीर्थ है और तिब्बत से सीमावर्ती है। गंगोत्री हिमानी गंगा नदी के प्रमुख स्रोतों में से है और 27 घन किमी के आकार के साथ हिमालय की सबसे बड़ी हिमानियों में से एक है। यह 30 किमी (19 मील) लम्बी और 2 से 4 किमी (1 से 2 मील) चौड़ी है। इस हिमानी के इर्दगिर्द गंगोत्री समूह के पर्वत हैं, जिममें बहुत कठिनाई से चढ़ने वाले शिवलिंग, थलै सागर, मेरु और भागीरथ-तृतीय शामिल हैं। गंगोत्री हिमानी इस समूह के सर्वोच्च पर्वत, चौखम्बा, के नीचे एक हिमगह्वर में आरम्भ होती है और फिर लगभग पश्चिमोत्तर दिशा में बहती है। हिमानी का अंत जहाँ होता है उसका नाम गौमुख है, क्योंकि उस स्थान का आकार एक गाय के मुख से मिलता है, और यह स्थान गंगोत्री बस्ती से 19 किमी दूर है। गौमुख शिवलिंग पर्वत के चरणों के समीप है और दोनों के बीच तपोवन नामक मर्ग (घास का मैदान) है।[1]
गंगोत्री हिमानी हिंदुओं का धार्मिक पवित्र तीर्थ - स्थल है। हिंदू गंगोत्री से निकलने वाले बर्फ के ठंडे जल में स्नान करते हैं और तपोवन के लिए पैदल यात्रा आरंभ करते हैं। कुछ लोग तपोवन में ही रुकते हैं। गंगोत्री से गौमुख जाने वाले रास्ते में देवगढ़, चिरभास, भोजवास स्थान पड़ते हैं। इस समय केवल भोजवास में ही रुकने की व्यवस्था है,यद्यपि वन विभाग नाका (चेक पोस्ट) चिरभास और भोजवास दोनो में ही है। सन् २०१३ में उत्तर भारतीय बाढ़ में बहुत कुछ नष्ट हो गया था। चिरभास के आगे रास्ता खराब है,२ किमी चौड़े रास्ते में भू - स्खलन होने के कारण। इसलिए अब इसके आगे पहुंचना भी थोड़ा कठिन है।
भूगर्भशास्त्र
यह एक घाटी के प्रकार की हिमानी है। यह गढ़वाल हिमालय, उत्तराखंड के जिला उत्तरकाशी में स्थित है, यह उत्तरी-पश्चिमी दिशा में बहती है। यह हिमानी ३०°४३'२२" - ३०°५५'४९"(अक्षांस) तथा ७९°४'४१" - ७९°१६'३४"(देशांतर) के मध्य घिरा हुआ है। इसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई करीब ४१२० - ७००० मी. है। यह क्षेत्र मुख्य केन्द्रीय जोर (एम.सी.टी) के उत्तर में स्थित है। यह ग्रेनाइट (एक प्रकार का कङा स्फटिक पत्थर), मिट्टी के नीचे की चट्टान से, गहरे लाल रंग की अभ्रक शिस्ट से, स्फटिक शिस्ट से, साइनाइट शिस्ट से, मलिन शिष्ट, पट्टित मलिन शिष्ट से मिलकर बना है। इस हिमानी का निर्माण विविध प्रकार की तलछटी वैशिष्ट्य से शंकू ढलान, हिमस्खलन,बर्फ के पुल,मृत बर्फिले बांध व अपरदनजन्य वैशिष्ट्य जैसे पिरामिडनुमा और शंक्वाकार चोटियाँ, दाँतेदार कटक शिखर,हिमनदों के कुंड, चिकनी चट्टान की दीवारें,श्रंगो तथा अवशेषों, जलप्रपातों,शैल-बेसिनों, अवनालिकाओं, हिमनदीय सरोवरों से मिलकर हुआ है। गंगोत्री ग्लेशियर के साथ, कई अनुदैर्ध्य और अनुप्रस्थ दरारें बनती हैं, जिसके साथ बर्फ के टुकड़े टूट गए हैं। गंगोत्री हिमानी का अपक्षरणीय भूकटिबंध उत्कृष्ट हिमनदीय हिमोढ़ के मोटे ढेर से ढका हुआ है। यह कई बर्फ वर्गों की विशेषता है, जो उत्कृष्ट हिमनदीय झीलों के कुंड में पिघलते हैं। ग्लेशियर के धंसने और तेजी से विकृत प्रकृति के कारण, इसका केंद्र उत्कृष्ट हिमनदीय झीलों से भरा है। उच्च हिमालय के इस हिस्से में, हिमनदीय हिमजल नदी के तंत्र पर प्रभूत्व रखता है।
कुल बर्फ का आवरण लगभग 200 किमी वर्ग है और इसका आयतन लगभग 20 किमी बर्फ का घन है।
उपनदियां
