खर्दा की लड़ाई
खर्दा की लड़ाई | |||||||
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योद्धा | |||||||
मराठा साम्राज्य | हैदराबाद के निज़ाम | ||||||
सेनानायक | |||||||
सवाई माधवराव दौलतराव शिंदे जीवाबाददा केरकर तुकोजी होल्कर राघोजी द्वितीय भोंसले गोविंद राव गायकवाड़ | मीर निज़ाम अली खान अरस्तू जाही भवानी दास | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
100,000[2] | 150,000[3] |
खर्दा की लड़ाई 1795 में मराठा साम्राज्य और हैदराबाद के निज़ाम के बीच हुई, जिसमें निज़ाम बुरी तरह हार गया था।[4] गवर्नर जनरल जॉन शोर ने गैर-हस्तक्षेप की नीति का पालन किया, इसके बावजूद कि निज़ाम उनके संरक्षण में था। इस वजह से अंग्रेजों से निज़ाम का भरोसा उठ गया। यह बख्शीबहादर जीवाबादा केरकर के नेतृत्व में सभी मराठा प्रमुखों द्वारा एक साथ लड़ी गई आखिरी लड़ाई थी। मराठा सेना में घुड़सवार सेना, तोपखाने, तीरंदाज, तोपखाने और पैदल सेना शामिल थे।[5]
कई झड़पों के बाद रेमंड के तहत निज़ाम की पैदल सेना ने मराठों पर हमला किया, लेकिन सिंधिया सेना ने जिवाबादा केरकर के नेतृत्व में उन्हें हरा दिया और एक जवाबी हमला शुरू किया जो निर्णायक साबित हुआ। हैदराबाद की बाकी सेना खरदा के किले में भाग गई। निज़ाम ने बातचीत शुरू की और वे अप्रैल 1795 में संपन्न हुए।[6][7] निज़ाम ने मराठों को क्षेत्र सौंप दिया और 3 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति का भुगतान किया।[1]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "Archived copy". मूल से 2016-03-04 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-29.सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link)
- ↑ Pradeep Barua
- ↑ Pradeep Barua
- ↑ Naravane, M.S. (2014). Battles of the Honourable East India Company. A.P.H. Publishing Corporation. पृ॰ 178. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788131300343.
- ↑ Dalrymple, William (2002). White Mughals. Harper Perennial. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-00-655096-9.
- ↑ The State at War in South Asia By Pradeep Barua pg.91
- ↑ Kulkarni, G. T.; Kantak, M. R. (1980). Battle of Kharda: Challenges and Responses (अंग्रेज़ी में). University of California: Deccan College Post-Graduate and Research Institute.