कालाकांकर (रियासत)
कालाकांकर अवध का एक रियासत था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित हैं।
इतिहास
इस राजवंश का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। गोरखपुर का मझौली गांव इस राजवंश का मूल स्थान रहा है। वहां से चलकर मिर्जापुर के कान्तित परगना से होते हुए इस वंश के राय होममल्ल ने मानिकपुर से उत्तर बडग़ौ नामक स्थान पर अपना महल बनवाया था। वहीं उनका ११९३ में राज्याभिषेक हुआ। इसके काफी बाद में जब इस राजवंश के राजा हनुमत सिंह उत्तराधिकारी बने तो उन्होने कालाकाकर को अपनी राजधानी बनाने का फैसला किया।
इसी परिवार से राजा अवधेश सिंह, राजा दिनेश सिंह जैसे नामी गिरामी व्यक्ति पैदा हुए। राजा दिनेश सिंह आजादी के बाद लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहे , जबकि उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह भी प्रतापगढ से कई बार संसद सदस्य रह चुकी हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में कालाकांकर का योगदान
फिरंगियों के चंगुल से देश को आजाद कराने में जिले के कालाकांकर का भी अपना एक इतिहास है। यहां महात्मा गाँधी ने खुद विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों तक क्रांति की आवाज पहुंचाने के लिए हिन्दी अखबार ‘हिन्दोस्थान’ कालाकांकर से ही निकाला गया था। इसमें आजादी की लड़ाई और अंग्रेजों के अत्याचार से संबंधित खबरों को प्रकाशित कर लोगों को जगाने का काम शुरू हुआ। इस तरह यहां की धरती ने स्वतंत्रता की लड़ाई में पत्रकारिता के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा। कुंडा तहसील में स्थित कालाकांकर प्राथमिक विद्यालय के पास जवाहर लाल नेहरू बाल क्रीड़ा स्थल है। ‘कालाकांकर और भारत स्वतंत्रता संघर्ष १८५७ से १९४७ तक’ नामक किताब के मुताबिक क्रीड़ास्थल पर एक चबूतरा था, जो आज भी है। आजादी की लड़ाई के समय महात्मा गांधी १४ नवम्बर १९२९ को कालाकांकर पहुंचे। उन्होंने उसी चबूतरे पर शाम के वक्त सभा की। जिसमें अंग्रेजी ताकतों का खुलकर विरोध करने का निर्णय लिया गया। इसी दिन गांधीजी ने चबूतरे पर ही विदेशी कपड़े एकत्र कराया। विदेशी कपड़ों को आजादी के दीवाने आसपास के क्षेत्रों से भी बैलगाड़ी पर लाद कर वहां इकट्ठा किए। उन कपड़ों के ढेर की होली जलाकर गांधीजी ने अंग्रेजों का विरोध किया था। जानकार बताते हैं कि बाद में जिस लकड़ी से कपड़ों को जलाया गया उस जमाने में उसकी ५०० में नीलामी हुई थी। कालाकांकर के इस इतिहास को आज बच्चे भले न जान रहे हों पर बुजुर्गों के दिमाग में ये बातें अब भी मीठे सपनों की तरह घूम रही हैं। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह आजादी के समय ‘हिन्दोस्थान’ नामक हिन्दी अखबार निकाला। जिसमें अंग्रेजों के अत्याचार की खबर छापकर जनता को जागरूक करने का काम किया गया। किताब में लिखा गया है कि कालाकांकर गंगापार ‘अब कौशाम्बी’ जिले के सिराथू स्टेशन पर हर रोज वह अखबार भेजा जाता था। वहां से ट्रेन के जरिए इलाहाबाद, कलकत्ता, कानपुर सहित अन्य शहरों व क्षेत्रों में अखबार का वितरण होता था। राजा दिनेश सिंह ने उस वक्त राउंड द टेबल नामक अंग्रेजी अखबार निकाला था। ‘कालाकांकर और भारत स्वतंत्रता संघर्ष १८५७ से १९४७ तक’ नामक किताब में कालाकांकर के कई ऐतिहासिक पहलू मिलते हैं। किताब में लिखा गया है कि विदेशी कपड़ों की होली जलाने के दूसरे दिन १५ नवम्बर १९५९ को गांधीजी ने राजभवन पर तिरंगा फहराया था। उस स्थल पर आज भी १४ नवम्बर को मेला लगता है।[1]
१८५७ की क्रांति
इसी रियासत के लाल प्रताप सिंह आजादी के आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका निभानेवाली प्रतापगढ़ के कालाकांकर राज के जयेष्ट युवराज थे। वे कालाकांकर नरेश राजा हनुमंत सिंह के पुत्र थे। उस जमाने की सबसे कठिन लड़ाइयों में एक चांदा की लड़ाई में वह अंग्रेजों से बहुत वीरता से टक्कर लेते हुए १९ फ़रवरी १८५८ को शहीद हुए थे।[2] १९ फ़रवरी २००९ को भारतीय डाक विभाग ने लाल प्रताप सिंह पर एक डाक टिकट और प्रथम दिवस आवरण जारी किया।[3]
कालाकांकर में महात्मा गाँधी का दौरा
14 नवम्बर 1929 को महात्मा गांधी कालाकांकर आये थे और उन्होंने कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के साथ गांधी चबूतरे पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वहां गांधी चबूतरा अभी भी मौजूद है।[4]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "कालाकांकर में गांधीजी ने जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली". अमर उजाला. मूल से 6 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 सितंबर 2014.
- ↑ "Kalakankar pricely state". members.iinet.net.au. मूल से 31 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Lal Pratap Singh". indiapost.gov.in. मूल से 14 अगस्त 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 फ़रवरी 2013.
- ↑ "'बापू' ने कालाकांकर में जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली". जागरण न्यूज़. ०१ अक्टूबर २०१२. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 सितंबर 2014.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)