ख़ितानी भाषा
ख़ितानी भाषा मध्य एशिया में बोले जाने वाली एक विलुप्त भाषा थी जिसे ख़ितानी लोग बोला करते थे। यह भाषा सन् ३८८ से सन् १२४३ तक ख़ितानी राज्य व्यवस्था के लिए प्रयोगित थी। भाषा-परिवार के नज़रिए से इसे मंगोल भाषा-परिवार का सदस्य माना जाता है, हालांकि जब यह बोली जाति थी तब आधुनिक मंगोल भाषा अस्तित्व में नहीं थी। यह भाषा पहले ख़ितानियों के लियाओ राजवंश और फिर कारा-ख़ितान की राजभाषा रही। किसी ज़माने में कुछ भाषावैज्ञानिक समझते थे कि इसका मंगोल भाषा होने कि बजाए एक तुन्गुसी भाषा होना अधिक संभव है, लेकिन वर्तमान युग में लगभग सभी विद्वान इस एक मंगोल भाषा मानते हैं। क्योंकि यह भाषा काफ़ी अरसे तक उईग़ुर जैसी तुर्की भाषाओँ के संपर्क में रही, इसलिए इनमें शब्दों का आपसी आदान-प्रदान होता रहा।
मंगोलों पर प्रभाव
चंगेज़ ख़ान द्वारा स्थापित मंगोल साम्राज्य के शुरुआती चरणों में ख़ितानी और उईग़ुर भाषाओँ का उस साम्राज्य पर गहरा असर पड़ा।[1] उस समय के कुछ ख़ितानी शब्द आधुनिक हिंदी तक में पहुँच गए हैं, जैसे कि 'दरोग़ा'।[1]
लिपि
ख़ितानी भाषा लिखने के लिए दो बिलकुल अलग लिपियों का प्रयोग किया जाता था, हालांकि दोनों ही चीनी लिपि पर आधारित थी। एक को बड़ी ख़ितानी लिपि कहा जाता था और दूसरी को छोटी ख़ितानी लिपि।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ Encyclopaedic ethnography of Middle-East and Central Asia: A-I, Volume 1 Archived 2014-09-22 at the वेबैक मशीन, Global Vision Publishing Ho, 2005, ISBN 978-81-8220-062-3, ... The most marked influence in the empire's early decades was exercised by the Uyghurs and the Khitans. The Mongols speedily adopted both the Uyghur alphabet for the writing of Mongolian ... The Khitans were probably even more influential. during the initial stages of the empire's administrative evolution, the most important all-purpose Mongol official was the darughaci ...