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क्योटो प्रोटोकॉल

क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बनाया गया है। यह इस संधि में शामिल देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है। यह वैज्ञानिकों के राय पर आधारित है, जिसके पहले भाग के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग हो रही है और दूसरे भाग के अनुसार इसकी संभावना अधिक है कि यह मानव निर्मित CO2 के उत्सर्जन के कारण हो रहा है। क्योटो प्रोटोकॉल को क्योटो, जापान में 11 दिसंबर 1997 को अपनाया गया था और 16 फरवरी 2005 को लागू हुआ था। वर्तमान में 192 देश

इस प्रोटोकॉल में है। दिसम्बर 2011 में कनाडा इस प्रोटोकॉल से हट गया।

उद्देश्य

क्योटो ग्रीनहाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन में कटौती करने का इरादा है।


उद्देश्य है,"स्थिरीकरण और ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता के पुनर्निर्माण से जलवायु प्रणाली [[1]]पर मानवजीवन के हानिकारक प्रभाव को रोकना."


क्योटो जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन का उद्देश्य था कानूनी तौर पर एक बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता स्थापन करना, जिससे सभी भाग लेने वाले राष्ट्र ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे से निपटने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए खुद प्रतिबद्ध हुए। इस लक्ष्य के शिखर सम्मेलन में वर्ष 2012 में 1990 के स्तर से 5.2% की औसत कम करने पर सहमत हुए।


इंटर गोवमेन्ट पैनल ओन क्लाइमेट चेंजे (आईपीसीसी) के भाबिशावानी की अनुसार 1990 और 2100[[2]] के बीच ओसत तापमान 1.4 सी(2.5° एफ) से 5.8 सि (10.4 एफ़) में ग्लोबल वृद्धि की संभाबना है।


समर्थको ने यह भी कहा कि क्योटो उ.एन.ऍफ़.सी.सी.सी के लक्ष्य को पूरा करने का एक पहला कदम[[3]][[4]] है और इसे उ एन ऍफ़ सी सी सी के अनुच्छेद 4.2 डी [[5]]का लक्ष्य को निभाने के लिए रूपांतर करना आवश्यक है।


इस संधि को क्योटो, जापान में दिसंबर 1997 में तय किया गया,16 मार्च 1998 में हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया और 15 मार्च 1999 में बंद किया गया। यह समझौते 16 फ़रवरी 2005 में लागू हुआ जब रूस ने 18 नवम्बर 2004 में इसकी पुष्टि की. 14 जनवरी 2009 में,183 देशों और 1 क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन (इ.सी.) ने इस समझौते की पुष्टि की.(जो की 63.7% अनेक्स 1[[6]]देशो की उत्सर्जन को प्रतिनिधित्व करता है।)


इस प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 25 के अनुसार, यह समझौता तब लागू होता है जब कम से कम 55 प्रतिशत कन्वेंशन के पार्टी, अनेक्स १ के अर्न्तगत संयुक्त पार्टी जो सम्मिलित रूप में 1990 में न्यूनतम 55 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के जिम्मेवार है, वह अपना अनुसमर्थन, स्वीकृति, अनुमोदन या परिग्रहण के अपने उपकरणों जमा देने या इसमें शामिल होने के नब्बैवा दिन पुरे हो. " दोनों स्थितियों में से है, "55 दलों" का उपधारा 23 मई 2002 को रचा गया जब आइसलैंड ने इसकी पुष्टि की. 18 नवम्बर 2004 को रूस द्वारा अनुसमर्थन के बाद "55%"अनुधरा की संतुष्टि हुई और 16 फ़रवरी 2005 में यह संधि पर अमल की गयी। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन राड ने 3 दिसम्बर 2007 में क्योटो प्रोटोकॉल का अनुमोदन किया। यह नब्बे दिनों के पश्चात् लागू किया गया (मार्च 2008 के शेष भाग में) जैसा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों में कहा गया है।



क्योटो प्रोटोकॉल के पाँच मुख्या अवधारणाओं हैं:[[[Category:सुधार योग्य सभी लेख]][]21]


  • इस प्रोटोकॉल के प्रतिबद्धताओं -इस प्रोटोकोल का मर्म है कानूनी तौर पर अनुलग्नक देशों के लिए बाध्यकारी ग्रीनहाउस गैसों की कटौती, साथ ही साथ सभी सदस्य देशों के लिए सामान्य प्रतिबद्धता की स्थ्हपना.
  • कार्यान्वयन - प्रोटोकोल के उद्दयेश प्राप्त करने के लिए अनुलग्नक देशों को ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के उपाय तैयार करना आवश्यक है। इसके अलावा, इन गैसों का अवशोषण में वृद्धि करना आवश्यक है और कुछ ऐसे तंत्रों नियोजित करना है तथा संयुक्त कार्यान्वयन, स्वच्छ विकास तंत्र और उत्सर्जन व्यापार-जो क्रेडिट से पुरस्कृत हो और ग्रिन्हौज़ गैस के अधिक घरेलु उत्सर्जन की अनुमति दे.
  • जलवायु परिवर्तन के लिए एक अनुकूलन कोष की स्थापना से उन्न्यानशील देशो पर नुन्न्यातम प्रभाव डाले.
  • प्रोटोकॉल की अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए लेखांकन, प्रतिबेदन और समीक्षा.
  • अनुपालन - इस प्रोटोकॉल के तहत प्रतिबद्धताओं के अनुपालन लागू करने के लिए एक अनुपालन समिति का स्थापना.

इस समझौते के विवरण

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम से एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार:


10 दिन एक कड़ी समझोते के बाद 160 देशों की मंत्रियों और अन्य उच्च स्तर के अधिकारियों इस सुबह कानूनी तौर पर बाध्यकारी प्रोटोकॉल पर सहमत हुए जिसके तहेत औद्योगिक देशों 5.2% तक ग्रीन हाउस गैसों के सामूहिक निर्गमन कम करेंगे.

इस समझोता का लक्ष है 2008 से 2012 के बीच पांच सालो का औसत जोड़ कर छ: [[ग्रीनहाउस गैस] का समोग्रिक निर्गमन घटाना. ग्रिन्हौज़ के तीन सबसे महत्वपूर्ण गैसों में कटौती - कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N20) - 1990 के आधार वर्ष पर मापा जाएगा. तीन लंबी औद्योगिक गैसों तथा - hydrofluorocarbonहाइड्रोफ्लूरोकार्बन(HFCs), [[perfluorocarbon] परफ्लूरोकार्बन (PFCs) और [[sulpharhexafluoride]सल्फरहेक्साफ्लूराइड(SF6)]] - में कटौती 1990 या फिर 1995 के आधारभूत वर्षो पर मापा जा सकता है।


राष्ट्रीय सीमाओं के अनुसार यूरोपीय संघ और कुछ अन्य देशो के लिए 8%, अमेरिका के लिए 7%, जापान के लिए 6%, रूस के लिए 0% कटौती की और ऑस्ट्रेलिया के लिए 8% व आइसलैंड [[7]] के लिए 10% बढ़ने की अनुमति देती है।


यह समझौता जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन पर एक संशोधन है। (UNFCCC, पृथ्वी शिखर सम्मेलन,रियो डी जेनेरो में 1992 में अपनाया गया। UNFCCC के सभी पार्टियों क्योटो प्रोटोकॉल के समर्थन में हस्ताक्षर या पुष्टि कर सकते है, जबकि गैर उ एन ऍफ़ सी सी सी दल ऐसा नहीं कर सकते. क्योटो प्रोटोकॉल, उ एन ऍफ़ सी सी सी (सी ओ पि 3) दलों के तीसरे मौसम के सम्मलेन में 1997 में जापान में अपनाया गया था। क्योटो प्रोटोकॉल के अधिकांश प्रावधानों उ एन ऍफ़ सी सी सी के अनुलग्न १ में सुचिबध्ह विकसित देशों के लिए लागू है। उत्सर्जन के आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय विमानन और शिपिंग पर लागू नही है।


आम बल्कि विभेदित जिम्मेदारी

आव्हावा परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन तथा UNFCCC ने कुछ "आम लेकिन विभेदित जिम्मेदारियो" निर्धारित किए है। निम्नलिखित विषय पर दल सहमत हुए:


  1. ग्रीन हाउस गैसों का ऐतिहासिक और मौजूदा वैश्विक उत्सर्जन का सबसे बड़ा हिस्सा विकसित देशो से उत्पन्न होता है।
  2. विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अभी भी अपेक्षाकृत कम है
  3. सामाजिक व विकास के जरुरातो को मिटाने के लिए वैश्विक उत्सर्जन विकासशील देशो में बद्गती जाएगी.


दूसरे शब्दों में, चीन, भारत और अन्य विकासशील देशों, क्योटो प्रोटोकॉल का कोई संख्यात्मक सीमा में शामिल नहीं थे, क्योंकि संधि पूर्व औद्योगीकरण के दौरान वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मुख्य योग्दानकारी नहीं थे। (चीन इसके पश्चात् सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न्कारी[[8]]बन गया)[26].हालांकि, क्योटो लक्ष्य के अनुसार विकासशील देशो के लिए उत्सरजन कटौती आवश्यक नही है, परन्तु सब देशो के साथ इन्हें भी उत्सर्जन कम करने की आम जिम्मेदारी उठाना है।


प्रोटोकॉल "अनुपालन" का यंत्र्कला स्पष्ट करता है जिसके तहत "प्रतिबद्धताओं पर निगरानी रखना होगा और गैर-अनुपालन[[9]]के लिए दंड प्राप्त होगा'.


