ऋषिपंचमी
ऋषिपंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है।यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। इस त्यौहार में सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है।
सप्त ऋषि
- कश्यप
- अत्रि
- भारद्वाज
- विश्वामित्र
- गौतम
- जमदग्नि
- वशिष्ठ
व्रत की पात्रता
यह व्रत चारों वर्ण की महिलाओं को करना चाहिए। यह व्रत जाने -अनजाने में हुए पापों को नष्ट करने वाला है। इस दिन गंगा स्नान का भी महत्त्व है। यह व्रत पुरुष भी अपनी पत्नी के लिये रख सकते हैं। (करवाचौथ के लिये पुरुषों की पात्रता नहीं है)।
पूजन विधि
प्रातःकाल नदी आदि में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने घर में भूमि पर चौक बना कर सप्त ऋषियों की स्थापना करनी चाहिए। श्रद्धा पूर्वक सुगंध , पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें। अकृष्ट भूमि (बिना जुती हुई भूमि ) से उत्पन्न फल आदि का शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
समापन
लगतार सात वर्ष तक ऋषि पंचमी के दिन व्रत रख कर आठवें वर्ष में सात सोने की मूर्तियां (श्रद्धानुसार ) बनवाकर एवम उनका पूजन कर सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर सप्त ऋषियों की प्रतिमाओं का विसर्जन करना चाहिए।
बाहरी कड़ियाँ
- sikkim-culture.gov.in पर ऋषिपंचमी के बारे में (अंग्रेजी में)।
- ऋषि पंचमी व्रत कथा