कमलाकर 'कमल'
कमलाकर 'कमल' | |
---|---|
जन्म | कमलाकर २८ जनवरी १९१५ ग्राम रेवई जिला शिवपुरी (मध्य प्रदेश) |
मौत | १९ मार्च १९९५ जयपुर |
मौत की वजह | वृद्धावस्था |
आवास | रेवई, जयपुर, मथुरा तथा कुछ अन्य नगर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | गुरुजी / कमलाकर 'कमल' |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | पारम्परिक पद्धति से / प्रथमा (व्याकरण) |
शिक्षा की जगह | संस्कृत, हिंदी, व्याकरण आदि |
पेशा | पूर्णकालिक हिंदीसेवी साहित्यकार |
कार्यकाल | १९२० से १९९५ |
गृह-नगर | जयपुर |
पदवी | साहित्य-महर्षि / गुरूजी / पिता- श्री बलवंत राव भट्ट / माता लल्लाबाई भट्ट |
प्रसिद्धि का कारण | हिंदी कविता साहित्यकार |
महाकवि पद्माकर के वंशज साहित्य-महर्षि [1] कहे गए कमलाकर 'कमल' आधुनिक हिंदी साहित्य के एक विलक्षण साहित्यकार रहे हैं | उन्होंने हिन्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन और आजादी के पश्चात् की भावनाओं से आप्लावित अनेक रचनाएँ लिखीं हैं, अनन्य भक्ति-भावांजलि तथा ब्रजभाषा माधुर्य से ओतप्रोत रसमयी रचनाएँ भी इनकी लेखनी से व्यक्त हुईं। युवावस्था से ही आप स्वाधीनता के राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े रहे। [2] आप महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन से आजीवन संचालित और प्रभावित रहे। महात्मा गाँधी के दांडी मार्च [नमक आन्दोलन] के बाद आपने जेल-यात्रा की [3] और अँगरेज़ शासन से तीस बेंत खाने की सजा भी भुगती। इसके बावजूद आपने भारत सरकार द्वारा स्वाधीनता सेनानी पेंशन पाने के लिए कभी भी आवेदन नहीं किया !
जन्म और आरंभिक जीवन
हम उसे ही कवि कहें जो आग लिखना जानता हो ! काल सी अपनी अखण्डित शक्ति को पहचानता हो ! जो पुजारी हो प्रलय का बाड़वों से खेलता हो ! विश्व के संहार को सर्वस्व अपना मानता हो !! जैसी पंक्तियों के उद्घोषक कवि का जन्म २८ जनवरी १९१५ को उच्च कुल ब्राह्मण कवीश्वर आत्रेय वंश में एक छोटे से ग्राम रेवई (म.प्र.) में हुआ जो शिवपुरी जिले में है । जब आप ढाई माह के थे तभी मातृ-सुख छिन गया और १४ वर्षीय की किशोरावस्था में पिता बलवंत राव भट्ट भी चल बसे । तब काका गोविन्द राव ने इनका लालन पालन किया! व्याकरण में प्रथम तक आपने शिक्षा ग्रहण की और अपने कुल के ध्येय वाक्य ‘‘कर कलम रुके तो कर कलम कराइये ’’ जैसी भयंकर उद्घोषणा के अनुरूप आप जीवनपर्यन्त साहित्य साधना में रत रहे। जीवन भर नंगे पाँव और खादी की एकमात्र मोटी सूती धोती में रहने वाले वीतरागी गुरूजी [4] पुष्टिमार्ग में दीक्षित जन्मना तैलंग ब्राह्मण, मन से संत, और मस्तिष्क से सामाजिक चिन्तक थे। वह अटल आस्तिक तो रहे- पर अंधविश्वासों से परे । कबीर की तरह बाह्याडम्बरों व रूढियों का विरोध आप जीवन भर करते रहे। आपकी इन पंक्तियों में यही भाव तो व्यक्त हुआ है- ए मुसलमां तू किसी भी मौलवी पर मत फिदा हो। हिन्दू भी बोले पंडित से अरे, पंडित विदा हो।। पादरी का काम दुनिया का निरा नुकसान करना। पंडितों का काम हरदम दूसरों का माल हरना।।
हिंदी सेवा के विविध आयाम
हिन्दी उत्थान हेतु आपने जयपुर में १९३७ में साहित्य सदावर्त नामक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना की[5] और आजीवन हिन्दी की सेवा में निरत रहे। लेखक भानु भारवि ने लिखा है- भट्ट मथुरानाथ शास्त्री जैसे दिग्गज संस्कृत साहित्यकार ने उनकी इस संस्था का यह नामकरण किया था | साहित्य सदावर्त संस्था के अमर संस्थापक कमलाकर जी को आज भी लोग गुरूजी कमलाकर के नाम से सम्बोधित करते हैं।[6] [7] 'साहित्य सदावर्त' में नि:शुल्क हिंदी पढ़ने वाला प्रथम विद्यार्थी एक ईसाई था- हनूक डी मसीह !