वित्तीय प्रतिबद्धताओं

इस प्रोटोकोल के अनुसार विकसित देशो को बिलिओन डॉलर निवेश करना और आव्हावा सम्बंधित अध्ययन और परियोजनाए बनाने के लिए विकासशील देशो को तकनीक प्रदान करना आवश्यक है। इस पर मूलत उ एन ऍफ़ सी सी सी(UNFCCC) में सहमति हुई थी।


उत्सर्जन व्यापार

[28]क्योटो एक 'कैप और व्यापार' व्यवस्था है जो अनुलग्नक देशो के उत्सर्जन पर राष्ट्रिया प्रतिबंधक लगाता है। इस प्रतिबंधक के अनुसार 1990 को आधार वर्ष मानते हुए 2008 से 2012 के बीच 5.2% के औसत से उत्सर्जन कम करना आवश्यक है। हालांकि यह सीमाए राष्ट्रीय स्तर के प्रतिबंधक है, वास्तव में ज्यादा तर देश अपने उत्सर्जन लक्ष्य उद्युग पर सौप देते है, जैसे के पॉवर प्लांट या पेपर फैक्ट्री. EU ETS'केप और व्यापार' प्रणाली का एक उदाहरण है .(EU ETS).अन्य योजनाओं आगे चल के अनुसरण कर सकते हैं।


इसका मतलब यह है कि क्रेडिट के अंतिम खरीददार अक्सर व्यक्तिगत कंपनिया है जिनके उत्सर्जन, कोटा (उनके लिए निरुपित आवंटन मात्रा,AAU) से कई ज्यादा हो जाते है। आमतौर पर, वे सीधी तरह, अतिरिक्त भत्तों प्राप्त किसी अन्य पार्टी से, किसी दलाल से या किसी एक JI/CDM डेवलपर से, या मुद्रा विनिमय के माध्यम से खरीदते है।


जिन राष्ट्रीय सरकारों ने अब तक उद्दोग पर क्योटो प्रतिबंधाताओ को निभाने की जिम्मेदारी नही ली और जिन्हें भत्ते का घाटा है, वे अपने खाते का अधिकांश क्रेडिट JI/CDM developers से खरीदेंगे. इन सौदों कभी कभी सीधे एक राष्ट्रीय कोष या एजेंसी के माध्यम से होते है जैसे की डच सर्कार की इ आर ऊ पि टी कार्यक्रम, या सामूहिक कोष के माध्यम के रूप में काम करते हैं जैसे विश्व बैंक के प्रोटोटाइप कार्बन कोष (PCF). इस PCF, उदाहरण स्वरुप, छह सरकारों और 17 प्रमुख उपयोगिता और ऊर्जा कंपनियों के समूह के तरफ से क्रेडिट खादीदते है।


क्यूंकि भत्तों और कार्बन क्रेडिट, स्वच्छा मूल्य के व्यापरी उपकरण है, वित्तीय निवेशकोंवर्त्तमान बाजार में अटकलबाजी के उद्येश से लेनदेन करते है और उसे भविष्य अनुबंध से जोड़ सकते है। इस दुसरे-दर्ज के बाजार में व्यापार का एक उच्च मात्रा मूल्य और खुल्ले पैसे के खोज मिलती है। और इस तरह से लागत कम रखने के लिए मदद मिलती है और सीओ 2 की एक स्वच्छा मूल्य से ब्यापार में सही नियोग होती है। यह बाजार बास्तव में बैंकों, दलालों, धनकोष, बाजारू लेनदेन और निजी व्यापारियों के साथ अब एक बाजारू मूल्य में 2007[29]पर बा$ 60 अरब वृद्धि हुई है।[10] निर्गमन व्यापार PLC, उदाहरण के लिए, लंदन स्टॉक एक्सचेंज ए ई एम् पर 2005 में वरावा आया निर्गमन. उपकरणों में निवेश की विशिष्ट प्रेषण के साथ.


हालांकि क्योटो ने विश्व कार्बोन बाज़ार का एक नक्षा और एक गुच्छा नियम बनाये, वास्तव में कई विशिष्ट योजनाओं व बाजार तरह तरह के आपसी संबंधो के साथ साक़िय है।


क्योटो अनेक्स 1 के कुछ देशो को साथ जुट के बाजार के अर्न्तगत बाजार तैयार करने में सक्षम बनाता है। निर्वाचित यूरोपीय संघ ऐसे ही एक समूह है और इस अर्न्तगत यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापर योजना (ETS)(EU Emissions Trading Scheme) बनाया गया। यूरोपीय संघ EU ETS,EAUs का इस्तमाल करता है जो की एक क्योटो ए ए ऊ (AAU) के समां है। हालांकि एक आग्रिम बाजार 2003 से ही क्रियाशील है, तत्पश्चात यह योजना जनवरी 1 2005 से सक्रिय हुए.


ब्रिटेन ने UK ETS जो 2002 से 2006 तक चला जैसे कार्य-द्वारा-अध्ययन (learning by doing) के स्वैच्छिक योजना स्थापना किए.यह बाजार यूरोपीय संघ की योजना के साथ ही चल रहा था और ब्रिटेन योजना में भाग लेने वाले सदस्यों के पास यह विकल्प था कि वे 2007[[[Category:सुधार योग्य सभी लेख]][]30]तक चलता हुआ इ.ऊ.इ.टी.एस के पहले चरण से बाहर निकलने की आवेदन कर सके.


क्योटो क्रेडिट के सूत्रों है स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम) और संयुक्त कार्यान्वयन (जी) परियोजनए. सीडीएम (CDM) गैर अनुलग्नक देशो में उत्सर्जन घटने वाले परियोजनाओं के निर्माण से कार्बोन क्रेडिट उत्पन्न करने की इजाज़त देती है। जबकि संयुक्त कार्यान्वयन (JI) अनेक्स 1 के उपस्थित क्रेडिट को योजना सम्बंधित क्रेडिट में परिवर्तन करती है। सीडीएम परियोजनाओंऔ सरतीफयडी एमिसन रिडक्सन (Certified Emission Reduction) बनाती है और जे आइ एमिशॉन रेदाक्शॉन एउनित (Emission Reduction Units) बनाती है। दोनोही एक ए.ए.ऊ (AAU) के बराबर है। क्योटो सी.इ.आर (CER) को इ.ऊ.इ.टी.एस (EU ETS) के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए स्वीकार की जाती है। इस प्रकार 2008 से इ.आर.ऊ (ERU) भी इ.टी.एस (ETS) के प्रतिबंध्ताओ को निभाने के लिए स्वीकारा जाएगा.(हलाकि व्यक्तिगत रूप में हर देश अपने अपने CER/JI शंख्या और उत्पत्ति को 2008 से अनुपालन के लिए सिमित कर सकते है) CERs/ERUs बाजार भत्तों की तरह कारोबार के वजय परियोजना डेवलपर्स या व्यक्तिगत संस्थाओं के अर्थ से खरीदे जाते है।


क्यूंकि UNFCCC द्वारा क्योटो उपकरणों के पंजीकरण ओर प्रमानपत्र एक लंबी प्रक्रिया है और इन परियोजनाओं को स्वयं विकसित होने में कई बर्ष लग जाते है, यह एक अग्रिम बाजार है जहा पे वापरियो को अनुरूप करेंसी EUA पर छुट मिलती है और जो की हमेशा प्रमाणपत्र ओर बितरण के साथ युक्त है, (हलाकि कभी आप -फ्रंट पेमेंट भी होते है). IETA के अनुसार,2004 में सौदा किया गया CDM/JI के क्रेडिट का बाजार मूल्य EUR 245m था transacted क्रेडिट, यह अंदाजा लगाया जाता है कि 2005 में 620m के अधिकं क्रेडिट का लेनदेन किया गया।


कोई गैर क्योटो कार्बन बाजार के या यो अस्तित्व है या फिर योजना बनाई जा रही है। और आने वाले सालो में इनकी महत्य ओर संख्या वृद्धि होने की संभावना है। ये उत्सर्जन को कम करने के लिएन्यू साउथ वेल्स ग्रीनहाउस गैस न्यूनिकरण योजना, क्षेत्रीय ग्रीनहाउस गैस और पश्चिमी जलवायु, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा,शिकागो जलवायु एक्सचेंज और राज्य कैलिफोर्निया की उत्सर्जन कटौती की पहल शामिल हैं।


इन पहलों, एक समूह में, पृथक कार्बन बाजार बनाने के जगह बाजार की श्रृंखला बना सकते है। अधिकांश में कार्बोन क्रेडिट पर केन्द्रित बाजारु मेकनिज्म, जो सीओ 2 उत्सर्जन की संकेत करता है, को अपनाने का विषय व्यक्त है। क्यूंकि इनमें से कुछ पहल के अपने क्रेडिट को तस्दीक करने का समान दृष्टिकोण है, यह इस बात को स्पष्ट करता है कि एक बाजार का कार्बन क्रेडिट आखिर में अन्य योजनाओं में भी व्यापर किया जा सकता है। यह वर्तमान कार्बन बाजार को CDM/जी और EU ETS पर वर्तमान केंद्र विन्दु से कई ज्यादा फैला देगा.हालांकि, इसमें स्पष्ट शर्त यह हैं कि समान स्तर पर दंड और जुर्माने को एक स्तर में संगठित करना ताकि प्रत्येक बाज़ार पर एक प्रभावी सीलिंगबन सके.


संशोधन

इस प्रोटोकॉल के कई मुद्दों को खुले छोड़ दिए गए ताकि उसपर कांफेरेंस ऑफ़ पार्टीस (Conference of पर्तिएस;COP) के छाते सम्मलेन में फैसला किया जाए.COP6ने 2000 में हेग में हुई अपनी बैठक में इन मुद्दों को हल करने की कोशिश की, पर किसी समझौते पर न पोहुच पाई.कारन, एक तरफ यूरोपीय संघ (जो की एक कड़ा समझौता के पक्ष में था) और दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र (United States), कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया (जो और लचीला समझौते के पक्ष में थे) के बीच विवाद छेड़ जाना.


2001 में, पिछली बैठक (COP6bis) के पुनरारंभ बॉन में आयोजित किया गया जहां आवश्यक निर्णय अपनाया गया। कुछ रियायतों के बाद, प्रोटोकॉल के समर्थकों (यूरोपीय संघ के नेतृत्व में)कार्बन डाइऑक्साइड सिंक के अधिक इस्तेमाल की अनुमति देकर जापान और रूस के समर्थन प्राप्त करने में कामयाब रहे.


COP7 29 अक्टूबर 2001 से 9 नवम्बर 2001 में मारकेश(Marrakech) में प्रोटोकॉल का अंतिम ब्यौरा स्थापित करने के लिए आयोजित की गई थी।


क्योटो प्रोटोकॉल के पार्टियो (MOP1) की पहली बैठक मॉन्ट्रियल में 28 नवम्बर से 9 दिसम्बर 2005 को आयोजित की गयी। साथ में UNFCCC (COP11) के पार्टियों के ग्यार्वे (11th) सम्मेलन भी साथ में आयोजित किया गया। "संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन"देखे.


3 दिसम्बर 2007, बाली में आयोजित COP13 के पहले दिन के दौरान ऑस्ट्रेलिया ने प्रोटोकॉल को अनुमोदन किया।


हस्ताक्षर किए हुए देशो में 36 विकसित सी.जी.(C.G.) देशो ने (साथ में यूरोपीय संघ के एक पार्टी स्वरुप इ.उ/EU)आइसलैंड के पक्ष में 10% उत्सर्जन के बढौती पर अनुमोदन दे दिए.पर क्युकी इ.उ.(EU) के सदस्य देशो के अपने अपने व्यक्तिगत प्रतिबंधक[[11]] है, कम विकसित इ.उ.(EU) देशो के लिए अधिक बढौती (27%तक) की अनुमति दी गयी। (नीचे #"1990 से ग्रिन्हौज़ गैस उत्सर्जन में बढौती"देखे) लिए.[12] कटौती सीमाओं 2013 में समाप्त हो.


