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कशेरुकदंडी भ्रूणतत्व

८-९ सप्ताह का मानव भ्रूण

प्रत्येक कशेरुकदंडी अपना जीवन एक संसेचित अंडे के रूप में प्रारंभ करता है। संसेचन की क्रिया अंडे के कोशिकाद्रव्य के भीतर एक शुक्राणु के प्रवेश करने से होती हैं। शुक्राणु का केवल सिर ही कोशिकाद्रव्य के भीतर प्रवेश करता है। यथार्थ शुक्राणु का सिर केवल केंद्रक का ही बना होता है, इसमें कोशिकाद्रव्य की मात्रा बहुत ही कम होती है। अंडे और शुक्राणु के केंद्रक का एक दूसरे से समेकन होता है। संयुक्त केंद्रक के विभाजन के साथ ही कोशिकाद्रव्य का विभाजन भी होता रहता है। संसेचन से दो कार्य सिद्ध होते हैं। एक तो इस क्रिया से नर और मादा के आनुवंशिक पदार्थ एकत्र होते हैं, दूसरे इस क्रिया से अंडे का उद्दीपन होता है जिससे एक संजटिल परंतु समन्वित विधि की एक श्रेणी आरंभ होती हैं, जिसे भ्रूणीय विकास कहते हैं।

युग्मज खंडीभवन योक की मात्रा पर निर्भर रहता है। कम योकवाले या योक रहित अंडे पूर्णभाजित (होलोब्लास्टिक, holoblastic) और योक के प्राचुर्यवाले अंडे अपूर्णभाजित (मेरोब्लास्टिक, meroblastic) होते हैं। सरीसृपों और पक्षियों के अंडे योक से परिपूर्ण के अंडे योक से परिपूर्ण होते हैं। इनमें युग्मज विभाजन की रेखा अंडे के कोशिकाद्रव्य-काय ध्रव (पोल Pole) की सीमा के आगे नहीं पहुँचती। ऐसे जंतुओं में ब्लैस्टीडर्म का विकास योक के ऊपर होता है। ऐंफ़ीबिआ में पूरा युग्मज विभाजित होता है परंतु जंतु ध्रुव (ऐनिमल पोल, animal pole) की अपेक्षा वेजिटल पोल (vegital pole) की कोशिकाएँ अधिक शीघ्रता से विभाजित होती हैं।

मानव भ्रूणोद्भव

मोरुला (Morula) और ब्लैस्ट्यूला (Blastula)

बार-बार विभाजित होने के कारण युग्मज एक कोशिका समूह में परिणत हो जाता है जिसे मोरुला कहते हैं। धीरे-धीरे मोरुला के भीतर तरल पदार्थ से भरी हुई एक गुहा उत्पन्न होती है, जिसे ब्लैस्टोसील (Blastocoele) और इस श्रेणी में भ्रुण को ब्लैस्टयूला कहते हैं।

गैस्ट्रुलेशन (Gastrulation)

एंफ़िऑक्सस (Amphioxus) में ब्लैस्टयूला की भित्ति केवल एक कोशिकास्तर की बनी होती है। इस कारण गैस्ट्रुलेशन की विधि सरल होती है। ब्लैस्टयूला की भित्ति एक विशेष स्थान पर भी भीतर की ओर बैठने लगती है, जिसे अंतर्गमन (इनवैजिनेशन, invagination) कहते हैं। ब्लैस्टोसील गुहा के भीतर भित्ति के डूबने से उत्पन्न गुहा के किनारे एक दूसरे के समीप आने लगते हैं। इस प्रकार एक छिद्र बनता है जिसे ब्लैस्टोपोर (Blastopore) कहते हैं। इस नई गुहा को, जिसमें ब्लैस्टोपोर खुलता है, आर्केंटेरॉन (Archenteron) कहते हैं। ब्लैस्टोपोर भ्रूण के पश्व भाग पर स्थित होता है।

