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कुरान में हिंसा

कुरान की की बहुत सी आयतों के बारे में लोगों की धारणा है कि वे शत्रुओं, इस्लाम के न मानने वालों और गैर-मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा करने की बात करतीं हैं। कुरआन में स्थान-स्थान पर इस्लाम को न मानने वालों, इस्लामविरोधियों व इस्लामद्रोहियों को मार डालने का आदेश दिया गया है। काफिरों से निरन्तर युद्ध जारी रखने और उन्हें देखते ही मार डालने का आदेश कुरआन में आम है। इसके लिए प्रेरणा के रूप में जन्नत का प्रलोभन दिया गया है। जन्नत में उन्हें हूरें मिलने की आशा दिखाई जाती है।

11 सितम्बर की घटना घटित होने के बाद (जब अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ था) सी बी एस के प्रसिद्ध टीकाकार एन्डी रुनी ने सुझाव दिया था कि वर्तमान विश्व में जो कुछ घटित हो रहा है उसे जानने के लिए कुछ समय निकालकर कुरान अवश्य पढ़ना चाहिए।[1] मुसलमानों के अनुसार ऐसा सन्दर्भ के बाहर निकाल कर दिखाने का कुप्रयास किया जाता है।[2]

कुरान की कुछ आयतें जिनमें हिंसा है

  • और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है। (कुरान 2:191)
  • जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक क़त्ल करे और उन लोगों का क़ल्त करें जो न्याय के पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो। (कुरान 3:21)
  • जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है। (कुरान 5:33)
  • जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (कुरान 4:56)
  • छोड़ो उन लोगों को, जिन्होंने अपने धर्म को खेल और तमाशा बना लिया है और उन्हें सांसारिक जीवन ने धोखे में डाल रखा है। और इसके द्वारा उन्हें नसीहत करते रहो कि कहीं ऐसा न हो कि कोई अपनी कमाई के कारण तबाही में पड़ जाए। अल्लाह से हटकर कोई भी नहीं, जो उसका समर्थक और सिफ़ारिश करनेवाला हो सके और यदि वह छुटकारा पाने के लिए बदले के रूप में हर सम्भव चीज़ देने लगे, तो भी वह उससे न लिया जाए। ऐसे ही लोग है, जो अपनी कमाई के कारण तबाही में पड गए। उनके लिए पीने को खौलता हुआ पानी है और दुखद यातना भी; क्योंकि वे इनकार करते रहे थे। (क़ुरआन 6:70)[3]

अन्य पुस्तकों के साथ तुलना

बाइबिल,गीता और महाभारत से तुलना

बाइबिल

हिंसा की सिफारिश करने वाले अंशों की खोज में कुरआन का अध्ययन करने और उनकी तुलना बाइबिल से करने के बाद , अमेरिकी प्रोफेसर फिलिप जेनकिंस , जो धार्मिक हिंसा पर पुस्तकों के लेखक हैं, इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कुरान, कुल मिलाकर, "कहीं कम" है। खूनी और कम हिंसक ... बाइबिल से।" कुरान में, वे कहते हैं, हिंसा को आम तौर पर केवल आत्मरक्षा के रूप में अनुशंसित किया जाता है, जबकि बाइबिल में " यहां एक विशिष्ट प्रकार का युद्ध निर्धारित किया गया है ... जिसे हम केवल नरसंहार कह सकते हैं।" [4]

सन्दर्भ

  1. "कुरान का अध्ययन". मूल से 30 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2020.
  2. "क्या कुरआन की आयतें दूसरे धर्म वालों से हिंसा प्रेरित करती हैं?". मूल से 2 फरवरी 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2020.
  3. क़ुरआन 6:70 https://tanzil.net/#trans/hi.farooq/6:70
  4. "Is The Bible More Violent Than The Quran?". NPR. 18 March 2010.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