खुमान रासो
खुमान रासो नवीं शताब्दी की रचना मानी जाती है। इसमें नवीं शती के चित्तौड़ नरेश खुमाण के युद्धों का चित्रण है। तत्कालीन राजाओं के सजीव वर्णन, उस समय की परिस्थितियों के यथार्थ ज्ञान तथा आरंभिक हिंदी रूप के प्रयोग से इसके नवीं सदी की रचना होने का अनुमान किया जाता है। इसका रचयिता दलपत विजय को माना जाता है। इस ग्रंथ की प्रामाणिक हस्तलिखित प्रति पूना के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। यह पांच हजार छंदों का विशाल काव्य ग्रंथ है। राजाओं के युद्धों और विवाहों के सरल वर्णनों से इस काव्य की भावभूमि का विस्तार हुआ है। वीर रस के साथ-साथ शृंगार रस की भी प्रधानता है। इसमें दोहा, सवैया, कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए है तथा इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।
उदाहरण
चितौड़ नगर का उल्लेख मिलता है तथा चितौड़ की सेना व उसके हथियारों का वर्णन मिलता है।
पिउ चित्तौड़ न आविऊ,सावण पहिली
जोवै बाट बिरहिणी खिण-खिण अणवै खीज।।
संदेसो पिण साहिबा, पाछो फिरिय न देह।
पंछी घाल्या पिंज्जरे, छूटण रो संदेह।।