सम्पादन

यदि संपादन शाखा को यह लगे कि कोई अनुलग्नक देश अपने उत्सर्जन सीमा का अनुपालन नही कर रहा है, तो उस देश को अपना लक्ष्य पूरा करने के साथ एक अतिरिक्त 30% का उत्सर्जन सीमा का अनुपालन करना होगा.इसके अलावा, वैसे देश को उत्सर्जन व्यापार कार्यक्रम[[13]] के तहत स्थानान्तरण करने से रोक दिया जाएगा.

सरकारों की वर्तमान स्थिति

इस अवधि 1800-2000 ईस्वी के दौरान विभिन्न क्षेत्रों से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन


(ऑस्ट्रेलिया)

नवम्बर 2007 के निर्वाचन चुने गए ऑस्ट्रेलिया की नई सरकारने पूरी तरह से प्रोटोकॉल[[14]]का समर्थन किया और प्रधानमंत्री केविन रद्द 3 दिसम्बर 2007 को पद संभालने के तुंरत बाद पुष्टि की लेखपत्र (Instrument of Ratification) पर दस्तखत कर दिए.यह जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन[40](UN Framework Convention on Climate Change) की बैठक से ठीक पहले की बात है। मार्च 2008[42]में यह लागू हुआ।[15] में रहते समय भी केविन रद (Kevin Rudd) ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए आर्थिक मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिए प्रोफेसर रॉस गर्नोत (Ross Garnaut) कमीशन का आयोग किया। . Garnaut की रिपोर्ट ऑस्ट्रेलियाई सरकार को 30 सितंबर, 2008 को सौंपी गई थी। Rudd सरकार की स्थिति पिछ्ले औस्त्रलियो सरकार के व्यतिरेक है, जो कि इस समझौते के खिलाफ था। वह यह सोचता था के यह प्रोटोकॉल ऑस्ट्रेलिया नौकरियों[[16]]पर भारी पढेगा क्युकी चीन और भारत जैसे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं व विशाल जनसंख्या वाले विकासशील देशो पर कोई उत्सर्जन सीमा आरोप नही की गयी। इसके अलावा, यह भी दावा की जाती है कि ऑस्ट्रेलिया पहले से ही उत्सर्जन में कटौती करने की काफी प्रयास कर रहा था, तथा तीन वर्षों में [45]ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए $ 300 मिलियन विनियोग का वचन देना. []


विश्लेषण के अनुसार 2008-12 के दौरान ऑस्ट्रेलिया के ग्रिन्हौज़ उत्सर्जन 1990 के स्तर पर 109% प्रोजेक्ट किया गया। इस गणना के तहत Land Use,Land use change and Forestry(LULUCF) के परिणाम भी विचार किए गए। यह उसके 108% क्योटो प्रोटोकॉल सीमा से थोड़ा ऊपर है। 2007 के तहत, UNFCCC के रिपोर्टिंग के अनुसार ऑस्ट्रेलिया का 2004 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 1990 के स्तर के 125.6% पर है, LULUCF सुधार[[17]]इस गणना के अर्न्तगत नही था।[18]


पिछले ऑस्ट्रेलियाई सरकार संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ, स्वच्छ विकास और जलवायु पर एशिया पसिफिक पार्टनरशिप (Asia Pacific Partnership on Clean Development and Climate)28 जुलाई 2005 में आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN regional forum) में हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए. इसके अलावा, न्यू साउथ वेलस(NSW) द्वारा ग्रीनहाउस गैस कमी योजना (The NSW Greenhouse Gas Abatement Scheme/GGAS[[19]]) की सुचना की गई। 1 जनवरी 2003 में अनिवार्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन व्यापार योजना (Mandatory Greenhouse Gas Emmission Trading Scheme) की शुरुआत हुई और वर्तमान में एनएसडब्लयू (NSW) अकेले राज्य सरकार द्वारा आज़माए जा रही है। अनोखी बात यह है कि, यह योजना राज्य के गृहकर्ताओ को अधिकृत सनद प्रदानकारों (Accredited Certificate Providers) के माध्यम से उत्सर्जन व्यापार करने की अनुमति देता है। निवर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा, विश्वसनीय समाधान के रूप में उत्सर्जन व्यापार के स्पष्ट बर्खास्तगी के बावजूद यह योजना को 2006 में भी सक्रिय है एनएसडब्लयू (NSW) के उदाहरण को देखते हुए राज्य और ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र सरकारों (State and Territory Governments of Australia) के सौजन्य से, राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार योजना (The National Emmissions Trading Scheme/NETS) की स्थापना की गई, जिसमे पश्चिम ऑस्ट्रेलिया[[20]] के अलावा बाकि सभी जगहों में लेबर पार्टी की सरकार है। नेट्स का मुख्या ध्यान है एक अन्दर ऑस्ट्रेलिया (Intra Australian) कार्बोन उत्सर्जन व्यापर योजना की स्थापना करना और इस हेतु नीतियो का समंने बढ़ाना. क्यूंकि ऑस्ट्रेलिया का संविधान केवल पानी को छोड़, विशेष रूप से पर्यावरण मामलों का जिक्र नही करता, इसलिए, जिम्मेदारी का आवंटन राजनीतिक स्तर पर किया जाता है। हावर्ड प्रशासन (1996-2007) के शेष वर्षों के दौरान राज्य के लेबर सरकारों ने एक NETS स्थापित करने के लिए कदम उठाया, जिसका उद्देश था, (a) जिन मुद्दों पर बहुत कम संयुक्त अनिवार्य कदम उठाए गए उनपर क्षेट्रीय कार्रवाई.(b) सुविधा का एक साधन के रूप में आने वाले लेबर सरकार द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल का अनुसमर्थन.


क्योटो प्रोटोकोल के अनुच्छेद 3.7 को ग्रीनपीस ने "ऑस्ट्रेलिया अनुच्छेद " का दर्जा दिया, क्यूंकि ऑस्ट्रेलिया एक प्रमुख लाभार्थी था। यह अनुच्छेद अनेक्स 1 देशो को अनुमति देती है जहा 1990 वर्ष में भारी मात्रा में भूमि परिशोधन हुई है उस वर्ष को आधार माना जाएगा. ग्रीनपीस ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की "आधारभूत"अन्य देशों की तुलना में[[21]]असामान्य रूप से उच्च है क्यूंकि 1990 में ऑस्ट्रेलिया ने अत्यंत भारी मात्रा में भूमि निर्माल्करण की थी।


मई 2009 में केविन Rudd ने विलंब किए और CPRS/Carbon Pollution Reduction Scheme[[22]](कार्बन प्रदूषण न्यूनीकरण स्कीम) की मूलपाठ को बदल दिए.

  • इस योजना को शुरू करने में एक साल का विलंब-2011/2012(पहले: 1 जुलाई 2010)
  • 2011/2012 में एक साल के लिए ए.यू.की कीमत तय-$10 प्रति परमिट (पहले: लचीले मूल्य,$40 प्रति परमिट.)
  • पहले साल के दौरान सरकार से उपलब्ध असीमित राशि के परमिट (पहले: est. 300 मिलियन tCo2e नीलाम करना)
  • परमिट के उच्च प्रतिशत नीलाम न करके हस्तांतर करना.(पहले 60% या 90% निर्भर कर)
  • मुआवजा 2010/2011 के लिए रद्द कर दिया गया है और 2011/2012 में कम किया गया।
  • गृहस्थिया परमिट खरीद कर और उसे ऑस्ट्रेलियान कार्बन ट्रस्ट में (पहले शामिल नही थे।) दाल कर, अपने कार्बन पदचिह्न (carbon footprint) को कम कर सकते हैं।
  • एक अंतरराष्ट्रीय समझौता के तहेत, ऑस्ट्रेलिया 2020 के अन्दर 2000 के स्तर से-25% कटौती (पहले -15%) करने पर प्रतिबद्ध होंगे.
  • 25% के 5% प्राप्त किया जा सकता है अगर सर्कार अंतरराष्ट्रीय ओफ्फ्सेट्स खरीद ले.(पहले शामिल नही).


कनाडा

17 दिसम्बर 2002 में कनाडाने संधि की पुष्टि की जो फरबरी 2005 में लागू हुई.इसके तहेत कनाडा को 2008-2012 के प्रतिबंध्ता काल में 1990 के स्तर से 6% नीचे करने थे। उस समय, कई चुनावों में लगभग 70% क्योटो प्रोटोकॉल के समर्थन में दिखा.[23][24] मजबूत जन समर्थन के बावजूद, तब भी कुछ विरोध, खासकर कनाडा का गठबंधन से, गवर्निंग रूढ़िवादी पार्टी के अग्रदूत से, कुछ व्यवसाय समूहों से[25]और ऊर्जा उद्दोग से, सभी विरोध US में दर्शाए गए अनुरूप कारन पर. विशेष रूप से, इस बात का डर था कि क्यूंकि अमेरिकी कंपनियों क्योटो प्रोटोकॉल द्वारा प्रवाबित नही होंगे, इसलिए कनाडा कंपनिया व्यापर के मामले में नुकसान भुक्तेगा. 2005 में चलते हुए "वार ऑफ़ वोर्ड्स" तक, ख़ास कर प्रोविंस ऑफ़ अल्बेर्ता(कनाडा के मुख्या उर्जा व्यापार) और फेडेरल सर्कार के बीच, इसका परिणाम सिमित था। 2003 तक फेडेरल सर्कार ने क्लाइमेट चेंजे योजनाओ[[26]]पर 3.7 बिलिओं डॉलर खर्च करने का दावा किया। 2004 के अन्दर co 2 का उत्सर्जन 1990 के स्तर से (उस दौरान अमेरिका के 16% उत्सर्जन बढौती के तुलना में)[[27]] 27% ऊपर था। 2006 के अन्दर 1990 के स्तर से[[28]] 21.7% नीचे गिर गया।


