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कीट नियंत्रण

एक क्रॉप डस्टर कम कीटनाशक की मात्रा वाले चारे का इस्तेमाल करता है, जिससे वेस्टर्न कॉर्न रूटवर्म से निजात पाने में मदद मिलती है

कीट नियंत्रण से आशय कीट के रूप में परिभाषित प्रजाति के नियंत्रण या प्रबंधन से है, क्योंकि आमतौर पर उन्हें व्यक्तियों के स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी या अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक माना जाता है।

कीट नियंत्रण का इतिहास भी लगभग उतना ही पुराना है जितना कि कृषि का क्योंकि फसलों को हमेशा से ही कीट मुक्त रखने की आवश्यकता रही है। खाद्य पदार्थों के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए फसलों को पौधों की प्रतिस्पर्धी प्रजातियों के साथ-साथ मनुष्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले शाकाहारी पशु-पक्षियों से बचाना भी लाभप्रद होता है।

सबसे पहले संभवतः पारंपरिक तरीकों का ही इस्तेमाल किया जाता था, क्योंकि घास-फूस को जलाकर या जुताई करके उन्हें जमीन के अंदर करके; और कौवों तथा बीज-भक्षण करने वाले अन्य पक्षियों जैसे बड़े शाकाहारी पशु-पक्षियों को नष्ट करना अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा आसान होता है। फसल आवर्तन, सहयोगी फसल-रोपण (जिसे अंतर-फसल या मिश्रित फसल-रोपण भी कहा जाता है) और कीट प्रतिरोधी फसलों के चयनित प्रजनन का एक लंबा इतिहास रहा है।

कई कीट मनुष्य की प्रत्यक्ष गतिविधियों की वजह से ही एक समस्या के रूप में उभरे हैं। इन गतिविधियों के संशोधन द्वारा कीट संबंधी समस्याओं पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, रैकून नामक एक जानवर अक्सर बोरियों को फाड़ दिया करते थे जो कि एक बड़ी समस्या थी। कई लोगों ने अपने घरों में उनको पकड़ने वाले डिब्बों को रखना शुरु कर दिया जिससे उनका उत्पात में कमी आई. लगभग पूरी दुनिया में मक्खियां अक्सर मानव गतिविधि वाले क्षेत्रों के निकट ही अधिक मात्रा में पाई जाती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां खाद्य सामग्री खुले में रखी जाती है। इसी प्रकार, समुद्री पक्षी सागर तट पर बने कई रिसोर्ट्स में काफी उत्पात मचाते हैं। पर्यटक अक्सर इन पक्षियों को मछलियों या चिप्स के टुकड़े खिलाते हैं जिसके कारण जल्द ही वे पक्षी उनके आदी हो जाते हैं और मनुष्यों के प्रति आक्रामक व्यवहार करने लगते हैं।

ब्रिटेन में, पशु कल्याण के प्रति चिंता के कारण कीट नियंत्रण के लिए मानवीय तरीकों का इस्तेमाल काफी लोकप्रिय हो रहा है, जिसमें उन्हें मारने की बजाय पशु मनोविज्ञान के इस्तेमाल पर अधिक जोर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, शहरी लाल लोमड़ियों के उत्पात से निजात पाने के लिए आमतौर पर गैर-हानिकारक रासायनिक सामग्रियों के साथ-साथ क्षेत्रीय व्यवहार तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है। ब्रिटेन के ग्रामीण क्षेत्रों में कीट नियंत्रण के लिए बंदूकों का उपयोग काफी आम है। चूहों, खरगोशों तथा भूरी गिलहरी जैसे छोटे कीटों के नियंत्रण के लिए एयरगन विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, क्योंकि अपनी कम शक्ति के कारण उन्हें बगीचों जैसे छोटे स्थानों में भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है जहां अन्य बंदूकों का इस्तेमाल अन्यथा असुरक्षित होता है।

रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल लगभग 4500 सालों से किया जा रहा है, जब सुमेर निवासी सल्फर यौगिकों का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में करते थे। ऋग्वेद, जो कि लगभग 4,000 साल पुरानी है, उसमें भी कीट नियंत्रण के लिए जहरीले पौधों के इस्तेमाल का उल्लेख मिलता है। रासायनिक कीट नियंत्रण का व्यापक रूप से इस्तेमाल, 18 वीं तथा 19 वीं शताब्दी में कृषि के औद्योगिकीकरण तथा मशीनीकरण और पाईरेथ्रम एवं डेरिस जैसे कीटनाशकों के आने के बाद ही संभव हुआ था। 20 वीं सदी में डीडीटी (DDT) जैसे कई कृत्रिम कीटनाशकों तथा पौध-नाशकों की खोज से इसके विकास में और अधिक तेजी आई. रासायनिक कीट नियंत्रण आज भी कीट नियंत्रण का एक प्रमुख साधन है, हालांकि इसके दीर्घकालिक दुष्प्रभावों के चलते 20 वीं सदी के अंत में पारंपरिक और जैविक कीट नियंत्रण पर लोगों ने पुनः ध्यान देना शुरु कर दिया है।

जीवित वस्तुएं निरंतर विकसित और परिवर्तित होती रहती हैं और जैविक, रासायनिक, भौतिक या नियंत्रण के अन्य सभी रूपों के प्रति उनका प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती जाती है। जब तक लक्षित आबादी को पूर्णतया समाप्त या प्रजनन हेतु अक्षम न कर दिया जाए, बची हुई आबादी अनिवार्य रूप से सभी प्रकार के कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है - जिससे एक सदैव जारी रहने वाली हथियारों की होड़ का जन्म होता है।

इल्फ्राकोम्ब, इंग्लैंड में समुद्री गल के उपस्थिति की मदद के लिए एक साइन बोर्ड बनाया गया

कीट नियंत्रण के प्रकार

जैविक कीट नियंत्रण

जैविक कीट नियंत्रण, प्राकृतिक परजीवियों तथा परभक्षियों के नियंत्रण एवं प्रबंधन द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए: मच्छरों पर नियंत्रण करने लिए अक्सर स्थानीय जल स्रोतों में बीटी बैसिलस थुरिनगियेंसिस एसएसपी. इसरेलेंसिस (Bt Bacillus thuringiensis ssp. israelensis) नामक एक बैक्टीरिया डाल दिया जाता है जो मच्छरों के लार्वा को संक्रमित करके नष्ट कर देता है। इस उपचार का कोई भी ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है और यह जल मानवों के लिए पूर्णतया सुरक्षित माना जाता है। जैविक कीट नियंत्रण, या अन्य किसी भी प्राकृतिक कीट नियंत्रण का उद्देश्य, पर्यावरण के मौजूदा स्वरूप के पारिस्थितिक संतुलन को कम से कम हानि पहुंचाते हुए कीटों को समाप्त करना होता है।[1]

प्रजनन क्षेत्रों का उन्मूलन

उचित अपशिष्ट प्रबंधन और रुके हुए पानी की उचित निकासी, कई कीटों के प्रजनन क्षेत्रों के उन्मूलन में सहायक होता है।

कचरा कई अवांछित जीवों के लिए आश्रय और भोजन के साथ-साथ एक ऐसा स्थान भी उपलब्ध करता है जहां पानी भी पानी जमा होकर मच्छरों के प्रजनन स्थान का काम कर सकता है। उचित कचरा संग्रहण और निपटान वाले समुदायों में चूहे, तिलचट्टे, मच्छरों, मक्खियों और अन्य कीटों की समस्याएं अन्य समुदायों के मुकाबले काफी कम होती हैं।

खुले नाले विभिन्न कीटों के प्रजनन के लिए पर्याप्त स्थान के रूप में कार्य करते हैं। उचित सीवर प्रणाली के माध्यम से इस समस्या का निदान किया जा सकता है।

जहरीला चारा

जहरीला चारा चूहों की आबादी को नियंत्रित करने का एक आम तरीका है, परन्तु कचरे जैसे अन्य खाद्य स्रोतों की उपस्थिति की स्थिति में यह उतना प्रभावी नहीं रह जाता है। जहरीले मांस को भेड़ियों, फसलों को हानि पहुंचाने वाले पक्षियों और अन्य प्राणियों के खिलाफ सदियों से इस्तेमाल किया जाता रहा है।

खेतों को जलाना

परंपरागत रूप से, गन्ने की कटाई के बाद खेतों को पूरी तरह जला दिया जाता है ताकि कीटों या उनके अण्डों को को नष्ट किया जा सके.

