एंडोस्कोपी (गुहांतदर्शन)
एंडोस्कोप (गुहांतदर्शी) (आईपीए: /ɛnˈdɒskəpi/) का अर्थ है अन्दर देखना, और खासतौर पर इसका अर्थ होता है चिकित्सीय कारण से एंडोस्कोप की मदद से शरीर के अन्दर देखना। एंडोस्कोप (आईपीए: /ˈɛndəskoʊp/) एक ऐसा उपकरण है, जिसका प्रयोग शरीर के खोखले अंग अथवा छिद्रों के अन्दर जाँच करने के लिए किया जाता है। अन्य चिकित्सीय चित्रण उपकरणों (medical imaging devices) के विपरीत एंडोस्कोप को सीधे ही शरीर के अंग में डाला जाता है। एंडोस्कोपी (Endoscopy), ऐसी तकनीकी परिस्थितियों, जिनमें प्रत्यक्ष दृष्टि-रेखा अवलोकन व्यावहारिक न हो, में बोरस्कोप (Borescope) के प्रयोग को भी उल्लेखित कर सकती है।
घटक
एक एंडोस्कोप निम्नलिखित घटकों से मिलकर बना हो सकता है:
- एक सख्त या लचीला ट्यूब।
- निरीक्षण किए जा रहे अंग या वस्तु पर प्रकाश डालने के लिए एक प्रकाश वितरण प्रणाली। आमतौर पर प्रकाश का स्रोत शरीर से बाहर होता है और प्रकाश को ऑप्टिकल फाइबर प्रणाली के जरिए भेजा जाता है।
- एक लेंस सिस्टम, जो चित्र को अवलोकनकर्ता तक फाइबरस्कोप के जरिए प्रसारित करता है।
- चिकित्सीय उपकरणों या मेनिपुलेटर्स को अन्दर प्रवेश कराने के लिए एक अतिरिक्त चैनल।
उपयोग
एंडोस्कोपी के अंतर्गत शामिल हो सकते हैं:
- जठरांत्रीय क्षेत्र अथवा गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट (GI ट्रैक्ट):
- ग्रासनली (esophagus), जठर (stomach) तथा ग्रहणी (duodenum) (एसोफेगोगैस्ट्रोड्युडेनोस्कोपी) (esophagogastroduodenoscopy)
- छोटी आंत (एंटेरोस्कोपी) (enteroscopy)
- बड़ी आंत\कोलन (कोलोनोस्कोपी (colonoscopy), सिग्मॉइडोस्कोपी (sigmoidoscopy))
- मैग्निफिकेशन एंडोस्कोपी
- पित्त वाहिका (bile duct)
- एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोपैंक्रिएटोग्राफी (endoscopic retrograde cholangiopancreatography) (ईआरसीपी) (ERCP), ड्युओडेनोस्कोप-असिस्टेड कोलैंजियोपैंक्रिएटोस्कोपी (duodenoscope-assisted cholangiopancreatoscopy), इंट्रॉपरेटिव कोलैंजियोस्कोपी (intraoperative cholangioscopy)
- मलाशय (rectum) (रेक्टोस्कोपी) (rectoscopy) तथा गुदा (anus) (एनोस्कोपी (anoscopy)), दोनों को प्रोक्टोस्कोपी (proctoscopy) कहते हैं।
- श्वसन तंत्र
- नाक (राइनोस्कोपी (rhinoscopy))
- निम्न श्वसन तंत्र (ब्रॉन्कोस्कोपी (bronchoscopy))
- कान (ओटोस्कोप (otoscope))
- मूत्र-प्रणाली (साइटोस्कोपी (cystoscopy))
- स्त्री प्रजनन तंत्र (गाइनोस्कोपी (gynoscopy))
- गर्भाशय ग्रीवा (कॉल्पोस्कोपी (colposcopy))
- गर्भाशय (हिस्टेरोस्कोपी (hysteroscopy))
- डिम्बवाही नली (फैलोपोस्कोपी (falloposcopy))
- शरीर के सामान्य रूप से बन्द रहने वाले छिद्र (एक छोटे चीरे के जरिए):
- उदरीय या श्रोणीय गुहिका (लैपेरोस्कोपी (laparoscopy))
