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खोपड़ियों वाला अकाल

चित्र:DojiBaraFamineInJoppen1907India1795a.jpg
भारत का मानचित्र (1795) उत्तरी सरकार, हैदराबाद (निज़ाम), दक्षिणी मराठा साम्राज्य, गुजरात और मारवाड़ (दक्षिणी राजपुताना ) को दर्शाता है, जो सभी दोजी बारा अकाल से प्रभावित हैं।

खोपड़ियों वाला अकाल (तेलुगु- दोजी बर, अंग्रेज़ी- Skull famine, स्कल फ़ैमिन ) भारतीय उपमहाद्वीप में 1791-92 में आया था। इसकी एक प्रमुख वजह 1789 CE से 1795 CE तक चलने वाली एक प्रमुख एल नीनो घटना और उसके कारण पड़ने वाला दीर्घ-कालिक सूखा बताई जाती है।[1]

इसे विलियम रॉक्सबर्ग (ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक सर्जन) द्वारा दर्ज किया गया था। उनकी अग्रणी मौसम संबंधी टिप्पणियों के अनुसार, एल नीनो घटना 1789 में शुरू हुई और लगातार चार वर्षों तक दक्षिण एशियाई मानसून की विफलता का कारण बनी।[2] 1877 के भीषण अकाल के दौरान काम करते हुए कॉर्नेलियस वालफोर्ड ने अनुमान लगाया था कि लगभग एक करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। उन्होंने गणना की कि ब्रिटिश शासन के 120 वर्षों में भारत में कुल 34 अकाल पड़े थे, जबकि उससे पहले के पूरे दो हज़ार सालों में केवल 17 अकाल। इस विचलन को स्पष्ट करने वाले कारकों में से एक यह था कि कंपनी ने मुग़लों की सार्वजनिक विनियमन और निवेश (public regulation and investment) प्रणाली का परित्याग कर दिया था। अंग्रेज़ों के उलट मुगल शासक कर-राजस्व का उपयोग जल संरक्षण के लिए धन देने के लिए करते थे, जिससे खाद्य उत्पादन को बढ़ावा मिलता था। जब कभी अकाल पड़ता भी था तो वे खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध, जमाख़ोरी-विरोधी मूल्य विनियमन, कर राहत और मुफ्त भोजन के वितरण जैसे क़दम उठाते थे। [3]

अकाल हैदराबाद, दक्षिणी मराठा साम्राज्य, दक्कन, गुजरात, और मारवाड़ में व्यापक मृत्यु दर का कारण बना (तब ये सभी भारतीय शासकों के अधीन थे, हालांकि, ये मुग़लों के अधीन नहीं थे, और इनमें से कुछ पर ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव भी था)। [4] मद्रास प्रेसीडेंसी (ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शासित) जैसे क्षेत्रों में, जहाँ रिकॉर्ड रखे गए थे, उत्तरी सरकार जैसे कुछ जिलों की आधी आबादी मारी गई।[5] बीजापुर जैसे अन्य क्षेत्रों में, हालांकि कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया था, किंतु यह अकाल इतना भीषण था कि इसने वहाँ की लोक-संस्कृति पर भी अपनी छाप छोड़ी। 1791 वर्ष और उससे सम्बंधित अकाल-दोनों को लोक-कथन में दोजी बर ( या दोई बर ) के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ होता है "खोपड़ी अकाल", या खोपड़ियों वाला अकाल। कहा जाता है कि पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक थी कि सबको दफ़नाया या जलाया भी नहीं जा सका। उनकी "हड्डियाँ सड़कों और खेतों पर पड़ी रहीं, जिस कारण वे सफ़ेद नज़र आने लागे।" [6] जैसा कि इससे एक दशक पहले के चालीसा अकाल में हुआ था, कई क्षेत्रों में इतनी ज़्यादा मौतें हुईं कि वे वीरान हो गए। एक अध्ययन के अनुसार, भुखमरी के साथ-साथ महामारी फैलने के कारण 1789–92 के दौरान कुल 1.1 करोड़ जानें गईं। [7]

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टिप्पणियाँ

  1. Grove 2007
  2. Grove 2007
  3. Robins, Nick (2006). The Corporation that Changed the World: How the East India Company Shaped the Modern Multinational. London: Pluto Press. पपृ॰ 104-5. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0 7453 2524 6.
  4. Imperial Gazetteer of India vol. III 1907, पृष्ठ 502
  5. Grove 2007, पृष्ठ 82
  6. Elliot 1863, पृष्ठ 288
  7. Grove 2007, पृष्ठ 83

संदर्भ

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