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कश्मीरी भाषा

Kashmiri
کٲشُر, कॉशुर,𑆑𑆳𑆯𑆶𑆫𑇀

'कॉशुर' शब्द फारसी-अरबी लिपि, शारदा लिपि तथा देवनागरी लिपि में
उच्चारण[kəːʃur]
बोलने का  स्थानजम्मू और कश्मीर (केंद्र शासित प्रदेश) (भारत)[1]
आज़ाद कश्मीर (पाकिस्तान)
तिथि / काल 2011 census
क्षेत्रKashmir valley, Chenab valley
मातृभाषी वक्ता 6.8 million
भाषा परिवार
उपभाषा
Kashtawari (standard)
Poguli
Rambani
लिपिPerso-Arabic script (contemporary),[2]
देवनागरी लिपि (contemporary),[2]
Sharada script (ancient/liturgical)[2]
राजभाषा मान्यता
नियंत्रक संस्थाकोई संगठन नहीं
भाषा कोड
आइएसओ 639-1ks
आइएसओ 639-2kas
आइएसओ 639-3kas

कश्मीरी भाषा एक भारतीय-आर्य भाषा है जो मुख्यतः कश्मीर घाटी तथा चेनाब घाटी में बोली जाती है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में इसके बोलने वालों की संख्या लगभग 56 लाख है। पाक-अधिकृत कश्मीर में 1998 की जनगणना के अनुसार लगभग 1 लाख कश्मीरी भाषा बोलने वाले हैं। कश्मीर की वितस्ता घाटी के अतिरिक्त उत्तर में ज़ोजीला और बर्ज़ल तक तथा दक्षिण में बानहाल से परे किश्तवाड़ (जम्मू प्रान्त) की छोटी उपत्यका तक इस भाषा के बोलने वाले हैं। कश्मीरी, जम्मू प्रान्त के बानहाल, रामबन तथा भद्रवाह में भी बोली जाती है। प्रधान उपभाषा किश्तवाड़ की "कश्तवाडी" है।

कश्मीर की भाषा कश्मीरी (कोशुर) है ये कश्मीर में वर्तमान समय में बोली जाने वाली भाषा है। कश्मीरी भाषा के लिए विभिन्न लिपियों का उपयोग किया गया है, जिसमें मुख्य लिपियां हैं- शारदा, देवनागरी, रोमन और परशो-अरबी है। कश्मीर वादी के उत्तर और पश्चिम में बोली जाने वाली भाषाएँ - दर्ददी, श्रीन्या, कोहवाड़ कश्मीरी भाषा के उलट थीं। यह भाषा इण्डो-आर्यन और हिन्दुस्तानी-ईरानी भाषा के समान है।

भाषाविदों का मानना ​​है कि कश्मीर के पहाड़ों में रहने वाले पूर्व नागावासी जैसे गन्धर्व, यक्ष और किन्नर आदि ,बहुत पहले ही मूल आर्यन से अलग हो गए। इसी तरह कश्मीरी भाषा को आर्य भाषा जैसा बनने में बहुत समय लगा। नागा भाषा स्वतः ही विकसित हुई है इस सब के बावजूद, कश्मीरी भाषा ने अपनी विशिष्ट स्वर शैली को बनाए रखा और 8-9वीं शताब्दी में अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं की तरह, कई चरणों से गुजरना पड़ा।

इतिहास

तेरहवीं शताब्दी के शितिकण्ठ की महानयप्रकाश में इस भाषा की बानगी मिलती है जिसे उस समय सर्वगोचर देशभाषा कहा जाता था। वह उस समय प्राकृत की तुलना में अपभ्रंश के अधिक निकट थी। चौदहवीं शताब्दी में ललद्यद की वाणी में कश्मीरी भाषा का लालित्य देखने को मिलता है। शैव सिद्धों ने इस भाषा का उपयोग अपने तन्त्र साहित्य में किया जिसके बाद यह धीरे-धीरे साहित्य की भी भाषा बनती चली गयी।