शिकार

ऐतिहासिक रूप से, कुछ यूरोपीय देशों में जब आवारा कुत्तों और बिल्लियों की संख्या काफी बढ़ जाती है तब स्थानीय लोग मिलकर सभी आवारा जानवरों को पकड़ कर मार देते हैं। कुछ देशों में, चूहे पकड़ने वालों की टीमें खेतों से चूहों को भगाती हैं और कुत्तों तथा साधारण हस्त उपकरणों की सहायता से उन्हें मार देती हैं। कुछ समुदायों द्वारा पूर्व में एक इनाम प्रणाली का भी इस्तेमाल किया जाता था, जहां शहर क्लर्क चूहे को मारने के सबूत के रूप में लाए जाने वाले प्रत्येक चूहे के सिर के बदले एक निश्चित राशि का भुगतान करता था।

जाल

घरों में पाए जाने वाले चूहों को मारने, भेड़ियों को मारने और रैकून नामक जानवर तथा आवारा कुत्तों एवं बिल्लियों को पकड़ने के लिए जालों का प्रयोग किया जाता रहा है।

जहरीला स्प्रे

विमानों, हाथ के उपकरणों, या छिड़काव उपकरण धारण करने वाले ट्रकों द्वारा जहर का छिड़काव कीट नियंत्रण का एक आम तरीका है। पूरे अमेरिका में, अक्सर शहर के अधीन ट्रकों को सप्ताह में एकाध बार शहर के प्रत्येक मोहल्ले में घुमाया जाता है और मच्छर रोधी दवाओं का छिड़काव किया जाता है। क्रॉप डस्टर सामान्यतः खेतों के ऊपर उड़ान भरते हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का सफाया करने के लिए जहरीले रसायनों का छिड़काव करते हैं। कईयों के लिए उनके यार्ड, घरों, या व्यवसाय के आसपास जहर का छिड़काव, वहां पर कीटों की आबादी को पनपने देने से कहीं अधिक अधिक वांछनीय होता है।

आकाशीय धूमन

एक परियोजना जिसके तहत किसी संरचना को ढंकने या वायुरुद्ध सीलबंद करने के बाद वहां घातक सांद्रता वाली जहरीली गैस को लंबी अवधि (24 से 72 घंटे) के लिए छोड़ा जाता है। हालांकि यह महंगी है, परन्तु आकाशीय धूमन प्रक्रिया कीट जीवन-चक्र के सभी चरणों को लक्षित करती है।[2]

आकाशीय उपचार

एक दीर्घकालिक परियोजना जिसमें छिड़काव के एप्लिकेटर शामिल होते हैं। किसी संरचना के भीतरी वातावरण में तरल कीटनाशक को छोड़ा जाता है। इस उपचार के लिए पूर्ण निकासी या इमारत की वायुरुद्ध सीलबंदी की आवश्यकता नहीं होती है जिससे इमारत के भीतर का अधिकांश कार्य जारी रह सकता है लेकिन यह प्रक्रिया उतना प्रभावी नहीं होती है। सामान्यतः संपर्क कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे दीर्घकालिक अवशिष्ट प्रभाव भी न्यूनतम ही रहता है। 10 अगस्त 1973 को फेडरल रजिस्टर ने आकाशीय उपचार के लिए अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए)[2] द्वारा परिभाषित परिभाषा को प्रकाशित किया:

the dispersal of insecticides into the air by foggers, misters, aerosol devices or vapor dispensers for control of flying insects and exposed crawling insects

जीवाणुमुक्‍त बनाना

1970 के दशक की शुरुआत में U-5897 (3-क्लोरो-1, 2-प्रोपेनेडियोल) के साथ प्रयोगशाला अध्ययन किये गए थे जो असफल साबित हुए थे।[3] जीवाणुनाशन चारे पर शोध जारी है।

सॉइल स्टीमिंग भूमि को जीवाणु मुक्त बनाने का एक अन्य प्रभावी तरीका है। इसके तहत मिटटी में गर्म भाप को डालकर कीटों का सफाया किया जाता है।

संक्रमित पौधों का विनाश

यदि कीटों की प्रजातियों के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक समझा जाए, तो वन सेवाओं के अधिकारी कभी कभी संक्रमित क्षेत्र के सभी वृक्षों को नष्ट कर देते हैं। कुछ कीटों से संक्रमित खेतों को पूरी तरह जला दिया जाता है, ताकि कीटों के प्रसार को प्रभावी रूप से रोका जा सके.