अब दोनों प्राथमिक जननस्तर (जर्म लेअर, germ layer) स्थापित हो गए। छोटी कोशिकाओं से बना बाहरी स्तर बहिर्जनस्तर (Ectoderm Epiblast) है और आर्केटरॉन की भित्ति को बनानेवाला आंतरिक स्तर अंतर्जनस्तर (Endoderm Hypoblast) है। हाइपोब्लास्ट की कोशिकाएँ एपिब्लास्ट की कोशिकाओं से अधिक बड़ी होती हैं। ब्लैस्टयूला में ही गैस्ट्रुलेशन से ये दोनों प्रकार की कोशिकाएँ पहचानी जा सकती हैं। जंत्ध्रुाव के क्षेत्र में स्थित कोशिकाएँ आकार में छोटी और वेजिटल पोल पर स्थित कोशिकाएँ आकार में बड़ी होती हैं। पहली श्रेणी की कोशिकाओं से एपिब्लास्ट और दूसरी से हाइपोब्लास्ट बनता है। गैस्ट्रुलेशन से केवल इनके पारस्परिक स्थानीय संबंध में अंतर उत्पन्न होता है। ब्लैस्टयूला में हाइपोब्लास्ट कोशिकाओं के ऊपर की दो या तीन पंक्ति की कोशिकाएँ न्यूरल प्लेट (Neural plate) की कोशिकाएँ हैं। ये ही आगे चलकर तंत्रिका कोशिकाएँ (नर्व सेल्स, nerve cells) बन जाती हैं। अंतर्जनस्तर के किनारेवाली दो तीन पंक्तियों की कोशिकाओं से नोटोकॉर्ड (Notochord) बनता है और इन्हीं के समीप मध्यजनस्तर (मेसोडर्म, Mesoderm) की कोशिकाएँ होती हैं।

गैस्ट्रुलेशन के पश्चात्‌ आर्केटरॉन की छत पर स्थापित कोशिकाओं से नोटोकार्ड बनता है। नोटोकॉर्ड और अंतर्जनस्तर (एंडोडर्म) के बीच की कोशिकाएँ दोनों ओर खोखली धानी बनाती हैं। यह धानी मेसार्डर्म या मेसोब्लास्ट की है।

ऐसिडिऐन (Ascidian) में गैस्ट्रुलेशन का अंतर इतना ही है कि इन जंतुओं के अंडे मोजेइक होते हैं, अर्थात्‌ अंडे के प्रत्येक भाग के भविष्य का निर्णय संसेचन के पूर्व ही हो जाता है। इनके कोशिकाद्रव्य स्थानानुसार भिन्न प्रकार के होते हैं। केंद्रक के चारों ओर का कोशिकाद्रव्य कणिकामय और भूरा होता है तथा कार्टेक्स पर एक पतला स्तर कणिकामय पीले कोशिकाद्रव्य का होता है। हाइआलाइन कोशिकाद्रव्य उन कोशिकाओं में जाता है जिनका एपिब्लास्ट और न्यूरल पट्ट बनता है। भूरा कणिकामय कोशिकाद्रव्य अंतर्जनस्तर कोशिकाओं में और पीला कोशिकाद्रव्य मध्यजनस्तर कोशियों में जाता है।

मेढक में गैस्ट्रुलेशन इससे कुछ भिन्न रूप में होता है। मेढक के ब्लैस्ट्यूला में ऊपरी कोशिकाएँ छोटी और काली तथा नीचे की बड़ी-बड़ी योक से भरी हुई और रंगहीन होती है। इन ऊपरी और निचले प्रदेशों के बीच एक अंत:स्थ प्रदेश भी होता है। निचली कोशिकाओं की अपेक्षा ऊपरी भाग की कोशिकाएँ अधिक शीघ्रता से विभाजित होती हैं, फलत: ये छोटी कोशिकाएँ बड़े आकारवाली निचली कोशिकाओं के ऊपर सरक आती हैं। इस विधि को एपिबोली (Epiboly) कहते हैं। ऊपरी कोशिकाओं की संख्या तथा आकार में वृद्धि के कारण ऐसा होता है। इसके आगे अतिरिक्त और भी एक घटना होती है। भ्रुण के भावी पश्च पृष्ठ (डॉरसो पॉस्टीरियर, dorso posterior) तल पर एक ग्रूव बनती है। यह प्रारंभिक अवस्था का ब्लैस्टोपोर है। इस ग्रूव में से अनेक कोशिकाएँ भीतर की ओर चली जाती है, जिससे ग्रूव अधिक गहरा हो जाता है और एक नई गुहा उत्पन्न हो जाती है। यह गुहा आर्केटरॉन है और भ्रूण अब गैस्ट्रुला की अवस्था में है।