- किसी जोड़ का भीतरी भाग (आर्थ्रोस्कोपी (arthroscopy))
- सीने के अंग (थोरैकोस्कोपी (thoracoscopy) तथा मेडिएस्टिनोस्कोपी (mediastinoscopy))
- गर्भावस्था के दौरान
- उल्व (एम्निओस्कोपी (amnioscopy))
- भ्रूण (फीटोस्कोपी (fetoscopy))
- प्लास्टिक सर्जरी
- पैनेंडोस्कोपी (panendoscopy) (या ट्रिपल एंडोस्कोपी (triple endoscopy))
- इसमें लैरिंगोस्कोपी (laryngoscopy), एसोफेगोस्कोपी (esophagoscopy) तथा ब्रॉन्कोस्कोपी (bronchoscopy) संयोजित होते हैं।
- अस्थि-रोग शल्य-चिकित्सा
- हाथ की सर्जरी, जैसे कि एंडोस्कोपिक कार्पल टनल रिलीज़ (endoscopic carpal tunnel release)
- इपिड्यूरल स्पेस (इपिड्यूरोस्कोपी (Epiduroscopy))
- एंडोस्कोपी के गैर-चिकित्सीय उपयोग
- नियोजन व वास्तु-रचना समुदाय ने एंडोस्कोपी को प्रस्तावित भवनों और शहरों के स्केल मॉडल के पूर्व-कल्पना के लिए उपयोगी पाया है (आर्किटेक्चरल एंडोस्कोपी (architectural endoscopy)).
- जटिल तकनीकी प्रणालियों का आंतरिक निरीक्षण (बोरस्कोप (borescope))
- बम डिस्पोज़ल दस्ते के लोगों द्वारा प्रयुक्त उन्नत विस्फोटक उपकरणों की जांच में भी एंडोस्कोप एक उपयोगी औजार है।
- संकरे स्थानों में निगरानी के लिए एफबीआई (FBI) द्वारा एंडोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है।
इतिहास
आरंभ
पहले एंडोस्कोप का आविष्कार, 1806 में फिलिप बोज़िनी (Philip Bozzini) द्वारा मानव शरीर की नलियों और गर्तों की जांच के लिए उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये "लिचट्लीटर (Lichtleiter)" (प्रकाश संचालक) के विकास के साथ हुआ था। हालांकि विएना मेडिकल सोसाइटी (Vienna Medical Society) ने ऐसी जिज्ञासा को अस्वीकृत कर दिया। 1822 में मैकिनेक आइलैंड, मिशिगन के एक सैन्य शल्य-चिकित्सक विलियम ब्यूमोन्ट (William Beaumont) द्वारा पहला एंडोस्कोप विकसित किया गया।[] एंडोस्कोपी में सुधार की दिशा में पहला बड़ा कदम इसमें विद्युतीय प्रकाश का इस्तेमाल था। ऐसे शुरुआती प्रकाश स्रोत बाहरी थे। बाद में छोटे बल्ब उपलब्ध हुए जिनसे आंतरिक प्रकाश की प्राप्ति संभव हुई, उदाहरण के लिए 1908 में चार्ल्स डेविड (Charles David) द्वारा विकसित हिस्टेरोस्कोप (hysteroscope) में[]। हेंस क्रिश्चियन जैकोबियस (Hans Christian Jacobaeus) को लेपैरोस्कोपी (laparoscopy) (1912) और थोरैकोस्कोपी (thoracoscopy) (1910) की मदद से आमाशय तथा सीने की आरंभिक एंडोस्कोपिक खोज का श्रेय दिया जाता है []। हेंज कॉक (Heinz Kalk) द्वारा 1930 के दशक में लेपैरोस्कोपी का इस्तेमाल यकृत और पित्ताशय के निदान में किया गया था[]। 1937 में होप ने एक्टॉपिक प्रेगनेंसी का निदान करने में लेपैरोस्कोपी के इस्तेमाल की जानकारी दी[]। 1944 में रॉल पाल्मर (Raoul Palmer) ने अपने रोगियों को अमाशय के गैसियस डिस्टेंसन के बाद ट्रेंडेलेनबर्ग पोज़िशन में रखा और इस प्रकार गाइनेकॉलॉजिक लेपैरोस्कोपी को विश्वसनीय रूप से कर पाने में सफल रहे[]।
