कोल जाति
कोल लोग जिसका अर्भाथ होता है मानव भारत के पूर्वी हिस्सों में छोटानागपुर के आदिवासियों को संदर्भित किया गया है। हो, भूमिज, मुण्डा और उरांव जनजाति को सामूहिक तौर पर कोल कहा जाता रहा है। वे ऑस्ट्रो-एशियाई और द्रविड़ भाषा बोलते हैं और सरना धर्म को मानते हैं। इनके द्वारा छोटानागपुर (वर्तमान मध्य प्रदेश ,झारखण्ड, असम और पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, और अंडमान निकोबार) में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध कोल विद्रोह (1831-32) प्रसिद्ध है।[1]
कोल जनजाति के लोग छोटा नागपुर में बसे थे कहा जाता है की कोल भारत के सबसे पुरानी जनजाति है कोल जनजाति ज्यादातर भूमिहीन थे और जीवन यापन करने के लिए वन उपज पर निर्भर हैं। बहुत से लोग कहते है की कोल जनजाति के लोग हिन्दू है लेकिन कोल जनजाति के लोग हिन्दू नहीं है लेकिन कुछ कोल जनजाति के लोग आज धर्म को मानते हैं और भारत की सकारात्मक भेदभाव प्रणाली के तहत अनुसूचित जाति नामित हैं। इस जाति में कई बहिर्विवाही गोत्र हैं, जिनमें ब्राह्मण, बारावीर, भील, चेरो, मोनासी, रौतिया, रोजबोरिया, राजपूत और ठाकुरिया शामिल हैं। मध्वेय प्रदेश के कोल जनजाति बघेलखंडी बोली बोलते हैं। लेकिन इनका अपना भाषा कोल भाषा आज बिलुप्लत होता जा रहा है झारखण्गड में आज बहुत से कोल जनजाति के लोग कोल भाषा को बचने के प्भरयास में लगे हुए है आज 10 लाख से भी ज्यादा कोल जनजाति के लोग मध्य प्रदेश में रहते हैं जबकि अन्य 5 लाख उत्तर प्रदेश में और झारखण्ड में रहते हैं।
शब्द-साधन
कोल छोटानागपुर में गैर-आर्य लोगों जैसे मुण्डा, हो, भूमिज और उरांव के लिए सामान्य शब्द था। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, आर्य राजकुमारी सुरथा को कुछ अशुद्ध जनजाति द्वारा पराजित किया गया था, जिसे कोलाबिधानसिनह कहा जाता है, जिसका अर्थ है "सुअर का वध करने वाला"। हेर जेलिंगहंस के अनुसार, कॉलेरियन जनजाति जो जंगली पशुओ के मांस जैसे सुअर खाते थे , उन्हें हिंदुओं द्वारा अशुद्ध माना जाता था।[2] कोल का एक अन्य अर्थ मानव है।[3] ब्रिटिश काल में, हो जनजाति को "लड़ाका कोल" भी कहा जाता था।
इतिहास
ब्रिटिश कर्नल एडवर्ड ट्यूइट डाल्टन ने 1867 में अपने लेखन में छोटानागपुर के गैर-आर्य कॉलेरियन और द्रविड़ आदिवासी जैसे मुण्डा, उरांव, हो, भूमिज, संथाल, जुआंग आदि को संदर्भित किया है। कोल शब्द ब्राह्मणों द्वारा आदिवासियों के लिए प्रयोग किया जाता था। छोटानागपुर में, कोल शब्द आमतौर पर हो, मुण्डा, भूमिज और उरांव के लिए लागू होता है। मुण्डा, हो और भूमिज कॉलेरियन समूह से संबंधित है, जबकि उरांव द्रविड़ समूह से संबंधित है। हालांकि उरांव, मुण्डा, हो और भूमिज एक ही तरह त्योहार मनाते हैं, लेकिन वे आपस में विवाह नहीं करते हैं। केवल कुछ क्षेत्रों में मुण्डा और भूमिज में वैवाहिक संबंध मिलता है।
वर्तमान में, केवल हो जनजाति के लिए कोल शब्द का प्रयोग किया जाता है। झारखण्ड में कोल जनजाति के नाम पर सिंहभूम क्षेत्र का नाम कोल्हान पड़ा है, जहां मुख्य रूप से हो और भूमिज जनजाति वास करते हैं। 1831-32 में छोटानागपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध कोल विद्रोह हुआ, जो अंग्रेजों और बाहरी लोगों (दिकु) के शोषण का बदला लेने के लिए किया गया था। जिसका नेतृत्व बिंदराय मानकी, सुर्गा मुंडा, सिंहराय (सुदगांव के मानकी), सिंहराय (कुचांग के मानकी), कार्तिक सरदार, खांडू पातर, नागु पाहान, बुधू भगत, जोआ भगत, आदि ने किया था। यह विद्रोह छोटानागपुर के हो, भूमिज, मुण्डा और उरांव जनजाति द्वारा किया गया था, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा कोल कहा जाता था।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ Jha, Jagdish Chandra (1958). "The Kol Rising of Chotanagpur (1831-33)—Its Causes". Proceedings of the Indian History Congress. 21: 440–446. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2249-1937.
- ↑ Gautam, Ambrish (2017). "Chota Nagpur - An Untold History: A Socio-Historical Analysis". Anthropology. 05 (02). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2332-0915.
- ↑ Haider, Alavi Zunnoorain; Waktole, Duguma Hailu; Ghosh, Prasenjit; Schismenos, Alexandros; Rigkos, Ioannis; Fosu, Richard (2016-07-09). SOCRATES: VOL. 4 NO. 2 (2016) ISSUE-JUNE (अंग्रेज़ी में). Saurabh Chandra, Socrates Scholarly Research Journal https://books.google.co.in/books?id=JL2lDAAAQBAJ&pg=PT33&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
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गायब/अनुपलब्ध शीर्षक (मदद).