आपने ‘प्रकाश’ मासिक हिन्दी पत्रिका का सम्पादन किया जो १९३८ई. से १९४२ ई. तक साहित्य-संवर्द्धन करती रही।[8] पत्रिका में उच्च कोटि के निबन्ध लिख कर गद्य के क्षेत्र में भी अपना स्थान बनाया।[9][10] एक मोटे अनुमान के अनुसार कमलाकर जी ने सन् १९३३ से १९५६ तक लगभग पैंतीस हजार हिन्दी अध्येता तैयार किये। पारिवारिक अभावों और अनगिनत आर्थिक संकटों में रहते हुए भी इन्होनें अपने किसी विद्यार्थी से कोई भी फीस कभी ग्रहण नहीं की! जयपुर की 'बड़ी चौपड़' से आमेर की ओर जानेवाले सिरेड्योढ़ी बाज़ार में हवामहल के सामने की तरफ भगवान कल्कि का प्राचीन मन्दिर अवस्थित है - आर्कियोलोजी सर्वे ऑफ़ इण्डिया का एक और संरक्षित स्मारक! जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर कल्कि के मन्दिर का निर्माण सन् 1739 ई. में दाक्षिणात्य-शिखर-शैली में कराया था, एक ज़माने में इसी मंदिर में हिन्दी के प्रसिद्ध स्थानीय कवि और गांधीवादी अध्यापक स्व. गुरु कमलाकर ‘कमल’ का निवास था जहाँ यह ‘साहित्य सदावर्त' नामक संस्था चला कर घोर अर्थाभाव के बावजूद हजारों विद्यार्थियों को नि:शुल्क हिन्दी पढ़ाया करते थे ![11]| सुप्रसिद्ध गीतकार-लेखिका जया गोस्वामी भी 'साहित्य सदावर्त' में उनकी शिष्या रहीं, जो कहती हैं- विलक्षण स्मरण शक्ति संपन्न गुरूजी ने कभी भी किताब सामने रख कर हिंदी नहीं पढाई, आदिकाल से आधुनिक काल तक सारा हिंदी साहित्य उन्हें सोदाहरण, अभूतपूर्व रूप से कंठस्थ था! अपने कठिन दिनों में ‘राजस्थान पत्रिका’ के संस्थापक संपादक कर्पूर चन्द्र कुलिश जैसे हिंदीसेवी पत्रकार कभी यहाँ गुरु कमलाकर कमल की पाठशाला में एक मामूली अध्यापक भर रहे थे इन्हीं महान हिंदीसेवी गुरूजी के सुपुत्र श्री मधुकर राव ने लिखा है- "....'साहित्य सदावर्त' गुरु कमलाकर जी ने सन 1956-57 में छोड़ दिया था ! छोड़ देने के पश्चात भी गुरुजी जहाँ रहे वहां ही 'भारती मंदिर' के नाम से अपना अध्यापन कार्य आजीवन करते-रहे ! (सूरजपोल) जयपुर स्थित 'अग्रवालों की बगीची' और ब्रह्मपुरी स्थित मंगला मंदिर में 'भारती मंदिर' के अंतर्गत आजीवन एक कविगोष्ठी भी चलाते रहे !"[12]
शिष्यवर्ग
आपने हिन्दी को अनेक साहित्यकार एवं कई विद्वान दिये। इस शिष्य परम्परा में जिनके नाम मुख्य तौर पर उल्लेखनीय हैं- उनमें कर्पूर चन्द्र कुलिश, मण्डन मिश्र[13], बुद्धिप्रकाश पारीक, वनस्थली विद्यापीठ के सुधाकर शास्त्री, डॉ. कमला बेनीवाल, कैलाश चतुर्वेदी, पुरुषोत्तम उत्तम, सत्येन्द्र चतुर्वेदी, श्रीमती जया गोस्वामी डॉ. विष्णुचन्द्र पाठक, चन्द्रकुमार सुकुमार एडवोकेट दुर्गालाल बाढ़दार, इत्यादि हैं । सिद्धहस्त कवयित्री जया गोस्वामी कहतीं हैं- गुरूजी केवल 'स्मृति 'से विद्यार्थियों को लालटेन की रोशनी में निशुल्क पढ़ाते थे- किसी किताब से नहीं- उन्हें आदिकाल से आधुनिक काल तक का सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य का सैंकड़ों पृष्ठ का विशाल इतिहास, प्रमुख कृतियों, उनके प्रकाशन वर्ष लेखकों और उनकी पुस्तकों से लम्बे लम्बे उद्धरण सहित कंठाग्र था- ऐसी विलक्षण स्मृति थी- गुरूजी की ! ब्रजभाषा, हिन्दी [14] और संस्कृत भाषात्रय में आपने काव्य-रचना की। प्रातः चार बजे से रात्रि ग्यारह बजे तक पाँच सौ के लगभग विद्यार्थियों को निःशुल्क हिन्दी काव्यशास्त्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास पढाते रहना तथा उनके अन्दर के साहित्यकार की खोज कर उसका परिष्कार करना ही आपकी एकमात्र दिनचर्या थी।