जनवरी 2006 में,स्टीफन हार्पर के तहत एक रूढ़िवादी अल्पसंख्यक सरकार चुना गया, जिन्होंने पूर्व में क्योटो का विशेष कर, अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार में भाग लेने का परियोजना का विरोध किए.Rona Ambrose, जो पर्यावरण मंत्री के रूप में Stéphane Dion को बदले, कुछ प्रकार के उत्सर्जन व्यापर का समर्थन किए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुचि लिए.[29]25 अप्रैल 2006 में एम्ब्रोस ने घोषणा किए की कनाडा किसी भी तरह क्योटो के तहेत अपना लक्ष्य प्राप्त नही कर सकता और वह अमेरिका द्वारा प्रायोजित Asia-Pacific Partnership on Clean Development and Climate में भाग लेना चाहेगा .Ambrose ने रिपोर्टरों से कहाँ[[30]]"हम पिछले कुछ महीनों से Asia Pacific Partnership के जुधने का सोच रहे थे, क्यूंकि इसके नीतियां हमारे सरकार के लक्ष्य के आसपास है". May2,2006 में सुचना मिली के क्योटो के मापदंड को पूरा करने के लिए जो पर्यावरण कोष मौजूद था, उसमे कटौती लाइ गयी है और हार्पर सर्कार ने उसके जगह एक नयी परियोजना[[31]] की स्थापना की है। नवम्बर 2006 में नैरोबी में आयोजित की गयी UN Climate Change Conference में कनाडा और उसकी सर्कार जो इसमें सह पदाधिकारी है,climate change पर उनके नीति[[32]] के लिए पर्यावरण संरक्षक समूह और दुसरे देशों द्वारा आलोचित हुए.4 जन्वरि 2007 में Rona Ambrose पर्यावरण मंत्रालय छोड़ अंतर सरकारी मंत्रालय के मंत्री बने. पर्यावरण पोर्टफोलियो John Baird को मिला जो की ट्रेज़री बोर्ड के पूर्व सभापति थे।


कनाडा की संयुक्त सरकार ने उद्योग के सामने अनिवार्य उत्सर्जन लक्ष्य (mandatory emmission targets) तय करने की पेशकश की.पर यह 2012 तक प्रभाव में नही आएगा और 2006 को सतह रखेगा जो की क्योटो के 1990 आधार के विरोध में है। सरकार तब से ही विपक्षी दलों के साथ इस कानून को सुधारने में जुट गया।


एक निजी सदस्य के बिल,[33]Pablo Rodriguez,स्वतंत्र, द्वारा पेश की गयी जिसका उद्देश था सरकार को मजबूर करना ताकि वह "क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपनी वैश्विक जलवायु परिवर्तन दायित्वों (Global Climate Change obligations) को सुनिश्चित करे. " उदारवादी, नयी डेमोक्रटिक पार्टी और Block Quebecois के समर्थन से और वर्तमान अल्पसंख्यकों की स्थिति के साथ, बिल 161-113 के मतदान पर 14 फ़रवरी 2007 में House of Commons द्वारा पास हुई.Senet से पास होने के बाद बिल को 22 जून 2007 में रोयल सम्मति मिली.हलाकि यह बिल सर्कार को 60 दिन के भीतर विस्तृत परियोजना बनाने पर मजबूर करने के लिए बनाया गया था, वायदा मुताबिक सर्कार द्वारा आर्थिक कारन[83][85] दर्शाते हुए इसे काफी नज़रंदाज़ किया गया।


मई 2007 में ने कनाडा सर्कार के खिलाफ क्योटो प्रोटोकोल के तहेत ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े ग्रिन्हीउज़ गैस का उत्सर्जन में कटौती न लाने पर अभियोग किया। यह कनाडा के पर्यावरण संरक्षण एक्ट (Canadian Environmental Protection Act) के एक अनुच्छेद पर स्थित है। इस अनुच्छेद के अनुसार Ottawa को वायु प्रदुषण को रोकना है ताकि कनाडा पर आवश्यक[[34]]अंतर्राष्ट्रीय समझौता (International Agreement) भंग न हो.2008 में इस संधि के तहेत कनाडा का दाइत्व शुरू हुए.


राष्ट्रीय स्थिति के बावजूत, क्युबेक (Quebec)[89]सहित ओंटारियो (Ontario), ब्रिटिश कोलुम्बिया (British Columbia) जैसे कुछ अलग अलग प्रान्त जो वेस्टर्न क्लाइमेट इनिशिअतिव (Western Climate Initiative) के सदस्य है, उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए, नीतिया बना रही है।


कनाडा में सभी पर्यावरण समुहे एक जुट होकर राजनीतिग्यों से विनती की ताकि वे Climate Change के खतरे को गंभीरता से ले और आने वाले प्रजन्म के स्वस्थ व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक परिवर्तन व विनीयोग करे. भाग लेने वाले समूहों KYOTO plus, नामक याचिका बनाए जिस पर निम्नलिखित कार्रवाई आइटम पर हस्ताक्षर कर समर्थकों प्रतिबद्ध हुए.
एक राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारण करना जो 1990 के स्तर से 2020 तक 25 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना.
इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए और विकासशील देशों द्वारा कम कार्बन अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में सहायता करने के लिए, एक प्रभावी राष्ट्रीय योजना की प्रस्तुति.
दिसंबर 2009 में कोपेनहेगन, डेनमार्क में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकॉल के अधिक मजबूत दूसरे चरण को अपनाना.


KYOTOplus एक राष्ट्रीय, गैर पक्षपात, याचिका पूर्ण अभियान है जो संयुक्त सर्कार द्वारा Climate Change पर तुंरत कारवाई की मांग करता है। इसमें पचास साथी संगठनों शामिल है: जलवायु एक्शन नेटवर्क (Climate Action Network) कनाडा, सियरा क्लब कनाडा (Sierra Club Canada), सियरा युवा गठबंधन (Sierra Youth Coalition), Oxfam Canada, कनाडा के युवा जलवायु गठबंधन (The Canadian Youth Climate Coalition), ग्रीनपीस कनाडा (Greenpeace Canada), KAIROS: कनाडा दुनियावी न्यायमूर्ति पहल (Canadian Ecumenical Justice Initiative) और डेविड सुजुकी फाउंडेशन (David Suzuki Foundation).


चीन गणराज्य जनवादी

Centre for Global देवेलोप्मेंट (CGD)[[35]] के नए तथ्य के अनुसार 27 अगस्त 2008 में चीन अमेरिका को पीछा छोड़ता हुआ, बिजली उत्पादन से दुनिया का सबसे बडा CO2 उत्सर्जन करक (CO2 emitter) बन गया। 0} हालांकि, एक प्रति व्यक्ति के आधार पर, अमेरिका के ऊर्जा-क्षेत्र का उत्सर्जन अभी भी चीन के लगभग चार गुना है। निरपेक्ष दृष्टि से विश्व के शीर्ष दस बिजली क्षेत्र से उत्सर्जन करक (power sector emmitters) है चीन हो, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, जर्मनी, जापान, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण कोरिया. अगर यूरोपीय संघ के 27 सदस्य राज्यों के एक देश के रूप में गिना जाता है, यूरोपीय संघ चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद तीसरे सबसे बड़े CO2 प्रदूषण फैलाने वाले देश है। प्रति व्यक्ति शब्दों में, अमेरिका के ऊर्जा क्षेत्र से उत्सर्जन दुनिया के दुसरे सबसे अधिक हैं। प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति के हिसाब से अमेरिका के बिजली उपयोग से 9.5 टोंस CO2 उत्सर्जन होती है जिसके तुलना में चीन के 2.4 टोंस, भारत के 0.6 टोंस और ब्राजील के 0.1 टोंस प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति है। बिजली और ताप उत्पादन से यूरोपीय संघ के उत्सर्जन 3.3 टोंस प्रति वर्ष है। केवल आस्ट्रेलिया, प्रति वर्ष 10 टन से अधिक बिजली उत्सर्जन करके अमेरिका से आगे है।


संबंधित एक रिपोर्ट के तहत कनाडा अर्थशास्त्री Jeff Rubin और Benjamin Tal ने हाल ही में कार्बन टैरिफ[[36]](Carbon Tariff) पर एक रिपोर्ट निकाले .कई आकडे को सामने रखते हुए जिसमे US Energy Information Administration भी शामिल है Rubin और Tal ने कुछ विचित्र तथ्यो पर कार्बन तारीफ की प्रस्ताव की तथा;


  • जबकि चीन का GHG उत्सर्जन दशक के शुरुवात से 120% बढ़ी है, वहीँ समय में अमेरिका का उत्सर्जन मात्रा में शायद ही कोई फर्क हुआ।
  • अमेरिका के संयुक्त राज्य को पीछे छोड़ते हुए चीन वर्त्तमान में अकेला सबसे बड़ा GHG एमित्टर (emitter) है और ग्लोबल एमिसन के एक पांचवा हिस्से का जिम्मेदार है।
  • चीन और अधिक मात्रा में कोयले पर निर्भर-विद्युत संयंत्रों का इस्तमाल करता है जो किसी भी OECD देश से बढ़कर है। यह यन्त्र अत्यधिक GHG निर्भर ऊर्जा स्रोत है। अब और 2012 के बीच, चीन के कोयला जनित उत्सर्जन ब्रिध्ही, अमेरिका के तमाम कोयला जनित उत्सर्जन से आगे निकल जाएगा. .


जून 2007 में, चीन एक 62 पन्ने की जलवायु परिवर्तन की योजना का अनावरण किया और अपनी ऊर्जा नीतियों के केंद्र में जलवायु परिवर्तन करने का वादा किया और कहा कि विकसित देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिए एक "निःसंदेह जिम्मेदारी" निभाना होगा. और UNFCCC के अर्न्तगत "Common but differentiated responsibility" का प्रयोग करना होगा.[[37]][[38]]


देश की ऊर्जा नीति के आलोचकों के उत्तर में चीन ने आलोचनाओं को अन्यायपूर्ण बताए.थे [[39]], क्यूंकि कार्बोन लिकेज (carbon leakage)के अध्ययन से पता चलता है के चीन के उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई हिस्सा विकसित देशो[[40]] द्वारा सम्भोग के राप्तानी का परिणाम है।


यूरोपीय संघ

31 मई 2002, सभी पन्द्रह तत्कालीन यूरोपीय संघ के सदस्यों ने संयुक्त राष्ट्र में अनुसमर्थन के सम्बंधित दस्तावेज जमा दिए. यूरोपीय संघ वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 22% के हिस्सेदार है और वे इसमें 1990 उत्सर्जन स्तर से औसत 8% कटौती में सहमत हुए.डेनमार्क ने अपने उत्सर्जन को 21% कम करने की प्रतिज्ञा की है। पर 10 जनवरी 2007 को यूरोपीय आयोग (Europian Commission) ने यूरोपीय संघ ऊर्जा नीति (Europian Union Energy Policy) की घोषणा की जिसमे कहाँ गया की 2020 तक GHG उत्सर्जन में एक एकतरफा 20% कटौती होंगी.


