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क्रय शक्ति

क्रय शक्ति (purchasing power) वह माल और सेवाओं की मात्रा है जो बाज़ार में उपभोक्ताओं द्वारा मुद्रा की एक ईकाई से खरीदी जा सकती है। उदाहरण के लिए ₹100 की राशि से सन् 1950 में सन् 2020 की तुलना में अधिक माल व सेवाएँ खरीदी जा सकती थी, यानि भारतीय रुपये की क्रय शक्ति 1950 में 2020 से अधिक थी। अगर किसी काल में उपभोक्ता की आय 10% बढ़े और अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति (महंगाई) के कारण कीमतें 20% बढ़ जाएँ तो उस उपभोक्ता की क्रय शक्ति घट जाती है। इसके विपरीत अगर उसी काल में किसी देश में तेज़ी से आर्थिक वृद्धि होने के कारण वहाँ के लोगों की औसत आय 100% बढ़ जाए लेकिन महंगाई केवल 20% ही बढ़े तो उन उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ जाती है। यह भी सम्भव है कि दो भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की कीमतों में अंतर होने से ₹100 की क्रय शक्ति उन दोनों स्थानों में एक-दूसरे से भिन्न हो।[1][2]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Glossary:Purchasing power standard". Europa. अभिगमन तिथि 21 December 2019.
  2. "Inflation Theory in Economics: Welfare, Velocity, Growth and Business Cycles," Max Gillman, Taylor and Francis, 2009, ISBN 9781134021741.