खानदेश
खानदेश (कान्हदेश) | |
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ऐतिहासिक क्षेत्र | |
कान्हदेश | |
धुले जिले में ताप्ती नदी का दृश्य। | |
निला: महाराष्ट्र में खानदेश आकाशी : मध्य प्रदेश में खानदेश (बुरहानपूर) | |
देश | भारत |
राज्य | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश |
जिले | 1]नंदुरबार 2]धुले 3]जलगाव 4]नाशिक(उत्तर भाग) 5]औरंगाबाद(उत्तर भाग) 6]बुलढाणा(उत्तर भाग) 7]बुरहानपुर 8]बड़वानी(दक्षिण भाग) 9]खरगोन(दक्षिण भाग) 10]खंडवा(दक्षिण भाग) 11]बैतूल(दक्षिण भाग) |
भाषा | मराठी अहिराणी हिंदी |
सबसे बड़ा शहर | धुले |
ऊँचाई | 240 मी (790 फीट) |
वासीनाम | खानदेशी (कान्हदेशी) |
खानदेश (कान्हदेश) महाराष्ट्र के दक्षिणी पठार के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र, जो मुंबई से लगभग ३००किमी उत्तरपश्चिम है। खानदेश के भीलों ने प्रमुख विद्रोह किए । १८ वीं शताब्दी में यह भाग मराठा शासन में था तथा यहाँ अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ हुई थीं। उसके पूर्व यह अहमद नगर के सुल्तानों के अधिकार में था। १६०१ ई. में अकबर ने इसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया।
इतिहास
प्राचीन इतिहास
मार्कण्डेय पुराण और जैन साहित्य में खानदेश क्षेत्र को अहीरदेश के रूप में वर्णित किया गया है। इस क्षेत्र पर अहीरों का शासन न केवल अभिलेखों से बल्कि मौखिक परंपराओं से भी स्पष्ट होता है। नंदुरबार की एक परंपरा हमारे सामने एक अहीर राजा नंद का दिलचस्प विवरण प्रस्तुत करती है, जिन्होंने तुर्कों से लड़ाई की थी।[1] खानदेश क्षेत्र पर एक समय अहीरों का शासन था, पहले अहीरों की भूमि के रूप में जाना जाता था, और वर्तमान खानदेश क्षेत्र में अहीर मराठी बोली बोलते हैं, जिसे अहिराणी कहा जाता है।[2]
देवगिरी के यादव
खानदेश जिले में कई प्राचीन अवशेष गवली (अहीर) राज के काल के माने जाते हैं। पुरातात्विक दृष्टिकोण से, इन्हें देवगिरि के यादवों के समय का माना जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार, देवगिरि के ये यादव भी अहीर थे। इस बात को इस तथ्य से समर्थन मिलता है कि यदुवंशी अब भी अहीरों के सबसे महत्वपूर्ण उपविभागों में से एक हैं।[3]
दिल्ली सल्तनत
1295 में, खानदेश (कान्हदेश) असीरगढ़ के चौहान शासक के अधीन था, जब दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी ने अपने नियंत्रण में ले लिया।[4] अगली शताब्दी में विभिन्न दिल्ली राजवंशों ने खानदेश पर नियंत्रण रखा।[4] 1370 से 1600 तक, फ़ारूकी वंश ने बुरहानपुर में राजधानी के साथ खानदेश पर शासन किया।[4] एक स्वतंत्र राज्य के रूप में खानदेश की नींव खानकाह फौरकी के पुत्र मलिक राजा द्वारा रखी गई थी। फिरोज शाह तुगलक (1309 - 20 सितंबर 1388) ने शुरू में मलिक राजा को खानदेश क्षेत्र का सेनापति नियुक्त किया था, लेकिन फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद उसने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और 1399 तक शासन किया।[5]
मुगल शासन
1599 में यहां मुगलों का आगमन हुआ, जब अकबर की सेना ने खानदेश और असीरगढ़ पर कब्जा कर लिया।[4] कुछ समय के लिए, अकबर के पुत्र दनियाल की नाम पर खानदेश का नाम बदलकर दानदेश कर दिया गया।[6] ल. 1640, टोडर मल के राजस्व निपटान प्रणाली को शाहजहाँ द्वारा खानदेश में पेश किया गया था (1818 में ब्रिटिश शासन तक इस प्रणाली का उपयोग किया गया था)।[6] 17वीं शताब्दी के मध्य को खानदेश की "सर्वोच्च समृद्धि" के रूप में वर्णित किया गया है, जो कपास, चावल, इंडिगो, गन्ना और कपड़े के व्यापार के कारण था।[6] मुगल शासन तब तक चला जब तक मराठों ने 1760 में असीरगढ़ पर कब्जा नहीं कर लिया।[4]
मराठा शासन
खानदेश में मराठा छापे 1670 में शुरू हुए और अगली सदी अशांति की अवधि थी क्योंकि मुगलों और मराठों में नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा चालू रही।[4] 1760 में, पेशवा ने मुगल शासक को बाहर कर दिया और खानदेश पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया, जिसके बाद होलकर और शिंदे शासकों को भाग दिए गए।[4] बाजी राव द्वितीय ने जून 1818 में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन खानदेश में छिटपुट युद्ध जारी रहा, जो कि पूर्ण ब्रिटिश नियंत्रण में आने के लिए पेशवा के पूर्व क्षेत्रों में अंतिम था।[7]
ब्रिटिश शासन
खानदेश को बॉम्बे प्रेसिडेंसी के तहत एक जिला बनाया गया था।[8] 1906 में, जिले को दो जिलों में विभाजित किया गया था: पूर्वी खानदेश जिसका मुख्यालय जलगाँव में था और क्षेत्रफल 11,770 किमी2 (4,544 वर्ग मील) था, जबकि धुले में मुख्यालय वाला पश्चिम खानदेश का क्षेत्रफल 14,240 किमी2 (5,497 वर्ग मील) था; 1901 में उनकी क्रमश: आबादी 957,728 और 469,654 थी।[9]
स्वतंत्र भारत