कश्मीरी भाषा लिखने के लिए शारदा लिपि का उपयोग दसवीं शताब्दी के आसपास किया गया था। चौदहवीं शताब्दी में फारसी के कश्मीर की राजभाषा बनने के पहले कश्मीरी शारदा लिपि में लिखी जाती थी। परन्तु उसके बाद फारसी लिपि में भी कश्मीरी लिखी जाने लगी। पौराणिक कश्मीरी लिपि को केवल शारदा में लिखा गया है[4]। शारदा भाषा लिखने का तरीका स्वदेशी है, जो मूल ब्राह्मी से विकसित हुआ था। विद्वान, शासक और हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध आदि जैसे सभी धर्मों के लोग शारदा लिपि में लिखते थे। लालदा, रुपा भवानी, नन्द ऋषि और अन्य भक्ति कविता शारदा लिपि में ही लिखी गई थीं और अभी भी पुस्तकालय में इन्हे पढ़ा जा सकता हैं। इस लिपि का इस्तेमाल कश्मीरी पण्डितों द्वारा जन्म प्रमाणपत्र बनाने के लिए भी किया जाता है।

वर्त्तमान स्वरुप

वर्त्तमान में शारदा लिपि हिन्दुओं तक ही सीमित है लेकिन कश्मीरी भाषा लिखने के लिए, मुसलमान अरबी अक्षरों का उपयोग करते हैं। कश्मीरी भाषा में शारदा के अलावा, देवनागरी लिपि, रोमन और पर्शियन-अरबिक का भी इस्तेमाल किया गया है। कश्मीरी भाषा में कोशुर न्यूज़, ख़ासर भवानी टाइम्स, विभूता, मिलर आदि पत्र और पत्रिकाएँ भी शामिल हैं।

अब कश्मीरी भाषा का सॉफ़्टवेयर भी आ गया है। रोमन लिपि का कश्मीरी भाषा के लिए भी इस्तेमाल किया गया है लेकिन यह लोकप्रिय नहीं है जम्मू और कश्मीर सरकार ने भी, अब पर्शियन-अरबिक लिपि, जो अब कश्मीरी लिपि के नाम से जानी जाती है, को ही आधिकारिक लिपि माना है। व्यापक रूप से इस भाषा को प्रकाशन में उपयोग किया जाता है[5]। कुछ लोग अरबी-फारसी लिपि में कश्मीरी लिखते हैं, जो उर्दू से बहुत अलग नहीं है। कश्मीरी में, अ, आ, उ, ऊ आदि जैसे व्यंजनों के कई रूप होते हैं और व्यंजनों में दन्तुलुलिये च, ज, मराठी की तरह होते हैं, लेकिन उन्हें सामान्य लेखन में नहीं रखा जाता है।

नामकरण

कश्मीरी का स्थानीय नाम 'काशुर' है; पर 17वीं शती तक इसके लिए "भाषा" या "देशभाषा" नाम ही प्रचलित रहा। संभवतः अन्य प्रदेशों में इसे कश्मीरी भाषा के नाम से ही सूचित किया जाता रहा। ऐतिहासिक दृष्टि से इस नाम का सबसे पहला निर्देश अमीर खुसरो (13वीं शती) की नुह-सिपिह्न (सि. 3) में सिंधी, लाहौरी, तिलंगी और माबरी आदि के साथ चलता हे। स्पष्टतः यह दिशा वही है जो पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, बँगला, हिन्दी और उर्दू आदि भारतीय भाषाओं की रही है[6]

उद्भव

ग्रियर्सन ने जिन तर्कों के आधार पर कश्मीरी के "दारद" होने की परिकल्पना की थी, उन्हें फिर से परखना आवश्यक है; क्योंकि इससे भी कश्मीरी भाषा की गई गुत्थियाँ सुलझ नहीं पातीं। घोष महाप्राण के अभाव में जो दारद प्रभाव देखा गया है वह तो सिन्धी, पश्तू, पंजाबी, डोगरी के अतिरिक्त पूर्वी बँगला और राजस्थानी में भी दिखाई पड़ता है; पर क्रियापदों के संश्लेषण में कर्ता के अतिरिक्त कर्म के पुरुष, लिंग और वचन का जो स्पर्श पाया जाता है उसपर दारद भाषाएँ कोई प्रकाश नहीं डालतीं। सम्भवतः कश्मीरी भाषा "दारद" से प्रभावित तो है, पर उद्भूत नहीं।