कमलाकर कमल का साहित्य
हिन्दी विभाग, कानोडिया पी.जी. महिला महाविद्यालय, जयपुर के एक प्राध्यापक डॉ. शीताभ शर्मा ने 'मधुमती' पत्रिका के अपने एक आलेख[15] में गुरूजी का स्मरण करते हुए लिखा था- " कमलाकर कमल उस पूरी पीढी के सशक्त हस्ताक्षर हैं जो ब्रजभाषा के माधुर्य में लिपटी हुई है तथा जिन्हें राष्ट्रभाषा हिन्दी पर गर्व है, किन्तु साहित्य जगत को वर्तमान में कमलाकर जी के संबंध में यही ज्ञात है कि पद्माकर की पाँचवी पीढी में एक वंशज हुआ, जो उदार व्यक्तित्व और गम्भीर साहित्य का रचनाकार रहा है। उन्होंने निःस्वार्थ व लोककल्याण भाव से साहित्य रचा। कमलाकर जी का साहित्य स्वतः स्फूर्त भावना का प्रतिफलन है। इनका काव्य पूर्वज परम्परा की श्रृंगारिकता से मुक्त आधुनिक भाव-बोध का रसमयी काव्य है। भारत-भारती के लिए आपका जीवन समर्पित रहा, आपकी ये पंक्तियाँ यही व्यक्त कर रही हैं- भारती की अर्चना में तन समर्पित मन समर्पित। प्रेम से श्रद्धा सहित, विश्वासपूर्वक धन समर्पित।।"
इनके अनुसार-" वंश परम्परा के अनुरूप रीतिकालीन काव्य शैली में आपकी रचनाएँ आरम्भ हुईं। पुष्टिमार्गीय भक्ति-भावधारा में राष्ट्रीय आन्दोलन व समसामयिक रचनाओं की युगानुकूल भावना का समावेश होकर राष्ट्र-प्रेम, धर्मनिरपेक्षता, श्रमदान, त्याग, बलिदान की कर्मप्रधान अभिव्यक्ति प्रेरणादायी एवं यथार्थपरक है। इनके काव्य की नींव जो सदाचरण, दया, करुणा, परोपकार, सात्विकता, जनकल्याण भाव तथा कर्मप्रधान मानव की परिकल्पना है। कमलाकर का काव्य मानवीय मूल्यों का संवाहक है, जिसकी अन्तर्वस्तु का आधार प्रगतिशील चेतना है- न देव काम आयेगा, न दैव काम आयेगा। मनुष्य को मनुष्य ही, सदैव काम आयेगा।" कविहृदय व्यक्ति परिष्कार से काव्य आरम्भ कर एक अभिनव सा परिष्कृत विश्व चाहता है। कवि का काव्य-संसार कहाँ से आरम्भ होकर किन-किन परिस्थितियों और पडावों से गुजरता हुआ कहाँ तक जाता है, इसका बडा ही मर्मस्पर्शी एवं चमत्कारिक चित्रण इनके कवि नामक महाकाव्य में हुआ है।
संस्कृत भाषा में इनके काव्य हैं- ‘अथहिन्द भूम्यष्टकम्’, ‘अथ भारत जनन्यष्टकम्’ तथा ‘अथ भारती-भूम्यष्टकम’ इत्यादि।
इसी तरह ब्रजभाषा में भी आपकी कुछ काव्यकृतियाँ हैं: [16] ‘सूरदास’, ‘त्रिवेणी’, ‘तुलसीदास’, ‘कृष्ण महिमा’, ‘कमल हजारा’ इत्यादि [17]। हिन्दी भाषा में जो काव्यसंग्रह आपने लिखे हैं उनमें कुछ खास उल्लेखनीय हैं- ‘त्रेता’, ‘प्रतापबावनी’, ‘कमल पदावली’, ‘अमर भारती’, ‘अष्टदल’ इत्यादि। गद्य लेखन के क्षेत्र में भी कमलाकर जी ने पाँच कृतियाँ लिखी हैं। कवि शीर्षक से इनका महाकाव्य इनकी सुप्रसिद्ध रचना है ! आकाशवाणी पर भी गुरूजी ने कई हिंदी वार्ताएं प्रसारित कीं| [18] [19] लेकिन कमलाकर का विशद काव्य आज भी प्रकाशन की बाट जोह रहा है। हालांकि आपकी साहित्यिक सेवाओं और रचनाओं को सदा सामाजिक सम्मान मिलता रहा पर रीतिकालीन महाकवि पद्माकर की पाँचवी पीढी के सशक्त हस्ताक्षर [20]अमल-धवल कमलाकर ‘कमल’ की अभिलाषा कर्म द्वारा ज्ञान के आलोक में निष्काम कर्म की ही रही- प्रमाण हैं, उनकी निस्पृहता को द्योतित करतीं उनकी ये पंक्तियाँ:
