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खगोलीय मैग्निट्यूड

खगोलशास्त्र में खगोलीय मैग्निट्यूड या खगोलीय कान्तिमान किसी खगोलीय वस्तु की चमक का माप है। इसका अनुमान लगाने के लिए लघुगणक (लॉगरिदम) का इस्तेमाल किया जाता है। मैग्निट्यूड के आंकडे परखते हुए एक ध्यान-योग्य चीज़ यह है के किसी वस्तु का मैग्निट्यूड जितना कम हो वह वस्तु उतनी ही अधिक रोशन होती है।[1] पृथ्वी पर बैठे हुए दर्शक के लिए -

  • मैग्निट्यूड ६ से अधिक मैग्निट्यूड वाली वस्तुएँ इतनी धुंधली होतीं हैं के बिना दूरबीन के देखी ही नहीं जा सकती
  • धुंधली-सी दिखने वाली एण्ड्रोमेडा गैलेक्सी का मैग्निट्यूड ३ है
  • आकाश में सब से रोशन तारे, व्याध तारा, का मैग्निट्यूड -१ है
  • पूनम के पूरे चाँद का मैग्निट्यूड -१३ है
  • चढ़े हुए सूरज का मैग्निट्यूड -२७ है (यानि शुन्य से २७ कम)

अन्य भाषाओं में

अंग्रेज़ी में "मैग्निट्यूड" को "magnitude" लिखते हैं।

इतिहास

मैग्निट्यूड की प्रणाली की इजाद यूनानी खगोलशास्त्री हिप्पारकस ने की थी।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Heifetz, M.; Tirion, W. (2004), A walk through the heavens: a guide to stars and constellations and their legends, Cambridge: Cambridge University Press, p. 6