काँस
काँस | |
---|---|
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | ऍनजिओस्पर्म |
अश्रेणीत: | मोनोकॉटिलिडॉन |
अश्रेणीत: | कॉमलिनिड |
गण: | पोअलिस |
कुल: | पोएसी |
वंश: | सॅकरम |
जाति: | ऍस. स्पॉनटेनिअम |
द्विपद नाम | |
सॅकरम स्पॉनटेनिअम |
काँस एक प्रकार की लंबी घास होती है जो कि मूलतः दक्षिण एशिया में पाई जाती है। यह घास ३ मी. तक लंबी हो जाती है। भारत, नेपाल और भूटान में हिमालय के तलहटी वाले तराई क्षेत्र में तथा बांग्लादेश में भी यह घास बाढ़ के बाद नदियों द्वारा लाई गई उर्वरक मिट्टी पर तेज़ी से क़ाबिज़ हो जाती है। यह घास भारतीय गैण्डे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण आवासीय क्षेत्र प्रदान करती है।
उपयोग
भारतीय उपमहाद्वीप में सच्चरुम स्पोंटेनियम के क्षेत्रीय नामों की संख्या काफी है, उदाहरण के लिए बंगाली/बांगला में कांस आम बात है। इसका उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है।
साहित्य में वर्णन
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में इसका उल्लेख करते हुए लिखा है -
बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥ फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥
अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्घापकाल प्रकट किया है।