यूरोपीय संघ लगातार क्योटो प्रोटोकॉल के प्रमुख जातिवाचक समर्थकों में से है और वे अनिश्चित देशों को इसके पक्ष में लाने की बातचीत द्वारा कड़ी प्रयास कर रही है।


दिसंबर 2002 में, यूरोपीय संघ ने इन इन कठिन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए में एक उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (emission trading system) बनाया. छह प्रमुख उद्योगों में कोटा शुरू किया गया: ऊर्जा, इस्पात, सीमेंट, कांच, ईंट बनाने और कागज / कार्डबोर्ड. इसमें यह भी कहा कि अपने दायित्वों को पूरा न करने वाले असफल सदस्य राष्ट्रों को जुरमाना किया जाएगा, यह दैत्व है 2005 में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन € 40/ton से शुरू करते हुए 2008 में € 100/ton की बढ़ती. वर्तमान EU मंसूबा के तहेत 2008 तक यूरोपीय संघ 1990 के स्तर से 4.7% नीचे रहेगा


यूरोपीय संघ में परिवहन CO 2 उत्सर्जन में 1990 और 2004 के बीच 32% की वृद्धि हुई. परिवहन CO 2 उत्सर्जन 1990 में 21% थी, लेकिन 2004 तक इसमें 28% की वृद्धि हुई थी।


हलाकि यूरोपीय संघ की स्थिति प्रोटोकॉल के तहेत अविवादित नही है। एक आलोचना यह है कि 8% कटौती के वजय सभी EU सदस्य देशो को 15% की कटौती करनी चाहिए, क्यूंकि बातचीत के दौरान EU ने जहा अन्य विकसित देशो के किए 15% का एक सामान लक्ष्य धार्य किया, वहीँ पूर्व जर्मनी की बढ़ी मात्रा में कटौती सभी में बाँट दिया गया, ताकि समग्र EU में 15% का लक्ष्य बहाल रहे.इसके अलावा, पूर्व वार्शव संधि देशों (Warsaw Pact Countries) जो अब यूरोपीय संघ के सदस्य बने, उनके आर्थिक पुनर्गठन को सामने रखते हुए उनके उत्सर्जन का स्तर पहले से ही कम कर दया गया। इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र में 1990 आधारभूत स्तर को अन्य विकसित देशों की तुलना में स्फीत की गयी है और इस तरह एउरोपियन अर्थव्यवस्थओं को अमेरिका के साथ मुकाबले में अधिक सुविधा प्राप्त है।


दोनों ही यूरोपीय संघ [यूरोपीय समुदाय (Europian Community) के रूप में]और उसके सदस्य राज्यों क्योटो संधि के अर्न्तगत है।
हालाँकि ग्रीस को पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल 2008) में क्योटो प्रोटोकोल से निकाला दिया गया, क्यूंकि उत्सर्जन पर निगरानी व रिपोर्टिंग माध्यम पर्याप्त मात्रा में बनाने का न्यूनतम दायित्व नही निभाए, उपरान्तु, कोई अन्य तथ्य मौजूद न रहने के कारन इन्होने झ्हूटे रिपोर्ट दर्ज किए. एक संयुक्त राष्ट्र समिति (संयुक्त राष्ट्र committee) ने सात महीने के बर्खास्तगी (नवम्बर 15) के बाद क्योटो प्रोटोकॉल के व्यापार प्रणाली में ग्रीस को पुनर बहाल करने का सिद्धांत लिया।


जर्मनी,

जर्मनी ने 1990 और 2008 के बीच 22.4% द्गैस उत्सर्जन कम किया।[41] 28 जून 2006 को जर्मन सरकार ने यूरोपीय संघ के आंतरिक उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (EU Internal Emission Trading System) के तहत आवश्यकताओं से कोयला उद्योग में छूट की घोषणा की. Claudia Kemfert, जर्मनी के बर्लिन में स्थित आर्थिक अनुसंधान संस्थान (German Institute for Economic Research) के एक ऊर्जा अध्यापक ने बताया,"एक स्वच्छ पर्यावरण और क्योटो प्रोटोकॉल के समर्थन के तहेत कैबिनेट निर्णय बहुत ही निराशाजनक है। ऊर्जा लॉबी इस फैसले में एक बड़ी भूमिका निभाई है।[42] हालांकि,1990 के स्तर की तुलना में जर्मनी की 21 प्रतिशत CO2 उत्सर्जन को कम करने की स्वैच्छिक प्रतिबद्धता, सभी अभिप्राय और उद्देश्यों निभाए गए, क्यूंकि यह पहेले से कम हो गई।. जर्मनी इस प्रकार EU[[43]]के आठ फीसदी कटौती में से 75 प्रतिशत योगदान कर रहा है।


यूनाइटेड किंगडम

यूनाईटेड किंगडम (United Kingdom) की ऊर्जा नीती पूरी तरह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कटौती का समर्थन करता है और एक चरणबद्ध आधार पर राष्ट्रीय उत्सर्जन में आनुपातिक कटौती करने के लिए प्रतिबद्ध है। ग्रेट ब्रिटेन क्योटो प्रोटोकॉल की एक हस्ताक्षरकर्ता है।


कई वर्षों के दौरान पर्यावरण समुहों के नेतृत्व पर विरोधी दलों के दबाव में आकर 13 मार्च 2007, में Climate Change Bill का नक्शा प्रकाशित किया गया। ऊर्जा श्वेत पत्र 2003[107] की सूचना अनुसार इस बिल का उद्देश है एक रूपरेखा तैयार करना जिसके तहत 2020[[44]]के अन्दर 26%-32% के मध्यवर्ती लक्ष्य रखते हुए,2050 तक[45]ब्रिटेन को अनिवार्य कार्बन उत्सर्जन में 60% कटौती हासिल करना होगा (1990 स्तर के तुलना में).नवम्बर 26 2008 में एक कानून बन गया जिसके तहेत 1990[[46]]तक 80% का लक्ष्य रखा गया। ग्रेट ब्रितन पहला देश है जहा इस तरह के एक लंबी व महत्वपूर्ण कार्बन कटौती लक्ष्यमात्र को कानूनी रूप दिए गए।


अनुमान है कि ग्रेट ब्रिटेन सरकार बढती हुई ग्रिन्हौज़ गैस समूह को वर्त्तमान (2007) समय से शुरू होके 2008-2012[[47]]तक संभालने में सक्षम है और यह संभव लगता है की ग्रेट ब्रिटेन इस प्रकार क्योटो सीमा को पूरा करेगा.हालाँकि ब्रिटेन की कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पहेले के तुलना में कम हो गया है, लेकिन 1997[[47]]में श्रम पार्टी के क्षमता में आने के बाद से ही वार्षिक शुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 2% की ब्रिध्ही हुई है। कारन स्वरुप यह बात संभव नही लगता की सरकार 2010[[47]]तक 1990 स्तर से 20% कार्बोन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कटौती की घोषणापत्र को सम्मान दे सकेगा, जब तक की वे Climate Change Bill पास होने तुंरत बाद कठोर कारर्वाई न करता.


फ़्रांस

2004 में, फ्रांस उसके अंतिम कोयला खदान बंद कर दी और अब परमाणु शक्ति[48] से बिजली का 80% उत्पादन करता है। परिणाम स्वरुप CO2 का उत्सर्जन[117]अपेक्षाकृत कम है।


नॉर्वे

1990 और 2007 के बीच, नॉर्वे (Norway) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 12% की वृद्धि हुई है।[49] अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीधे प्रकार कटौती करने के इलावा कार्बोन नयूत्रलिती (Carbon Neutrality) पर नोर्वे के विचार के तहेत वह चीन के वनश्रीजन पर विनियोग करना चाहते है, जो की क्योटो प्रोटोकोल के कानूनी प्रावधान में संभव है।


भारत इस ग्रेट

भारत ने अगस्त,2002 में प्रोटोकॉल का अनुमोदन किया। चूंकि भारत समझौते के दायरे से मुक्त रखा है, इसलिए प्रोटोकॉल के तहेत तकनीकी स्थानांतरण और संबंधित विदेशी निवेश के हस्तांतरण से सुविधा प्राप्त होने की उम्मीद है। जून 2005 में जी -8(G8) बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि विकासशील देशों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर उन विकसित देशो एक छोटे से अंश है। के सिद्धांत के बाद, लेकिन आम विभेदित जिम्मेदारी, (common but differentiated responsibility) को मानते हुए भारत का सिध्हांत यह है कि उत्सर्जन को रोकने की बड़ी जिम्मेदारी विकसित देशो का है, जो समय की लंबी अवधि तक उत्सर्जन संचित किए आ रहे है। हालांकि, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का मन्ना है कि भारत, चीन के साथ आने वाले दशकों में तेजी से औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास के कारण, उत्सर्जन के अधिकांश के लिए जिम्मेदार होगा.


पाकिस्तान

यद्यपि पहले अनिच्छुक, पाकिस्तान के पर्यावरण मंत्रालय के राज्य मंत्री मलिक मिन असलम ने शौकत अजीज मंत्रिमंडल को प्रोटोकॉल की पुष्टि करने के लिए मनाया. यह निर्णय 2001 में लिया गया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण यह अर्जेटीना में 2004 में घोषणा की गयी और 2005 में स्वीकारा गया, तत्पश्चात एक नीतिगत ढांचे के निर्माण के लिए रास्ते खोले. 11 जनवरी 2005 में पाकिस्तान क्योटो प्रोटोकॉल के परिग्रहण के उपकरणों (Instruments of Accession) जमा किए. पर्यावरण मंत्रालय मनोनीत राष्ट्रीय प्राधिकरण (Designated National Authority) को यह कार्य सौंपा. इसके पश्चात् फरबरी 2006 में राष्ट्रीय सीडीएम परिचालनात्मक नीति (National CDM Operational Strategy) को मंजूरी मिली और 27 अप्रैल 2006 को पहली सीडीएम परियोजना (CDM project) पर डीएनए (DNA) द्वारा अनुमोदन दे दी गयी। यह था नैत्रिक असिड उत्पादन के समय बड़ी N2O की कटौती (निवेशक: मित्सुबिशी, जापान) जो आकलन 1 लाख CERs प्रति वर्ष है। फिर अंत में नवंबर 2006 में, पहले सीडीएम परियोजना संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन जलवायु परिवर्तन (UNFCCC) पर दर्ज हुए.


क्योंकि यह पर्यावरण की सहायता करता है और उपार्जन का अच्छा और आसान तरीका है, यह सभी उद्योग मालिकों को आकर्षित करता है। कुछ उद्योग मालिकों ने बड़ा कदम उठाते हुए, Almoiz Industries Limited की तरह एक संयंत्र आयुक्त किया जिसमे दुनिया के नवीनतम उपकरण है और अत्याधुनिक ("State of the Art) माना जाता है। यह संयंत्र पूरे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान को विशिष्ट रूप से अलग दर्जा देता है।

इस बात की उम्मीद की जाती है कि यह प्रोटोकॉल के तहेत पाकिस्तान को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं (Renewable Energy Projects) का सहायता मिलेगा और से जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) पर उसका निर्भरता कम हो पाएगा. हालांकि पाकिस्तान एक बड़ा प्रदूषण कारक नहीं था, बल्कि यह एक शिकार था। ग्लोबल वार्मिंग देश में अनिश्चित मौसम फैलता है जैसे के रिकॉर्ड सर्दी और गर्मी, सूखे और बाढ़ [[[Category:सुधार योग्य सभी लेख]][]121]की परिस्थिति.


