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खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग

खादी और ग्रामोद्योग आयोग
चित्र:Khadi and Village Industries Commission logo.png
खादी और ग्रामोद्योग आयोग का प्रतीक चिह्न
संक्षेपाक्षर KVIC
स्थापना 1957
मुख्यालयMumbai
पैतृक संगठन
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय
स्टाफ़
76.78 लाख (2004-2005)[1]
जालस्थलकेवीआईसी आधिकारिक हिन्दी जालस्थल

खादी और ग्रामोद्योग आयोग, भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के अन्दर आने वाली एक शीर्ष संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य "ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है, जिसमें वह आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकती है।"[3]. अप्रैल 1957 में, पूर्व के अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड का पूरा कार्यभार इसने संभाल लिया।[4]

इसका मुख्यालय मुंबई में है, जबकि अन्य संभागीय कार्यालय दिल्ली, भोपाल, बंगलोर, कोलकाता, मुंबई और गुवाहाटी में स्थित हैं। संभागीय कार्यालयों के अलावा, अपने विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए 29 राज्यों में भी इसके कार्यालय हैं।

महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ

खादी

"स्वतंत्रता की पोशाक" - महात्मा गाँधी[5]

खादी, हाथ से काते गए और बुने गए कपड़े को कहते हैं। कच्चे माल के रूप में कपास, रेशम या ऊन का प्रयोग किया जा सकता है, जिन्हें चरखे (एक पारंपरिक कताई यन्त्र) पर कातकर धागा बनाया जाता है।

खादी का 1920 में महात्मा गाँधी के स्वदेशी आन्दोलन में एक राजनैतिक हथियार के रूप में उपयोग किया गया था।

खादी को कच्चे माल के आधार पर भारत के विभिन्न भागों से प्राप्त किया जाता है - पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर पूर्वी राज्यों से रेशमी माल प्राप्त किया जाता है, जबकि कपास की प्राप्ति आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होती है। पॉली खादी को गुजरात और राजस्थान में काता जाता है जबकि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर को ऊनी खादी के लिए जाना जाता है।

ग्रामीण उद्योग

कोई भी उद्योग जो ग्रामीण क्षेत्र के अन्दर स्थित होता है और जहाँ प्रति कारीगर (जुलाहा) निश्चित मुद्रा निवेश एक लाख[6] रुपये से अधिक नहीं होता है। निश्चित मुद्रा निवेश को आवश्यकतानुसार भारत की केंद्रीय सरकार द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है।

खादी और ग्रामोद्योग की प्रासंगिकता

खादी और ग्रामोद्योग, दोनों में ही अत्यधिक श्रम (श्रमिकों) की आवश्यकता होती है। औद्योगीकरण के मद्देनज़र और लगभग सभी प्रक्रियाओं का मशीनीकरण होने के कारण भारत जैसे श्रम अधिशेष देश के लिए खादी और ग्रामोद्योग की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है।

खादी और ग्रामीण उद्योग का एक अन्य लाभ यह भी है कि इन्हें स्थापित करने के लिए पूँजी की आवश्यकता नहीं (या बिलकुल कम) के बराबर होती है, जो इन्हें ग्रामीण गरीबों के लिए एक आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्प बनाता है। कम आय, एवं क्षेत्रीय और ग्रामीण/नगरीय असमानताओं के मद्देनजर भारत के संदर्भ में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।

आयोग के उद्देश्य

आयोग के तीन प्रमुख उद्देश्य[7] हैं जो इसके कार्यों को निर्देशित करते हैं। ये इस प्रकार हैं -

  • सामाजिक उद्देश्य - ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना.
  • आर्थिक उद्देश्य - बेचने योग्य सामग्री प्रदान करना
  • व्यापक उद्देश्य - लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और एक सुदृढ़ ग्रामीण सामाजिक भावना का निर्माण करना।

आयोग विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और नियंत्रण द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

योजनाओं और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन

योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय से आरम्भ होती है, जो इन कार्यक्रमों का प्रशासनिक प्रमुख होता है। मंत्रालय भारतीय केन्द्र सरकार से धन प्राप्त करता है और खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग को पहुंचाता है।[8]