प्राकृतिक कृंतक नियंत्रण

कई वन्यजीव पुनर्वास संगठन कृंतक नियंत्रण के प्राकृतिक तरीकों को बढ़ावा देते हैं, जिसमें अपवर्जन तथा परभक्षियों की सहायता लेना शामिल होता है और जिससे द्वितीयक विषाक्तता को पूर्णतया रोकने में मदद मिलती है।[4]

संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी इससे सहमत है; नौ प्रकार के कृंतकों के जोखिम को कम करने के लिए उसके द्वारा प्रस्तावित निर्णय में कहा गया है कि, "निवास स्थानों में ऐसे संशोधन किये बिना जिनके द्वारा उन क्षेत्रों को कृंतकों के लिए कम आकर्षित बनाया जा सके, कृंतकों का उन्मूलन भी उनकी नयी आबादी को उस क्षेत्र में पुनः बसने से रोकने में नाकामयाब ही रहेगा."[5]

निरोधक

  • एबीस बलसामिया वृक्ष से प्राप्त होने वाला बलसाम फर तेल, एक इपीए द्वारा अनुमोदित गैर विषाक्त कृंतक निरोधक है। [2]
  • एकासिया पॉलीएकान्था सब्स्प. केम्पाईलेका (Acacia polyacantha subsp. campylacantha) न्था की जड़ से निकलने वाले रासायनिक यौगिक मगरमच्छ, सांप तथा चूहों जैसे जानवरों को दूर रखने में मदद करते हैं।[6]सल, नहीरासायनिक कीटनाशक का प्रयोग ये सूक्ष्मजीव बचा फसल में कीटों से बचाव के लिए किसान रासायनिक कीटनाशी का छिड़काव करते हैं, जो वातावरण और इंसानों के लिए खतरनाक होते है। साथ ही धीरे-धीरे इन कीटनाशकों का असर भी कम होने लगा है। ऐसे में किसान हानिकारक कीटों से बचाव के लिए सूक्ष्म जैविक प्रबंधन कर सकते हैं। सूक्ष्म जैविक कीट प्रबंधन एक प्राकृतिक पारिस्थितिक घटना चक्र है, जिसमे नाशीजीवों के प्रबंधन में सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है और यह एक संतुलित, स्थाई और किफायती कीट प्रबंधन का साधन हो सकता है। सूक्ष्म जीवियों से नाशीजीवों का नियंत्रण सूक्ष्म-जैविक प्रबंधन कहलाता है। यह जैविक प्रबंधन का नया पहलू है, जिसमें नाशीजीवों के रोगाणुओं का उपयोग उनके नियंत्रण के लिए किया जाता है। केंद्रीय नाशीजीवी प्रबंधन संस्थान के कृषि विशेषज्ञ राजीव कुमार बता रहे हैं कैसे ये मददगार साबित हो सकते हैं। प्रकृति में बहुत से ऐसे सूक्ष्मजीव हैं, जैसे विषाणु, जीवाणु व फफूंद आदि जो शत्रु कीटों में रोग उत्पन्न कर उन्हें नष्ट कर देते हैं, इन्ही विषाणु, जीवाणु और फफूंद आदि को वैज्ञानिकों ने पहचान कर प्रयोगशाला में इन का बहुगुणन किया और प्रयोग के लिए उपलब्ध करा रहे है, जिनका प्रयोग कर किसान लाभ ले सकते हैं। जीवाणु (बैक्टीरिया) मित्र जीवाणु प्रकृति में स्वतंत्र रूप से भी पाए जाते हैं, लेकिन उनके उपयोग को सरल बनाने के लिए इन्हें प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से तैयार करके बाजार में पहुचाया जाता है, जिससे कि इनके उपयोग से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों से बचाया जा सकता है। बैसिलस थुरिंजिनिसिस : यह एक बैक्टीरिया आधारित जैविक कीटनाशक है, इसके प्रोटीन निर्मित क्रिस्टल में कीटनाशक गुण पाए जाते है, जो कि कीट के आमाशय का घातक जहर है। यह लेपिडोपटेरा और कोलिओपटेरा वर्ग की सुंडियों की 90 से ज्यादा प्रजातियों पर प्रभावी है। इसके प्रभाव से सुंडियों के मुखांग में लकवा हो जाता है, जिससे की सुंडियों खाना छोड़ देती हैं और सुस्त हो जाती है, और 4-5 दिन में मर जाती हैं। यह जैविक, सुंडी की प्रथम और द्वितीय अवस्था पर अधिक प्रभावशाली है। इनकी चार अन्य प्रजातियां बेसिलस पोपुली, बेसिलस स्फेरिक्स, बेसिलस मोरिटी, बेसिलस लेंतीमोर्बस भी कीट प्रबंधन के लिए पाई गई है। प्रयोग: यह एक विकल्पी जीवाणु है, जो विभिन्न फसलों में नुकसान पहुचाने वाले शत्रु कीटों जैसे चने की सुंडी, तम्बाकू की सुंडी, सेमिलूपर, लाल बालदार सुंडी, सैनिक कीट एवं डायमंड बैक मोथ आदि के विरुद्ध एक किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर अच्छा परिणाम मिलता है। ये भी पढ़ें : हर दिन करें खेत की निगरानी, कीट और रोगों से फसल रहेगी सुरक्षित विशेषता : बी.