एम. बालामुरलीकृष्ण
एम. बालामुरलीकृष्ण | |
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पृष्ठभूमि | |
मंगलमपल्ली बालामुरली कृष्णा (तेलुगु: మంగళంపల్లి బాలమురళీకృష్ణ)pronunciation सहायता·सूचना (6 जुलाई 1930 – 22 नवम्बर 2016) एक कर्नाटक गायक, बहुवाद्ययंत्र-वादक और एक पार्श्वगायक हैं। एक कवि, संगीतकार के रूप में उनकी प्रशंसा की जाती है और कर्नाटक संगीत के ज्ञान के लिए उन्हें सम्मान दिया जाता है।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
बालामुरलीकृष्ण का जन्म आंध्र प्रदेश राज्य के पूर्वी गोदावरी जिले के शंकरगुप्तम में हुआ।[1] उसके पिता एक प्रसिद्ध संगीतकार थे और बांसुरी, वायलिन और वीणा बजा सकते थे और उसकी माँ भी एक उत्कृष्ट वीणा वादक थीं। जब वे बच्चे थे, तभी उन्होंने अपनी माँ को खो दिया और उसके बाद से उनकी देखरेख उनके पिता ने की। संगीत के प्रति उनकी भीतरी लगन को देखकर उनके पिता ने उन्हें श्री पारुपल्ली रामकृष्ण पंतुलू के संरक्षण में रखा। श्री पंतुलू संत त्यागराज की शिष्य परम्परा के सीधे वंशज थे। उनके मार्गदर्शन में युवा बालामुरलीकृष्ण ने कर्नाटक संगीत सीखा. आठ साल की उम्र में बालामुरलीकृष्ण ने विजयवाड़ा के त्यागराज आराधना में अपना पहला संपूर्ण संगीत कार्यक्रम पेश किया था। एक प्रतिष्ठित हरिकथा वाचक मुसनुरी सूर्यनारायण मूर्ति भागवतार ने बच्चे के भीतर संगीत की प्रतिभा देखी और छोटे मुरलीकृष्ण को "बाला"(बच्चा) उपसर्ग दिया। यह उपसर्ग अब तक लगा हुआ है और बालामुरलीकृष्ण इसी रूप में जाने जाते हैं।
इस प्रकार, बालामुरलीकृष्ण ने बहुत ही कम उम्र में अपना संगीत करियर शुरू किया। पंद्रह साल की उम्र तक वह सभी 72 मेलाकर्थ रागों में महारत हासिल कर चुके थे और उन्हीं में उन्होंने कृतियों की रचना की। जनक राग मंजरी 1952 में प्रकाशित हुई थी और संगीता रिकॉर्डिंग कंपनी द्वारा 9 खंडों की श्रृंखला में इसे रागानंगा रावली के रूप में रिकार्ड किया गया।[2]
बालामुरलीकृष्ण जल्द ही एक गायक के रूप में काफी प्रसिद्ध हो गये। इस युवा संगीतकार के संगीत कार्यक्रमों की संख्या बढ़ने लगी और इसलिए उन्हें अपनी स्कूली पढ़ाई बंद करनी पड़ी.
कर्नाटक संगीत गायक के रूप में ख्याति मिलने के साथ-साथ, बहुत जल्द बालामुरली ने कंजीरा, मृदंगम, वाइला और वायलिन बजाने में अपनी विशाल बहुमुखी प्रतिभा साबित की। उन्होंने वायलिन वादन में विभिन्न संगीतकारों के साथ कार्यक्रम पेश कियो और एकल वाइला संगीत कार्यक्रमों के लिए भी प्रख्यात हुए.