भ्रूण के भीतर प्रवेया करनेवाली कोशिकाएँ अंत:स्थ क्षेत्र से आती हैं। ब्लैस्ट्यूला के भीतर प्रस्तुत गुहा, ब्लैस्टोसील, इन कोशिकाओं के भीतर प्रवेश करने से और आर्केटरॉन के फैलाव के कारण दबकर आगे तथा नीचे की ओर हटने लगती है और अंत:स्थ क्षेत्र के भीतर प्रविष्ट कोशिकाएँ आर्केटरॉन की छत बनाती हैं। ब्लैस्टोपोर का ग्रूव दाहिने और बाएँ फैलता है। फिर यह ग्रूव दोनों ओर से आकर नीचे मिल जाता है और एक वृत्ताकर छिद्र का रूप धारण कर लेता है। इसी बीच निचले ध्रुव की बड़ी-बड़ी कोशिकाएँ भ्रूण के भीतरी भाग में प्रवेश कर जाती हैं। किंतु कुछ समय तक इन बड़ी कोशिकाओं का एक समूह ब्लैस्टोपोर के मुँह में स्थित रहता है जिसे योक प्लग कहते हैं। इस समय तक बलैस्टोपोल पूर्णत: लुप्त हो चुका होता है। आर्केंटरॉन की छत की कोशिकाएँ मध्यजनस्तर (मेसोडर्म) और छत के मध्य की कोशिकाएँ नोटोकॉर्ड बनाती हैं। मध्य के समीप दाएँ-बाएँ की कोशिकाओं के सोमाइट बनते हैं और दोनों किनारों की कोशिकाएँ पार्श्व पट्ट (लैटरल, प्लेट, lateral plate) बनाती हैं। आर्केंटरॉन के भूमितल की कोशिकाएँ एंडोडर्म स्तर बनाती हैं। ये कोशिकाएँ एक नालिका (ट्यूबूल, tubule) बनाती हैं। यह नरालिका (ट्यूबूल) ही आहार नाल (एलिमेंटरी कैनाल, alimentary canal) है। गैस्ट्रुलेशन के पश्चात्‌ छोटी-छोटी कोशिकाएँ अर्थात्‌ अंतर्जनस्तरीय (एंडोडर्म) कोशिकाएँ ही बाहर रह जाती हैं और मध्यजनस्तरीय तथा अंतर्जनस्तरीय कोशिकाएँ भ्रुण के भीतर स्थित हो जाती हैं।

ब्लैस्ट्यूला के विशेष भाग के अंतर्गमन (इन्वैजिनेशन, invagination) तथा उसके संभावी भाग्य का निर्णय ऐंफ़िबिया (Amphibia) की कई जातियों में किया जा चुका है। यूरोडीला (Urodela) में ब्लैस्ट्यूला के निचले ध्रुव (पोल) की कोशिकाओं का अंतर्गमन होता है और इनसे आहार नली (गट, क्रद्वद्य) बनती है। एक बालेंदु क्षेत्र में जो मध्य में चौड़ा और पीछे से दोनों ओर अत्यंत पतला होता है तथा ब्लैस्टोपोर के डॉर्सल किनारे से ऊपर स्थित होता है, भावी नोटोकॉर्ड बनाने वाला द्रव्य प्रस्तुत रहता है। बलैस्टोपोर के ऊपरी किनारे का ऊपरी क्षेत्र गैस्ट्रुला का ओष्ठ कहलाता है। इसको ऑर्गेनाइज़र (organiser) भी कहते भी कहते हैं। नोटोकॉर्ड उत्पन्न करनेवाले क्षेत्र के दाहिने और बाएँ के क्षेत्र सोमाइट (Somite) उत्पन्न करनेवाले क्षेत्र हैं। संभावी अंतर्जनस्तर (एंडोडर्म) के चारों ओर का पार्श्व पट्ट (लैटरल प्लेट, Lateral plate) मध्यजनस्तर (मेसोड) बनानेवाली कोशिकाओं का क्षेत्र है। संभावी नोटोकॉर्ड सोमाइट, पार्श्व-पट्ट-क्षेत्र के ऊपर पूँछ के मध्यजनस्तर का क्षेत्र है। इन क्षेत्रों की कोशिकाएँ अंतर्गमन के पश्चात्‌ गैस्ट्रुला के भीतर प्रवेश करती हैं। संभावी मध्यजनस्तर क्षेत्र के ऊपरी किनारे की रेखा, जो अंतर्गमन की परिसीमा भी अंकित करती है, ब्लैस्ट्यूला की मध्य रेखा के समांतर नहीं जाती। यह पृष्ठीय तल की ओर मध्य के ऊपर जाती है और प्रतिपृष्ठ (वेंट्रल, ventral) तल की ओर उसके नीचे।

