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कुणाल

क़ुणाल (तीसरी शताब्दी ई. पू.) सम्राट अशोक तथा रानी पद्मावती के सुपुत्र थे।

दिव्यावदान के अशोकावदान और कुणालावदान में कुणाल के जीवन से संबंधित अनेक कहानियां हैं। सर्वप्रसिद्ध कथा है कि अशोक की एक रानी तिष्यरक्षिता (पालि साहित्य की तिस्सरक्खिता) थी, जो सम्राट् से अवस्था में बहुत ही कम और स्वभाव से अत्यंत कामातुर थी। कुणाल की सुंदर आँखों पर मुग्ध होकर उसने उससे प्रणप्रस्ताव किया। उसके पुत्रकक्ष कुणाल के लिए उस प्रस्ताव को ठुकरा देना अत्यंत स्वाभाविक था। पर तिष्यरक्षिता इसे भुला न सकी। जब एक बार अशोक बीमार पड़ा तब तिष्यरक्षिता ने उसकी भरपूर सेवा करके मुँहमागा वर प्राप्त करने का वचन उससे ले लिया। तक्षशिला में विद्रोह होने पर जब कुणाल उसे दबाने के लिए भेजा गया तब तिष्यरक्षियता ने अपने वरण में सम्राट, अशोक की राजमुद्रा प्राप्तकर तक्षशिला के मंत्रियों को कुणाल की आँखें निकाल लेने तथा उसे मार डालने की मुद्रांकित आज्ञा लिख भेजी। शक्तिशाली किंतु अनिच्छुक मंत्रियों ने जनप्रिय कुणाल की आँखें तो निकलवा ली परंतु उसके प्राण छोड़ दिए। अशोक को जब इसका पता चला तो उसने तिष्यरक्षिता को दंडस्वरूप जीवित जला देने की आज्ञा दी। किंतु कुछ विद्वान् इस कथा को ऐतिहासिक नहीं मानते। प्रसिद्ध विद्वान् प्रजीलुस्की ने कुणाल सूत्र के चीनी रूपांतर को प्रस्तुत किया है। इस सूत्र के अनुसार तक्षशिला में कोई विद्रोह ही नहीं हुआ था। वस्तुत: कुणाल वहाँ की जनता की माँग पर अशोक द्वारा एक स्वतंत्र राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। संभव है, आगे चलकर वहाँ के गांधार प्रदेश में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो गई हो। कुणाल का संबंध कश्मीर और पामीरवर्ती प्रदेशों से भी रहा है जो अनेक प्रमाणों से सिद्ध है। कुछ पुराणों (वायु, बह्मांड) में कुणाल को अशोक का उत्तराधिकारी भी बताया गया है।

नाम की महत्ता

कुणाल हिमालय में पाये जाने वाले पक्षियों मे एक है। सम्राट अशोक जिन्होंने सारे भारत पर राज किया था, उन्होंने अपने पुत्र कुणाल का नाम इस पक्षी की आँखो के ऊपर रखा था। कुणाल का संस्कृत में अर्थ होता है "सुन्दर नेत्रों वाला पक्षी" और यदि यह किसी व्यक्ति का नाम है तो इसका अर्थ होता है "वह व्यक्ति जो प्र्त्येक वस्तु मे सुंदरता देखता हो" अथवा "सुंदर नेत्रों वाला व्यक्ति". संस्कृत में इस्का एक अर्थ "कमल" भी होता है राजा अशोक सम्राट के महा पूरोहितों द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार राजा कुणाल का जन्म फिर विदर्भ नगरी मे किसी राजपूत परिवार मे होगा।

आरंभिक जीवन

अशोक ने अपने पुत्र को मौर्य साम्राज्य की बागडोर सँभालने के लिये तैयार करने हेतु उज्जैन भेजा जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ तथा राजकुमारों वाली शिक्षा प्रदान की गयी।

