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कलगीदार सर्प चील

Crested Serpent Eagle
Adult ssp. spilogaster
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Animalia
संघ: Chordata
वर्ग: Aves
गण: Accipitriformes
कुल: Accipitridae
वंश: Spilornis
जाति: S. cheela
द्विपद नाम
Spilornis cheela
Latham, 1790
उत्तरी बोर्नियो के नीची भूमि से उप-जाति एस. सी. पैलिडस

कलगीदार सर्प चील (स्पीलॉर्निस चील) एक माध्यम आकर की शिकारी (परभक्षी) चिड़िया है जो उष्णकटिबंधीय एशिया के प्राकृतिक वन्य वासों में पायी जाती है। इसके व्यापक परास में, अनेकों भिन्नताएं हैं और इसके कुछ प्रकार इसकी उपजाति माने जाते हैं जबकि अन्य को पूर्ण प्रजाति के रूप में देखा जाता है, इस कारण समूह का वर्गीकरण विज्ञान समाधित नहीं है। इसके निकट संबंधी जिन्हें प्रायः पूर्ण प्रजाति माना जाता है उसमे फिलिस्तीन के सर्प चील (एस.होलोस्पिला), अंडमान के सर्प-चील (स्पीलॉर्निस एल्जिनी) और दक्षिण निकोबार के सर्प-चील (स्पीलॉर्निस क्लोस्सी) शामिल हैं। इस प्रजाति समष्टि के सभी सदस्यों में बड़ा सा दिखने वाला सर होता है जिस पर कुछ पंख होते हैं और जो इन्हें नर के सामान और कलगीदार रूप प्रदान करता है। इनका चेहरा स्पष्ट एवम पीला होता है और जो मोम-झिल्ली से जुड़ा होता है और इनके मजबूत पंजे पंखरहित तथा प्रवर्धित होते हैं। ये वन के वितान पर चारा खोजती हैं और इनके पंख तथा पूंछ, चौड़ी सफ़ेद और काली पट्टियां प्रदर्शित करते हैं और ये प्रायः तीखी और परिचित तीन या दो स्वरयुक्त ध्वनि निकालती हैं। ये प्रायः सांप का भक्षण करती हैं, जिसके फलस्वरूप ही इन्हें इनका नाम दिया गया है और इसीलिए इन्हें सिर्केटस सर्प-चीलों के साथ सिर्केटिने प्रजाति में रखा गया है।

विवरण

यह विशाल, गहरे भूरे रंग की चील छोटी और गठीली होती है तथा इसके पंख गोल और पूंछ छोटी होती है। इसकी छोटी और सफ़ेद-काली कलगी के कारण इसकी गर्दन का हिस्सा भारी प्रतीत होता है। चेहरे की स्पष्ट त्वचा और पंजे पीले रंग के होते हैं। इनके आतंरिक हिस्से पर सफ़ेद तथा पीलेभूरे रंग की चित्तियां होती हैं। जब ये बैठी हुई अवस्था में होती हैं तो पंखों का अग्रसिरा पूंछ के शीर्ष तक नहीं पहुंचता. उड़ान भरने में, चौड़े और पतवार के आकर के पंख एक फैले हुए वी का आकर ले लेते हैं। उड़ने वाले पंखों का अन्त्सिरा और आतंरिक भाग काला होता है और इसपर चौड़ी सफ़ेद धारियां होती हैं। इस प्रजाति के युवा पक्षियों के सर का काफी हिस्सा सफ़ेद होता है।[2]

वितरण और वर्गीकरण

अपरिपक्व एसएसपी. पर्प्लेक्सस (इरिओमोट ओकिनावा

उष्णकटिबंधीय एशिया के विस्तृत परास में लगभग 21 प्रजातियों को इसके उपजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें भारत और नेपाल के उप-हिमालयीय क्षेत्रों के नामजद पक्षी, प्रायद्वीपीय भारत में मेलानोटिस, श्री लंका की स्पिलोगास्टर, सुदूर पूर्व में बर्मानिकस, वियतनाम और चीन में रिकेट्टी और मलय प्रद्वीप में मलएंसिस, शामिल हैं। कई द्वीप इस मुख्य वर्गीकरण का एक फ्रिंज बनाते हैं और इसमें अंडमान की डाविसोनी, निकोबार की मिनिमस, र्युकू की पर्प्लेक्सस, होया (ताइवान), रदरफोर्डी (हैनान), पलवानेसिस (पलावन), पैलीडस (उत्तरी बोरेनो), रिचमॉन्डी (दक्षिणी बोरेनो), नाटूनेसिस (नातुना), बाटू (बाटू), अबोट्टी, सिपोरा और एस्टूरिनस (सुमात्रा से दूर), बिदो (जावा) और बावियन द्वीप की बवेनियास को भी इसमें शामिल करते हैं।

