कारखानों का निर्माण एवं उनकी योजना
बड़े-बड़े कारखानों के लिए छाजनदार विस्तृत स्थान की आवश्यकता पड़ती है जिसमें बड़ी-बड़ी मशीनें रखी जा सकें तथा काम करनेवाले सब आदमी सुविधापूर्वक कार्य कर सकें। क्रेन इत्यादि से भारी सामान पहुँचाने के लिए कमरे पर्याप्त ऊँचे तथा चौड़े भी रखने पड़ते हैं। कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक प्रकाश मिल सके (जिससे बिजली का खर्च कम हो) और प्रकाश भी ऐसा हो जिसके द्वारा गहरी परछाई न पड़े, इसकी भी व्यवस्था रहनी चाहिए।
कारखानों के निर्माण में बड़े-बड़े तथा ऊँचे कमरे बनाना प्राय: आवश्यक ही होता है। बीच में दीवार या पाया देने से रुकावट न पड़े, इसलिए छत अधिकतर बड़ी-बड़ी कैंचियों पर रखी जाती है। इसलिए अधिकांश छतें लोहे या ऐसबेस्टस की चादर की बनाई जाती है जिसमें उत्तरीय प्रकाश का भी प्रबंध करना पड़ता है। उत्तरीय प्रकाश से अभिप्राय यह है कि कमरों की दिशा ऐसी रखी जाती है कि उत्तर दिशा में कैची में खड़ा ढाँचा देकर शीशा जड़ देने से आकाश से, उत्तर दिशा से, छत द्वारा कमरे में प्रकाश आता है। प्रात:काल से सायंकाल तक उत्तर दिशा में प्रकाश की त्व्रीाता में अधिक परिवर्तन नहीं होता। अत: कमरे में भी प्रात: से सायं तक ऊपर से प्राय: समान प्रकाश आता है, जिससे परछाइर्ं नहीं पड़ती। अधिक प्रकाश आने के लिए शीशे की खिड़कियाँ भी बड़ी रखी जाती हैं।
कैंची प्राय: ८-१० फुट की दूरी पर एक दूसरे के समानांतर रखी जाती है। अत: यदि लंबाई की दिशा में स्थान की कमी न हो तो वांछित लंबाई का कमरा बनाया जा सकता है। अपेक्षित चौड़ाई के लिए कैची बहुत भारी और महँगी पड़े तो बीच में पायों की पंक्ति देकर दूसरी कैचियों की पंक्ति भी रखी जा सकती है, अथवा कोई दूसरा कमरा बनाया जा सकता है।
मशीनों के चलने से पृथ्वी में होनेवाले कंपन के कारण दीवारों को धमक पहुँचती है, जिससे कमजोर दीवारों के ढह जाने का भय रहता है। दूसरे, कारखानों की दीवारें बहुत कड़ी होती हैं और उनपर बोझ भी बहुत अधिक रहता है। तीसरे, आधी चलने के समय हवा की दाब सहने की क्षमता भी उनमें होनी चाहिए। इन्हीं कारणों से कारखानों की दीवारें साधारण मकानों की दीवारों से अधिक पुष्ट बनाई जाती हैं।
कारखानों का फ़र्श बहुत चिकना नहीं होना चाहिए, जिससे काम करनेवालों के फिसलने का डर न रहे। वैसे भी, फर्श अधिक कड़ा और दृढ़ होना चाहिए, जिससे मशीनों की घड़घड़ाहट तथा भारी सामान के बोझ से क्षति न पहुँचे। फर्श की पुष्टता बढ़ाने के लिए सीमेंट में कंक्रीट की मात्रा बढ़ा दी जाती है, अथवा सोडियम सिलिकेट या आइरोनाइट का उपयोग किया जाता है।
कारखानों में भीतर की गंदी तथा गीली हवा बदलने के लिए हवा बाहर फेंकनेवाले बिजली के पंखे छत के पास लगाए जाते हैं। इस प्रकार भीतर की गरम तथा गीली हवा बराबर शुद्ध हवा द्वारा बदलती रहती है।
कारखाने में सामान इत्यादि की चोरी रोकने के निमित्त तथा कर्मियों को बिना आज्ञा के भीतर बाहर आने जाने से रोकने के लिए कई द्वारों के स्थान पर एक ही बड़ा द्वार बनाया जाता है, जिसपर प्राय: चौकीदार रहता है। इस द्वार के अतिरिक्त आग लगने पर बच निकलने के लिए दूसरी ओर भी एक अन्य द्वार लगा देना आवश्यक है।
कारखाने की मशीनों की घड़घड़ाहट के कारण बहुत अधिक शोर और आवाज होती है, इसलिए कारखाने को बस्ती से अलग नगर के एक किनारे पर रखना चाहिए। बहुत से कारखानों में चिमनी से निकलनेवाला धुआँ भी विषाक्त गैस से भरा रहता है। इनसे बचने के हेतु भी कारखाने को आबादी से हटकर ही बनाना चाहिए।
बड़े-बड़े कारखानों के निर्माण के लिए स्थान चुनते समय इस बात पर विचार कर लेना चाहिए कि पानी और बिजली पर्याप्त मात्रा में और सुविधापूर्वक मिल सके। इसके अतिरिक्त गंदे पानी इत्यादि की निकासी भी समुचि और सस्ते उपयों से हो सके।
कारखाने का स्थान नियत करते समय यह भी विचार रखना चाहिए कि पास में कच्चा माल उपयुक्त मात्रा में तथा मजदूर उचित मूल्य पर मिल जाएँगे कि नहीं। जमीन के चुनाव के समय पानी तथा मिट्टी की जाँच भी इस विचार से करनी चाहिए कि पानी शुद्ध है तथा भूमि के नीचे की परत बहुत ऊँची तो नहीं है और नींव डालने के लिए मिट्टी यथेष्ट दृढ़ है।
अत: कारखाने के निर्माण के लिए उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त स्थान चुनते समय यह बात भी दृष्टि में रहे कि भविष्य में कारखाने के विस्तार के लिए पर्याप्त भूमि भी सरलता से और सस्ते दाम में मिल सके। यदि कारखाना मालिक बड़ा पूँजीपति हो तो प्रारंभ में ही अधिक जमीन खरीद लेना उचित होगा।