रूस

व्लादिमीर पुतिन ने 4 नवम्बर 2004 को इस संधि को मंजूरी दे दी और रूस आधिकारिक तौर पर 18 नवम्बर 2004 को संयुक्त राष्ट्र को पुष्टि का सुचना दिए. समझौते पर रूसी अनुसमर्थन के मुद्दे को विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा निगरानी की गयी, क्यूंकि रुसी अनुसमर्थन (16 फ़रवरी 2005) के 90 दिनों के बाद यह संधि बल में लाया गया।


राष्ट्रपति पुतिन ने रूसी मंत्रिमंडल[[50]]के साथ प्रोटोकॉल के पक्ष में सितंबर 2004 में निर्णय लिए.यह निर्णय रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज (Russian Academy of Sciences), उद्दोग मंत्रालय (Minisrtry of Industry) और तत्कालीन राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार, [[Andrey Illarionov|Andrey Illarionov,]]के खिलाफ और विश्व व्यापार संगठन[[51]][[52]](WTO) में रूस के प्रवेश पर यूरोपीय संघ के समर्थन के बदले में किया गया था। प्रत्याशित रूप में, इस के बाद संसद के (22 अक्टूबर 2004) निचले और ऊपरी हौज़ से, अनुसमर्थन को किसी भी बाधाओं से मुठभेड़ नहीं करना पड़ा.


क्योटो प्रोटोकॉल 1990 के स्तर से उत्सर्जन की सीमा को एक प्रतिशत वृद्धि या कमी में सिमित रखता है। 1990 के बाद से, पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था टूट गया, अनुरूप ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का भी सामान हाल है। इस वजह से, रूस को क्योटो के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को निभाने में कोई समस्या नही होनी चाहिए, क्यूंकि उसके वर्तमान उत्सर्जन का स्तर काफी नीचे हैं


रूस को अप्रयुक्त AAUs के क्रेडिट की बिक्री से वास्तव में कोई मुनाफा होगा या नही, इस विषय पर एक वैज्ञानिक बहस चल रही है।


संयुक्त राज्य अमेरिका

संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका), हलाकि क्योटो प्रोटोकॉल के समर्थन में हस्ताक्षर किए हैं, पर वे न तो इसकी पुष्टि करता है और न ही प्रोटोकॉल से समर्थन वापस लेता है। यह हस्ताक्षर केवल, प्रतीकात्मक है क्यूंकि जब तक अमेरिका अनुमोदन नही देता तब तक क्योटो प्रोटोकोल अमेरिका पर बाध्यकारी नही है। संयुक्त राज्य अमेरिका कम से कम २००५ साल तक, जीवाश्म ईंधन[131](fossil fuels) से कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा प्रति व्यक्ति एमिटर (per capita emitter) था।[53].अमेरिका का Climate Security Act, जो की "Cap and Trade Bill" के नाम से भी जाने जाते है, क्योटो मापदंड और उद्देश को हासिल करने के लिए प्रस्ताबित हुआ था। मौजूदा बिल लगभग 500 पृष्ठों लंबी है, जो कार्बन ट्रेडिंग, विनियमन और प्रवर्तन के एक फेडरल ब्यूरो की स्थापना करता है।[54] इसमें कुछ आज्ञापत्र है जिसके तहेत, कुछ अधिकारियों का कहेना है, की संयुक्त राज्य अमेरिका [[55]]के इतिहास में सबसे अधिक कर संग्रह होगा.


25 जुलाई 1997 में इससे पहले की क्योटो प्रोटोकॉल को अंतिम रूप दिया जाता[हालांकि यह पूरी तरह से है बातचीत द्वारा सुल्झ्हाया गया और उपांत्य नक्षा (penultimate draft) सम्पूर्ण हो चूका था], अमेरिकी सीनेट ने सर्वसम्मति से एक 95-0 मतदान द्वारा Byrd-Hagel संकल्प (एस Res. 98),[56][57] को पास किया। इससे सीनेट की भावना स्पष्ट हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका ऐसे किसी प्रोटोकोल में हस्ताक्षर नही करेगा जिसमे विकासशील और विकसित देशो पर अनिवार्य व समयसीमा में बंधे लक्ष्य न हो;और जिसे युक्त राज्य के अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान पोहुचे। पर 12 नवम्बर 1998, उप राष्ट्रपति अल गोर symbolically प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए. दोनों Gore और सीनेटर JOseph Lieberman ने स्पष्ट किया की जब तक प्रोटोकोल में विकासशील देशों[[58]]की भागीदारी नही होती सीनेट इस पर विचार नही करेगा.किया नहीं होगा संकेत दिया.क्लिंटन प्रशासन ने सीनेट की पुष्टि के लिए प्रोटोकॉल को कभी प्रस्तुत नहीं किया।


क्लिंटन प्रशासन ने जुलाई 1998 में, आर्थिक सलाहकार परिषद (Council of Economic Advisors) द्वारा प्रस्तुत की गयी आर्थिक विश्लेषण प्रकाशित किया। यह इस नतीजे पे पोहुचा की अनेक्स ए/अनेक्स बी देशो के बीच य्त्सर्जन व्यापर (emission trading) और "Clean Development Mechanism" में मुख्या विकासशील देशो की भागीदारी से, जो उसे आम व्यापर का उत्सर्जन रेट प्रदान करेगा, क्योटो प्रोटोकोल को लागू करने की खर्चा 2012 तक आकलन से 60% तक कम हो सकता है। क्योटो प्रोटोकॉल के तहेत कार्बन कटौती के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अमेरिका को मूल्य चुकाना होगा जो Energy Information Adminisrtation के आकलन के अनुसार 2010 तक GDP में 1.0-4.2% और 2020 तक 0.5-2.0% का घाटा. इनमें से कुछ आकलन का अनुमान था कि 1998 तक कारवाई की गयी है और कार्रवाई शुरू करने में देरी से वृद्धि होगी.[59]


राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने चीन (वर्त्तमान में विश्व के सर्वाधिक कार्बोन दिओक्सिद का उत्सर्जन कारक, हलाकि पर कापीता [[60]]उत्सर्जन कम है) को दी गए छुट के वजय से इस संधि को सेनेट में अनुमोदन के लिए प्रस्तुत नही किया। बुश ने अर्थव्यवस्था पर आने वाले तनाव को देखते हुए इस संधि का विरोध किया;उन्होंने वैज्ञानिक साक्ष्य को अनिर्दिष्टबताया.इसके अलावा, अमेरिका समझौते के व्यापक रियायतों से चिंतित थे। उदाहरण स्वरुप अमेरिका अनुलग्नक और अन्य देशो के बीच विभाजन का समर्थन नहीं करता.बुश ने समझौते पर यह कहा:


इसका मतलब यह है कि यह एक चुनौती है जिसमे हमारा और बाकी की दुनिया का 100% प्रयास की आवश्यकता है। ग्रीन हाउस गैसों की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ग्रीन हाउस गैसों का emitter है गणराज्य चीन. फिर भी, पूरी तरह से चीन ने क्योटो प्रोटोकॉल की आवश्यकताओं से छूट दी गई। भारत और जर्मनी के शीर्ष emitters के में हैं। इसके बावजूद क्योटो से भारत को छूट दिया गया। एक त्रुटि युक्त संधि को गले लगाने के अमेरिका की अनिच्छा को मित्रों और सहयोगियो जिम्मेदारी को त्यागना न समझे.बल्कि, मेरे प्रशासन जलवायु परिवर्तन (climate change) के मुद्दे पर एक नेतृत्व की भूमिका करने के लिए प्रतिबद्ध है।.. हमारा दृष्टिकोण के वातावरण में ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता स्थिरीकरण के दीर्घकालिक लक्ष्य के अनुरूप होना चाहिए.[61]


जून 2002 में, पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने "Climate Action Report 2002" जारी की. हालांकि रिपोर्ट स्पष्ट रूप से प्रोटोकॉल का समर्थन नहीं करता, कुछ प्रेक्षकों ने व्याख्या की है कि यह प्रोटोकॉल के सहायक है।[145] []जून 2005 की जी -8 बैठक में प्रशासन के अधिकारियों ने इस बात की इच्छा जाहिर की की औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुँचाए बिना केवल सकते व्यावहारिक प्रतिबद्धताओं द्वारा इसे निभाई जा सकती है। उनही अधिकारियों के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका 2012[[62]]तक अपनी कार्बन तीव्रता (Carbon Intensity) 18% कम करने के प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए प्रस्तुत है। अमेरिका Asia Pacific Partnership on Clean Development and Climate पर हस्ताक्षर किए जो सभी देशो को अपना ग्रिन्हौज़ गैस कटौती का लक्ष व्यक्तिगत रूप में निर्णय करने की अनुमति देता है पर कोई प्रवर्तन तंत्र के वगैर. हलाकि यह संधि अधिक लचीले है, पर समर्थक इस संधि को क्योटो प्रोटोकॉल के पूरक के रूप में देखता हूँ


प्रशासन की स्थिति को समान रूप से अमेरिका में स्वीकारा नही गया। उदाहरण के तौर पर Paul Krugman के अनुसार कार्बोन तीब्रता (carbon intensity) में 18% की कटौती की लक्ष्य वास्तव में समग्र उत्सर्जन का वृद्धि उल्लेख करता है[63].मनुष्य कार्यकलाप और ग्रिन्हौज़ गैस उत्सर्जन को जोड़ने वाले एक रिपोर्ट को पर्याप्त महत्व न देने के कारन व्हाइट हाउस की भी कड़ी आलोचना की गयी। एक व्हाइट हाउस अधिकारी, पूर्व में जो तेल उद्योग के वकील थे और वर्तमान में Exxon Mobil अधिकारी, Philip Cooney के खिलाफ वैज्ञानिकों द्वारा अनुमोदित क्लाइमेट रिसर्च (climate research) का विवरण को सरल करने का आरोप है जो व्हाइट हौज़ द्वारा गलत [[64]]बताया गया। आलोचक बुश प्रशासन का तेल व गैस ओद्दोग से करीबी सम्बन्ध पर भी सवाल उठाते है। जून 2005 में,राज्य विभाग के कागजात, प्रशासन द्वारा Exxon अधिकारियों को धन्यवाद प्रदान करते हुए दिखाया, कारन, क्लाइमेट चेंज निति और क्योटो पर उस का स्थिति निर्धारण करने में कंपनी के आधिकरिओं ने सक्रीय भागीदारी के साथ सहायता किए.व्यापार लॉबी समूह वैश्विक जलवायु गठबंधन (Global Climate Coalition) से जान्करियन भी एक कारक था।[65]


