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कबीरदास की साखिया

1.भगति भजन हरि नाव हे , दूजा दुःख अपार |

  मनसा बाचा कर्मना   , कबीर सुमिरण सार||   

2.कबीर सुमिरण सार हे ,और सकल जंजाल |

  आदि अंति सब सोधिया , दूजा देखों काल ||

3.पंच संगी पिव करे , छठा जू सुमिरे मंन |

  आई सुति कबीर की , पाया राम रतन ||

4.मेरा मन सुमिरे रामकू मेरा मन रामही आही |

  अब मन रामहि ह्हे रहहा , सीस नवावो काहि ||