क्षेत्री लोग पहाडी समुदाय के खश (पिले रंग)के एक सदस्य समुह हैं
'क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले मुलनिबासी Aboriginal योद्धा वर्ण के आदिवासी समूह हैं, इन्हें पहाड़ी, गोर्खाली, गोर्खे, गोर्खेधी, गुर्खिया, या मुल खश्या भी कहाँ जाता है। ये एक मिश्रित हिन्द-आर्य भाषिक समूह के जाति हैं। क्षेत्री या छेत्री या क्षथरीय सब क्षत्रिय के अपभ्रंश हैं [2][3] और ये नेपाल मे हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत क्षत्रिय वर्ण में आते हैं। ओर जो हिन्दु धर्न मे धर्मान्तरित नहि हुये वो खुद को खश या खश्या केहेते हे। ये लोग मूल रूप से हिमालयी क्षेत्र मे सैनिक, राजा और प्रशासनिक क्षेत्र में काफी आगे हैं। [4] ये बाहुन (पाहाडि ब्राह्मण) और शिल्पी/दलित के जैसे पाहाडि समुदाय के एक विभाजन हैं।
क्षेत्री नेपाल के कुल जनसंख्या में सर्वाधिक १६.६% हैं। जो खश्या ओर खत्री लोगो का मिलि जुलि स्वरुप हे, इस जाति को नेपाल में सत्तारुढ माना जाता है। इन लोगों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न इतिहासकार और खोजकर्ता जेसै कि डोरबहादुर विष्ट और सूर्यमणि अधिकारी, आदि के अनुसार पश्चिम् नेपाल के जुम्ला जिले कि सिन्जा क्षेत्र या हाल के कर्णाली प्रदेश में हुआ था जो लोग वेदिक धर्म अपनाकर पाहाडी क्षेत्रीय राजपुत बन गये थे । लेकिन नेपाल मे रहनेवाले खश क्षेत्रिय ये नहि थे। वरन इन लोगोको जंग बहादुर राणा ने जबर्जस्ती क्षेत्रिय पदवि दिलाइ थि 1910 मे।इस जाति के पूर्वज पूर्वी टुरानिड भाषिक खस जाति से हैं जो बाह्लिक-गान्धार क्षेत्रमें पाए जाते थे। आज ये नेपाल के सभी क्षेत्रों और भारत के कुछ पाहाडि क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं। ये लोग पूर्णत: पित्री पुजक ओर प्रकिती पुजक या शेब हिन्दु होते हैं और स्थानिय कुल इश्ट या महा इश्ट या मष्ट देवता की पुजा करते हैं जो 12 प्रकार के अलग अलग कुल पित्री देउता होते हे खशो के। इस पुजा को मष्ट पुजा या देवाली कहते हैं। इन का मातृभाषा नेपाली भाषा है और ये इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हैं। [1]
नेपाल के खस राजवंश, खप्तड राजवंश, सिंजा राजवंश, [[थापा समुह]], बस्नेत, कुँवर और पाँडे वंश, दरबारिया समुह और नेपाल के पिछले समय के क्रुर शासक राणा वंश भी क्षेत्री(खश) जाति में आते हैं। क्षेत्री (खश/खश्या) अधिकतर नेपाल सरकार और नेपाली सेना में कार्यरत पाए जाते हैं। इन के लिए भारतिय सेना में एक सैनिक दस्ता 9 वीं गोरखा रेजिमेन्त आरक्षित है।
शब्द उत्पत्ति
क्षेत्री क्षत्रिय की नेपाली बोलीचाली के शब्द हैं। 1902 से पेहले इन्हे खस या गोर्खाली नाम से जाना जाता था। वाद मे ब्रामन लोगो द्वारा इन्हे क्षेत्री संस्कृत शब्द क्षत्रिय शब्द से बुलाया जाने लगा। [3][2]
↑"संग्रहीत प्रति". मूल से 12 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मार्च 2017.
↑"संग्रहीत प्रति". मूल से 12 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मार्च 2017.
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