कल्याण स्वामी
आरंभिक जीवन
बाभूलगाव के पटवारी कृष्णाजीपंत कुलकर्णी तीर्थयात्रा करते हुए कोल्हापुर को आए। वहाँ उनका विवाह पाराजीपन्त कुलकर्णी की बहन से हुआ। उन्हें तिन अपत्य हुए अम्बाजी, दत्ताजी और एक बेटी|कुछ समय बाद कृष्णाजीपंत आगे की तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े|उसी समय समर्थ रामदास जी के कीर्तन श्री महालक्ष्मी के मंदिर में कोल्हापुर को चल रहे थे। इसी अवसर का लाभ उठाते हुए पाराजी पन्त ने स्वयं, अपनी बहन और उसके बेटोंके साथ समर्थ रामदास जी का अनुग्रह लिया। समर्थ ने धर्मकार्य के लिए अम्बाजी को मांग लिया। इसके बाद अम्बाजी, दत्ताजी और उनकी माता समर्थ के साथ चल पड़े|रास्ते में समर्थ रामदास जी ने शिरगाव को एक मठ स्थापन किया। वहाँ दत्ताजी को मठपति नियुक्त करके माता की सेवा और गृहस्थधर्म पालन करने का आदेश दिया। वाही आगे दत्तात्रय स्वामी नाम से विख्यात हुए|किन्तु अम्बाजी ने पूरा जीवन समर्थ की सेवा में अर्पित कर दिया। उन्ही का नाम 'कल्याण स्वामी' है।