नन्दनों के स्वर्ग की मुझको नहीं परवाह है। कुछ कहीं पर भी नहीं, अभिनन्दनों की चाह है।। अब ना मेरे भाल पर कोई तिलक चन्दन करे। चाह बिल्कुल भी नहीं जन चरण वंदन करे।। कर्म के द्वारा पहुँचकर ज्ञान के आलोक में, चाहता हूँ मैं रहूँ, निष्काम होकर लोक में।।
सम्मान
राजस्थान साहित्य अकादमी ने जहाँ इन्हें वर्ष १९७-७६ में इनके साहित्य-योगदान के लिए 'विशिष्ट साहित्यकार' सम्मान प्रदान किया वहीं उन्हें कुम्भा-पुरस्कार भी मिला [21] [22] उनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में पठनीय पुस्तकों में यह प्रकाशन उल्लेखनीय है- [23]
निधन
आप का निधन १९ मार्च १९९५ को जयपुर में हुआ ! गुरुजी का अन्तिम संस्कार उनकी 19-03--1995 को किया गया, उन्होंने इस सम्बंध में एक दोहा भी लिखा था - ''मेरी इच्छा है नहीं, कोई मुझे जलाय ।मेरे तन को जल मिले,या जंगल मिल जाय ।।'' उनकी मृत देह को उन्हीं की इच्छानुसार उनके बड़े पुत्र मधुकर राव ने वृन्दावन-यमुना में प्रवाहित किया ।
इन्हें भी देखें
भट्ट मथुरानाथ शास्त्रीकर्पूर चन्द्र कुलिशजया गोस्वामी डॉ. कमला बेनीवाल
बाहरी कड़ियाँ
[[4]] [[5]] [[6]] [[7]] [[8]] [[9]] [[10]] [[11]] [[12]] [[13]]
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- ↑ "चार शहरनामे : पुस्तक : हेमन्त शेष: प्रकाशक: 'शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (२०१९)
- ↑ https://books.google.co.in/books?id=F2QdAAAAMAAJ&q=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&dq=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&hl=en&newbks=1&newbks_redir=1&printsec=frontcover&sa=X&ved=2ahUKEwj_1dnGh9v1AhWBIqYKHVFiAns4PBDoAXoECAMQAg
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- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 जनवरी 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2022.
- ↑ https://books.google.co.in/books?id=6MFjAAAAMAAJ&q=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&dq=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&hl=en&newbks=1&newbks_redir=1&printsec=frontcover&sa=X&ved=2ahUKEwisor-N_dr1AhVN-WEKHViaCIY4ChDoAXoECAUQAg
- ↑ https://books.google.co.in/books?id=aWiaAAAAIAAJ&q=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&dq=%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0+%27%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%27&hl=en&newbks=1&newbks_redir=1&printsec=frontcover&sa=X&ved=2ahUKEwiF08OW-9r1AhUFdXAKHf6mCVkQ6AF6BAgEEAI
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