खो-खो
खो-को खेलते हुए बच्चे | |
विशेषताएँ | |
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अनुबंध | permitted |
दल के सदस्य | दोनों दलों में 12 खिलाड़ी (9 क्षेत्र में और 3 अतिरिक्त) |
खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल है। इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो खम्भो के अतिरिक्त किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति और ऊर्जा की माँग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है।
परिचय
खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
खो-खाे का जन्मस्थान पुणे कहा जाता है। यह खेल महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है, किंतु भारत के अन्य प्रदेशों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है। यह खेल सरल है और इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं।
खो-खो खेल में न किसी गेंद की आवश्यकता होती है, न बल्ले की। इसके लिये केवल १११ फुट लंबे और ५१ फुट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे, लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं और इन खंभों के बीच की दूरी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं। प्रत्येक दल को एक-एक पारी के लिए सात सात मिनट दिए जाते हैं और नियत समय में उस दल को अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है। दोनों दलों में से एक-एक खिलाड़ी खड़ा होता है, पीछा करने वाले दल का खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है। विपक्षी दल का खिलाड़ी पंक्ति में बैठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है। जब पीछा करने वाला खिलाड़ी उस भागने वाले खिलाड़ी के निकट आ जाता है, तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर 'खो' शब्द का उच्चारण करता है तो वह उठकर भागने लगता है और पीछा करने वाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दूसरे का पीछा करने लगता है।
पहले इस खेल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खेल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते-बिगड़ते रहे। १९१४ ई. में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अनेक मैदानी खेलों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खो-खो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनुसार, थोड़े स्थानीय हेर-फेर के साथ यह खेल खेला जाता है।
खो-खो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में १९१८ ई॰ में हुई। फिर सन् १९१९ में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं।
- खेल का मैदान
खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 27 X 16 मीटर होता है। मैदान के अंत में दो मुक्त आयताकार क्षेत्र होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 1.50 मी॰ होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं। केन्द्रीय गली 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
शब्दावली
- स्तम्भ या पोस्ट:-मध्य लेन के अंत में दो स्तम्भ गाड़े जाते हैं जो भूमि से 1.20 से 1.25 मीटर के बीच ऊँचे होते हैं। स्तम्भ का व्यास 9 -10 सैंटीमीटर होता है। स्तम्भ की परिधि 28.25 - 31.4 सैंटीमीटर होता है।
- केन्द्रीय गली या लेन:- दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है। यह 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
- क्रॉस लेन:- प्रत्येक आयताकार 16 मी॰ लम्बा और 35 सैंटीमीटर चौड़ा होता है वह केन्द्रीय लेन को समकोण (90°) पर काटता है। यह स्वयं भी दो सर्द्धकों में विभाजित होता है। इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।
- स्तम्भ रेखा:- केन्द्र से गुजरती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय लेन के समानांतर रेखा को स्तम्भ रेखा कहते हैं।
- आयताकार:- स्तम्भ रेखा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता है।
- परिधियाँ:- केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रेखाओं से 7.85 मी॰ दूर दोनों पार्श्व रेखाओं को परिधियाँ कहते हैं।
- अनुधावक या चेज़र:- वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ने या छूने के लिए भागने वाला अनुधावक या चेज़र सक्रिय अनुधावक कहलाता है
- धावक:- चेज़रों या अनुधावकों के विरोधी खिलाड़ी 'धावक' या 'रनर' कहलाते हैं।
- खो देना:- अच्छी 'खो' देने के लिए सक्रिय अनुधावक को बैठे हुए अनुधावक को पीछे से हाथ से छूते ही 'खो' शब्द और ऊँचे तथा स्पष्ट कहना चाहिए। छूने और 'खो' कहने का समय एक साथ होना चाहिए।
- फ़ाऊल:- यदि बैठा हुआ या सक्रिय अनुधावक किसी नियम का उल्लंघन करता है तो वह फ़ाऊल होता है।
- दिशा ग्रहण करना:- एक स्तम्भ से दूसरे स्तम्भ की ओर जाना दिशा ग्रहण करना है।
- मुँह मोड़ना:- जब सक्रिय अनुधावक एक विशेष दिशा की ओर जाते समय अपने कंधे की रेखा 90 के कोण से अधिक दिशा को मोड़ लेता है तो इसे मुँह मोड़ना कहते हैं। यह फाऊल होता है।