टी. के छिड़काव के लिए समय का चयन इस प्रकार करना चाहिए कि जब सुंडी अण्डों से निकल रही हों। जैविक कीटनाशकों को घोल में स्टीकर व स्प्रेडर मिलाकर प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। इस जैविक कीटनाशक को 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर भंडारित नहीं करना चाहिए। इस जैविक कीटनाशक को पहले थोड़े पानी में घोलकर फिर आवश्यक मात्रा में पाउडर मिलाकर घोल बनाये और इसका छिड़काव शाम के समय करना चाहिए। उपलब्धता:- यह बाज़ार में मैजिक किलर के नाम से उपलब्ध हैं वायरस न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस (एनपीवी) : यह एक प्राकृतिक रूप से मौजूद वायरस पर आधारित सूक्ष्म जैविक है। वे सूक्ष्म जीवी जो केवल न्यूक्लिक एसिड व प्रोटीन के बने होते हैं, वायरस कहलाते हैं। यह कीट की प्रजाति विशेष के लिए कारगर होता हैं। चने की सुंडी के लिए एनपीवी व तम्बाकू की सुंडी के लिए एनपीवी का प्रयोग किया जाता है। प्रयोग : कीट प्रबंधन के लिए प्रयुक्त इन वायरसों से प्रभावित पत्ती को खाने से सुंडी 4-7 दिन के अन्तराल में मर जाती है। सबसे पहले संक्रमित सुंडी सुस्त हो जाती है, खाना छोड़ देती है। सुंडी पहले सफ़ेद रंग में परिवर्तित होती है और बाद में काले रंग में बदल जाती है और पत्ती पर उलटी लटक जाती है। इस जैविक उत्पाद को 250 एल.ई. प्रति हैक्टेयर की मात्रा से आवश्यक पानी में मिलाकर फसल में शाम के समय छिड़काव करें, जब हानि पहुंचाने वाले कीटों के अंडो से सुंडिया निकलने का समय हो। इस घोल में दो किलो गुड़ भी मिलाकर प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं। ग्रेनुलोसिस वायरस : इस सूक्ष्मजैविक वायरस का प्रयोग सूखे मेवों के भण्डार कीटों, गन्ने की अगेता तनाछेदक, इन्टरनोड़ बोरर और गोभी की सुंडी से बचने के लिए किया जाता है। यह विषाणु संक्रमित भोजन के माध्यम से कीट के मुख में प्रवेश करता है और मध्य उदर की कोशिकाओं को संक्रमित करते हुये इन कोशिकाओं में वृद्धि करता है और अंत में कीट के अन्य अंगो को प्रभावित करके उसके जीवन चक्र को प्रभावित करता है। कीट की मृत्यु पर विषाणु वातवरण में फैलकर अन्य कीटों को संक्रमित करते हैं। प्रयोग : गन्ने और गोभी की फसल में कीट प्रबंधन के लिए एक किलोग्राम पाउडर लो 100 लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करने से रोकथाम में सहायता मिलती है। फफूंदी कीट प्रबंधन में फफूंदियों का प्रमुख स्थान है। आजकल मित्र फफूंदी बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, जिनकों किसान खरीद कर आसानी से अपनी फसलों में प्रयोग कर सकते हैं। प्रमुख फफूंदियों का विवरण इस प्रकार है : बिवेरिया बेसियाना : कीट के संपर्क में आते ही इस फफूंदी के स्पोर त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर अपनी संख्या में वृद्धि करते है, जिसके प्रभाव से कीट कुछ दिनों बाद ही लकवा ग्रस्त हो जाता है और अंत में मर जाता है | मृत कीट सफ़ेद रंग की मम्मी में तब्दील हो जाता है। मेटारीजियम एनीसोपली : यह बहुत ही उपयोगी जैविक फफूंदी है, जो कि दीमक, ग्रासहोपर, प्लांट होपर, वुली एफिड, बग और बीटल आदि के करीब 300 कीट प्रजातियों के विरुद्ध उपयोग में लाया जाता है। इस फफूंदी