इन नामजद प्रारूपों में गर्दन काली होती है जबकि प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाने वाले प्रारूपों में गर्दन का रंग भूरापन लिए होता है। इसमें क्रमिक रूप से हुए अक्षांशीय परिवर्तन पाए जाते हैं, जिससे दक्षिण की ओर बढ़ते जाने पर इनका आकार घटता जाता है।[2]

इनका विशिष्ट नाम चील, पक्षियों के हिंदी नाम से लिया गया है।

व्यवहार और पारिस्थितिकी

कलगीदार सर्प-चील, जैसा कि इसके अंग्रेजी नाम से पता चलता है, एक विशेष सरिसृप भक्षक है जो वनों में, प्रायः जल के समीप, छिपकलियों और सांपों का शिकार करती है। यह सिर्केटस प्रजाति की उप-प्रजाति सिर्केटिने में सर्प चीलों के साथ रखी जाती है।[3]

उड़ान में, कोटिगाओ एनपी, गोवा, भारत नवम्बर 1997
उप-जाति मेलानोटिस (अनामलाई टाइगर रिजर्व, तमिलनाडु)

यह नीची पहाड़ियों और मैदानों में मुख्यतः उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां वनस्पतियों की बहुलता हो। यह एक आवासी प्रजाती होती है लेकिन इनके परास के कुछ भागों में यह सिर्फ गर्मियों में ही पायी जाती हैं।[2]

इनका स्वर एक विशेष क्लुई-विप-विप जैसा होता है जिसका पहला स्वर उच्च और चढ़ता हुआ होता है। ये पूर्वाह्न के समय अपने ठिकानों से बहुत शोर करती हैं, जहां यह काफी समय बिताती हैं और सुबह ये वातावरण गर्म हो जाने पर उठती हैं।[2] यह कभी-कभी मैदाओं में भी सांपों का पीछा करती हैं।[4]

इनका प्रजनन काल मुख्यतः सर्दियों से गर्मी तक होता है। इनका घोंसला ऊंचे वृक्ष पर बनाया गया एक बड़े चबूतरे जैसा होता है। मध्य भारत में, प्रायः टर्मिनालिया टोमेंटोसा का प्रयोग किया जाता है। इनके घोंसले उस वृक्ष की हरी पत्तियों से ढके होते हैं जिन पर इनका घोंसला बना होता है।[4] आमतौर पर प्रसव के फलस्वरूप इनमें एक अंडा होता है लेकिन कभी-कभी दो भी हो सकते हैं और एक ऋतु में मात्र एक ही चूजे को सफलतापूर्वक पाला जा सकता है। इनके घोंसलों की रक्षा इनके माता-पिता द्वारा की जाती है।[5][6][7]

संस्कृति में

कलगीदार सर्प-चील को जापान की सरकार द्वारा 1.1: "जापान के विशिष्ट एवम प्रसिद्ध जंतु और उनका आवास" के मानदंड के अंतर्गत एक विशिष्ट प्राकृतिक स्मारक चिन्ह का दर्जा दिया गया है।

सन्दर्भ

  1. BirdLife International (2009). Spilornis cheela. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on 11 दिसम्बर 2009.
  2. Rasmussen PC & JC Anderton (2005). Birds of South Asia: The Ripley Guide. Volume 2. Smithsonian Institution & Lynx Edicions. पपृ॰ 92–93.
  3. Lerner, Heather R.L. & David P. Mindell (2005). "Phylogeny of eagles, Old World vultures, and other Accipitridae based on nuclear and mitochondrial DNA" (PDF). Molecular Phylogenetics and Evolution. 37 (2): 327–346. PMID 15925523. डीओआइ:10.1016/j.ympev.2005.04.010. मूल से 6 जून 2011 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 5 मार्च 2011.
  4. Naoroji,Rishad K; Monga,SG (1983). "Observations on the Crested Serpent Eagle (Spilornis cheela) in Rajpipla forests - South Gujarat". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 80 (2): 273–285.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  5. Daly,M (1895). "The southern Indian harrier eagle". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 9 (4): 487.
  6. Osman,SM (1972). "The Crested Serpent Eagle". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 69 (3): 461–468.
  7. Hume, AO (1890). The nests and eggs of Indian birds. Volume 3. R H Porter, London. पपृ॰ 152–154. मूल से 15 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मार्च 2011.

बाहरी कड़ियाँ