गंगोत्री हिमानी की तीन मुख्य उपनदियां हैं, रक्तवर्ण(१५.९० कि.मी.), चतुरंगी(२२.४५ कि.मी.) व कीर्ति (११.०५ कि.मी.), तथा १८ से भी अधिक छोटी हिम-उपनदियां इसमें शामिल हैं। रक्तवर्ण प्रणाली में ७ सहायक हिमनद हैं, उनमें से थेलू, श्वेत वर्ण, निलांबर और पीलापानी महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार सीता, सुरलय और वासुकी भी महत्वपूर्ण सहयोगी हिमनद हैं जो मिलकर चतुरंगी प्रणाली को बनाते हैं। जबकि कीर्ति प्रणाली केवल तीन सहायक हिमनद से बनती है। इन तीन प्रमुख सहायक हिमानियों के अतिरिक्त इस क्षेत्र की कुछ अन्य सहायक हिमानियां सीधे गंगोत्री हिमानी में गिरती हैं, उनमें से स्वछंद, मियांदी, सुमेरु और घनोहिम महत्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त ४ और हिमानियां - मैत्री, मेरू, भृगुपंथ, मांडा, भागीरथी नदी में गिरती हैं। जलग्रहण क्षेत्र का कुल हिमनदीकृत क्षेत्र २५८.५६ वर्ग कि.मी. है, जिसमें गंगोत्री प्रणाली में १०९.०३ कि.मी. वर्ग शामिल है, तथा चतुरंगी (७२.९१ कि.मी. वर्ग), रक्तवर्ण (४५.३४ कि.मी. वर्ग), कीर्ति (३१.२८ कि.मी वर्ग) शामिल हैं। शेष ४ हिमानियों का २९.४१ कि.मी वर्ग का हिमनदीकृत क्षेत्र सम्मिलित है और उनमें से अधिकतम योगदान भागीरथी हिमानी (१४.९५ कि.मी. वर्ग) का है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ Gyan Marwah. "Ganges - A River of No Return?". the-south-asian.com. अभिगमन तिथि 2007-06-24.
आगे पढ़ें
- बाली, आर, अवस्थी, डी डी तिवारी, एन. के. 2003 Neotectonic पर नियंत्रण geomorphic विकास की गंगोत्री ग्लेशियर घाटी, गढ़वाल हिमालय, गोंडवाना अनुसंधान, 2003, Vol, 6 (4) पीपी. 829-838.
- अवस्थी, D. D., बाली, और आर तिवारी, एन. के. 2004. रिश्तेदार डेटिंग द्वारा lichenometric और श्मिट हथौड़ा तकनीक में गंगोत्री ग्लेशियर घाटी में उत्तरकाशी जिले, उत्तरांचल. Spl. पब. पाल. समाज है । Ind नहीं है । 2 पीपी. 201– 206.
- अवस्थी, D. D., बाली, और आर तिवारी, एन. के. 2004. विकास दर की दाद Dimelaena Orina में गंगोत्री ग्लेशियर घाटी में उत्तरकाशी जिले, उत्तरांचल: कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियों Geol. सुर. Ind. Spl. पब. No. 80.
- सिंह, ध्रुव सेन 2004. देर चतुर्धातुक Morpho-तलछटी प्रक्रियाओं में गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र, गढ़वाल हिमालय, भारत के लिए है । Geol Surv भारत Spl. पब. No. 80, 2004: 97-103.
- सिंह, ध्रुव सेन और मिश्रा. A. 2002. गंगोत्री ग्लेशियर सिस्टम, गढ़वाल हिमालय: एक विश्लेषण का उपयोग जीआईएस तकनीक है । पहलुओं के भूविज्ञान और पर्यावरण के हिमालय हैं । द्वारा संपादित पंत, सी. सी. और शर्मा, ए. Gyanodaya प्रकाशन, नैनीताल, भारत, पीपी 349-358.
- सिंह, ध्रुव सेन और मिश्रा. A. 2002. भूमिका के सहायक ग्लेशियरों पर परिदृश्य संशोधन में गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र, गढ़वाल हिमालय, भारत के लिए है । वर्तमान विज्ञान, 82 (5), 101-105. https://web.archive.org/web/20110605032941/http://www.ias.ac.in/currsci/mar102002/567.pdf
- सिंह, ध्रुव सेन और मिश्रा, ए. 2001. गंगोत्री ग्लेशियर विशेषताओं, पीछे हटने और प्रक्रियाओं के अवसादन में भागीरथी घाटी. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया Spl. पब.No. 65 (III), 17-20.