स्टोर्ज
कार्ल स्टोर्ज (Karl Storz) ने ईएनटी (ENT) विशेषज्ञों के लिए 1945 में उपकरण बनाने शुरू किए। उनका इरादा ऐसा उपकरण विकसित करने का था, जिसकी मदद से चिकित्सक मानव शरीर के अन्दर देख सकने में सफल हो सके। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में उपलब्ध तकनीक अब भी बहुत ही साधारण थी। मानव शरीर के अन्दरूनी भाग के परीक्षण के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र मिनिएचर इलेक्ट्रिक लैम्प द्वारा प्रकाशित किया जाता था। इस बात के प्रयास किए गए कि एंडोस्कोपिक ट्यूब के जरिए बाहरी स्रोत से शरीर के अन्दर प्रकाश को परावर्तित किया जा सके। कार्ल स्टोर्ज (Karl Storz) ने एक योजना को अपनाया: उन्होंने शरीर के अन्दर उपकरण के जरिए बहुत ही चमकीली, लेकिन ठंडी, रोशनी डालने का प्रयास किया, जिससे शरीर के अन्दर बेहतरीन दृश्यता प्राप्त हो और साथ ही चित्र प्रसारण के जरिए वस्तुनिष्ठ दस्तावेजीकरण संभव हो सके। आने वाले समय के लिए मार्गदर्शक के रूप में अपने 400 से अधिक रोगियों और कार्यक्षम नमूने के साथ कार्ल स्टोर्ज ने एंडोस्कोपी के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि वे हैरॉल्ड हॉपकिंस (Harold Hopkins) थे जिन्होंने अपनी इंजीनियरिंग प्रतिभा और दृष्टि के साथ-साथ ऑप्टिकल डिजाइनर के कार्य द्वारा मेडिकल ऑप्टिक्स के क्षेत्र में आखिरकार क्रांति पैदा कर दी।
गैस्ट्रोस्कोप का विकास
गैस्ट्रोस्कोप को पहली बार 1952 में एक जापानी डॉक्टर और ऑप्टिकल इंजीनियरों की टीम द्वारा विकसित किया गया। मुत्सुओ सुगिउरा (Mutsuo Sugiura) ने ऑलिम्पस कॉर्पोरेशन (Olympus Corporation) के संयुक्त तत्वावधान में डॉक्टर तत्सुरो यूजी (Tatsuro Uji) और उनके सहयोगी शोजी फुकामी (Shoji Fukami) के साथ ऐसे उपकरण को विकसित करने के लिए कार्य किया, जिसे उन्होंने पहले “गैस्ट्रो कैमरा” नाम दिया था। इसमें एक नन्हा-सा कैमरा एक लचीले टिप पर लाइट बल्ब के साथ जुड़ा हुआ था। इसकी मदद से वे पेट के अल्सर का चित्र लेने तथा आरंभिक अवस्था में पेट के कैंसर का पता लगाने में सफल रहे, जो एक्स-रे द्वारा पकड़ में नहीं आते थे।
फाइबर ऑप्टिक्स
1950 के दशक की शुरुआती दौर में हैरॉल्ड हॉपकिंस ने एक “फाइब्रोस्कोप” (चित्र को ट्रांसमिट करने में सक्षम लचीले ग्लास फाइबरों का एक कोहेरेंट बंडल) का निर्माण किया, जो चिकित्सा और उद्योग, दोनों ही क्षेत्रों में उपयोगी साबित हुआ। इन फाइबरों पर होने वाले बाद के शोध और विकास से चित्र की गुणवत्ता में और भी सुधार आए। आने वाले दिनों में नए विकास के अंतर्गत शामिल हुए एक शक्तिशाली बाह्य स्रोत से वस्तु के छोर तक प्रकाश के पहुंचने के लिए अतिरिक्त फाइबरों का इस्तेमाल – जिससे उच्चस्तरीय पूर्ण वर्णक्रम चमक (full spectrum illumination) की प्राप्ति संभव हुई, जिसकी आवश्यकता चित्र की बारीकियों को देखने और रंगीन फोटोग्राफी के लिए होती है। (पहले वाले तरीके में, जिसमें एंडोस्कोप के सिरे पर एक छोटा-सा फिलामेंट लैम्प होता था, मध्यम लाल रोशनी में अथवा रोगी के आंतरिक अंग के जलने के जोखिम के साथ लाइट आउटपुट को बढ़ाकर देखने का ही विकल्प बचता था।) ऑप्टिकल क्षेत्र में होने वाले विकास के साथ ही यह क्षमता विकसित हुई, जिसमें एंडोस्कोपिस्ट के हाथों में स्थित नियंत्रण द्वारा टिप को “संचालित” करना संभव हुआ और साथ ही एंडोस्कोप के अन्दर लगे शल्य-चिकित्सा उपकरण को रिमोट के जरिए संचालित करने की दिशा में भी नई सुविधाएं हासिल हुईं। यह उस शल्य-चिकित्सा की शुरुआत थी, जिसे हम आज की-होल सर्जरी (kew-hole surgery) के नाम से जानते हैं। पुर्तगाल के फर्नैंडो एल्वेस मार्टिन्स (Fernando Alves Martins) ने प्रथम फाइबर ऑप्टिक्स एंडोस्कोप का आविष्कार किया (1963/64)।
रॉड लेंस एंडोस्कोप
हालांकि, फाइब्रोस्कोप की चित्र गुणवत्ता की भौतिक सीमाएं थीं। आधुनिक शब्दावली में 50,000 फाइबर का एक बंडल प्रभावशाली रूप में केवल 50,000 पिक्सल का चित्र ही देता है, इसके अलावा इस्तेमाल में लगातार परिवर्तन के कारण फाइबर टूटते हैं और इस प्रकार धीरे-धीरे पिक्सल कम हो जाते हैं। अंततः इतनी क्षति हो जाती है कि समूचे बंडल को बदलने (बहुत अधिक खर्च पर) की आवश्यकता होती है। हॉपकिंस (Hopkins) ने महसूस किया कि किसी अगले ऑप्टिकल सुधार के लिए एक अलग विधि की आवश्यकता होगी। पूर्व के सख्त एंडोस्कोप में काफी कम लाइट ट्रांसमिटेंस तथा कमजोर इमेज क्वालिटी की समस्या थी। सर्जिकल कार्यों के लिए शल्य-चिकित्सा के औजारों और इल्युमिनेशन सिस्टम को एंडोस्कोप ट्यूब से होकर गुजारने (मानव शरीर के द्वारा यह स्वयं भी अपने आयामों में सीमित होता है) की आवश्यकता के कारण इमेजिंग ऑप्टिक्स के लिए कोई खास गुंजाइश नहीं थी। पारंपरिक प्रणाली के छोटे लेंस को सहायक रिंग की जरूरत थी, जो लेंस के एक बड़े भाग को अधिग्रहित करता था; जिन्हें निर्मित करना और एक साथ रखना काफी कठिन था, साथ ही ऑप्टिकल रूप से वे नाकाम भी थे। हॉपकिंस (Hopkins) ने जो परिष्कृत निदान प्रस्तुत किया (1960 के उत्तरार्ध में), वह था ‘लिटल लेंस’ के बीच के स्थान को ग्लास रॉड से भर देना। ये ठीक-ठीक एंडोस्कोप ट्यूब में फिट हो जाते थे, जिससे वे स्व-संरेखी बन गए तथा उन्हें ‘लिटल लेंस’ को पूरी तरह से वितरित करने के लिए किसी समर्थन की आवश्यकता नहीं रही। रॉड-लेंस को संचालित और इस्तेमाल करना काफी आसान था और इसने अधिकतम उपलब्ध व्यास का उपयोग किया। सही वक्रता, रॉड के सिरों पर कोटिंग तथा कांच के प्रकार के अधिकतम विकल्पों, जो हॉपकिंस (Hopkins) द्वारा आंकलित तथा उल्लेखित