प्रदर्शन करियर
बालामुरलीकृष्ण ने बहुत ही कम उम्र में अपने करियर की शुरुआत की। अब तक वह दुनिया भर में 25000 संगीत कार्यक्रम पेश कर चुके हैं।[3][4]
संगीत के सभी क्षेत्रों में उनकी बहुमुखी प्रतिभा, उनकी सम्मोहित करने वाली आवाज, रचनाओं के प्रतिपादन के उनके अनोखे तरीके ने संगीत युग में उन्हें अलग स्थान दिलाने में मदद की है। उन्होंने हिन्दुस्तानी घराने में शीर्ष संगीतकारों के साथ-साथ काम किया है और वे सबसे पहले जुगलबंदी किस्म के संगीत कार्यक्रम पेश करने के लिए जाने जाते हैं। इस तरह का पहला कार्यक्रम मुंबई में हुआ, जहां उनके साथ पंडित भीमसेन जोशी थे। उन्होंने अन्य लोगों के अलावा पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और किशोरी अमोनकर के साथ भी जुगलबंदी कार्यक्रम पेश किये हैं। इन समारोहों ने उन्हें देश भर में लोकप्रिय बना दिया और संगीत के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता का संदेश देने में मदद की है।
कवि, संगीतकार और संगीत वैज्ञानिक बालामुरलीकृष्ण ने अपने संपूर्ण मूल में तीनों की रचनाओं के तत्व बहाल किये हैं। वह कर्नाटक संगीत के एक नए युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने पूर्ववर्ती दिग्गजों की आकाशगंगा की तरह उन्होंने अपने तरीके से संगीत की विरासत के संरक्षण में मदद की है। उन्हे श्री भद्राचल रामदास और श्री अन्नामाचार्य की संगीत रचनाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए भी जाना जाता है।
समारोह
बालामुरलीकृष्ण के संगीत कार्यक्रमों में मनोरंजन मूल्य के लिए लोकप्रिय मांग के साथ परिष्कृत सुर कौशल और शास्त्रीय संगीत के तालबद्ध पैटर्न का मेल देखा जाता है।
बालामुरली कृष्ण को अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, रूस, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मध्य पूर्व और अन्य सहित कई देशों में संगीत कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया है।
जबकि उसकी मातृभाषा तेलुगू है, वे न केवल तेलुगू, बल्कि कन्नड़, संस्कृत, तमिल, मलयालम, हिन्दी, बंगाली, पंजाबी सहित कई भाषाओं में गाते हैं।
उन्होंने एवीएम प्रोडक्शंस के बैनर तले "भक्त प्रहलाद" (1967) नाम की तेलुगू फिल्म में नारद का अभिनय किया, जिसमें उन्होंने अपने गीत गाये. उन्होंने कुछ और फिल्मों में भी काम किया।
वे ब्रिटिश पुरस्कार विजेता गायक मंडली के साथ एक एकल कलाकार के रूप में आये और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के गीतिकाव्य और ब्रिटेन स्थित गोवा संगीतकार डॉ॰ जोएल के संगीत के साथ "गीतांजलि सूट" पेश किया। कई भाषाओं के उनके स्पष्ट उच्चारण से प्रेरित होकर उन्हें बंगाली में पूरे रवींद्र संगीत की रचनाओं को रिकार्ड करने का आमंत्रण दिया गया, ताकि इसे भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित रखा जा सके। उन्होंने फ्रेंच भाषा में भी गाया है और यहाँ तक कि मलेशियाई राजघराने के लिए आयोजित समारोह में अग्रणी कर्नाटक वाद्य शिक्षक श्री टी.एच.सुभाषचंद्रन के साथ जाज फ्यूजन में हाथ आजमाया.
