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कवित्त

साधारण अर्थ में कविता को 'कवित्त' कहते हैं (निज कवित्त केहि लाग न नीकातुलसीदास)। किन्तु विशेष अर्थ के रूप में कवित्त एक छन्द है। इसमें प्रत्येक चरण में ८, ८, ८, ७ के विराम से ३१ अक्षर होते हैं । केवल अन्त में गुरु होना चाहिए, शेष वर्णो के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है । जहाँ तक हो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करें तो पाठ मधुर होता है। यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो दो एक साथ हों। इसे 'मनहरन घनाक्षरी' भी कहते हैं।

उदाहरण
कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में, कयारिन में कलिन कलीन किलकंत है ।
कहै पझाकर परागन में, पौनहू में, पातन में, पिक में, पलासन पगंत है ।
द्वारे में, दिसान में दुनी में, देस देसन में, देखी दीप दीपन में, दीपत दिगंत है ।
बीथिन में, ब्रज में, नबेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है ।
पद्माकर
शीर्षक : हिन्दी
प्राकृत भाषा का अपभ्रंशीय रूप है हिन्दी,
माँ संस्कृत की सबसे प्यारी बेटी है हिन्दी।
सुंदर, सरल, सहज, मनोरम है हिन्दी,
सच पूछो तो है भारत के माथे की बिन्दी।
पंत, निराला, दिनकर की पहचान हिन्दी,
सुभद्रा, महादेवी का अभिमान है हिन्दी।
पीड़ितों की व्यथा का ये करूण गान है हिन्दी,
सुंदर भारत का राष्ट्रीय गान है हिन्दी।
हिन्दी से हिन्दुस्तान, हिन्दी से सारा जहान है,
हिन्दी से बनता मेरा भारत महान है।
- ओशिन शुक्ला 'साक्षी'