अंतर्गमन की परिसीमा बनानेवाली रेखा के ऊपरी क्षेत्र का अधिकांश भाग, जो पूरा पृष्ठीय तल घेरता है और कुछ-कुछ प्रतिपृष्ठ तल की ओर झुका होता है, संभावी न्यूरल पट्ट का क्षेत्र है जिससे मस्तिष्क और मेरुरज्जु (स्पाइनल कॉर्ड spinal cord) उत्पन्न होते हैं। प्रतिपृष्ठ तल का क्षेत्र एपिडर्मिस (Epidermis) बनाता है। मेढक के ब्लैस्ट्यूला के विभिन्न क्षेत्रों का संभावी भाग्य इसी प्रकार का होता है, किंतु ब्योरे में कुछ भिन्न। सरीसृपों और पक्षियों के ब्लैस्टोडर्म (Blastoderm) के विभिन्न भागों के संभावी भाग्य का चित्र ऐंफ़िबिआ के प्रतिरूप से भिन्न होता है, परंतु इनमें कुछ समनता भी होती है। संभावी नोटोकॉर्ड के मध्यजनस्तर का क्षेत्र अग्रलिखित न्यूरल पट्ट क्षेत्र और पश्चवर्ती अंतर्जनस्तर क्षेत्र के बीच में होता है। इसके दाहिने बाएँ सोमाइटिक मध्यजनस्तर का क्षेत्र होता है। पक्षियों में संभावी अंतर्जनस्तर का क्षेत्र बहुत छाटा होता है। गैस्ट्रुलेशन की गति के पश्चात्‌ इन सब क्षेत्रों की कोशिकाएँ अपने निश्चित स्थान पर पहुँचकर विकसित होने लगती हैं।

मॉनोट्रीमों (Monotremes) के अतिरिक्त स्तनधारी जंतुओं के अंडे योक विहीन होते हैं ्झ्रमॉनोट्रीमों के अंडों में योक होता है और मार्सूपियल (Marsupial) के अंडों में भी योक होता है, परंतु यह शीघ्र ही लुप्त हो जाता हैट। इनमें युग्मज विभाजन संपूर्ण होता है। लगातार विभाजन से युग्मज, समानाकर कोशिकाओं का एक समूह बन जाता है। यह समूह शीघ्र ही दो भागों में विभक्त हो जाता है, एक बाह्य कोशिकास्तर और दूसरा आंतरिक कोशिकासमूह। पहले को ट्रोफ़ोब्लास्ट (Trophoblast) और दूसरे को भ्रूणगुच्छ (एंब्रिओनल नॉट, Embryonal Knot) कहते हैं। भ्रुण के आंतरिक भाग मे एक गुहा होती है। भ्रूणगुचछ के नीचे और ट्रोफ़ोब्लास्ट के नीचे चारों ओर कोशिकाओं का एक स्तर उत्पन्न होता है। भ्रूणगुचछ के नीचे की कोशिकाएँ अंर्जनस्तर बनाती हैं और ट्रोफ़ोब्लास्ट के नीचेवाली परिध का अंतर्जनस्तर। अब भ्रूण में एक प्रमिटिव स्ट्रीक उत्पन्न होता है।