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, बॉम्बे प्रेसिडेंसी बॉम्बे राज्य बन गया, और 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात के भाषायी राज्यों में विभाजित हो गया। पूर्वी खानदेश जलगाँव जिला, और पश्चिम खानदेश धुले जिला -दोनो महाराष्ट्र राज्य- में बन गया।[10] बाद को धुले से कटकर नंदुरबार जिला बना।[11]
भूगोल
पूरे क्षेत्र का क्षेत्रफल ९,९१८ वर्गमील है। १९०६ ई. में इस क्षेत्र को दो जिलों में विभाजित कर दिया गया :
- (१) पश्चिमी खानदेश और
- (२) पूर्वी खानदेश।
पश्चिमी खानदेश
इसका क्षेत्रफल ५,३२० वर्गमील है। इसके उत्तरपूर्व में सतपुड़ा पर्वत, उत्तरपश्चिम में नर्मदा नदी तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट का उत्तरी किनारा है। इसमें ताप्ती और पांझरा नदियाँ बहती हैं। पश्चिमी भाग में जंगल हैं, जिनमें कीमती लकड़ियाँ मिलती हैं। इस जिले की मुख्य उपज ज्वार, बाजरा, कपास, गेहूँ और तिलहन हैं। इस जिले का केंद्रीय नगर धुलिया है, जो व्यापार और शिक्षा का केंद्र है। इसके अतिरिक्त शिरपुर, तलोदा,शाहदा और नंदुरबार आदि प्रसिद्ध स्थान हैं। इन सभी नगरों में कपास से बिनौला निकालने के कारखाने हैं।
पूर्वी खानदेश
महाराष्ट्र के उत्तरपूर्व में दक्षिणी पठार पर स्थित है, जिसका क्षेत्रफल ४,५९८ वर्गमील है। इसका केंद्रीय नगर जलगाँव है। इसके उत्तर में सतपुड़ा पर्वत और दक्षिण में अजंता की पहाड़ियाँ है। इसमें ताप्ती और गिरना नदियाँ बहती है। चालीस गाँव के उत्तर-उत्तर-पश्चिम में आठ मील की दूरी पर जमदा सिंचाई प्रणाली प्रारंभ होती है। यहाँ पर कपास, मक्का, ज्वार, गेहूँ और आम उत्पन्न होते है। सतपुड़ा पर्वत की ढालों पर पर्वतीय वन में इमारती लकड़ियाँ मिलती है जिन्हें फैजपुर और यावल के बाजारों में बेचा जाता है। यहाँ पर कपास से बिनोला निकालने के कारखाने है। कुटीर उद्योग में वस्त्र बनाए जाते हैं। अमलनेर, चालीसगाँव, जलगाँव और भुसावल में कपास का व्यापार होता है।
सन्दर्भ
- ↑ Journal of the Oriental Institute, M.S. University of Barida, Baroda (अंग्रेज़ी में). Oriental Institute. 1985. पृ॰ 278.
- ↑ Guha (2006), पृ॰ 47:P. M. Chandorkar, using both literary and epigraphic sources has argued that the modern Ahirs and Gavlis - until recently cattle-keepers - should be identified with the Yadavas and Abhiras of the classical Sanskrit texts. He also notes that Khandesh, on the margin of the central Indian forests, was earlier known as the land of the Ahirs, and the local Marathi dialect continued to be called Ahirani.
- ↑ Enthoven, Reginald Edward (1990). The Tribes and Castes of Bombay (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. पृ॰ 25. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-206-0630-2.
Again, many ancient remains in the Khándesh district are popularly believed to belong to the period of the Gauli Ráj. From the Archæological point of view, they are to be ascribed to the time of the Yádavas of Devagiri. It is, therefore, not unlikely that, according to popular belief, these Yádavas were Abhiras. This receives some support from the fact that Yaduvanshis even now are one of the most important sub-divisions of the Ahirs.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए Imperial Gazetteer of India. Provincial Series: Bombay Presidency Vol. 1. Calcutta: Superintendent of Government Printing. 1909. मूल से 27 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2019.
- ↑ Goyal, S. P. Historical Atlas. Agra: Upkar. पृ॰ 68. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7482-752-4.
- ↑ अ आ इ Gazetteer of the Bombay Presidency. Volume XII: Khandesh. Bombay: Government Central Press. 1880.
- ↑ Deshpande, Arvind M. (1987). John Briggs in Maharashtra: A Study of District Administration Under Early British Rule. Delhi: Mittal Publications.
- ↑ Census of India, 1911 (PDF). Volume VII, Bombay: Part 1, Report. Bombay: Government Central Press. 1912. पृ॰ 1. मूल (PDF) से 22 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2019.
- ↑ "Khandesh". Khandesh. मूल से 21 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-08-01.
- ↑ Jamkar, A.G. (1988). "Origin and Evolution of Periodic Market Places in Dhule District (Maharashtra)". प्रकाशित Shrivastava, V.K. (संपा॰). Commercial Activities and Rural Development in South Asia: A Geographical Study. New Delhi: Concept Publishing Company. पृ॰ 134. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7022-194-3.
- ↑ Patil, M.V. (2015). An Inventory on Agrobiodiversity and Homestead Gardens in Tribal Tehsils of Khandesh Maharashtra. North Maharashtra University. पपृ॰ Chapter 6-1.