के स्पोर पर्याप्त नमी में कीट के शरीर पर अंकुरित हो जाते है जो त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करके वृद्धि करते हैं। यह फफूंदी परपोषी कीट के शरीर को खा जाती है और जब कीट मरता है तो पहले कीट के शरीर के जोंड़ो पर सफ़ेद रंग की फफूंद होती है जो कि बाद में गहरे हरे रंग में बदल जाती है। मित्र फफूंदियों को प्रयोग करने की विधि : मित्र फफूंदियों की 750 ग्राम मात्रा को स्टिकर एजेंट के साथ 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्रफल में सुबह अथवा शाम के समय छिड़काव करने के आशा अनुकूल असर दिखाई पड़ता है। सफ़ेद गिडार के नियंत्रण के लिए 1800 ग्रा. दवाई को 400 ली.पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। मित्र सुत्रकृमी कीटहारी सुत्रकृमियों की कुछ प्रजातियां कीटों के ऊपर परजीवी रहकर उन्हें नष्ट कर देती हैँ। कुछ सुत्रकृमियों जीवाणुओं के साथ सह-जीवन व्यतीत करते है, जो सामूहिक रूप से कीट नियंत्रण में उपयोगी है। सुत्रकृमी डी.डी.136 को धान, गन्ना तथा फलदार वृक्षों के विभिन्न नुकसान पहुँचाने वाले कीटों के नियंत्रण हेतु सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। सूक्ष्म जैविक रोग नाशक: ट्राईकोडर्मा : यह एक प्रकार की मित्र फफूंदी है जो खेती को नुकसान पहुंचाने वाली हानिकारक फफूंदी को नष्ट करती है। ट्राईकोडर्मा के प्रयोग से विभिन्न प्रकार की दलहनी, तिलहनी, कपास, सब्जियों एवं विभिन्न फसलों में पाए जाने वाली मृदाजनित रोग जैसे-उकठा, जड़ गलन, कालर सडन, आद्रपतन कन्द् सडन आदि बीमारियों को सफलतापूर्वक रोकती है। ट्राईकोडर्मा उत्पाद ट्राईकोडर्मा की लगभग छह प्रजातियां उपलब्ध हैं। लेकिन केवल दो प्रजातियां ही जैसे-ट्राईकोडर्मा विरडी एवं ट्राईकोडर्मा हर्जियानम मिट्टी में बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं। उपलब्धता : यह बाज़ार मे myco Shakti के नाम से भी उपलब्ध हैं बीज शोधन: बीज उपचार के लिए 5 से 10 ग्राम पाउडर प्रति किलो बीज में मिलाया जाता है। परन्तु सब्जियों के बीज के लिए यह मात्रा पांच ग्राम प्रति 100 ग्राम बीज के हिसाब से उपयोग में लाई जाती है। न्यूमेरिया रिलाई : यह भी एक प्रकार का फफूंद है जो कीटों में रोग पैदा कर उन्हें नष्ट कर देता है। यह सभी प्रकार के लेपिडोपटेरा समूह के कीटों को प्रभावित करता है, लेकिन यह चना, अरहर के हेलिकोवर्पा आर्मिजेरा, सैनिक कीट, गोभी एवं तम्बाकू की स्पोडोप्टेरा लिटुरा तथा सेमी लूपर कीट को विशेष रूप से प्रभावित करता है। कार्य पद्धति: फफूंद के बीजाणु छिड़काव के के बाद कीटों के शरीर पर चिपक जाते हैं। फसल पर पड़े फफूंद के संपर्क में आने पर यह जैव क्रिया कर कीटों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं वहां यह कीट के शरीर को तरल तत्व पर अपना विकास कर कवक जाल फैलता है और उन्हें मृत कर देता है। प्रयोग विधि: इस फफूंद के पाउडर के छह भाग को 100 लीटर पानी में घोलकर संध्या काल में इस प्रकार से छिडकाव करे कि पूरी फसल अच्छी तरह से भीग जाए। सुक्ष्जीवों के प्रयोग में सावधानियां : सुक्ष्जीवियों पर सूर्य की परा-बैगनी (अल्ट्रा-वायलेट) किरणों का विपरीत प्रभाव पड़ता है, अत: इनका प्रयोग संध्या काल में करना उचित होता है। सूक्ष्म-जैविकों विशेष रूप से कीटनाशक फफूंदी के उचित विकास हेतु प्रयाप्त नमी एवं आर्द्रता की आवश्यकता होती है। सूक्ष्म-जैविक नियंत्रण में आवश्यक कीड़ों की संख्या एक सीमा से ऊपर होनी चाहिए। इनकी सेल्फ लाइफ कम होती है, अत: इनके प्रयोग से पूर्व उत्पादन तिथि पर अवश्य ध्यान देना चाहिए[7]