हाल में संगीत चिकित्सा के प्रति उनकी रुचि तेजी से बढी है और अब कभी-कभी ही कार्यक्रम पेश करते हैं। उन्होंने स्विट्जरलैंड में "एकेडमी ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स एण्ड रिसर्च" की स्थापना के लिए एस. राम भारती को अधिकृत किया है और संगीत चिकित्सा पर भी काम जारी रखे हुए हैं। उन्होंने संगीत चिकित्सा में व्यापक अनुसंधान करने और कला व संस्कृति के विकास के लक्ष्य के साथ 'एमवीके ट्रस्ट' की स्थापना की है। एक नृत्य और संगीत विद्यालय "विपांची" उनके ट्रस्ट का एक हिस्सा है और उसका संचालन प्रबंध न्यासी कलाईमामानी सरस्वती द्वारा किया जाता है।
कवि और संगीतकार
डॉ॰ बालामुरलीकृष्ण ने तेलुगु, संस्कृत और तमिल सहित विभिन्न भाषाओं में 400 से भी ज्यादा संगीत रचनाएं की हैं। उनकी रचनाओं भक्ति संगीत से लेकर वर्णाम, कीर्थि, जवेली और थिलान तक हैं। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि सभी मूलभूत 72 रागों में की गईं रचनाएं हैं।
नवप्रवर्तन
बालामुरलीकृष्ण की संगीत यात्रा की विशेषता उनकी गैर-परंपरागत, प्रयोग करने की भावना और असीम रचनात्मकता है।
डॉ॰ बालामुरलीकृष्ण ने पूरे कर्नाटक संगीत प्रणाली को उसकी समृद्ध परंपरा को अछूता रखते हुए नव प्रवर्तित किया है। गणपति, श्रावश्री, सुमुखम, लावंगी आदि जैसे रागों का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने जिन रागों आविष्कार किया, वे उनकी नई सीमाओं की खोज का प्रतिनिधित्व करती हैं।
लावंगी जैसे रागों में आरोहण और अवरोहण पैमाने तीन या चार नोट होते हैं।[2] उनके द्वारा बनाये गये महाथी, लावंगी, सिद्धि, सुमुखम जैसे रागों में केवल चार नोट है, जबकि उसके द्वारा रचित सर्व श्री, ओंकारी, गणपति, जैसे रागों में तीन ही नोट हैं।
उन्होंने ताल प्रणाली में भी कुछ नया किया। उन्होंने ताल की वर्तमान किड़यों के हिस्से "सा शब्द क्रिया" (तालों की क्रियाएं, जो ध्वनि/शब्द उत्पन्न कर सकती हैं, सा शब्द क्रिया कहलाती हैं।) में "गति बेदम" शामिल किया और इस प्रकार ताल प्रणाली की एक नई श्रृंखला शुरू की। संत अरुंगिरिनादर अपने प्रसिद्ध थिरुपुगाज में ऐसी प्रणालियों को शामिल किया करते थे, लेकिन केवल संधाम के रूप में, जबकि बालामुरलीकृष्ण को ऐसे संधामों को अंगम और परिभाषा के साथ एक तार्किक लय में ढालने में अग्रणी संगीतकर के रूप में जाना जाता है। अपनी नई ताल प्रणाली के लिए उन्होंने त्रि मुखी, पंचमुखी, सप्त मुखी और नव मुखी नाम दिये हैं।[]
जब उनकी संगीत रचनाओं की बात होती है, तो उनके थिलान खुद उनके गौरव की बात करते हैं। बालामुरलीकृष्ण थिलान में संगथी का प्रवेश कराने के क्षेत्र में भी अग्रणी माने जाते हैं। []
त्यागराज कृथी नागोमोमू की भावुक व्याख्या के लिए उन्हें काफी वाहवाही मिली और वह आज भी लोकप्रिय है। []
आलोचनाएं और स्वीकृति