खादी और ग्रामोद्योग आयोग इसके बाद इस धनकोष का प्रयोग अपने कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए करता है। आयोग इस काम को प्रत्यक्ष तौर पर अपने 29[9] राज्य कार्यालयों के माध्यम से सीधे खादी और ग्राम संस्थाओं एवं सहकारी संस्थाओं में निवेश करके; या अप्रत्यक्ष तौर पर 33[10] खादी और ग्रामोद्योग बोर्डों के माध्यम से करता है, जो कि भारत में राज्य सरकारों द्वारा संबंधित राज्य में खादी और ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निर्मित वैधानिक निकाय हैं। तत्पश्चात, खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड खादी और ग्राम संस्थानों/सहकारिताओं /व्यवसाइयों को धन मुहैया कराते हैं।

वर्तमान में आयोग के विकासात्मक कार्यक्रमों का क्रियान्वयन 5600 पंजीकृत संस्थाओं, 30,138 सहकारी संस्थाओं[11] और करीब 94.85 लाख लोगों[12] के माध्यम से किया जा रहा है।

आयोग की योजनायें और कार्यक्रम

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी)

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) दो योजनाओं के विलय का परिणाम है - प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी).

इस योजना के तहत, लाभार्थी को परियोजना की लागत के 10 प्रतिशत का निवेश स्वयं के योगदान के रूप में करना होता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों से लाभार्थी के लिए यह योगदान परियोजना की कुल लागत का 5 प्रतिशत होता है। शेष 90 या 95% प्रतिशत (जो भी उपयुक्त हो), इस योजना के तहत निर्दिष्ट बैंकों द्वारा प्रदान किया जाता है। इस योजना के तहत लाभार्थी को ऋण की एक निश्चित रकम वापस दी जाती है (सामान्य के लिए 25%, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्गों के लिए 35%), जो कि ऋण प्राप्त करने की तिथि के दो वर्षों के बाद उसके खाते में आती है।[13]

ब्याज अनुवृत्ति पात्रता प्रमाणपत्र योजना (आईएसईसी)

ब्याज अनुवृत्ति पात्रता प्रमाणपत्र (ISEC) योजना, खादी कार्यक्रम के लिए धन का प्रमुख स्रोत है। इसे मई 1977 में, धन की वास्तविक आवश्यकता और बजटीय स्रोतों से उपलब्ध धन के अंतर को भरने हेतु बैंकिंग संस्थानों से धन को एकत्र करने के लिए शुरू किया गया था।

इस योजना के तहत, बैंक द्वारा सदस्यों को उनकी कार्यात्मक/निश्चित राशि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। ये ऋण 4% प्रतिवर्ष की रियायती ब्याज दर पर उपलब्ध कराये जाते हैं।[14] वास्तविक ब्याज दर और रियायती दर के बीच के अंतर को आयोग द्वारा अपने बजट के 'अनुदान' मद के तहत वहन किया जाता है। हालांकि, केवल खादी या पॉलीवस्त्र (एक प्रकार की खादी) का निर्माण करने वाले सदस्य ही इस योजना के लिए योग्य होते हैं।

छूट योजना

सरकार द्वारा खादी और खादी उत्पादों की बिक्री पर छूट उपलब्ध कराई जाती है ताकि अन्य कपड़ों की तुलना में इनके मूल्यों को सस्ता रखा जा सके। ग्राहकों को पूरे वर्ष सामान्य छूट (10 प्रतिशत) और साल में 108 दिन अतिरिक्त विशेष छूट (10 प्रतिशत) दी जाती है।[15]

छूट केवल आयोग/राज्य बोर्ड द्वारा संचालित संस्थाओं/केन्द्रों द्वारा की गई बिक्री और साथ ही खादी और पॉलीवस्त्र के निर्माण में संलग्न पंजीकृत संस्थाओं द्वारा संचालित बिक्री केन्द्रों पर ही दी जाती है।

हाल ही में, वित्त मंत्रालय ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय से खादी और ग्रामोद्योग के लिए अपनी छूट योजनाओं को पुनः बनाने के लिए कहा है। उनका दृष्टिकोण यह है कि "मंत्रालय द्वारा इस योजना को साल-दर-साल बढ़वाने की चेष्टा करने की बजाय योजना आयोग के समक्ष जाना चाहिए. इसके अलावा, इसने एमएसएमई मंत्रालय से योजना का इस प्रकार पुनः निर्माण करने के लिए कहा है जिससे यह विक्रेता की बजाय कारीगरों को फायदा पहुंचाए". इस संबंध में, आयोग का एक प्रस्ताव जिसमें बिक्री पर छूट के संभावित विकल्प के रूप में बाज़ार विकास सहयोग शुरू करने की बात कही गयी है, भारत सरकार द्वारा विचाराधीन है।[16]

