काकतीय वंश
काकतीय वंश | |||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
1000[1]–1326 | |||||||||||||||||||
![]() काकतीय का नक्शा, लगभग 1000-1326 CE.[2] | |||||||||||||||||||
Status | Empire (पश्चिमी चालुक्य के अधीन 1163 तक) | ||||||||||||||||||
राजधानी | ओरुगल्लू (वारंगल) | ||||||||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | तेलुगू, संस्कृत, कन्नडा[3] | ||||||||||||||||||
धर्म | गोंडी धर्म | ||||||||||||||||||
सरकार | साम्राज्य | ||||||||||||||||||
King | |||||||||||||||||||
इतिहास | |||||||||||||||||||
• Earliest rulers | ल. 800 | ||||||||||||||||||
• स्थापित | 1000[1] | ||||||||||||||||||
• अंत | 1326 | ||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||
अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/7/76/Ramappa1.jpg/300px-Ramappa1.jpg)
११९० ई. के बाद जब कल्याण के चालुक्यों का साम्राज्य टूटकर बिखर गया तब उसके एक भाग के स्वामी वारंगल के मूलतः गोंड ट्राइब (काकतीय) हुए; दूसरे के द्वारसमुद्र के होएसल और तीसरे के देवगिरि के यादव हुए। स्वाभाविक ही यह भूमि काकतीयों के अन्य शक्तियों से संघर्ष का कारण बन गई। काकतीयों की शक्ति प्रोलराज द्वितीय के समय विशेष बढ़ी। उसके पौत्र गणपति ने दक्षिण में कांची तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गणपति की कन्या रुद्रंमा इतिहास में प्रसिद्ध हो गई है। उसकी शासननीति के प्रभाव से काकतीय साम्राज्य की समुन्नति हुई। वेनिस के यात्री मार्को पोलो ने रुद्रंमा की बड़ी सराहना की है।
काकतीय युग ने वास्तुकला की एक विशिष्ट शैली के विकास को भी देखा, जिसने मौजूदा तरीकों में सुधार और नवाचार किया।[4] सबसे उल्लेखनीय उदाहरण हनमकोंडा में हजार स्तंभ मंदिर, पालमपेट में रामप्पा मंदिर, वारंगल किला, गोलकुंडा किला और घनपुर में कोटा गुल्लू हैं।
परिचय
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/31/Koh-i-Noor_old_version_copy.jpg/300px-Koh-i-Noor_old_version_copy.jpg)
प्रतापरुद्रेव प्रथम और द्वितीय, काकतीय राजाओं, को दिल्ली के सुल्तानों से भी संघर्ष करना पड़ा। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा भेजी सेना को १३०३ ई. में काकतीय प्रतापरुद्रदेव से हारकर लौटना पड़ा। चार वर्ष बाद यादवों द्वारा पराजित करवे से उत्साहित होकर मुसलमान फिर काकतीय नरेश पर चढ़ आए। सुल्तान का उद्देश्य वारंगल के राज्य को दिल्ली की सल्तनत में मिलाना न था–उस दूर के राज्य का, दूरी के ही कारण, समुचित शासन भी दिल्ली से संभव न था–वह तो मात्र प्रतापरुद्रदेव द्वारा अपना आधिपत्य स्वीकार कराना और उसका अमित धन स्वायत्त करना चाहता था। उसने अपने सेनापति मलिक काफूर को आदेश भी दिया कि यदि काकतीय राजा उसकी शर्तें मान लें तो उसे वह बहुत परेशान न करे। प्रतापरुद्रदेव ने वारंगल के किले में बैठकर मलिक काफूर का सामना किया। सफल घेरा डाल काफूर ने काकतीय नरेश को १३१० में संधि करने पर मजबूर किया। मलिक काफूर को काककीय राजा से भेंट में १०० हाथी, ७,००० घोड़े और अनंत रत्न तथा ढाले हुए सिक्के मिले। इसके अतिरिक्त राजा ने दिल्ली के सुल्तान को वार्षिक कर देना भी स्वीकार किया। अलाउद्दीन की मृत्यु पर फैली अराजकता के समय प्रतापरुद्रदेव द्वितीय ने वार्षिक कर देना बंद कर दिया और अपने राज्य की सीमाएँ भी पर्याप्त बढ़ा लीं। शीघ्र ही तुग्लक वंश के पहले सुल्तान गयासुद्दीन ने अपने बेटे मुहम्मद जौना को सेना देकर वारंगल जीतने भेजा। जौना ने वारंगल के किले पर घेरा डाल दिया और हिंदुओं ने जी तोड़कर उसका सामना किया तो उसे बाध्य होकर दिल्ली लौटना पड़ा। चार महीने बाद सुल्तान ने वारंगल पर फिर आक्रमण किया। घमासान युद्ध के बाद काकतीय नरेश ने अपने परिवार और सरदारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। राजा दिल्ली भेज दिया गया और काकतीय राज्य पर दिल्ली का अधिकार हो गया। जौना ने वारंगल का सुल्तानपुर नाम से नया नामकरण किया। वैसे काकतीय राज्य दिल्ली की सल्तनत में मिला तो नहीं लिया गया पर उसकी शक्ति सर्वथा टूट गई और उसके पिछले काल में राजा श्रीविहीन हो गए। वारंगल की पिछले काल की रानी रुद्रम्मा ने तेलंगाना को शक्ति तो नहीं पर शालीनता निश्चय प्रदान की जब अपनी अस्मत पर हाथ लगाने का साहस करनेवाले मुसलमान नवाब के उसने छक्के छुड़ा दिए। तेलंगाना का अधिकतर भाग निजाम के अधिकार में रहा है और उसकी राजधानी वारंगल रही है।
काकतीय शासक
- यर्रय्या या बेतराज प्रथम (इ.स. 1000 से 1050)
- प्रोलराज प्रथम (इ.स. 1050 से 1080)
- बेतराज द्वितीय (इ.स. 1080 से 1115)
- प्रोलराज द्वितीय (इ.स. 1115 से 1158)
- रुद्रदेव या प्रतापरुद्र प्रथम (इ.स. 1158 से 1197)
- महादेव और गणपति (इ.स. 1197 से 1261)
- गणपति (इ.स. 1197 से 1261)
- रुद्रम्मा (इ.स. 1261 से 1296)
- प्रतापरुद्र द्वितीय (इ.स. 1296 से 1325 या 26)
रेड्डी शासक (अर्थात काकतीय सैन्य वंश)
- प्रोलया वेमा रेड्डी (1325–1335), पहला शासक
- अनातो रेड्डी (1335–1364)
- अवेमा रेड्डी (1364–1386)
- कुमारगिरी रेड्डी (1386–1402)
- कटया वेमा रेड्डी (1395–1414)
- अल्लाडा रेड्डी (1414–1423)
- वीरभद्र रेड्डी (1423–1448), अंतिम शासक
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ Talbot 2001, पृ॰ 26.
- ↑ Schwartzberg, Joseph E. (1978). A Historical atlas of South Asia. Chicago: University of Chicago Press. पृ॰ 147, map XIV.3 (b). आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0226742210.
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
का गलत प्रयोग;SharmaShrimali1992
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ Singh, B. Satyanarayana (1999). The Art and Architecture of the Kākatīyas (अंग्रेज़ी में). Bharatiya Kala Prakashan. पपृ॰ 33, 65. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-86050-34-7.