कच्चा लोहा
लौह अयस्क को अधिक कार्बन वाले ईँधन (जैसे कोक के साथ प्रगलित करने पर जो माधयमिक उत्पाद (intermediate product) बनता है उसे कच्चा लोहा (Pig iron) कहते हैं। इसमें प्रायः चूने के पत्थर को फ्लक्स के रूप में प्रयोग करते हैं। ईंधन के रूप में चारकोल और एंथ्रासाइट भी प्रयोग किये जा सकते हैं। कच्चे लोहे में कार्बन की मात्रा बहुत अधिक होती है (प्रायः 3.5–4.5%)। इसके कारण कच्चा लोहा बहुत भंगुर (brittle) होता है। इसे वेल्ड भी नहीं किया जा सकता। अतः इसका सीधे तौर पर बहुत कम उपयोग होता है।
वात्या भट्ठी से कच्चा लोहा ही निकलता है। वस्तुतः 'कच्चा लोहा' लौह, कार्बन, सिलिकन, मैंगनीज, फॉस्फोरस और गंधक की मिश्रधातु है। यह एक माध्यमिक उत्पाद है जिसकी और प्रसंस्करण करके अन्य उत्पाद बनाये जाते हैं। अन्य चीजें बनाने के लिए यह एक 'कच्चा माल' है इसी से इसका 'पिग आइरन' नाम पड़ा है।
वर्गीकरण :कच्चे लोहे को चार भागों में बाटा गया है। 1.बेसेयर पिग 2.ग्रे पिग 3.वाइट पिग 4.मोटल पिग
1.बेसेयर पिग:
यह हेपेटाइड अयस्क से प्राप्त होता है।यह cu,p ओर s से मुक्त होना चाहिये।तथा शुष्म मात्रा में सिलिकॉन,मेगनीज की उपस्थिति पिग आयरन के गुण को सुधारने में सहायक होती है।
2.ग्रे पिग:
ऐसे foundry पिग के नाम से भी जाना जाता है।भट्टी में उच्च ताप पर ईधन व कच्चे पदार्थ को जलाकर ऐसे प्राप्त किया जाता है।यह पिग की मृदु verity होती है।इसका उपयोग मुख्यतः cast आयरन की कास्टिंग के लिये किया जाता है।
3.वाइट पिग:
भट्टी के कम ताप पर कच्चे पदार्थो को जलाकर ऐसे प्राप्त किया जाता है।इसमें सयुंक्त कार्बन अधिक मात्रा में होता है। यह hard व मृदु होता है।उच्च कोटी की कास्टिंग के लिये उपयोगी नही होता ।इसे आसानी से गलाया जा सकता है।
4.मोटल पिग:
यह पिग में ग्रे व वाइट पिग दोनो के ही गुण होते है।यह प्रबल होता इसमे अधिक मात्रा सयुंक्त कार्बन की होती है।यह हल्के आभूषणों की कास्टिंग में उपयुंक्त नही होता है ।इसका उपयोग भारी कास्टिंग में किया जाता है।