2002 में, काँग्रेशनल अनुसंधानकारी जो इस प्रोटोकॉल की कानूनी स्थिति की जांच किए यह सलाह दी की UNFCCC के हस्ताक्षर से और एक दायित्व प्राप्त होता है जिसके तहेत के प्रोटोकॉल के उद्देश्य को छोटा नही किया जा सकता.और जहा राष्ट्रपति शायद प्रोटोकॉल अकेले प्रोटोकोल को शायद ही लागू कर सकते, कांग्रेस अपनी ही पहल पर संगत कानून बना सकता है।[66]


राष्ट्रपति Barack Obama, अभी तक, कि इस प्रोटोकॉल के प्रति अमेरिका की स्थिति बदलने के लिए सीनेट पर कोई कार्रवाई नहीं की है। जब ओबामा अप्रैल 2009 में तुर्की में थे, उसने कहा कि इस पर हस्ताक्षर करना बेमतलब है, क्यूंकि यह समाप्त होने को है। करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कोई मतलब नहीं [क्योटो प्रोटोकॉल है] वजह [यह] के बारे में है को समाप्त करने के लिए "कहा था।[67] इस समय चार महीने की प्रतिबद्धता अवधि से दो साल, ग्यारह महीने की चार साल की अंतर था।


राज्य और स्थानीय सरकारों.

The Framework Convention on Climate Change संयुक्त राष्ट्रों के देशो के बीच बातचीत द्वारा निष्पन्न एक संधि है, तथा अलग अलग राज्यों स्वतंत्र रूप से इस प्रोटोकॉल के अर्न्तगत सान्धिबड्छ नही हो सकते. बहरहाल, कई अलग पहल राज्य या शहर के स्तर पर शुरू कर दिए गए है। आठ पूर्वोत्तर अमेरिकी राज्यों ने क्षेत्रीय ग्रीनहाउस गैस पहल (RGGI), निर्मित किए, जो राज्यों[68] एक राज्य स्तर उत्सर्जन कैपिंग और व्यापार कार्यक्रम है जो स्वयंग निर्मित तंत्र इस्तमाल करते है। पहला भत्ता नवंबर 2008 में नीलाम किया गया।

  • भाग लेने वाले राज्यों: Maine, न्यू हैम्पशायर, वरमोंट, कनेक्टिकट, न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, डेलावेयर, मैसाचुसेट्स और मैरीलैंड (इन राज्यों के 46 करोड़ लोगों को और अमेरिका की 20% आबादी) से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • प्रेक्षक राज्यों और क्षेत्रों: पेंसिल्वेनिया, जिला कोलंबिया के, रोडे द्वीप.


27 सितंबर 2006 को, कैलिफोर्निया के गवर्नर Arnold Schwarzenegger ने एबी 32 बिल में हस्ताक्षर किए जो ग्लोबल वार्मिंग सोलुशों एक्ट (Global Warming Solutions Act) से भी जाने जाते है। इसके तहेत विश्व के बार्वी सर्वाधिक उत्सर्जन कारक के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कटौती पर समयसीमा बांध देता है तथा 2020 तक 25%. यह कानून सही तौर पे कलिफोर्निया को क्योटो के दायेरे में लाता है, पर क्योटो के प्रतिबद्ध अवधि यानि २००८-२०१२ के बाद.यद्यपि संभावनाओं और लक्ष्यों को अलग हैं, Californian प्रणाली की कई विशेषताओं क्योटो व्यवस्था के अनुरूप है। करने के लिए, पश्चिमी जलवायु में पार्टियों पहल कुछ या सभी Californian मॉडल से संगत रखने का उम्मीद करते है।


14 जून 2009, 944 अमेरिकी शहरों के 50 राज्यों, जिला कोलंबिया और पर्टो रीको की, पर 80 मिलियन अमेरिकी समर्थन क्योटो मेयर ग्रेग Nickels सिएटल के बाद प्रतिनिधित्व में जैसा कि प्रोटोकॉल के लिए सहमत करने के लिए एक राष्ट्रीय प्रयास शहरों पाने के लिए करना शुरू कर दिया.[69] 29 अक्टूबर 2007 पर, यह है कि सिएटल, 1990 के बाद से 8 प्रतिशत की अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने 2005 में अपने लक्ष्य की कमी से मिली सूचना मिली थी।[70]



समर्थन

क्योटो प्रोटोकॉल के अभिवकतो का कहना है कि इन उत्सर्जन को कम करना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी का वातावरण में गर्मी पैदा कर रही है। यह रोपण विश्लेषण (attribution analysis) द्वारा समर्थित है।


क्योटो के अधिवक्ताओं में सबसे प्रमुख है यूरोपीय संघ और कई पर्यावरन संगठनो. संयुक्त राष्ट्र और कुछ व्यक्तिगत राष्ट्रों के वैज्ञानिक सलाहकार निकाय (scientific advisory bodies)(जी-8 राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों सहित) भी क्योटो प्रोटोकॉल का पक्ष में रिपोर्ट जारी किए हैं।


कार्रवाई के अंतरराष्ट्रीय दिन (An international day of action)3 दिसम्बर 2005 में मोंत्रील में "मीटिंग ऑफ़ पार्टीज़" (meeting of parties) के साथ मेल रख कर आयोजित की गयी। इस आयोजित प्रदर्शनों को वर्ल्ड सोशल फोरम के असेम्बली ऑफ़ मूवमेंट्स (Assembly of Movements) द्वारा समर्थन किया गया।


कनाडा निगमों के एक प्रमुख समूह जिसे जलवायु परिवर्तन पर आवश्यक कार्रवाई के लिए याद किया जाता है, ने सुझाव दिया कि क्योटो केवल एक पहला कदम है सुझाव दिया है।[71]


संयुक्त राज्य अमेरिका में "क्योटो नाव" कम से कम एक ऐसा छात्र समूह है जो छात्र प्रोत्साहन को उपयोग करता है और क्योटो लक्ष्य को पूरा करने के दबाव को समर्थन करता है। क्योटो न्यू !जो क्योटो प्रोटोकॉल अनुपालन द्वारा लक्षित के रूप में उत्सर्जन को कम करने की दिशा में दबाव के समर्थन में छात्र हित का उपयोग करने का लक्ष्य कम से कम एक छात्र समूह है।


विपक्ष

कुछ का कहना है कि यह प्रोटोकोल ग्रिनहॉउस उत्सर्जन को रोकने में ज्यादा समर्थ नही होगा.(Niue,The Cook Islands और Nauru प्रोटोकोल [[72]]पर हस्ताक्षर करते समय इसी बात को समर्थन किया।)


कुछ पर्यावरण अर्थशास्त्री क्योटो प्रोटोकॉल के आलोचक है।[73][74][75] कई लोगो का कहना है कि क्योटो प्रोटोकॉल में मुनाफे से व्यय का मात्र अधिक है, कुछ मानते है के क्योटो के निर्धारित मापदंड अत्यधिक आशावादी है। बाकि समझते है, यह एक अत्यंत बेइन्साफ़ और अक्षम समझौता है जो ग्रिन्हौज़ गैस उत्सर्जन[[76]]को रोकने के लिए शायद ही कुछ कर पाएगा.अंततः,Gwyn Prins और Steve Rayner जैसे अर्थशास्त्री मानते है कि क्योटो प्रोटोकोल[[77]]के निर्धारित प्रस्तावों से हटकर एक सम्पूर्ण अलग दृष्टिकोण कि आवश्यकता है।


इसके अलावा,1990 को एक आधार वर्ष [179] के रूप में उपयोग करने पर [] और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को आधार उपयोग न करने पर विवाद है। 1990 में विभिन्न देशो के ऊर्जा कुशलता में विभिन्न उपलब्धियां थी। उदाहरण स्वरुप, पूर्व सोवियत संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों और इस समस्या से निपटने के लिए कुछ ख़ास नही किया और इनके अपनी ऊर्जा क्षमता 1990 में सबसे कम स्तर पर था, यह इनके कम्युनिस्ट शासनों गिरने की ठीक पहले वर्ष की बात है। दूसरी तरफ,जापान, प्राकृतिक संसाधनों का एक बड़ा आयातक,1973 के तेल संकट के बाद अपनी क्षमता में सुधार करने पर मजबूर हुआ और 1990 में उसका उत्सर्जन स्तर अधिकतर विकसित देशों से बेहतर हुआ। हालांकि, इस तहत के प्रयास को और पूर्व सोवियत संघ की निष्क्रियता को अनदेखी किए गए, वर्ना उत्सर्जन व्यापार से बड़ी आय उत्पन्न हो सकता था। एक बह्स के तहेत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को अगले क्योटो प्रकार संधियो में सही तरीके से आधार करने पर विकसित और विकासशील देशो के बीच असमानता की भावना कम हो सकती है क्यूंकि यह स्पष्ट रूप से देशो के निष्क्रियता व जिम्मेदारियो को बयाँ करेगा.