थे, के साथ चित्र की गुणवत्ता को 1 मि॰मी॰ व्यास वाली नली में रूपांतरित कर दिया गया। ऐसे छोटे व्यास वाले उच्च गुणवत्ता युक्त ‘टेलीस्कोप’ के साथ टूल तथा इल्युमिनेश सिस्टम को आसानी से एक बाहरी ट्यूब के भीतर रखा जा सका। एक बार फिर कार्ल स्टोर्ज (Karl Storz) ने ही दो व्यक्तियों के बीच के लंबे रचनात्मक सहयोग के रूप में पहले-पहल इन नए एंडोस्कोपों का निर्माण किया। यद्यपि शरीर के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें हमेशा के लिए फ्लेक्सिबल एंडोस्कोप (प्रमुख रूप से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में) की ही आवश्यकता होगी, सख्त रॉड-लेंस एंडोस्कोपों के ऐसे अपवादात्मक प्रदर्शन रहे हैं कि आज के समय में भी ये एक पसंदीदा उपकरण हैं और वास्तव में आधुनिक की-होल सर्जरी की सफलता में सक्षम कारक रहे हैं। (हैरॉल्ड हॉपकिंस को मेडिकल-ऑप्टिक की इस नई खोज के लिए दुनिया भर के चिकित्सा समुदाय द्वारा मान्यता प्रदान की गई और सम्मानित किया गया। वर्ष 1984 में जब उन्हें रॉयल सोसाइटी (Royal Society) द्वारा रमफोर्ड मेडल (Rumford Medal) से सम्मानित किया गया, तो प्रशस्तिपत्र के अधिकांश हिस्से में इस उपलब्धि की ही चर्चा थी।
विसंक्रमण: फाइबर एंडोस्कोप का एक बड़ा महत्व उपयुक्त समय में इसका विसंक्रमण है। पहले विसंक्रमण उपकरण का निर्माण एस.ई. मेडरर (S.E.Miederer) ने वर्ष 1976 में बॉन/जर्मनी विश्वविद्यालय में किया।
खतरे
- संक्रमण
- छिद्रित अंग
- अति-शमन
एंडोस्कोपी के पश्चात
प्रक्रिया के बाद प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा एंडोस्कोपी में या रिकवरी एरिया में मेडिकेशन के एक महत्वपूर्ण भाग के खत्म होने तक रोगी का अवलोकन तथा उसकी निगरानी की जाती है। कभी-कभी रोगी में गलशोथ उत्पन्न हो जाता है, जो नमक-पानी की कुल्ली या कैमोमाइल चाय से दूर हो जाता है। यह कई हफ्तों तक ठहर सकता है, या हो सकता है कि यह बिल्कुल भी उत्पन्न न हो। प्रक्रिया के दौरान फूंकी हुई हवा के कारण आपको डिस्टेंशन का अनुभव हो सकता है। ये दोनों समस्याएं हल्की और क्षणिक हो सकती हैं। पूरी तरह से ठीक हो जाने पर रोगी को सामान्य आहार (संभवतः कुछ घंटों के भीतर) लेने के निर्देश दे दिए जाते हैं तथा उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी जाती है। शामक के उपयोग के कारण अधिकतर अस्पताल, रोगियों को अन्य व्यक्ति के साथ घर जाने का निर्देश देते हैं तथा उन्हें खुद वाहन न चलाने और उस दिन अन्य मशीनरी को हैंडल न करने की हिदायत देते हैं।
नई प्रगति
कैप्स्यूल एंडोस्कोपी
रोबोटिक सिस्टम के अनुप्रयोग से टेलीसर्जरी का प्रारंभ हुआ, जिसमें सर्जन रोगी को बिना छुए किसी स्थान से बैठकर सर्जरी कर सकता है। पहली ट्रांसअटलांटिक सर्जरी को लिंडबर्ग ऑपरेशन (Lindbergh Operation) का नाम दिया गया।Pk