कानिफनाथ
इनके गुरु जालअंदर नाथ थे कनीफा नाथ क़ो कृष्णपाद के नाम से भी जाना जाता है कोई इनको कर्नाटक का मानता है तो कोई उड़ीसा का जालंधर ओर कनिफा नाथ कापालिक मत के प्राव्रतक थे कापालिकऔ की साधना इस्त्रीयों के योग से होती है महाराष्ट्र के शाहादरी पर्वत श्रकला मे गर्बगिरी पर्वत से बहने वाली पोनागिरी नदी के पास ऊंचे कीले पर मढ़ी नामक गांव बसा हुआ है यही इस महान संत की समाधि है कनिफा नाथ ने 1710 मे फाल्गुन मास की वैद पंचमी पर समाधि ली कनिफा नाथ सम्प्रदाय के एक योगी थे। उनके द्वारा प्रवर्तित योग मत हेवज्र साधना और शैव योग साधना का समन्वय है। यह नाथ पन्थ में वामार्ग के रूप में कहा जाता है। कानिफनाथ जी को कानिपा, कानपा, कान्हपा, कान्हपाद, करनिपा, कानेरी पाद आदि अनेक उपनामों से जाना जाता है।
एक मान्यता के अनुसार कानिफनाथ हिमालय में एक हथिनी के कान से प्रकट हुए थे इनको कृष्णपाद नाम से भी जाना जाता है। यह जालन्धर नाथ जी के प्रधान शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरु से हेवज्र सिद्धांत का ज्ञान प्राप्त किया था। कृष्णपाद की एक शिष्या का नाम -मेखला था। वज्रयान सम्प्रदाय में मेखला को बहुत सम्मान प्राप्त है। दूसरी शिष्या का नाम- कनखल है। इनके एक शिष्य- अचिति थे। भदली भी कान्हपा के एक शिष्य थे। कानिपा सिद्ध पुरुष जालन्धर नाथ जी के सिद्धांत और योग ज्ञान के प्रकाश में सहजानंद में महा सुख का साक्षात्कार किया।
कृष्ण पाद की प्रेरणा नाथ योग के सिद्धांतों से पोषिता थी, विरोधी नहीं। कृष्ण पाद कपालिक की अपेक्षा शैव योगी अधिक थे। यद्यपि उनकी आरम्भिक साधना कपालिक मत और तंत्र साधना ,हेवज्र साधना से प्रभावित थी। यह नवनारायन के प्रबुद्ध नारायन अवतार माने जाते हैं। यह निर्विवाद है कि ये जीवन्मुक्त , अमरकाय और सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कालदण्ड का खंडन कर विचरण करते रहते हैं। सिद्ध देह से यह विक्रमीय 11 वीं शती में विद्धमान थे।कान्हपा के गुरु जालन्धर नाथ , नाथ पन्थी योगी थे। इसलिये कानिपा का नाथ पन्थी होने में कोई संदेह नहीं है। कान्हपा का नाम नवनाथों की सूचियों में अंकित है। प्रबुद्ध नारायण के रूप में कृष्णपाद मान्य है।