नए रागों के अपने आविष्कार के लिए बालामुरलीकृष्ण की आलोचना की गयी। एक बार रूढ़िवादियों ने इसे अपवित्र करने वाला काम माना. लेकिन फिर भी, कला के एक समकालीन कार्य का कोई गंभीर मूल्यांकन ऐतिहासिक रूप से सूचित किया जाना चाहिए। नए रागों का नवप्रवर्तन त्यागराज की विरासत को परिभाषित करने वाली खासियत थी। भौतिकविदों एमवी रमण और वी.एन. मुथुकुमार के अनुसार त्यागराज की अब तक उपलब्ध 700 से अधिक रचनाएं 212 रागों में ढाली गई हैं।[2] इनमें से 121 की एक संरचना थी और त्यागराज वैसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 66 रागों कृतियों की रचना की। गौरतलब है कि विवद्धिनी और नवरस कन्नड़ रागों- जिनका प्रवर्तन त्यागराज द्वारा किया गया - में आरोह पर सिर्फ चार नोट होते हैं। वे 19 वीं सदी में अपने तरह की पहले राग थे। यकीनन बालामुरलीकृष्ण के अपने रागों ने ही त्यागराज के प्रयास को चरमोत्कर्ष पर ले गये। त्यागराज की एक और रचना रंजानी आज एक सौ से अधिक कृतियों पर भारी है, जिनमें बालामुरलीकृष्ण की वंदे मातरम, आंदी मा तरम भी है।[2]
पदवियां और पुरस्कार
संगीत प्रतिभा डॉ बालामुरलीकृष्ण ने कई पुरस्कार जीते हैं और उन्हें काफी वाहवाही मिली है। उनमें से कुछ: -
संगीता कलानिधि, गान कौस्तुभ, गानकलाभूषण, गान गंधर्व, गायक सिकमणि, गायन चक्रवर्ती, गान पद्म, नादज्योति, संगीत कला सरस्वती [13] नाद महर्षि, गंधर्व गान सम्राट, ज्ञान सागर, सदी के संगीतकार आदि का नाम लिया जा सकता है। राष्ट्रीय एकता के हित में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उन्हें उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया।
वे एकमात्र कर्नाटक संगीतकार हैं, जिन्हें तीन राष्ट्रीय पुरस्कार -सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक, सर्वश्रेष्ठ संगीतकार और सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में मिले हैं। उन्हें प्रदर्शन के सात विभिन्न क्षेत्रों में आल इंडिया रेडियो की ओर से "टॉप ग्रेड" से सम्मानित किया गया है।
डॉ॰ एम बालामुरलीकृष्ण को पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। वे एकमात्र कर्नाटक संगीतकार हैं, जिन्हें फ्रांस सरकार की ओर से चेविलियर्स ऑफ द आर्डर डेस आर्ट्स एट डेस लेटर्स मिला है।[5]
इन सब के अलावा, उन्हें विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की ओर से कई मानद डॉक्टरेट की उपाधियां भी प्रदान की गयी हैं।
डिस्कोग्राफी
चयन रचनाएं
संरचना | रागम | प्रकार | टिप्पणियां |
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ओमकारा प्रणव | शानमुखाप्रिया | पधा वर्णम | |
अम्मा आनंदा धायिनी | गम्भिरानता | वर्णम | |
ये नाधमु | नाता | वर्णम | |
चलामु चेसिना | रामप्रिया | वर्णम | |
आपाला गोपालामु | अमृतावर्षिणी | वर्णम | |
नीनू नाम्मिथि नेरा | खरहराप्रिया | वर्णम | |
श्री सकला गणाधिपा पलायमम | आराभी | कृति? | गणपति, मारुती और कृष्ण पर तीन पल्लवी |
महादेवासुथम | आराभी | कृति | गणपति पर |
गम गम गणपथिम | गणपती | कृति | गणपती पर- तिगोना तानवाला राग: सा गा पा |
गनाधिपम | नत्तई | कृति | गणपती पर |
पिराई अनियुम पेरुमान | हम्सध्वानी | कृति | गणपती पर |
