खूनी दरवाजा
खूनी दरवाजा | |
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खूनी दरवाजा | |
सामान्य जानकारी | |
स्थापत्य कला | मुग़ल-अफ़ग़ानी |
कस्बा या शहर | दिल्ली |
देश | भारत |
External image | |
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खूनी दरवाजे के चित्र |
खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है, दिल्ली में बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए १३ ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यह पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में, फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है। इसके पश्चिम में मौलाना आज़ाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है।
इतिहास
खूनी दरवाजे का यह नाम तब पड़ा जब यहाँ मुग़ल सल्तनत के तीन शहज़ादों - बहादुरशाह ज़फ़र के बेटों मिर्ज़ा मुग़ल और किज़्र सुल्तान और पोते अबू बकर - को ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी। मुग़ल सम्राट के आत्मसमर्पण के अगले ही दिन विलियम हॉडसन ने तीनों शहज़ादों को भी समर्पण करने पर मजबूर कर दिया। २२ सितम्बर को जब वह इन तीनों को हुमायूँ के मक़बरे से लाल किले ले जा रहा था, तो उसने इन्हें इस जगह रोका, नग्न किया और गोलियाँ दाग कर मार डाला। इसके बाद शवों को इसी हालत में ले जाकर कोतवाली के सामने प्रदर्शित कर दिया गया।
इसके नाम के कारण बहुत सी अमानवीय घटनाएँ इसके साथ जोड़ी जाती हैं, जिनको सत्यापित करना संभव नहीं है। बहुत संभव है कि ये सब पुरानी दिल्ली के काबुल दरवाजे पर हुईं। इनमें से कुछ हैं-
- अकबर के बाद जब जहांगीर मुग़ल सम्राट बना तो अकबर के कुछ नवरत्नों ने उसका विरोध किया। जवाब में जहांगीर ने नवरत्नों में से एक अब्दुल रहीम खाने-खाना के दो लड़कों को इस दरवाजे पर मरवा डाला और इनके शवों को यहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया गया।[1]
- औरंगज़ेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह को सिंहासन की लड़ाई में हरा कर उसके सिर को इस दरवाजे पर लटकवा दिया।[1]
- १७३९ में जब नादिर शाह ने दिल्ली पर चढ़ाई की तो इस दरवाजे के पास काफ़ी खून बहा।[2] लेकिन कुछ सूत्रों के अनुसार यह खून-खराबा चाँदनी चौक के दड़ीबा मुहल्ले में स्थित इसी नाम के दूसरे दरवाजे पर हुआ था।[1]
और कुछ कहानियों से भी ऐसा लगता है कि मुग़ल काल में भी इसे खूनी दरवाजा कहा जाता था, लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार १८५७ की घटनाओं के बाद से ही इसका यह नाम पड़ा।
अंग्रेज और खुनी दरवाजा
इसी दरवाजे पर मुगल सल्तनत के तीन शहजादों, बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और खिजर सुल्तान और पोते अबू बकर को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने गोली मार दी थी और पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी थी। इस समय वे तीनों बहादुर शाह जफर के साथ हुमायूँ के मकबरे में शरण लिये हुए थे तभी किसी ने उन्हें सूचना दी।
विलियम हॉडसन ने राजा को आश्वासन दिया कि उन पर मुकदमा चलाया जायेगा और उन तीनों को बैलगाड़ी में बिठाकर लाल किले पर भेज दिया। 22 सितंबर को जब वह इन तीनों को हुमायूं के मकबरे से लाल किले की ओर ले जा रहा था, तो उसने उन्हें इसी स्थान पर रोका, उन्हें नग्न कर दिया और गोलियों से भूनकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद शवों को उसी हालत में ले जाकर थाने में पेश किया गया.
स्वाधीनता के बाद
भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों में भी पुराने किले की ओर जाते हुए कुछ शरणार्थियों को यहाँ मार डाला गया। दिसंबर २००२ में यह फिर कुख्यात हुआ जब तीन युवकों ने यहाँ एक चिकित्सीय छात्रा का बलात्कार किया।[3] इस घटना के बाद से आम जनता के लिए यह स्मारक बंद कर दिया गया।
स्थापत्य
यह दरवाजा १५.५ मीटर ऊँचा है और दिल्ली क्वार्ट्जाइट पत्थर का बना है। इसके ऊपर चढ़ने के लिए तीन सीढ़ियाँ भी बनी हैं।[1]
चित्र दीर्घा
- सामने से
- सामने से
- पहलू से
- पीछे से
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई "हिन्दू ऑनलाइन". मूल से 15 दिसंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 दिसम्बर 2006.
- ↑ "इंडिया हैरिटेज". मूल से 1 जुलाई 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 दिसम्बर 2006.
- ↑ "याहू समाचार". मूल से 10 नवंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 दिसम्बर 2006.