लिपि

15वीं शती तक कश्मीरी भाषा केवल शारदा लिपि में लिखी जाती थी। बाद में फारसी लिपि का प्रचलन बढ़ता गया और अब इसी का एक अनुकूलित रूप स्थिर हो चुका है। सिरामपुर से बाइबल का सर्वप्रथम कश्मीरी अनुवाद शारदा लिपि ही में छपा था, दूसरा फारसी लिपि में और कुछ संस्करण रोमन में भी निकले। देवनागरी को अपनाने के प्रयोग भी होते रहे हैं और आजकल यह देवनागरी में भी लिखी जा रही है।

शारदा लिपि में

व्यंजन

नाम पृथक व्यंजन
𑆑𑆾𑆮𑇀 𑆑𑆑
𑆒𑇀𑆮𑆤𑆴 𑆒𑆒
𑆓𑆓𑆫𑇀 𑆓𑆓
𑆓𑆳𑆱𑆴 𑆔𑆔
𑆤𑆳𑆫𑆶𑆓𑇀 𑆕𑆕
𑆖𑆳𑆛𑆶𑆮𑇀 𑆖𑆖
𑆗𑇀𑆮𑆛𑆴𑆚𑇀 𑆗𑆗
𑆘𑆪𑆴 𑆘𑆘
𑆘𑆳𑆯𑆴𑆚𑇀 𑆙𑆙
𑆒𑇀𑆮𑆤 𑆦𑆶𑆛𑆴 𑆚𑆚
𑆃𑆫𑇀-𑆩𑆳𑆀𑆛𑆛
𑆱𑆫𑇀-𑆩𑆳𑆀𑆜𑆜
𑆝𑆶𑆝𑇀 𑆝𑆝
𑆝𑆑 𑆞𑆞
𑆤𑆳𑆤𑆓𑆶𑆫𑆴 𑆟𑆟
𑆠𑆾𑆮𑇀 𑆠𑆠
𑆡𑆳𑆯𑆴 𑆡𑆡
𑆢𑆢𑆮𑇀 𑆢𑆢
𑆢𑆷𑆚𑇀 𑆣𑆣
𑆤𑆱𑇀𑆠𑆶𑆮𑇀 𑆤𑆤
𑆥𑆝𑆶𑆫𑆴 𑆥𑆥
𑆦𑆫𑆴𑆚𑇀 𑆦𑆦
𑆧𑆶𑆧𑇀 𑆧𑆧
𑆧𑆳𑆪𑆴 𑆨𑆨
𑆩𑆾𑆮𑇀 𑆩𑆩
𑆪𑆳𑆮 𑆪𑆪
𑆫𑆑 𑆫𑆫
𑆬𑆳𑆮 𑆬𑆬
𑆧𑆝𑆶 𑆝𑆶𑆝𑇀 𑆝𑆭
𑆮𑆯𑆴 𑆮𑆮
𑆯𑆑𑆫𑇀 𑆯𑆯
𑆦𑆳𑆫𑆴 𑆰𑆰
𑆱𑆶𑆱𑇀 𑆱𑆱
𑆲𑆳𑆬 𑆲𑆲

स्वर वर्ण

नाम पृथक स्वर
𑆄𑆢𑆿 𑆃𑆃
𑆎𑆠𑆮𑇀 𑆄𑆄
𑆪𑆪𑆮𑇀 𑆪𑆼𑆅
𑆅𑆯𑆫𑆮𑇀 𑆆𑆆
𑆮𑇀𑆮𑆥𑆬𑇀 𑆮𑆾𑆇
𑆮𑇀𑆮𑆥𑆬𑇀 𑆧𑆳 𑆈𑆈
𑆉𑆤𑆮𑇀 𑆉𑆉
𑆫𑆒𑆮𑇀 𑆊𑆊
𑆬𑇀𑆪𑆪𑆮𑇀 𑆋𑆋
𑆬𑆵𑆪𑆮𑇀 𑆌𑆌
𑆠𑆬𑆮𑇀𑆪𑇀 𑆍𑆍
𑆠𑆳𑆬𑆵 𑆎𑆎
𑆮𑆶𑆜𑆾 𑆏𑆏
𑆃𑆯𑆴𑆢𑆵 𑆐𑆐
𑆃𑆝𑆴 𑆖𑆤𑆢𑇀𑆫 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆶𑆃𑆀
𑆩𑆱𑇀 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆴 𑆃𑆁𑆃𑆁
𑆢𑆾 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆴 𑆃𑆂𑆃𑆂

