सामग्री पर जाएँ

कुन्थुनाथ

कुन्थुनाथ
सत्रहवें जैन तीर्थंकर
Vataman-Kunthunath Swami

कुन्थुनाथ भगवान की प्रतिमा
विवरण
अन्य नाम कुन्थुनाथ जिन
शिक्षाएं अहिंसा
पूर्व तीर्थंकरशांतिनाथ
अगले तीर्थंकरअरनाथ
गृहस्थ जीवन
वंश इक्ष्वाकु
पिता राजा शूर
माता रानी श्रीदेवी
पंच कल्याणक
जन्म स्थान हस्तिनापुर
मोक्ष स्थानसम्मेत शिखर
लक्षण
रंग स्वर्ण
चिन्हबकरा
ऊंचाई ३५ धनुष (१०५ मीटर)
आयु ९५,००० वर्ष
शासक देव
यक्ष गन्धर्व
यक्षिणी बाला

कुन्थुनाथ जी जैनधर्म के सत्रहवें तीर्थंकर हैं। इनका जन्म हस्तिनापुर में हुआ था। पिता का नाम शूरसेन (सूर्य) और माता का नाम श्रीकांता (श्री देवी) था। बिहार में पारसनाथ पर्वत के सम्मेत शिखर पर इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। प्रभु कुंथुनाथ जी जैन धर्म के 17वें तीर्थंकर हैं। प्रभु कुंथुनाथ जी का जन्म वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को हस्तिनापुर में हुआ था। उनके पिता का नाम शूरसेन और माता का नाम श्री कांता था। प्रभु की देह का रंग स्वर्ण के समान था , प्रभु थुनाथ जी का प्रतीक बक कुंरा था ।

प्रभु शांतीनाथ जी के बाद प्रभु कुंथुनाथ जी दुसरे ऐसे तीर्थंकर थे जो तीर्थंकर होने के साथ - साथ उसी जन्म में चक्र भी

प्रभु कुंथुनाथ जी जैन धर्म में वर्णित 12 चक्रवर्तियो में से 6 ठें चक्र थे।


प्रभु कुंथुनाथ जी की आयु 95,000 वर्ष थी और प्रभु की देह का आकार 35 धनेश्वर का था। प्रभु कुंथुनाथ जी ने वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन दीक्षा ग्रहण की तथा 16 वर्ष तक कठोर साधना की।

16 वर्षों के प्रभु को चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन निर्मल कैवलय ज्ञान की प्राप्ति हो गई, इसके बाद भी प्रभु ने चार तीर्थ की स्थापना और स्वयं तीर्थंकर कहलाये। प्रभु ने सत्य, अहिंसा, आचार्य, अपरिग्रह का चुर्तयाम धर्म का उपदेश दिया।

प्रभु का संघ बहुत विशाल था, प्रभु के संघ में 35 गणधर थे जिनमे से स्वयंभू नाम के गणधर प्रथम थे। प्रभु के यक्ष का नाम गन्धर्व तथा यक्षिणी का नाम बाला (जयदेवी) था। प्रभु ने अपनी आयुष पूर्ण कर वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन अपने समस्त कर्मों का क्षय कर सम्मेद शिखरजी से निर्वाण प्राप्त किया। [1][2][3]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. von Glasenapp 1999, पृ॰ 308.
  2. Forlong 1897, पृ॰ 14.
  3. Tukol 1980, पृ॰ 31.