कुंवर सुरेश सिंह
कुंवर सुरेश सिंह अवध की एक एक जाने माने कालाकांकर[1] राजघराने से ताल्लुक रखते थे। कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के छोटे भाई थे।[2] वे एक साहित्य और कला प्रेमी भी थ। वे सुमित्रानंदन पंत और हरिवंश राय बच्चन जैसे बड़े कवियों के निकटस्थ रहे। इन्ही के आग्रह पर कवि सुमित्रानंदन पंत जी कालाकांकर आकर बस गए थे, जिसकी निशानी 'नक्षत्र' (सुमित्रानंदन पन्त की कुटी) आज भी कालाकांकर में मौजूद हैं। कुंवर सुरेश जी "पन्त जी और कालाकांकर" एवं "यादों के झरोखे" नामक पुस्तके भी लिखी हैं।
सन् १९३८ ई. में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया था।[3]
कुंवर सुरेश सिंह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन भी भी अधिक सक्रीय थे। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के करीबियों में से एक थे। बल्कि बापू ने सुरेश जी को आन्दोलनों में मार्गदर्शन हेतु कई पत्र भी लिखे।[4]
उत्तराखंड स्थित "सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका" नामक संग्रहालय में कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां यहां मौजूद हैं।[5]
सन्दर्भ
- ↑ Roper Lethbridge (2005). The golden book of India (illustrated संस्करण). Aakar. पृ॰ 453. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-87879-54-1.
- ↑ "कालाकांकर". मूल से 8 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-09-11.
- ↑ "हिंदी के गौरव". मूल से 6 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 सितंबर 2014.
- ↑ Srilal Shukla (2005). Bhagwati Charan Verma, Volume 209 (illustrated संस्करण). Sahitya Akadami. पृ॰ 453. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-87879-54-1.
- ↑ "प्रकृति का सुकुमार कवि- सुमित्रानंदन पंत". मूल से 6 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 सितंबर 2014.