कॉम्पटन प्रभाव
कॉम्पटन प्रभाव उच्च आवृत्ति के विद्युतचुंबकीय विकिरण (अर्थात फोटॉन) की पदार्थ के साथ वह अंत:क्रिया (इंटरऐक्शन) है जिसमें मुक्त इलेक्ट्रानों से प्रकीर्ण (स्कैटर) होकर फ़ोटान की ऊर्जा में ह्रास हो जाता है और उनके तरंग आयाम में वृद्धि हो जाती है। प्रकीर्णित विकिरण की तरंगदैर्घ्य केवल प्रकीर्णन के कोण पर निर्भर करती है।
कॉम्प्टन प्रभाव के स्पष्टीकरण के लिए 1923 ई. में कांपटन और डेबाई ने स्वतंत्र रूप से यह धारणा अपनाई कि किसी दिशा में चलते हुए फ़ोटान में जो ऊर्जा/संवेग होता है उनका कुल
या केवल थोड़ा सा भाग पर दे सकता है। इससे प्रकीर्ण फ़ोटान की ऊर्जा (E= hν), जिसमें (h) प्लैंक स्थिरांक है और (ν) विकिरण की आवृत्ति है, आपाती फ़ोटान की ऊर्जा से कम होती है और फ़ोटान से संबंधित तरंगआयाम बढ़ जाता है। स्पष्टत: यह फ़ोटान-इलेक्ट्रान-टक्कर-प्रतिरूप (photon-election collision model) विकिरण के तरंग सिद्धान्त (वेव थियरी) के एकदम प्रतिकूल है।
सन् 1924 ई. में बोर (Bohr), क्रेमर्स और स्लेटर ने एक दूसरे प्रतिरूप का सुझाव रखा जो तरंगवाद पर आधारित था। इस प्रतिरूप में ऊर्जास्थिरता और संवेगास्थिरता के नियम विकिरण और इलेक्ट्रान की किसी एकाकी अंत: क्रिया में लागू न होकर अनेक टक्करों के सांख्यिकीय माध्य (statistical average) पर ही लागू होते हैं। अतएव आपाती विकिरण टामसन के तरंगवादी प्रतिरूप के अनुरूप सतत (continuously) प्रकीर्ण होता है, पर साथ में कभी-कभी एक प्रतिक्षेप (recoil) इलेक्ट्रान भी प्रकीर्णक से निकलता है। यह प्रतिरूप कांपटन परिणाम के कारण तरंगआयाम में वृद्धि का स्पष्टीकरण करने में सफल तो अवश्य हुआ, पर अंतत: कुछ प्रयोगिक परिणामों के आधार पर यह अमान्य हो गया और मान्यता, कांपटन एवं डेबाई के फ़ोटन-इलेक्ट्रान-टक्कर-प्रतिरूप को ही मिली।
कांपटन-डेबाई-प्रतिरूप के अनुसार प्रतिक्षिप्त इलेक्ट्रान और प्रकीर्ण विकिरण का उत्पादन साथ ही साथ होना आवश्यक है। इस युगपदीयता (Simultaneity) में क्वांटम यांत्रिकी के अनुसार समय अनिश्चिता (time uncertainty) लगभग 10-21 सेंकड है और नवीनतम प्रयोगों में युगपदीयता समय इस सीमा के पर्याप्त निकट (~10-11 सेंकड तक) पहुँच चुका है।
कांपटन-डेबाई के फ़ोटान प्रतिरूप में ऊर्जा और संवेग की स्थिरता का उपयोग करके प्रतिक्षिप्त इलेक्ट्रान और प्रकीर्ण फ़ोटान की दिशाओं में एक यथार्थ संबंध मिलता है। आधुनिक प्रयोगों से इस संबंध की संतोषजनक पुष्टि होती है।
डिरैक (Dirac) की क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों के अनुसार विद्युच्चुंबकीय क्षेत्र और एक इलेक्ट्रान के बीच अंत: क्रिया का स्पष्टीकरण पूर्णत: भिन्न रूप से किया गया है। इस प्रतिरूप में अंत: क्रिया की प्रारंभिक और अंतिम स्थितियों के अतिरिक्त एक मध्यम (intermediate) स्थिति भी होती है, जिसमें केवल संवेग ही स्थिर रहता है, ऊर्जा नहीं। इस अंत:स्थ स्थिति में एक इलेक्ट्रान एक फ़ोटान को उत्सारित (emit) कर सकता है या एक फ़ोटान का अवशोषण (absorption) कर सकता है। अत: कांपटन परिणाम में दो विकल्पों की शक्यता है :
- (1) इलेकट्रान पहले आपाती फ़ोटान को प्रचूषित कर लेता है और अंत: स्थ स्थिति में कोई फ़ोटान उपस्थित नहीं रहता। अतिम स्थिति तक पहुँचने पर इलेक्ट्रान एक भिन्न ऊर्जा का (प्रकीर्ण) फ़ोटान उत्सारित कर देता है।
- (2) इलेक्ट्रान पहले एक भिन्न ऊर्जा का (प्रकीर्ण) फ़ोटान उत्सारित कर देता है। अत: अंत:स्थ स्थिति में दो फ़ोटान उपस्थित रहते हैं। अंतिम स्थिति तक पहुँचने पर इलेक्ट्रान आपाती फ़ोटान का अवशोषण कर लेता है।
परिघटना की व्याख्या
इन दोनों विकल्पों का विचार करके इलेक्ट्रान के विद्युच्चुंबकीय विकिरण के प्रकीर्णन का अध्ययन किया गया है और उससे जो निष्कर्ष निकले हैं (क्लाइन तथा निशीना के प्रकीर्णन क्रॉस सेक्शन के सूत्र) वे आधुनिक प्रयोगों द्वारा ऊर्जा के पर्याप्त विस्तार के लिए सिद्ध किए जा चुके हैं। कांपटन-डेबाई के निष्कर्ष इस सामान्य निष्कर्षों के विशेष रूप है। यदि प्रकीर्ण पदार्थ में हम इलेक्ट्रान की पूर्णतया स्वाधीन (अपरिबद्ध) और स्थिर मानें और यदि आपाती फ़ोटान की ऊर्जा (hν) हो और प्रकीर्ण फ़ोटान की ऊर्जा (hν´) हो, तो ऊर्जा स्थिरता और संवेग स्थिरता के नियमों का उपयोग करके हमें निम्नलिखित समीकरण मिलते हैं :
जहाँ
- λ आपाती फोटॉन का तरंगदैर्घ्य है,
- λ′ प्रकीर्ण फोटॉन का तरंगदैर्घ्य है,
- h प्लांक नियतांक है,
- me इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान है,
- c प्रकाश का वेग है, तथा
- θ प्रकीर्णन कोण है।
h⁄mec को इलेक्ट्रॉन का कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य (Compton wavelength) कहते हैं; इसका मान 2.43×१०−12 m के बराबर होता है।
बाहरी कड़ियाँ
- BIGS animation compton effect
- Compton Scattering - Georgia State University
- Compton Scattering Data - Georgia State University