पक्षियों के अंडों में योक की मात्रा अधिक होती है। अत: हाइआलिन (hyaline) कोशिकाद्रव्य ध्रुव पर संकीर्ण क्षेत्र में पाया जाता है। मेरोब्लास्टिक (meroblastic) युग्मज खंडन से इस ध्रुव पर कोशिकाओं का एक छोटा समूह उत्पन्न हो जाता है। इसे ब्लैस्टोडर्म कहते हैं। ब्लैस्टोडर्म में कोशिकाओं के बाह्य स्तर के आंतरिक स्तर से पृथक्‌ (डिलेशन) हो जाने पर क्रमश: बहिर्जनस्तर तथा अंतर्जनस्तर बनते हैं। उक्त दोनों स्तरों का अंतराल खंडीभवन गुहा (ऐगमेंटेशन कैबिटी, segmentation cavity) है। ऐंफ़िऑक्सस (Amphioxus) तथा ऐंफ़िबिआ (Amphibia) की भाँति पक्षियों में अंर्तर्गमन (इन्वैजिनेशन) नहीं होता। इनमें गैस्ट्रुलेशन की विधि भिन्न है। ब्लैस्टोडर्म के मध्य का क्षेत्र पुलसिडा (Pellucida) कहलाता है। यह ब्लैस्टोडर्म के बाहरी क्षेत्र से, जिसे ओपाका कहते हैं, विभिन्न होता है। पेलुसिडा क्षेत्र के भीतर का लंबी रेखा उत्पन्न होती है जो कोशिकाओं के अधिक संख्या में एकत्र होने के कारण बनती है। प्रमिटिव स्ट्रीक वह स्थान है जहाँ एपिब्लास्ट (Epiblast) की कोशिकाएँ भ्रूण के भीतर प्रवेश करती हैं और नोटोकोर्डल सोमाइट तथा पार्श्व पट्ट (लैटरल प्लेट, lateral plate) बनाती हैं। स्तनधारी जंतुओं के ब्लैस्टोडर्म का प्रिमिटिव स्ट्रीक भी इसी प्रकृति का होता है। इस लिए प्रमिटिव स्ट्रीक को ऐंफ़िबिआ के स्लैस्टोपोर के समान समझा जाता है।

प्रारंभ में उरगों में भ्रूण का परिवर्धन पक्षियों के समान होता था किंतु अंतर्गमन (इन्वैजिनेशन) ऐंफ़िबिआ के सदृश होता है। गहन कोशिका विभाजन के कारण पेलुसिडा क्षेत्र के मध्य में एक रेखा उत्पन्न हो जाती है, जिसे प्रमिटिव नॉट या प्रिमिटिव पट्ट (प्लेट, plate) कहते हैं। इस क्षेत्र में अंतर्गमन होने से अर्थात्‌ कोशिकाओं का तल नीचे दबने से एक गुहा बन जाती है। इस गुहा के द्वारा को ऐंफ़िबिआ के भ्रूण के ब्लैस्टोपोर के समान और गुहा को आर्केंटरिक गुहा के समान समझा जा सकता है।

लैंप्रि (Lamprey) में युग्मज खंडन (होलोब्लास्ट) होता है और ब्लैस्ट्यूला के भागों का आंशिक चित्र गैस्टुलेशन ऐंफ़िबिआ के समान ही होता है।

योक की अधिकता के कारण मछलियों में युग्मज खंडन मेरोब्लास्टिक होता है और भ्रूण योकसमूह के ऊपर एक कोशिकासमूह के रूप में परिवर्धित होता है। परंतु ब्लैस्टोडर्म क्रमश: नीचे की ओर फैलता हुआ अंत में संपूर्ण योक को घेर लेता है। इस फैलाव के साथ ही संभावी मध्यजनस्तर (मेसोडर्म) कोशिकाओं का अंतर्गमन भी होता है। सैमन (Salmon) मछली के ब्लैस्ट्यूला के भाग्य चित्र (Diagram of presumptive fate) पर पूरे क्षेत्र का अधिकांश भाग संभावी मेसोडर्मल और न्यूरल ऊतकों (टिशू, tissue) से घिरा हुआ पाया जाता है। अंतर्जनस्तर और मध्यजनस्तर एक साथ उत्पन्न होते हैं, किंतु ब्लैस्टोडर्म का पश्च किनारा अंतस्तुत्र (tucked in) होता है।

डिपनोआन सिरेटोडस (Dipnoan ceratodus) में ब्लैस्टोमीर (Blastomere) छोटे बड़े होते हैं, किंतु युग्मज खंडन (होलोब्लास्टिक) होता है। बलैस्टोपोर की उत्पत्ति ऐंफ़िबिआ के सदृश होती है।

अंगविकास (आर्गेनोजेनेसिस, Organogenesis)