उमा सुथम नमामी | सर्वसरी | कृति | गणपती पर-तिगोना तानवाला राग: सा मा पा |
महानीया नमसुलिवाए | सुमुखम | कृति | गणपती पर-तिगोना तानवाला राग: सा री मा नी |
ओमकारा कारिणी | लवंगी | कृति | टेट्रा तानवाला राग: सा री मा धा |
सिध्धि नायाकेना | अमृतावर्षिणी | कृति | गणपती पर |
सिध्धिम धेहि मॅई | सिध्धि | कृति | गणपती पर-तिगोना तानवाला राग: सा री धा |
हीरा गणपथिकी | सुरती | कृति | गणपती पर |
महानीया मधुरा मूर्थाए | महाथि | कृति | गुरु वन्धनम-टेट्रा तानवाला राग: सा गा पा नी |
गुरुनी स्मारिमपुमो | हम्साविनोधिनी | कृति | गुरु वन्धनम |
वरुहा वरुहा | पंथुवराली | कृति | मुरुहा पर |
थुनाइ नीयी | चारुकेसी | कृति | मुरुहा पर |
नी राधा धाया | पूर्वीकल्याणी | कृति | अंबिका पर |
गाथी नीवे | कल्याणी | कृति | अंबिका पर |
शिव गंगा | नगस्वरावली | कृति | अंबिका पर |
मा मानिनी | थोडी | कृति | अंबिका पर-स्वर साहित्यम |
अम्मा निनुकोरी | कामस | कृति | अंबिका पर |
गाना मालिंची | कल्याण वसंथम | कृति | अंबिका पर |
सधा पाधा थवा | शंमुखाप्रिया | कृति | शिव पर |
ब्रुहधीसवर | कानाडा | कृति | तंजौर ब्रुहधीसवर पर |
त्रिपुरा थरपा | शिव पर मंगलम | ||
कमला धलायाथा | बहुधारी | कृति | नेत्रा सौन्धर्य पर |
थिल्लाना | ब्रुन्धावनी | थिल्लाना | |
थिल्लाना | चक्रवाहम | थिल्लाना | |
थिल्लाना | ध्विजावंथी | थिल्लाना | तमिल कारनम |
थिल्लाना | कुन्थल्वारली | थिल्लाना | तमिल और तेलुगू चरनम |
थिल्लाना | कथनकुथूहालम | थिल्लाना | |
थिल्लाना | गरुदाध्वनी | थिल्लाना | पानिनी सूत्र सन्दर्भ, |
थिल्लाना | बेहग | थिल्लाना | श्री त्यागराज पर |
थिल्लाना | रागमालिका | थिल्लाना | अमृतावर्षिणी, मोहनम कानाडा और हिन्दोलम |
थिल्लाना | रागमालिका | थिल्लाना | ताया रागमालिका, स्रुथी बेधम के आधार पर |
थिल्लाना | रागमालिका | थिल्लाना | गाथी बेधम के साथ पंच "प्रिया" रागास |
मामव गाना लोला | रोहिनी | कृति | रागम द्वारा दो माध्यमस का उपयोग |
गाना लोला | रागमालिका | कृति | थिरुपथी वेंकटेश्वर पर |
संगीथामए | कल्याणी | कृति | संगीत के बारे में |
नी साती नीवे | चंद्रिका | कृति | रंगा पर, |
संकराभरना सयनुदा | संकराभरनम | कृति | रंगा पर |
वेगामए | अभोगी | कृति | रंगा पर |
हनुमा | सरसंगी | कृति | हनुमान पर |
वंधे माथरम | रंजनी | कृति | भारथम पर |
गाना सुधा रासा | नात्तई | कृति | श्री थ्यागराजा पर |
समा गण | अमृतावर्षिणी | कृति | श्री थ्यागराजा पर |
मरगथा सिम्हासना | सिम्हेंद्र मध्यमं | कृति | नरसिंह पर |
नरसिंह रूपा धेवा | कम्भोजी | कृति | नरसिंह पर |
राजा राजा | संकराभरनम | कृति | श्री राघवेंधरा पर |
चिंतायमी सतातम श्री मुत्तुस्वामी दीक्षितम | सुचारित्रा | कृति | मुत्तुस्वामी दिक्षितर पर |
अम्बाममावा | रागमालिका | कृति | |
बंगारू श्रींगार मुरली रावली | नीलम्बरी | कृति | |
सदातव पादा | शंमुखाप्रिया | कृति | |
भावामे महा भाग्यमुरा | कापी | कृति |
फिल्मी गाने