स्वर का निशान

नाम पृथक स्वर चिह्न स्वर का चिह्न व्यंजन प पर इंगित करता है विशेष व्यंजन पर स्वर के निशान को इंगित करने के विशिष्ट तरीके
𑆮𑆲𑆳𑆪𑇀𑆳 𑆥𑆳𑆕 = 𑆕𑆳

𑆘 = 𑆘𑆳

𑆛 = 𑆛𑆳

𑆟 = 𑆟𑆳

𑆩𑆷𑆤𑇀𑆡𑆫𑇀𑆴 𑆥𑆴
𑆃𑆫𑇀 𑆩𑆷𑆤𑇀𑆡𑆫𑇀𑆵 𑆥𑆵
𑆒𑆶𑆫𑆶𑆶 𑆥𑆶𑆑 = 𑆑𑆶

𑆓 = 𑆓𑆶

𑆙 = 𑆙𑆶

𑆚 = 𑆚𑆶

𑆝 = 𑆝𑆶

𑆠 = 𑆠𑆶

𑆨 = 𑆨𑆶

𑆫 = 𑆫𑆶

𑆯 = 𑆯𑆶

𑆃𑆫𑇀 𑆒𑆷𑆫𑆷𑆷 𑆥𑆷𑆑 = 𑆑𑆷

𑆓 = 𑆓𑆷

𑆙 = 𑆙𑆷

𑆚 = 𑆚𑆷

𑆝 = 𑆝𑆷

𑆠 = 𑆠𑆷

𑆨 = 𑆨𑆷

𑆫 = 𑆫𑆷

𑆯 = 𑆯𑆷

𑆉𑆤𑆮𑇀 𑆉𑆸 𑆥𑆸𑆑 = 𑆑𑆸
𑆫𑆒𑆮𑇀 𑆊𑆹 𑆥𑆹𑆑 = 𑆑𑆹
𑆬𑇀𑆪𑆪𑆮𑇀 𑆋𑆺 𑆥𑆺
𑆬𑆵𑆱𑆮𑇀 𑆌𑆻 𑆥𑆻
𑆲𑇀𑆮𑆁𑆝𑆷𑆼 𑆥𑆼
𑆲𑇀𑆮𑆁𑆘𑆾𑆫𑇀𑆽 𑆥𑆽
𑆃𑆑𑆶 𑆯𑇀𑆪𑆷𑆫𑆶𑆾 𑆥𑆾
𑆃𑆑𑆶𑆯𑆴 𑆮𑆲𑆳𑆪𑇀𑆿 𑆥𑆿
𑆃𑆝𑆴 𑆖𑆤𑇀𑆢𑇀𑆫 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆶𑆀 𑆥𑆀
𑆩𑆱𑇀 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆴 𑆃𑆁𑆁 𑆥𑆁
𑆢𑆾 𑆦𑇀𑆪𑆫𑆴 𑆃𑆂𑆂 𑆥𑆂

देवनागरी लिपि में

स्वर
स्वतंत्र स्वर
मात्राएँ ि
अतिरिक्त स्वर
सतंत्र स्वर
मात्राएँ
अन्य
अंअः
व्यंजन
सम्पूर्ण व्यंजन क ख ग च छ ज च़ छ़ ज़ ट ठ ड त थ द न प फ ब म य र ल व श स ह त्र

फारसी-अरबी लिपि में

कॉशुर की फारसी-अरबी वर्णमाला
ا ب پ ت ٹ ث ج چ ح خ د ڈ ذ ر ڑ ز ژ س ش ص ض ط ظ ع غ ف ق ک گ ل م ن و ھ ء ی ے