गैस्ट्रुलेशन के उपरांत शास्त्रीय भ्रूणतत्व के तीनों प्राथमिक भ्रूणीय स्तर, बहिर्जनस्तर, अंतर्जनस्तर और मध्यजनस्तर निश्चित रूप से स्थापित हो जाते हैं। संपरीक्षात्मक भ्रूणतत्व ने यह सिद्ध कर दिया है कि बहिर्जनस्तर और मध्यजनस्तर अंतिर्निमेय हैं। ऐंफ़िबिया में बहिर्जनस्तर गैस्ट्रुला के बाहरी तल पर होता है। प्रतिपृष्ठ के बहिर्जनस्तर और मध्यजनस्तर के बाहरी भाग, त्वचा, उसके उपांग (अपेंडेजेज़, Appendages) और उसकी ग्रंथियों को उत्पन्न करते हैं। गैस्ट्रुलेशन के पश्चात्‌ नोटोकॉर्डल मध्यजनस्तर के ऊपर स्थित कोशिकाओं का विभेदीकरण आरंभ हो जाता है और यह क्षेत्र न्यूरल पट्ट में परिणत हो जाता है, जो क्रमश: नीचे की ओर दबने लगता है। साथ ही न्यूरल पट्ट के दोनों ओर के किनारे ऊपर उठने लगते हैं। अंत में दोनों किनारों के ऊपर की ओर एक दूसरे से मिल जाने पर उनमें समेकन हो जाता है, फलत: न्यूरल पट्ट एक नली में परिणत हो जाता है, जिसे न्यूरल नली कहते हैं। इस तंत्रिकानाल के आगे का भाग मस्तिष्क और तत्संबंधी ज्ञानेंद्रियों के संवेदक भाग और कपाल तंत्रिकाओं को उत्पन्न करता है। पीछे के भाग से मेरुरज्जु और उसकी तंत्रिकाएँ उत्पन्न होती हैं। दूसरे पृष्ठवंशी जंतुओं में भी तंत्रिकानाल की उत्पत्ति इसी प्रकार होती है।

तंत्रिका नाल के नीचे के मध्यजनस्तर से नोटोकॉर्ड बनता है। निचली श्रेणी के कुछ पृष्ठधारी जंतुओं में नोटोकॉर्ड प्रौढ़वस्था में भी पाया जाता है, किंतु ऊँची श्रेणी के जंतुओं में नोटोकॉर्ड चारों ओर से कशेरुकी से घिर जाता है और अंत में नष्ट हो जाता है। नोटोकॉर्ड के दाहिने और बाएँ दोनों ओर की कोशिकाएँ डॉर्सल मेसोब्लास्टिक सोमाइट बनाती हैं।

सोमाइट को माइओटोम (Myotome) भी कहते हैं। इसके बाहरी भाग क्यूटिस लेअर (cutis layer) त्वचा का डर्मल भाग उत्पन्न होता है। यह खोखला होता है और इसकी गुहा को (माइओसील, myocoele) कहते हैं। इसकी भीतरी दीवार के ऊपरी भाग से बने माइओमियर (myomere) से मांसपेशियाँ उत्पन्न होती हैं। अतिरिक्त भित्ति के नीचे का भाग स्क्लियरोटोम (Sclerotome) बनाता है जिससे कशेरुक बनते हैं। सारे मेसोब्लास्टिक सोमाइट एक दूसरे से पृथक्‌ दोनों ओर एक श्रेणी में स्थापित होते हैं। परंतु पार्श्वपट्ट (लैटरल) एक दूसरे से पृथक नहीं होते। दोनों पक्षों के पार्श्वपट्ट नीचे की ओर प्रसारित होकर आहारनाल के नीचे एक दूसरे के सीप आते हैं। यहाँ निश्चित स्थान पर इनके किनारों से हृदय, रक्त की नालियाँ और रक्तकोशिकाएँ बनती हैं। डॉर्सल सोमाइट और पार्श्वपट्ट को मिलानेवाले भाग से वृक्क और इसी मूत्रनालयाँ उत्पन्न होती हैं। बहिर्जनस्तर से आहारनाल और उससे संबद्ध ग्रंथियाँ तथा फेफड़े उत्पन्न होते हैं।

फ़ीटल झिल्लियाँ (Foetal membranes)