आयोग को बजटीय समर्थन

केंद्र सरकार आयोग को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के माध्यम से दो मदों के तहत धन प्रदान करती है: योजनाकृत और गैर-योजनाकृत. आयोग द्वारा 'योजनाकृत' मद के तहत प्रदान किये गए धन का आवंटन कार्यान्वयन एजेंसियों को किया जाता है। 'गैर-योजनाकृत' मद के तहत प्रदान किया गया धन मुख्य रूप से आयोग के प्रशासनिक व्यय के लिए होता है। धन मुख्य रूप से अनुदान और ऋण के माध्यम से प्रदान किया जाता है।

अनुदान

खादी अनुदान का एक बड़ा भाग बिक्री छूट के भुगतान के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसे प्रचार व्यय माना जाता है। इस मद के तहत अन्य व्यय हैं: प्रशिक्षण, प्रचार, विपणन, आईएसईसी योजना के तहत बैंक ऋणों पर ब्याज अनुवृत्ति.

ऋण

इस मद के अंतर्गत व्यय में शामिल हैं: कार्यकारी पूंजी व्यय और निश्चित पूंजी व्यय. निश्चित पूंजी व्यय में निम्न व्यय शामिल हैं -

क) मशीनरी ..... 1000000 ख) सामग्री .... 50000 ग) कार्य स्थल .... 25000 घ) बिक्री स्थल आदि। .. 25000

खादी और ग्रामीण उद्योग के उत्पादों की बिक्री

संस्थाओं द्वारा निर्मित उत्पाद उनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से फुटकर विक्रेता और थोक विक्रेता के माध्यम से बेचे जाते हैं; या अप्रत्यक्ष रूप से "खादी भंडार" (सरकार द्वारा संचालित खादी बिक्री केंद्र) के माध्यम से।

कुल मिलाकर 15431 बिक्री केंद्र हैं, जिनमें से 7,050 आयोग के अधीन हैं। ये पूरे भारत में फैले हुए हैं। इन उत्पादों को आयोग द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों के माध्यम से विदेशों में भी बेचा जाता है।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग के खादी ब्रांड ने वित्त वर्ष 2021-22 में रिकार्ड एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करते हुए देश के सभी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। खादी ने पहली बार 1.15 लाख करोड़ रुपये का कारोबार किया है। ये देश भर में किसी भी एफएमसीजी कंपनी के लिए अभूतपूर्व है।[17]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. statistics Archived 2005-02-08 at the वेबैक मशीन KVIC official website.
  2. [1] Archived 2005-02-04 at the वेबैक मशीन KVIC contact list.
  3. http://www.ari.nic.in/RevisedKVICACT2006.pdf Archived 2009-04-10 at the वेबैक मशीन - Chapter 2, Functions of the Commission, Page 7
  4. संसद अधिनियम (1956 की नंबर 61, के रूप में कोई द्वारा संशोधन अधिनियम 1987 के अधिनियम 2006 और No.10 के 12..
  5. "गांधी". मूल से 6 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अप्रैल 2011.
  6. "अध्याय 1, पृष्ठ 1" (PDF). मूल (PDF) से 10 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अप्रैल 2011.
  7. अवलोकन Archived 2005-03-05 at the वेबैक मशीन केवीआईसी वेबसाइट
  8. - बजटीय सहायता के लिए केवीआईसी, पृष्ठ 6 Archived 2011-07-21 at the वेबैक मशीन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय.
  9. पेज - 65 Archived 2011-07-21 at the वेबैक मशीन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय
  10. पेज - 66 Archived 2011-07-21 at the वेबैक मशीन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय
  11. हमारे बारे में - दिल्ली खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड Archived 2009-07-25 at the वेबैक मशीन दिल्ली सरकार.
  12. - पेज 67 Archived 2011-07-21 at the वेबैक मशीन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय
  13. पीएमईजीपी (PMEGP) योजना Archived 2009-08-06 at the वेबैक मशीन केवीआईसी के सभी आंकड़े.
  14. "- पेज 70" (PDF). मूल (PDF) से 21 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अप्रैल 2011.
  15. - पेज 71 Archived 2011-07-21 at the वेबैक मशीन के सभी आकड़े
  16. एमएसएमई मिनिस्ट्री आस्क्ड टू रिड्रॉ रिबेट स्कीम द इंडियन एक्सप्रेस
  17. प्रधानमन्त्री मोदी की अपील का बड़ा असर, एक लाख करोड़ रुपए के पार पहुंचा खादी का कारोबार

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