कौशाम्बी जिला
कौशाम्बी एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला | |
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उत्तर प्रदेश का जिला | |
कौशाम्बी जिला | |
उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी जिले की स्थिति | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
मंडल | कौशांबी |
स्थापित | 04 अप्रैल 1997 |
मुख्यालय | मंझनपुर |
तहसील | 3 (सिराथू, मंझनपुर, चायल) |
क्षेत्रफल | |
• कुल | 1780 किमी2 (690 वर्गमील) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 15,99,596 |
जनसांख्यिकी | |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+05:30) |
प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग | NH 2 |
लोकसभा क्षेत्र | कौशाम्बी लोकसभा क्षेत्र |
वेबसाइट | kaushambi |
कौशाम्बी ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी है भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। 4 अप्रैल 1997 को प्रयागराज से अलग होकर नया जिला बना। मंझनपुर जनपद का मुख्यालय है। कौशाम्बी जनपद में 3 तहसीलें हैं - सिराथू, मंझनपुर और चायल। अशोक स्तंभ भारत का दूसरा यहीं पर स्थापित था और यह स्थान अनेकों साम्राज्य का एक बहुत बड़ा केंद्र था, जैन व बौद्ध भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशाम्बी उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। कौशाम्बी, जैन धर्म के 6वें तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ जी के जन्म स्थान एवं बुद्ध काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो वत्स देश की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर ज़िला प्रयागराज में प्रयाग से 24 मील पर स्थित कोसम नाम के ग्राम से किया गया है। इस जिले में स्थितभरवारी सबसे घनी आबादी वाला नगर पालिका है जो कि खरीदारी के लिए मशहूर है। सबसे नजदीक वाला रेलवे स्टेशन भरवारी ही है जहां पर महाबोधि जैसी सुपरफास्ट ट्रेन का स्टॉपेज है;इसके अलावा सिराथू, खागा भी है। सैनी, खागा बस स्टॉप भी है जो कि कौशांबी को बुद्ध सर्किट से जोड़ता है ।ऐतिहासिक दृष्टि से भी कौशांबी काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला माता मंदिर है जो शीतला धाम कड़ा में स्थित है; जो 51 शक्ति पीठों में शामिल है, यहां नित्य प्रति दिन भक्तो की भारी भीड़ दर्शनों एवं मंदिर के तट पर स्थित मां गंगा में स्नान के लिए दूर दराज से आते हैं। भैरव नाथ मंदिर, ऐतिहासिक राजा जय चंद का किला, संत मलूक दास का निवास स्थान, ख्वाजा कड़क शाह की मजार, दुर्गा देवी मंदिर, राम मन्दिर बजहा, प्रभाषगिरी तीर्थक्षेत्र और बौद्ध मन्दिर उदहिन बुजुर्ग स्थित राजमहल ( यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है तथा ठाकुर जी महराज का जलविहार अत्यंत प्रसिद्ध है ) विशेष रूप से प्रसिद्ध है। प्रयागराज के दक्षिण-पश्चिम से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौशांबी को पहले कौशाम के नाम से जाना जाता था। यह बौद्ध व जैनों का पुराना केंद्र है। पहले यह जगह वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी। माना जाता है कि बुद्ध छठें व नौवें वर्ष यहाँ घूमने के लिए आए थे। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो राजा परीक्षित के वंशज (युधिष्ठिर से सातवीं पीढ़ी में) थे, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी—अधिसीमकृष्णपुत्रो निचक्षुर्भविता नृपः यो गंगयाऽपह्नते हस्तिनापुरे कौशंव्यां निवत्स्यति। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकाल में थी। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है। कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।।
कौशाम्बी में धार्मिक जनसंख्या
बौद्ध धर्म साँचा:०.30 | ☸️ हिंदू धर्म साँचा:83.70 | 🕉️
मुस्लिम धर्म साँचा:13.01 | ☪️ अन्य धर्म साँचा:05.01 |💟
प्राचीनता
पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो राजा परीक्षित के वंशज (युधिष्ठिर से सातवीं पीढ़ी में) थे, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी—अधिसीमकृष्णपुत्रो निचक्षुर्भविता नृपः यो गंगयाऽपह्नते हस्तिनापुरे कौशंव्यां निवत्स्यति। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। इस नगरी का उल्लेख महाभारत में नहीं है, फिर भी इसका अस्तित्व ईसा से कई सदियों पूर्व था। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकाल में थी। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है। कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।
ऐतिहासिक तथ्य
कौशांबी से एक कोस उत्तर-पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी थी, जिसकी प्लक्ष नामक गुहा में बुद्ध कई बार आए थे। यहीं श्वभ्र नामक प्राकृतिक कुंड था। जैन ग्रंथों में भी कौशांबी का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी गई थी। इसी सूत्र में कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इनकी रानी मृगावती विदेह की राजकुमारी थी। मौर्य काल में पाटलिपुत्र का गौरव अधिक बढ़ जाने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी अशोक ने यहाँ प्रस्तरस्तम्भ पर अपनी धर्मलिपियाँ—संवत 1 से 6 तक उत्कीर्ण करवायीं। इसी स्तंभ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है, जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दंड नियत किया गया है। इसी स्तंभ पर अशोक की रानी और तीवर की माता कारुवाकी का भी एक लेख है।
मुख्य आकर्षण
● पभोषा गांव में स्थित प्रभाषगिरी ● अलवारा झील (वेटलैंड) ● कौशाम्बी गांव में स्थित अशोक स्तंभ ● पद्म प्रभु का जन्म स्थल कौशाम्बी गांव में ● शीतला माता कड़ा धाम ● उदहिन बुजुर्ग स्थित राजमहल ● बजहा हनुमान मंदिर ● कुबरी घाट, संदीपन घाट ● संत मलूकदास आश्रम ● चरवा में ऋषि चरक मुनि आश्रम ● भरवारी और सिराथू प्रमुख रेलवे स्टेशन आदि आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं !
कौशाम्बी विस्तार से
ऐतिहासिक स्थल कौशाम्बी
तथागत बुद्ध की आवागमन में घोषितराम बिहार एक महत्वपूर्ण बिहार हुआ करता था इस बिहार में कई प्रकार की शिक्षा संस्थान मौजूद हुआ करते हैं यहां सोने और चांदी का व्यापार किया जाता था मुख्य रूप से किए जाते थे कौशाम्बी उन नदियों में से एक है जो मगध साम्राज्य का एक मुख्य केंद्र रहा करते थे
माँ शीतला शक्तिपीठ, कड़ा
माँ शीतला शक्तिपीठ ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर प्रयागराज के उत्तर-पश्चिम से लगभग 69 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान को कडा़ धाम के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त, यहां स्थित प्रमुख मंदिरों में हनुमान मंदिर, छत्रपाल मंदिर और कालेश्वर मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। मां शीतला देवी मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को देवी के 51 शक्तिपीठों में से सबसे प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। सभी धर्मो के लोग मंदिर में मां के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में स्थित शीतला देवी की मूर्ति स्थित है। इस मूर्ति में माता गर्दभ पर बैठी हुई है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र माह में कृष्णपक्ष के अष्टमी पर यदि देवी शीतला की पूजा की जाए तो बुरी शक्तियों से पीछा छुटाया जा सकता है। यह मंदिर 1000 ई. में बनाया गया था। यह स्थान प्रसिद्ध संत मलूकदास की जन्मभूमि भी है। यहां पर संत मलूकदास का आश्रम और समाधि भी स्थित है। इसके अलावा, सिक्ख गुरू तेग बहादुर भी यहां आए थे।
श्री प्रभाषगिरी तीर्थक्षेत्र
