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कैनेडी–थॉर्नडाइक प्रयोग

कैनेडी–थॉर्नडाइक प्रयोग

कैनेडी–थॉर्नडाइक प्रयोग विशिष्ट आपेक्षिकता के परीक्षण वाला एक प्रयोग हो माइकलसन मोर्ले प्रयोग का संशोधित संस्करण है।[1] चिरसम्मत माइकलसन मोर्ले प्रयोग के उपकरण में एक भुजा को दूसरी से थोड़ा छोटा करके इसको संशोधित किया जाता है। चूँकि माइकलसन मोर्ले प्रयोग में यह प्रदर्शित किया था कि प्रकाश का वेग उपकरण के अभिविन्यास पर निर्भर नहीं करता जबकि कैनेडी-थॉर्नडाइक प्रयोग ने प्रदर्शित किया कि यह किसी भी जड़त्वीय निर्देश तंत्र में उपकरण के वेग पर भी निर्भर नहीं करता। इससे परोक्ष रूप से समय विस्फारण की भी पुष्टि हो गयी – जबकि माइकलसन मोर्ले प्रयोग के नकारात्मक परिणाम ने केवल लम्बाई में संकुचन की पुष्टि की थी। कैनेडी-थॉर्नडाइक प्रयोग का नकारात्मक परिणाम से सूर्य के चारों तरफ पृथ्वी की गति से कलांतर को संसूचित नहीं होने को समझा जा सकता है और यह लम्बाई में संकुचन के साथ समय विस्फारण की भी पुष्टि करता है। आइव्स-स्टिलवेल प्रयोग ने समय विस्फारण का पहली बार प्रत्यक्ष पुष्टि की। इन तीनों प्रयोगों के संयुक्त परिणामों से लोरेन्ट्स रूपांतरण पूर्ण पुष्टि होती है।[2]

सन्दर्भ

  1. Kennedy, R. J.; Thorndike, E. M. (1932). "Experimental Establishment of the Relativity of Time". फिजिकल रिव्यू. 42 (3): 400–418. डीओआइ:10.1103/PhysRev.42.400. बिबकोड:1932PhRv...42..400K.
  2. रॉबर्टसन, एच॰पी॰ (1949). "Postulate versus Observation in the Special Theory of Relativity" (PDF). रिव्यू ऑफ मोडर्न फिजिक्स. 21 (3): 378–382. डीओआइ:10.1103/RevModPhys.21.378. बिबकोड:1949RvMP...21..378R.