बालमुरलीकृष्ण कुछ फिल्मों में काम किया है और कुछ भारतीय सिनेमा के कुछ चुने हुए गानों के लिए आवाज़ दिया है।[6]
वर्ष | फिल्म | भाषा | जमा (क्रेडिट्स) |
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1957 | सती सावित्री | तेलुगू | गायक: ओहो हो विलासला |
1959 | जयभेरी | तेलुगू | सुक्लाम ब्रह्मा विचारा सारा परमाम (स्लोका) |
1963 | कर्ण | तेलुगू | गायक: नीवू निलचितमी नेनू नन्दनामे एदुरुगा वलाचितमी |
1963 | नर्तनासल | तेलुगू | गायक: सलालिथा राग सुधारस सारम |
1965 | दोरिकिते दोंगालू | तेलुगू | गायक: तिरुपतिवसा श्रीवेंकातेस |
1966 | पल्नाती युधम | तेलुगू | गायक: सीलामु गालावरी चिनावादा |
1967 | भक्त प्रह्लाद | तेलुगू | नारद के रूप में काम किया गायक: आदि अनादियु नीवे देवा नारद संनुता नारायण, सिरी सिरी लाली चिन्नारी लाली, वरमोसागे वनमाली ना वन्चितम्मु नेरावेरुनुगा |
1973 | अंदाला रामुडु | तेलुगू | गायक: पालुके बनगमयेरा अंदाला राम |
1974 | श्री राम अन्जनेया युद्धम | तेलुगू | गायक: मेलुको श्रीराम मेलुको रघुराम करुनालोला श्रीताजनापल नारायण दीनावना |
1975 | हमसागीथे | कन्नड़ | संगीत निर्देशक और गायक |
1975 | मुथ्याला मुग्गु | तेलुगू | गायक: श्रीराम सीताराम जयराम |
1977 | कुरुक्षेत्रम | तेलुगू | गायक: कुप्पिंची एगासिना कुन्दलम्बुला कंथी (पद्यम) |
1979 | गुप्पेदु मानसू | तेलुगू | गायक: मौनामे नी भाषा ओ मूगा मनसा |
1982 | एंटे मोहंगल पूवानिन्जू | मलयालम | गायक: |
1983 | आदि शंकराचार्य | संस्कृत | संगीत निर्देशक |
1983 | मेघसंदेसम | तेलुगू | गायक: पादना वाणी कल्यानिगा |
1986 | मध्वाचार्य | कन्नड़ | संगीत निर्देशक और गायक |
1987 | स्वाथी थिरूनल | मलयालम | गायिका: |
1990 | मुथिना हारा | कन्नड़ | गायक: देवरू होसेदा प्रेमदा दारा |
1991 | भारथम | मलयालम | गायिका: |
1993 | भगवद गीता | संस्कृत | संगीत निर्देशक |
1997 | प्रियामैना श्रीवारु | तेलुगू | गायक: जताकालू कालीसेवला जीवितालू मुगिसायी |
सन्दर्भ
- ↑ "मंगलमपल्ली घर आने के लिए इंतजार नहीं कर सकता है". मूल से 5 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2011.
- ↑ अ आ इ ई "एक संगीत बादशाह". मूल से 6 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2011.
- ↑ "बालमुरलीकृष्ण भारत रत्न का हकदार है: जयललिता". मूल से 29 नवंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2011.
- ↑ "ऑल आई नो इज़ माई स्टाइल ऑफ़ म्युज़िक"
- ↑ बालमुरलीकृष्ण के लिए फ्रेंच सम्मान Archived 2011-09-05 at the वेबैक मशीन, द हिंदू, 03 मई 2005
- ↑ "आईएमडीबी (IMDb) पर डॉ॰ मंगलमपल्ली बालमुरलीकृष्ण फिल्मोग्राफी". मूल से 8 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जनवरी 2011.
बाहरी कड़ियाँ
- मुरली और मैं: राजकुमार अस्वाथी थिरूनल राम वर्मा द्वारा महान मास्टर के लिए एक श्रद्धांजलि.
- कर्नाटक संगीत उस्ताद बालमुरलीकृष्ण और उनके पसंदीदा छात्र राम वर्मा अनुभवों को बांटने हुए. Archived 2011-06-07 at the वेबैक मशीन
- डॉ॰ बालमुरलीकृष्ण पर परंपरा