कुल्ली भाट
कुल्ली भाट | |
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मुखपृष्ठ | |
लेखक | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | साहित्य |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | नया संस्करण २००४ |
पृष्ठ | ९५ |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | 81-267-0914-6 |
कुल्ली भाट सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का उपन्यास है।[1] यह अपनी कथावसितु और शैल-शिल्प के नएपन के कारण न केवल उनके गद्य-साहित्य की बल्कि हिंदी के संपूर्ण गद्य-साहित्य की एक विशिष्ट उपलब्धि है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि कुल्ली के जीवन-संघर्ष के बहाने इसमें निराला का अपना सामाजिक जीवन मुखर हुआ है और बहुलांश में यह महाकवि की आत्माकथा ही है। यही कारण है कि सन १९३९ के मध्य में फ्रकाशित यह कृति उस समय की प्रगतिशील धारा के अग्रणी साहित्याकारों के लिए चुनौती के रूप में समाने आई, तो देशोद्धार का राग अलापने वाले राजनीतिज्ञों के लिए इसने आईने का काम किया। संक्षेप में कहें तो निराला के विद्रोही तेवर और गलत सामाजिक मान्याताओं पर उनके तीखे प्रहारों ने इस छोटी-सी कृति को महाकाव्यात्मक विस्तार दे दिया है, जिसे पढ़ना एक विराट जीवन-अनुभव से गुजरना है।[2]
सन्दर्भ
- ↑ "स्पेनिश फ्लू:वो दौर जब गंगा में इंसानों की लाशें ही लाशें नजर आती थीं, दोनों विश्वयुद्धों में हुई कुल मौतों से भी कहीं ज्यादा".
- ↑ "कुल्ली भाट" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि १० दिसंबर २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]