ऐंफ़िबिआ में ब्लैस्टोमीयर के कोशिकाद्रव्य में योक प्रस्तुत करता है जिसके आधार पर भ्रूणीय परिवर्तन होता है। परंतु उरगों और पक्षियों में ब्लैस्टोडर्म योक के बाहर होता है। इसी से पोषक पदार्थ रुधिर की नालियों के द्वारा ही ब्लैस्टोडर्म तक पहुँच सकता है, जिसकी आवश्यकता परिवर्तन में पड़ती है। पक्षियों का ब्लैस्टोडर्म फैलकर योक पुंज को चारों ओर से घेर लेता है। इस प्रकार थैले के समान बने भाग को योक कोष (सैक) कहते हैं। ब्लैस्टोडर्म शीघ्र ही जिन दो भागों में विभक्त हो जाता है वे हैं-भ्रूणीय और भ्रूणातीत भाग। भ्रूणातीत भाग में रक्त केशिकाएँ (कैपिलरीज़, capillaries) उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार वैस्क्युलस (Vasculous) क्षेत्र की उत्पत्ति होती है। इस क्षेत्र की शिराएँ पूरे योक कोष में फैलकर योक का शोषण करती हैं और इन्हीं के द्वारा यह पोषक पदार्थ ब्लैस्टोडर्म को पहुँचता है। उरगों में भी यहीं यंत्र पाया जाता है। स्तनधारी जंतुओं में योक नहीं होता परंतु भ्रूणीय परिवर्धन के समय योक कोष (सैक, sac) उत्पन्न अवश्य होता है। इसके अतिरिक्त उरगों, पक्षियों और स्तनधारियों में दो फ़ीटल झिल्लियाँ भी बनती हैं, जिनको उल्ब (ऐम्निओन, Amnion) और ऐलैटोइस (Allantois) कहते हैं।

पक्षियों में एक उल्ब भंज (ऐम्निओटिक फ़ोल्ड, Amniotic fold) भ्रूण के दोनों ओर तथा आगे और पीछे उत्पन्न होता है। भंज (फ़ोल्ड, fold) चारों ओर से आकर भ्रूण के डॉर्सल पक्ष के ऊपर एक दूसरे से मिलते हैं और इनका समेकन हो जाता है। इस भंज के बहिर्जनस्तर और मध्यजनस्तर दोनों होते हैं। भंज के समेकन के कारण भ्रूण के ऊपर एक गुहा बन जाती हे, यह उल्ब गुहा है। इस गुहा की भित्ति का आंतरिक स्तर बहिर्जनस्तर का बना होता है और बाहरी मध्यजनस्तर का। इस गुहा में एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिसे उल्ब-तरल (ऐम्निआटिक फ़्लूइड, Amniotic fluid) कहते हैं। यह एक बाहरी स्तर, बहिर्जनस्तर और आंतरिक मध्यजनस्तर की बनी होती है। इसके और उल्ब के बीच की गुहा को अतिरिक्त भ्रूण (Extra embryonic coelome) कहते हैं। अंडे के चारों ओर परिवर्धन के पूर्व ही एक विटेलिन (viteline) झिल्ली होती है। सरडस झिल्ली के उत्पन्न होने पर इसका और विटेलिन झिल्ली का समेकन हो जाता है।

ऐलैंटोइस मध्यांत्र के पिछले भाग से एक डाइवर्टिकुलम (Diverticulum) के रूप में उत्पन्न होता है और इस अतिरिक्त भ्रूण सीलोम के भीतर प्रसारित होता है। ऐलैंटोइस की भित्ति का आंतरिक स्तर अंतर्जनस्तर का बना होता है और बाहरी मध्यजनस्तर का। यह क्रमश: भ्रूण के चारों ओर फैलता है और अंत में योक कोष की ओर इसका सीरस झिल्ली (मेक्ब्रेन, membrane) और विटेलिन झिल्ली से समेकन हो जाता है। उल्ब के भ्रूण की रक्षा होती है और ऐलैंटोइस में गुर्दे का उत्सर्जित पदार्थ एकत्रित होता है तथा इसके द्वारा श्वसन की क्रिया भी होती है।

उरगों में भी उल्ब और ऐलैंटोइस इसी विधि से बनते हैं। इस संबंध में इनमें और पक्षियों में कोई अंतर नहीं होता। अधिकांश स्तनधारी जंतुओं में भी उल्ब इसी प्रकार बनता है। यह ट्राफ़ोब्लास्टिक (trophoblastic) कोशिकाओं और मध्यजनस्तर कोशिकाओं का बना होता है। इसके बनने से इसके ऊपर एक कोरिऑन (Chorion) या सबज़ोनल (sub jonal) झिल्ली भी उत्पन्न हो जाती है जिसे पक्षियों के भ्रूण की सेरस झिल्ली के समान समझा जाता है। परंतु कुछ स्तनधारियों में उल्ब की उत्पत्ति की विधा कुछ भिन्न होती है। इनमें भ्रूणीय बहिर्जनस्तर में एक गुहा उत्पन्न होती है। यह उल्बगुहा है और इसकी भित्ति उल्ब है।