इन्हें भी देखें

  • पशु निरोधक
  • प्राकृतिक जैव नियंत्रण निर्माताओं के संघ
  • फसल पुनरावर्तन
  • रोग नियंत्रण
  • कीट निरोधक
  • इंसेक्ट्री पौधा
  • जैविक नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन
  • इनुंडेटिव आवेदन
  • आक्रामक प्रजाति
  • आम घरेलू कीट की सूची
  • पशुओं के राजनीतिक रूप से समर्थित विध्वंस की सूची
  • मच्छर नियंत्रण
  • राष्ट्रीय कीट तकनीशियनों के संघ (ब्रिटेन में)
  • कीटनाशक आवेदन
  • कीटनाशक नियंत्रण
  • जहर संकोच
  • रेडियो तरंग कीट नियंत्रण
  • चूहे को पकड़ने वाला
  • चूहादानी
  • चूहा के लिए चारा रखना
  • रिमोट नियंत्रित पशु
  • ऊसर कीट तकनीक
  • आलसी शिकार करना
  • तम्बाकू नियंत्रण
  • वन्य-जीव प्रबंधन

सन्दर्भ

  1. "Bacillus thuringienis Factsheet". Colorado State University. मूल से 6 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-02.
  2. Baur, Fred (1984). Insect Management for Food Storage and Processing. American Ass. of Cereal Chemists. पपृ॰ 133. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0913250384.
  3. [1]
  4. WildcareBayArea.org (http://www.wildcarebayarea.org/site/PageServer?pagename=TakeAction_Rodenticide Archived 2014-03-05 at the वेबैक मशीन)
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2011.
  6. "प्लांट्ज़अफ्रीका". मूल से 14 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2011.
  7. "विश्व कृषिवानिकी केन्द्र". मूल से 28 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2011.

बाहरी कड़ियाँ