- निवर्तन या पलटना:- किसी विशेष दिशा की ओर जाता हुआ सक्रिय अनुधावक जब विपरीत दिशा में जाता है तो उसे निवर्तन या पलटना कहा जाता है। यह फाऊल होता है।
- पांव बाहर:- जब रनर के दोनों पाँव सीमाओं से बाहर भूमि को छू लें तो उसके पाँव बाहर माने जाते हैं उसे आऊट माना जाता है।
खेल के नियम
- क्रीड़ा क्षेत्र को आकार में वर्णित अनुसार चिन्हित होना चाहिए।
- दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णय टॉस द्वारा किया जाएगा।
- एक धावक (चेज़र) के अतिरिक्त अन्य सभी धावक वर्गों में इस प्रकार बैंठेगे कि दो साथ-साथ बैठे धावकों का मुँह एक ओर नहीं होगा। नौंवा धावक पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा होगा।
- सक्रिय धावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करेगा। वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय रेखा पार नहीं कर सकता।
- 'खो' बैठे हुए धावक के पीछे से समीप जा कर ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में देनी चाहिए। बैठा हुआ धावक बिना 'खो' प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टाँग या भुजा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश करेगा।
- यदि कोई सक्रिय धावक उस वर्ग की केन्द्रीय गली से बाहर चला जाए जिस पर कोई धावक बैठा है या यदि वह निष्क्रिय धावक की पकड़ छोड़ देता है तो सक्रिय धावक उसे खो नहीं देगा। कोई सक्रिय धावक 'खो' देने के लिए वापस नहीं आ सकता।
- नियम 4, 5 तथा 6 का उल्लंघन फाऊल होता है। इस पर सक्रिय धावक उस दिशा के विपरीत जाने के लिए बाध्य किया जाएगा जिस दिशा में वह जा रहा रही थी। निर्णायक की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय धावक सांकेतित दिशा की ओर चल देगा। यदि इस तरह रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाता।
- सक्रिय धावक 'खो' देने के पश्चात तुरंत 'खो' पाने वाले धावक का स्थान ग्रहण कर लेगा। खो देना और साथ बैठे धावक के लोना एक साथ होना चाहिए।
- ठीक खो लेने के पश्चात यदि सक्रिय धावक का पहला क़दम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है। यदि केंद्रीय लेन को क्रॉस करे तो वह फाऊल है।
- दिशा लेने के पश्चात सक्रिय धावक पुन: क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इस को फाऊल नहीं माना जाता।
- सक्रिय धावक वह दिशा ग्रहण करेगा जिस ओर इसका मुँह मुड़ा हो अर्थात् जिस ओर उसने अपने कन्धे की रेखा को मोड़ा था।
- सक्रिय धावक किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण करने के पश्चात स्तम्भ रेखा की उसी दिशा में जाएगा जब तक वह खो नहीं करता। सक्रिय धावक केन्द्र गली से दूसरी ओर नहीं जाएगा जब तक कि वह स्तम्भ के चारों ओर बाहर से न घूम ले।
- यदि कोई सक्रिय धावक स्तम्भ छोड़ देता है तो वह स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर रहते हुए दूसरे स्तम्भ की दिशा में जाएगा।
- सक्रिय धावक का मुँह सदैव उसके द्वारा ग्रहण की गई दिशा की ओर रहेगा। वह अपने मुँह को नहीं मोड़ेगा। उसे केन्द्रीय लेन के समानांतर कंधे की रेखा मोड़ने की आज्ञा होगी।
- धावक इस प्रकार बैठेंगे कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुँचे यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
- दिशा ग्रहण करने वाले और मुँह मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू न होंगे।
- पारी के दौरान सक्रिय धावक सीमा से बाहर जा सकता है परंतु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मुँह मोड़ने के नियमों का पालन करना होगा।
- कोई भी रनर बैठे हुए धावक को छू नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। यदि वह फिर उस हरकत को दोहराता है तो उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है। अभिप्राय यह कि आऊट दिया जाता है।
- यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह आऊट हो जाता है।
- यदि सक्रिय चेज़र बिना किसी नियम का उल्लंघन किए रनर को छू लेता है तो रनर आऊट माना जाएगा।
- सक्रिय धावक नियम 4 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करेंगे। इन नियमों का उल्लंघन फाऊल माना जाता है। यदि ऐसे फाऊल के कारण कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
- यदि कोई सक्रिय धावक नियम 8 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन करते है तो अम्पायर तुरंत ही उचित दिशा लेने और कार्य करने के लिए बाध्य
मैच सम्बन्धी नियम
- प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है और 3 खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।
- प्रत्येक पारी में 9-9 मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी से होता है। प्रत्येक मैच में 4 पारियाँ होती है। दो पारियों छूने की और 2 पारियाँ दौड़ने की होती हैं।
- रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोर के पास अपने नाम दर्ज कराएंगे। पारी के आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा के अन्दर होंगे। इन तीनों के आऊट होने के पश्चात तीन और खिलाड़ी 'खो' देने से पहले अन्दर आ जाएंगे। जो इस अवधि में प्रवेश न कर सकेंगे उन्हें आऊट घोषित किया जाएगा। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला खिलाड़ी भी आऊट घोषित किया जाएगा। यह प्रक्रिया पारी के अंत तक जारी रहेगी। तीसरे रनर को निकालने वाला सक्रिय धावक नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करेगा, वह 'खो' देगा। प्रत्येक टीम खेल के मैदान के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करेगी।
- धावक तथा प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल धावक या रनर टीम के कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्ति की घोषणा करेगा। एक पारी के बाद 5 मिनट तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का ब्रेक होगा।
- धावक पक्ष को प्रत्येक रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलेगा। सभी रनरों के समय से पहले आऊट हो जाने पर उनके विरुद्ध एक 'लोना' दे दिया जाता है। इसके पश्चात वह टीम उसी क्रम से अपने रनर भेजेगी। लोना प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता है। पारी का समय समाप्त होने तक इसी ढंग से खेल जारी रहेगी। पारी के दौरान रनरों के क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
- नॉक आऊट पद्धति में मैच के अंत में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा। यदि अंक बराबर हों तो एक और पारी खेली जाएगी। यदि फिर भी अंक बराबर रहें तो टाई ब्रेकर नियम का प्रयोग किया जाएगा। इस स्थिति में यह ज़रुरी नहीं कि टीमों में वहीं खिलाड़ी हों।
- लीग प्रणाली में विजेता टीम को 2 अंक प्राप्त होगें। पराजित टीम को शून्य अंक तथा बराबर रहने की दशा में प्रत्येक टीम को एक एक अंक दिया जाएगा। यदि लीग प्रणाली में लीग अंक बराबर हो तो टीम अथवा टीमें पर्चियों द्वारा पुन: मैच खेलेंगी। ऐसे मैच नॉक-आऊट प्रणाली के आधार पर खेलें जाएंगे।
- यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं होता है तो यह किसी अन्य समय खेला जाएगा और पिछले अंक नहीं गिने जाएंगे। मैच शुरू से ही खेला जाएगा।
- यदि किसी एक टीम के अंक दूसरी टीम से 12 या उससे अधिक हो जाएं तो पहली टीम दूसरी टीम को धावक के रूप में पीछा करने को कह सकती है। यदि दूसरी टीम इस बार अधिक अंक प्राप्त कर ले तो भी उसका धावक बनने का अधिकार बना रहता है।
मैच के लिए अधिकारी
मैच की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
- अम्पायर (दो)
- रैफरी (एक)
- टाइम-कीपर (एक)
- स्कोरर (एक)
अम्पायर
अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख रेख करेगा। वह अपने अर्द्धक में सभी निर्णय देगा। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता कर सकता है।
रैफरी
रैफरी के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं।
- वह अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में सहायता करेगा और उनमें मतभेद होने की दिशा में अपना फैसला देगा।
- वह खेल में बाधा पहुँचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड देता है।
- वह नियमों की व्याख्या सम्बन्धी प्रश्नों पर अपना निर्णय देता है।
टाइम-कीपर
टाइप-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है।
स्कोरर
स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क्रम से मैदान में उतरते हैं। वह आऊट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक पारी के अंत में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तैयार करता है। मैच के अंत में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी को सुनाने के लिए देता है।
खो-खो स्पर्धाएँ
भारत में खो-खो की मुख्य स्पर्धाएँ हैं:
- राष्ट्रीय स्पर्धा
- राष्ट्रीय कुमार स्पर्धा
- राष्ट्रीय निम्नस्तरीय कुमार स्पर्धा
- आंतरशालेय (उच्च्माध्यमिक) स्पर्धा
- आंतरशालेय (माध्यमिक) स्पर्धा
- आंतरशालेय प्राथमिक स्पर्धा
- राष्ट्रीय महिला स्पर्धा
- आंतर्विद्यापीठ स्पर्धा
संगठनों के नाम
- भारतीय खो-खो महासंघ (Kho-Kho Federation of India - K.K.F.I.)
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- https://web.archive.org/web/20060218011515/http://library.thinkquest.org/11372/data/kho-kho1.htm
- https://web.archive.org/web/20071018012848/http://sports.indiapress.org/kho_kho.php
- https://web.archive.org/web/20070927012021/http://sportal.nic.in/innerindex.asp?moduleid=26&maincatid=102&comid=2
- https://web.archive.org/web/20071008042256/http://www.kalluritimes.com/kalluri/sports/home/home.jsp?fn0=62 Si
- https://web.archive.org/web/20091027103958/http://www.geocities.com/jasleen_m/kho.html
- https://web.archive.org/web/20070929103209/http://www.tanuvas.tn.nic.in/rural_eng/sports_coco.asp
- http://www.tafisa.net/traditionalgames/index.php?option=content&task=view&id=129[मृत कड़ियाँ]
- https://web.archive.org/web/20071017172836/http://nriol.com/indianparents/khokho.asp