ऋतु
ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं यथा पश्चिम बंगाल में जुलाई से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है, यानि पश्चिम बंगाल में जुलाई से अक्टूबर तक, वर्ष के अन्य कालखंडो की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। इसी प्रकार यदि कहा जाय कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक ग्रीष्म ऋतु होती है, तो इसका अर्थ है कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक के महीने साल के अन्य समयों की अपेक्षा गर्म रहते हैं।
एक ॠतु = २ मास। ऋतु साैर और चान्द्र दाे प्रकार के हाेते हैं। धार्मिक कार्य में चान्द्र ऋतुएँ ली जाती हैं।
भारत में परंपरागत रूप से मुख्यतः छः ऋतुएं परिभाषित की गयी हैं।[1] -
ऋतु | हिन्दू मास | ग्रेगरियन मास |
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वसन्त ऋतु | चैत्र से वैशाख (वैदिक मधु और माधव) | फरवरी से मार्च |
ग्रीष्म ऋतु | ज्येष्ठ से आषाढ (वैदिक शुक्र और शुचि) | मार्च से जून |
वर्षा ऋतु | श्रावन से भाद्रपद (वैदिक नभः और नभस्य) | जुलाई से सितम्बर |
शरद ऋतु | आश्विन से कार्तिक (वैदिक इष और उर्ज) | अक्टूबर से नवम्बर |
हेमन्त ऋतु | मार्गशीर्ष से पौष (वैदिक सहः और सहस्य) | दिसम्बर से 15 जनवरी |
शिशिर | माघ से फाल्गुन (वैदिक तपः और तपस्य) | 16 जनवरी से फरवरी |
ऋतु परिवर्तन का कारण
ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वीद्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है। पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग ६६.५ अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है। यह झुकाव सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ़ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अजहर हाशमी (27 जुलाई 2013). "ऋतुओं से जुड़ा हमारा जीवन". राजस्थान पत्रिका. मूल से 1 अगस्त 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 जुलाई 2013.