कोड़मदेसर भैरुजी
इतिहास
राव बिकाजी जोधपुर राज घराने से थे और सन् 1465 AD में जोधपुर छोड़ आज के कोडमदेसर आ गए और आज जहां मंदिर विद्यमान है वहीं शहर बसाने की सोची , केवल अपने शुरुआती वर्षों में पर कुछ समय पश्चात अपने मंत्रियों की सलाह पर मन बदल दिया औऱ बीकानेर शहर वर्तमान जगह पर रखी जो आज हम देखते है। कोडम देसर गांव में उन्होंने भेरूजी को समर्पित एक मंदिर बनाने का फैसला किया।
कथा भेरूजी की
एक पुजारी(देदाणी गहलोत वंश)द्वारा भेरूजी की मूर्ति की कहानी इस प्रकार है -
" एक भक्त राव चाहायड़ सिंह गहलोत (सैनिक क्षत्रिय माली) का विग्रह अपने ग्रह नगर मंडोर जोधपुर से लाने की इच्छा हुई, तोह बाबा भैरवनाथ उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए। बाबा भैरवनाथ ने उसे सावधान किया की अगर वह मूर्ति रास्ते में किसी भी धरती पर रख देता है तो मूर्ति वापिस उठाई नहीं जा सकेगी"।
फिर उस भक्त ने मूर्ति को मन्दोर से ले जाना शुरू किया और बीच रास्ते में उसे थकावट महसूस होने लगी सो उसने वहीं मूर्ति रख कर विश्राम करने की सोची। मूर्ति धरातल पर रखने पर उसे उसकी अपनी गलती याद आयी पर तब तक देर हो चुकी थी । अब बाबा भैरवनाथ अपना स्थान अटल कर चुके थे "।
काफी समय बाद जब राव बिकाजी जंगलाबाद (बीकानेर का पुराना नाम) पहुंचे तो उन्होंने उसी स्थल पर मंदिर बनाने की ठानी । गौर करने वाली बात यह है की भेरूजी मंदिर उन्न दुर्लभ मंदिरों की सूची में है जिसमे मूर्ति के ऊपर छत नहीं है । ऐसा एक और मंदिर केवल शनि देव को समर्पित है , महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में भगवान शनिदेव की है।
बाबा भैरवनाथ जो भगवान शिव की भौहों के बीच से उत्तपन्न हुए है तोह इसीलिए उन्हें भगवान शिव का तीसरा नेत्र भी कहा जाता है।
मंदिर नियम
आगर आप नव विवाहित है तोह यहां आपको अवश्य बाबा के दर्शन लेने चाहिए।
यहां अन्य मंदिर जैसे भगवान को केवल पुजारी ही नहीं अपितु भक्त भी आपने हाथों से उनके मुख में प्रसाद चढ़ा सकते है।
जो प्रसाद चढ़ाया जाता है वह आप अपने साथ नहीं ले जा सकते ओर सारा प्रसाद आपको यहीं समाप्त करना पड़ता है।
कालभैरव को उनके भक्त यहां मदिरा भी प्रसाद के रूप में चढ़ाते है और ना के केवल मिठाइयाँ।
यहां पशु बली की भी परम्परा है जो भक्त धन्यवाद स्वरूप भगवान भैरव को समर्पित करते है।
यहां श्वान पूजे जाते है क्योंकि श्वान भगवान काल भैरव को अति प्रिय है।
सन्दर्भ
Refrence books given below 1.who are sainik kshatriya (published by rajput sabha bhawan) Writer bachhan singh ji shekhawat , page no. 16 about bikajj who come with gahlot from mandore with kala gora bheruji <iframe
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बाहरी कड़ियाँ
https://www.cityexpressnews.in/2022/09/blog-post_927.html?m=1
रिपोर्ट मरदुमशुमारी राजमारवाड़ सन् १८९१ = Marwar census report 1891 : राजस्थान की जातियों का इतिहास एवं उनके रीतिरिवाज
राय बहादुर मुंशी हरदयाल सिंह ; प्रस्तावना, जहूरखां मेहर
महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र, 2010