कोस्ट बेनिफिट विश्लेषण

अर्थशास्त्रियों लागत लाभ विश्लेषण (cost benefit analysis) के माध्यम से क्योटो प्रोटोकॉल के समग्र शुद्ध लाभ का विश्लेषण करने की कोशिश कर रहे है। आर्थिक चर[181]में बड़ी अनिश्चितता की वजह से असहमति पैदा होती है।[78] कुछ अनुमानों के अनुसार क्योटो प्रोटोकॉल का पालन ज्यादा महेंगी है और क्योटो प्रोटोकॉल के अर्न्तगत एक नाममात्र शुद्ध लाभ की सम्भावना है जो किसी प्रकार ग्लोबल वार्मिंग[[[Category:सुधार योग्य सभी लेख]][]182]को सँभालने की व्यय से अतिरिक्त है। हलाकि De Leo et al द्वारा एक अध्ययन के अनुसार,"local external cost के साथ production cost,energy strategies का चिन्हितकारन, क्योटो प्रोटोकोल का अनुपालन का मतलब है कम सामग्रिक व्यय." [[79]]


हाल की कोबेनह्वान सर्वसम्मति परियोजना (Copenhagen Consensus Project) की ख्होज बताता है कि क्योटो प्रोटोकॉल, ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया को धीमी करेगा, हलाकि इसका कुल लाभ ऊपरी होगा.तथापि, प्रोटोकॉल के रक्षकों का कहना है कि जबकि प्रारंभिक ग्रीनहाउस गैस में कटौती से थोड़ा ही असर हो सकता है, वे भविष्य में और बड़ी कटौती (और अधिक प्रभावपूर्ण) के लिए[186]राजनैतिक क्षेत्र को तैयार करता है। वे सतर्क सिद्धांत लेने की प्रतिबद्धता पर भी हिमायत करता है। आलोचकों के अनुसार कार्बन उत्सर्जन पर अतिरिक्त उच्च नियंत्रण अधिक व्यय वृद्धि का कारण बन सकता है, इस तरह बचाव भी विवादित हो जाएगा.इसके अलावा, यह सतार्क्पूर्ण नितिया किसी भी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिणाम से भी जुड़े होंगे जिसका प्रभाव गरीबी और पर्यावरण के क्षत्र में सामान रूप में हानिकारक होगा और इस तरह एहतियाती तर्क बेमतलब बन जाएगा. स्टर्न की समीक्षा (The Stern Review)(ब्रिटेन सरकार प्रायोजित जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों पर एक रिपोर्ट) इस नतीजे पे आई के ग्लोबल जी.डि.पि.(Global Gross Domestic Product) का एक प्रतिशत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर निवेश करना आवश्यक है और इस बात की असफलता आर्थिक मंदा का कारन बन सकता है जिसे वैश्विक जी.डि.पि.[[80]]में बीस प्रतिअहत तक का घाटा हो सकता है।


डिस्काउंट दरों

विभिन्न नीतियो का ग्लोबल वार्मिंग पर "निरंकुश" कोस्ट एवं बेनिफिट (absolute cost and benefit) को मापना कठिन होता है क्यूंकि सही दिस्कौंट दर चुनना मुश्किल है। लम्बे अरसे तक जिन क्षेत्र में क्योटो के तहेत मुनाफा होता है वहा दिस्कौंट दर में एक छोटा सा बदलाव भी बिविन्न अध्ययनों के नेट सुविधा में बड़ा अंतर पैदा करता है। बहरहाल, यह मुश्किल आमतौर पर वैकल्पिक नीतियों के आपेक्षिक "तुलना" पर लंबे समय के तहत लागू नहीं है। क्योंकि डिस्काउंट दरों में परिवर्तन बिविन्न नीतिओं के नेट कोस्ट/बेनिफिट से समायोजित हो जाते है, जब तक की समय के लम्बे धारा तक कोस्ट/बेनिफिट में महत्वपूर्ण विसंगतियाँ नही रहती.


Shadow Price of Capital अप्प्रोअच[[81]]जैसे पारंपरिक छुट पदधाति को अपनाकर सकारात्मक क्योटो बेनिफिट उपलब्ध परिस्थिति तक पोहुचना मुश्किल है।


ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 1990 के बाद से बढौती.

नीचे, संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय किए, क्लाइमेट चेंजे कोंवेंशों (Climate Change Convention) से जुड़े कुछ देशों के 2004 से 1990 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में परिवर्तन की एक सूची है।[82]

देश*: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बदलाव.
(1990-2004)
LULUCF को छोड़कर
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बदलाव.
(1990-2004)
LULUCF सहित
संधि बाध्यता 2008-2012
डेनमार्क-19% -22.2% २० 11
जर्मनी,-17% -18.2% २१ 8%
कनाडा+27% +26.6% n / a ६.
(ऑस्ट्रेलिया)+25% +5.2% n / a 8%
स्पेन+49% +50.4% 15 8%
नॉर्वे+10% -18.7% n / a 1%
न्यूजीलैंड+21% +17.9% n / a 0
फ़्रांस-0.8% -6.1% 0 8%
ग्रीस+27% +25.3% २५ 8%
आयरलैण्ड+23% +22.7% 13 8%
जापान,+6.5% +5.2% n / a ६.
यूनाइटेड किंगडम-14% -58.8% -12,5% 8%
पुर्तगाल+41% +28.9% २७ 8%
यूरोपीय संघ-15-0.8% -2.6% n / a 8%

नीचे कुछ देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में परिवर्तन का एक टेबल है।[83]


देश*: बदलें में ग्रीनहाउस गैस
उत्सर्जन (1992-2007)
भारत इस ग्रेट१०३ .
चीन१५०
संयुक्त राज्य अमेरिका२०
रूसी संघ२०
जापान,11
दुनिया भर में कुल 38


1990 के स्तर के मुकाबले 2004 में अम्रीका के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 15.8%[[84]]बृद्धि हुई है। इसमें एक से दुसरे साल तक अनियमित चडाव उतराव होने के बावजूत बदौती[[85]]का सामान्य प्रबृत्ति मौजूत है। एक ही समय में, यूरोपीय संघ के समूह का 23 (ईयू-23) राष्ट्र 5% तक अपने उत्सर्जन कम किए.[86]इसके आलावा यूरोपीय संघ-15 देशों के समूह (एक बड़े सबसेट-23) में 1990 और 2004 के बीच 0.8% तक उत्सर्जन कम हुए, जबकि 1999 से 2004 तक उत्सर्जन 2.5% बड़ा.कुछ यूरोपीय संघ के देशों के बदौती का कुछ अंश अभी भी इस समझौते से मेल रखता है क्यूंकि यह cluster of countries implementation का हिस्सा है। (ऊपर के सूचि में उद्देश देखे.)


वर्ष 2006 के अंत तक ब्रिटेन और स्वीडन,2010 तक अपने क्योटो उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले EU के एकमात्र देश थे। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के मुताबिक, 36 क्योटो हस्ताक्षरकर्ता देशों, इकट्ठे हो कर, 2012 तक उत्सर्जन 5% कम करने का लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं, ग्रीनहाउस गैस कटौती की अधिकांश प्रगति 1990[[87]]में साम्यवाद के पतन के बाद पूर्वी यूरोपीय देशों के उत्सर्जन में सरासर गिरावट के वजय से हुआ है।


उत्तराधिकारी

16 फ़रवरी 2007 में आयोजित 'गैर-बाध्यकारी वॉशिंगटन घोषणा'(Washington Declaration) में कनाडा, फ्रान्स, जर्मनी, इटली, जापान, रूस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका के संयुक्त राज्य, ब्राजील, चीन, भारत, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका से सरकारों क्योटो प्रोटोकॉल के उत्तराधिकारी समझौते की रूपरेखा पर नीतिगत रूप से सहमत हुए.वे दोनों ही औद्योगीकृत राष्ट्रों और विकासशील देशों के लिए एक कैप एंड ट्रेड प्रणाली की परिकल्पना करते है और 2009 [[88]][[89]]तक यह लागू हो जाएगा इस बात की आशा व्यक्त करते है।


7 जून 2007, में 33rd जी -8 की शिखर वार्ता के नेताओं इस बात पर सहमत हुए कि जी -8 राष्ट्रों वैश्विक CO 2 </ उप> उत्सर्जन का कम से कम लक्ष्य रखेगा.विवरण इस हासिल करने का विस्तृत व्योरा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (संयुक्त राष्ट्र Framework Convention on Climate Change) के पर्यावरण मंत्रियों द्वारा सुलझाया जाएगा जिसमे और भी प्रमुख उभरते अर्थव्यवस्थओं [[90]]को नियोजित की जाएगी.


जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तत्त्वावधान बदलें (UNFCCC) (वियना जलवायु परिवर्तन वार्ता 2007) के तहत जलवायु परिवर्तन पर बातचीत का एक दौर,31 अगस्त 2007 में climate change [[91]]पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के प्रमुख तत्वों पर सहमति के साथ समाप्त हुआ। [239 में[92]


वार्ता के एक प्रमुख विशेषता संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट यह जो व्यक्त करता है, किस तरह ऊर्जा दक्षता (energy efficiency) कम कीमत पर उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कटौती ला सकता है।


यह वार्ता एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बैठक के प्रस्तुति के लिए आयोजित किया गया था जो कि 3 दिसम्बर 2007 [[93]] में Nusa Dua,bali, में शुरू हुआ।


सम्मेलन 2008, दिसम्बर 2008 में पॉज़्नान, पोलैंड में आयोजित की गई थी। इस बैठक में विचार का एक मुख्य विषयों था जंगल सफाई के एक संभव कार्यान्वयन या (Reducing emissions from deforestation and forest degradation) को भविष्य में क्योटो प्रोटोकॉल [243] के अर्न्तगत करना.[94]


संयुक्त राष्ट्र की बातचीत में, दिसंबर 2009 कोपेनहेगन में एक महत्वपूर्ण बैठक से पहले गति आ रही है।[95]


स्वच्छ विकास और जलवायु पर एशिया पसिफिक पर्त्नेर्शिप.

स्वच्छ विकास और जलवायु पर एशिया पसिफिक पार्टनरशिप सात एशिया प्रशांत राष्ट्रों के बीच है तथा: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और इस संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक समझौता है। उन में, इन सात देशों की कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन विश्व के आधे से ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।


यह साझेदारी जनवरी 2006 में सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में एक समारोह में अपने आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया। यह नाता इस बात की पुष्टि करती है कि सदस्य राष्ट्रों स्वच्छ ऊर्जा क्षमता निर्माण और बाजार निर्माण के उद्देश्य से [247 शुरू [] लगभग 100 परियोजनाओं की शुरुयत की.इन गतिविधियों पर निर्मित, लंबी अवधि के परियोजनाओं, स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण प्रौद्योगिकियों और सेवाओं को तैनात करने के लिए निर्धारित हैं। यह समझौता उन देशों को व्यक्तिगत रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कटौती का मनमाना लक्ष्य निर्धारण करने की अनुमति देता है, कोई प्रवर्तन तंत्र के वगैर ही.


इस समझौते के समर्थक इसे "क्योटो प्रोटोकॉल" के पूरक मानते है जबकि यह अधिक लचीला है। आलोचकों का कहना है प्रवर्तन तंत्र के वगैर समझौता प्रभावकारी नही होगा और वर्तमान प्रोटोकोल के स्थान में प्रोटोकोल अनुसूची निर्धारण करने की बातचीत (डिसेम्बर 2005 में मोंत्रील में बातचीत की शुरवात हुई.) को नष्ट करने के लिए हैअमेरिकी सीनेटर जॉन McCain का कहना है कि यह भागीदारी एक अच्छी छोटी जनसंपर्क कार्य[सामान]से ज्यादा कुछ नहीं है।"[96] जबकि अर्थशास्त्री ने इस साझेदारी को "क्योटो पुष्टि न करने पर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को फिग पत्ता ईजाद है।" के रूप में वर्णन करते है।[97]


यह भी देखिये

साँचा:EnergyPortal


सन्दर्भ

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बाहरी संबंध