स्तनधारी जंतुओं में ऐलैंटोइस की उत्पत्ति पक्षियों के समान ही है। यह आहारनाल के पश्चात्‌ के कुछ आगे से एक डाइवर्टिक्युलम के रूप में उत्पन्न होता है और भ्रुण के ऊपर चारों ओर फैल जाता है। किसी-किसी स्तनधारी में यह कुछ निश्चित स्थानों तक ही फैलता है।

उरग और पक्षी अपने अंडे शरीर से बाहर निकाल देते हैं और परिवर्धन की पूरी क्रिया मादा के शरीर के बाहर होती है। परंतु स्तनधारियों में ्झ्रमॉनोट्रीम्स (Monotremes) के अतिरिक्तट परिवर्धन गर्भाशय के भीतर ही होता है। भ्रूण गर्भाशय की भित्ति से सटा होता है। कोरिओन झिल्ली से विली (Villi) उत्पन्न होते हैं और यह जननी के गर्भाशय की श्लेष्मिक झिल्ली में प्रवेश कर जाते हैं और उसके भीतर प्रस्तुत क्रिप्टी में स्थान पाते हैं। कोरिऑन के विली में ऐलैंटोइस के मध्यजनस्तर और रुधिर-वाहिकाएँ भी प्रवेश करती हैं। कोरिओनिक विली की शाखाएँ गर्भाशय की दीवार में दूर तक फैल जाती हैं और इसकी रुधिरवाहिकाओं और गर्भाशय की रुधिरवाहिकाओं में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता है। इनकी केशिकाएँ (Capillaries) एक दूसरे से मिल जाती हैं। इनकी भित्तियाँ इतनी पतली होती हैं कि इनके बीच से आहार और गैसों का विनिमय बड़ी सुगमता से हो जाता है। इस पूरी संरचना को प्लासेंटा (Placenta) कहते हैं। प्लासेंटा के द्वारा भ्रूण को आहार और आक्सीजन पहुँचता है और मल का उत्सर्जन होता है।

प्लासेंटा (placenta)

कई प्रकार के हाते हैं। कृंतकों (rodents) में एलैंटोइस और कोरिओन का संबंध एक सीमित क्षेत्र में ही स्थापित होता है और विली केवल इसी स्थान पर उत्पन्न होते हैं। यह डिसकॉइडल (discoidal) प्लासेंटा कहलाता है। कुछ स्तनधारियों में कोरिओन तल से उत्पन्न होता है। ऐसे प्लासेंटा को डिफ़्यूज (diffuse) प्लासेंटा कहते हैं। ऐसे प्लासेंटा कि विली यदि किसी सीमित स्थान पर ही शेष रह जाते हैं और अन्य जगहों पर नष्ट हो जाते हैं तो इसको ज़ोनरी (Zonary) कहते हैं। यदि विली कई एक समूहों में प्रस्तुत हों तो उसे कोटिलीडनेरी (cotyledonary) प्लासेंटा कहा जाता है। यदि विली एक सीमित प्रतिपृष्ठ क्षेत्र में ही पाए जाते हैं तो इन्हें मेटा-डिसकॉयडल प्लासेंटा के नाम से अभिहित किया जाता है। प्रसूति (पार्चुरिशन, parturition) के समय पूरा प्लासेंटा और जननी के गर्भाशय की श्लेष्मिक झिल्ली (म्यूकस मेंब्रेन, mucous membrane) का कुछ भाग भी गर्भाशय से बाहर निकल आता है। ऐसे प्लासेंटा को डेसिड्यूट (deciduate) कहते हैं। यदि जननी के गर्भाशय की श्लेष्मिक झिल्ली का कोई भाग प्लासेंटा के साथ बाहर न निकले तो उसे मेटाडेसिड्युट प्लासेंटा कहते हैं। कुछ स्तनधारियों में जननी का पूरा प्लासेंटा और कुछ भ्रूण प्लासेंटा भी गर्भाशय के भीतर ही रह जाता है और शोषित हो जाता है। इसे कॉण्ट्राडेसिड्युट (contra-deciduate) प्लासेंटा कहते हैं।