अंधत्व

जब राजकुमार ८ वर्ष के हुए तो सम्राट नें कुणाल के शिक्षकों को कुणाल की शिक्षा शुरु करने के लिये प्राकृत भाषा में एक पत्र लिखा[1]. अशोक की एक पत्नी जो चाहती थी कि राजगद्दी उसके पुत्र को मिले, वहाँ उपस्थित थी। उसने वह पत्र पढ़ लिया। उसने पत्र में चुपके से 'अ' अक्षर के ऊपर एक बिंदु लगा दिया जिससे 'अधीयु' शब्द 'अंधीयु' में परिवर्तित हो गया जिसका अर्थ था राजकुमार को अंधा कर दिया जाये. पत्र को बिना दुबारा पढ़े सम्राट ने उस पर मुहर लगा कर भेज दिया. उज्जैन के पेशकार को उस पत्र को पढ़ कर इतना धक्का लगा कि वह उसे पढ़ कर राजकुमार को नहीं सुना पाया। अंतत: उस पत्र को राजकुमार नें स्वयं ही पढ़ा तथा यह जानते हुए कि मौर्य साम्राज्य में अभी तक किसी ने घर के मुखिया की बात का उल्लंघन नहीं किया, एक बुरा उदाहरण ना बनने के लिये उन्होंने गर्म सलाखों से स्वयं को अंधा कर लिया[1]

यह भी कहा जाता है कि कुणाल को एक विद्रोही के दमन के लिये तक्षशिला भेजा गया था जिसमें वह सफल भी हो गये। किंतु बाद में तिष्यरक्षा ने छ्ल से उन्हें अंधा कर दिया

राजगद्दी की दावेदारी

वर्षों बाद कुणाल अशोक की सभा में एक संगीतज्ञ के भेष में पहुँचे। उनके साथ उनकी पत्नी कंचनमाला भी थी। जब सम्राट ने उनकी कला से प्रसन्न हो कर उन्हें पुरुस्कृत करना चाहा तो कुणाल अपने असली रूप में आ गये तथा राज्य के उत्तराधिकार की माँग सामने रखी. अशोक ने खेदपूर्वक यह कहते हुए मना कर दिया कि कुणाल अंधे हैं। तब कुणाल ने उनसे अपने पुत्र के लिए राजगद्दी माँगी. जब राजा ने पूछा कि उन्हें पुत्र कब हुआ तब कुणाल नें उत्तर दिया "सम्प्रति" अर्थात "अभी". इस प्रकार कुणाल के पुत्र का नाम सम्प्रति पड़ा और यद्यपि वह तब एक शिशु मात्र थे, उन्हें अशोक का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। अशोक के मरणोपरांत सम्प्रति एक शक्तिशाली राजा बने[1] यह भी कहा जाता है कि राजकुमार कुणाल ने भारत-नेपाल सीमा पर मिथिला में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। यह वही जगह हो सकती है जहाँ आज कोसी नदी के तट पर कुनौली (पूर्व में कुणाल ग्राम) नामक गाँव स्थित है। गाँव की रँगमंच समिति आज भी कुणाल नाट्य कला मंच के नाम से जानी जाती है। कुछ ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक साक्ष्य भी इस दावे की पुष्टि करते हैं।

प्रचिलित संचार माध्यम में चित्रण

कुणाल के जीवन पर 'वीर कुणाल' नाम से एक अर्ध्-कल्पित चलचित्र का निर्माण १९२५ में किया गया था। सन १९४१ में 'अशोक कुमार' नाम से बनी एक तमिल फिल्म भी कुणाल के जीवन पर आधारित थी।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. ISBN 0-691-01459-0 Archived 2013-05-20 at the वेबैक मशीन"द लेजेंड ऑफ किंग अशोका, अ स्टडी एंड ट्रांसलेशन ऑफ द अशोकवंदना", जॉन स्ट्राँग, प्रिंसटन लाइब्रेरी ओफ एशियन ट्रांसलेशन, १९८३.