ध्वनिमाला

कश्मीरी ध्वनिमाला में कुल 46 ध्वनिम (फ़ोनीम) हैं।

स्वर : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ, अ", आ", उ", ऊ", ए", ओ";

मात्रा स्वर : इ, -उ्, -ऊ्

अनुस्वार : अं

अन्त:स्थ स्वर : य, व

व्यंजन :

क, ख, ग, ङ, च, छ, ज; च, छ़, ज़, ञ;

ट, ठ, ड, त, थ, द, न; प, फ, ब, म;

य, र, ल, व, श, स, '

इ, ई, उ, ऊ और ए के रूप पदारम्भ में यि, यी, -वु, वू और ये" हो जाते हैं। च, छ और ज़ दन्ततालव्य हैं और छ़ ज़ का महाप्राण हैं। पदान्त अ बोला नहीं जाता।

कारक

कश्मीरी कारकों में संश्लेषणात्मकता के अवशेष आज भी दिखाई पड़ते हैं; जैसे-

सु ज़ोग्न Ð। सो जनो Ð। स जनो; तिम ज़"न्य Ð। तें जने (ते जना:); त"म्य ज़"न्य Ð। तें3 जनें3 (तेन जनेन); तिमव, जन्यव Ð। तैं जनै: (तै: जनै:);

कर्म, संप्रदान, अपादान और अधिकरण में प्राय: संबंध के मूल रूप में ही परसर्ग जोड़कर काम निकाला जाता है; यद्यपि नपुंसक के अधिकरण (एफ.) में प्राचीन रूपों की झलक भी मिलती है।

संबंध कारक का मूल रूप यों है- तस ज़"निस Ð। तस्स जनस्स Ð तस्य जनस्य; तिमन ज़न्यन Ð। तेंणाँ जनेणां (तेषां जनानाम्)।

नपुंसक में- तथ गरस Ð। तद् घरस्स; रु" Ð। तम्हादो घरदो; तमि गरुक Ð। घरको (गृहक:); तमि गरि Ð। घरे (गृहे)।

क्रियापद

कश्मीरी क्रियापदों में भारतीय अर्थविशेषताओं के ऊपर बहुत ही विलक्षण प्रभाव पड़ता गया है, जिनसे कुछ विद्वानों को उनके अभारतीय होने का भ्रम भी हुआ है। लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार एक-एक धातु के सैंकड़ों रूप बनते हैं; जैसे-

वुछ (वीक्षस्व)

वुछान छु ( वीक्ष (म) मणः अस्ति) (वह देखता/देख रहा है);

वुछान छुम (वह मुझे देखता/देख रहा है);

वुछान छम (वह मुझे देखती/देख रही है।)

-छुहम (तू मुझे . . . है);

-छसथ (मैं तुम्हें. . . हूँ);

-छुसन (में उसे . . .हूँ);

वुछन (मैं उसे देखूँगा); वुछथ (मैं तुझे देखूँगा);

वुछुथ (तुमने देखा);

वुछथस (तुमने मुझे देखा)। तुमने उसके लिए देखा);

वुछथन (तुमने उसे देखा);

वुछिथ (तुमने उन्हें देखा);

वुछु"थ (तुमने उस (स्त्री) को देखा);

वुछ्यथ (तुमने उन (स्त्रियों) को देखा);

वुछुथम (तुमने मेरा/मेरे लिए देखा);

वुछ्यथम (तुमने मेरी/मेरे लिए देखीं), आदि-आदि।

क्रियापदों की यह विलक्षण प्रवृत्ति संभवत: मध्य एशियाई प्रभाव है जो खुरासान से होकर कश्मीर पहुँचा है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Ethnologue नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. Sociolinguistics. Mouton de Gruyter. मूल से 23 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-08-30.
  3. "Kashmiri: A language of India". Ethnologue. मूल से 22 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-06-02.
  4. http://www.univarta.com/news/regional/story/176976.html
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2017.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2017.

बाहरी कड़ियाँ

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