प्रभाषगिरी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यमुना नदी के तट पर स्थित यह स्थान मंझनपुर मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रभाषगिरी पहाड़ को रोहितगिरी के नाम से भी जाना जाता है और इसे कामदगिरि पर्वत का छोटा भाई भी कहा जाता है। प्रभाषगिरि में दो पर्वत हैं जो कि यहां की समतल एवं उपजाऊ भूमि को देखते हुए बहुत ऊँचे हैं। वर्तमान समय में एक ऊंचे पर्वत पर बहुत बड़ा जैन मंदिर स्थित है जहां जैन धर्म के छठे तीर्थंकर पद्म प्रभु से ने तप किया था तथा दूसरे पर्वत पर बहुला गौ धाम मन्दिर है। जैन मंदिर का निर्माण 1824 ई. में करवाया गया था। यहां पर एक नौ फीट लम्बी और सात फीट चौड़ी गुफा स्थित है। इस गुफा में दूसरी शताब्दी की ब्राह्मी लिपि में लिखी हुई मुद्रापत्र प्राप्त हुई थी। इसके अलावा, यह वही स्थान है जहां छठे जैनतीर्थंकर पदमप्रभु ने अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया था। वर्तमान समय में प्रभाषगिरि में प्रत्येक मकर संक्रान्ति को मेला लगता है और यहां आस-पास के जिलों के लोग आकर गृहस्थी के लिए प्रस्तर ( पत्थर ) के सामान खरीदते हैं तथा यहाँ रहने वाले जैन संन्यासियों एवं लोगों को यथेच्छानुसार दान करते हैं। कौशाम्बी के निवासियों के लिए पर्वतारोहण का यही सबसे अच्छा एवं नज़दीकी स्रोत माना जाता है।
संदीपन घाट
गंगा नदी के प्रमुख और ऐतिहासिक घाट में से एक कौशाम्बी जनपद के संदीपन घाट है। यह स्थान भरवारी नगर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। इस स्थान पर श्रीकृष्ण जी के गुरु संदीपनी गुरु अपने शिष्यों के साथ चातुर्मास करने आये थे जिस कारण से इस स्थान का नाम संदीपन घाट पड़ गया। सनातन धर्म के विशेष तिथियों और त्योहारों पर इस घाट पर दूर दूर से लोग गंगा दर्शन/स्नान के लिए यहां पर आते हैं।
दुर्गा देवी मंदिर:
मंझनपुर मुख्यालय में स्थित मंदिर में देवी दुर्गा और भगवान शिव की काले पत्थर की बनी मूर्ति स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्तियां बुद्ध के समय की है। नवरात्रों के अवसर पर काफी संख्या में भक्त देवी दुर्गा की उपासना के लिए आते हैं। यह पर लोगों का मानना है कि लोगो की काफी मंतने पूरी होती है और यह मंदिर क्षेत्र में काफी प्रचलित है
श्री राम मंदिर, बजहा
यह स्थान प्रयागराज से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री राम मंदिर काफी विशाल मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण लगभग बीस वर्ष पूर्व किया गया था। यह मंदिर बजहा ग्राम में बना हुआ है। जो कि मूरतगंज के निकट स्थित है।
मलूक आश्रम
: संत मलूकदास को हिंदू व मुस्लिम धर्म के लोग एक समान मानते हैं। इनकी कुटी आज भी कड़ा में मौजूद है। लोग श्रद्धा के साथ यहां आते हैं। खास बात है कि मलूकदास का शिष्य फतेह खान एक मुस्लिम था। आज भी उसकी मजार मलूकदास की समाधी के ठीक सामने बनी है।
उदहिन बुजुर्ग राजमहल
उदहिन बुजुर्ग का राजमहल लगभग 5 से 6 बीघे में फैला है यह प्राचीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है जिसको देखने के बाद इसकी भव्यता का पता चलता है महल के दक्षिण में स्थित एक पुरानी महल है जो अब खंडहर में परिवर्तित हो गई है महल के ठीक आगे एक ठाकुरद्वारा मंदिर है जहां श्री राम लक्ष्मण और जानकी जी की भव्य प्रतिमा स्थापित है तथा यहां भगवान श्री ठाकुर जी के जन्म ( श्री कृष्ण जन्माष्टमी ) के ठीक बारह दिन बाद एक बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है तथा एक पवित्र तालाब में भगवान का जलविहार कराया जाता है
ठहरने के स्थान
कौशाम्बी जनपद के मुख्यालय में कई ऐसे होटल हैं। जहां लोग रुक सकते हैं। ठहरने के लिए उचित व्यवस्था है, लेकिन फाइब स्टार होटलोंं की सुविधा नहीं है।
पहुंचने के साधन
- वायु मार्ग
कौशांबी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज विमानक्षेत्र है।
- रेल मार्ग
कौशांबी रेल मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। भरवारी और सिराथू ही मुख्य रेलवे स्टेशन है। भरवारी रेलवे स्टेशन बुद्ध सर्किट से कौशांबी को जोड़ता है।
- सड़क मार्ग
यह जगह सड़कमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख स्थानों से जुड़ी हुई है। सबसे निकट प्रयागराज शहर है। कौशांबी जिला प्रयागराज जिले का ही भाग था, जो 4 अप्रैल 1997 को नया जनपद बना दिया गया।