ऊर्जा चिकित्सा
डा0 श्रीप्रकाश बरनवाल का कहना है कि प्रकृति से सकारात्मक चिकित्सकीय ऊर्जा किरणों को साधना/एकाग्रता के द्वारा प्राप्त करना और उसका अपने जरूरत के अनुसार उपयोग करना ही ऊर्जा चिकित्सा का सीधा और सरल सा अर्थ है। ऊर्जा चिकित्सा के बारे में सर्वप्रथम जानकारी किसे, कब, कहाँ किन परिस्थितियों में मिली, यह अब तक विवादित पहलू है। प्रत्येक देश, धर्म ऊर्जा चिकित्सा की जन्मस्थली होने का दावा करते हैं। []जिस प्रकार यह ब्रह्मांड किसी एक देश, जाति, धर्म का नहीं है, उसी तरह ऊर्जा चिकित्सा भी किसी एक की धरोहर नहीं है। यह ऊर्जा किसी एक नियम के अधीन नहीं है।
इतिहास
"ऊर्जा चिकित्सा की जानकारी सर्वप्रथम एशियाई क्षेत्र को हुई, ऐसा माना जाता है।[] हमारे वेदों में, पाणिनी सूत्र में ऊर्जा चिकित्सा का उल्लेख मिलता है।[] वेदों के अनुसार ऊर्जा चिकित्सा को "प्राण शक्ति" का नाम दिया गया है।[] यह प्राण शक्ति "वह" शक्ति है, जो जीव मात्र में सतत रूप से कार्यरत है और जिसके रूप बदल लेने पर शरीर का कार्य करना बन्द हो जाता है।[] इस तथ्य के अनुसार ऊर्जा चिकित्सा साक्षात ब्रह्म/ प्रकृति/ईश्वरीय शक्ति का रूप है। हमारे पुराणों, धार्मिक ग्रन्थों इत्यादि में भी ऊर्जा चिकित्सा का उल्लेख मिलता है[], जिनके अनुसार ऋषि-मुनि, महात्मागण साधना के द्वारा संवाहित ऊर्जा के द्वारा जनमानस के चिकित्सा और परमार्थ का कार्य किया करते थे।[] इस पर कई सारी श्रुतियाँ कथायें, दन्त कथाएँ भी मिलती हैं।
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लिखित रूप से इसका उल्लेख महात्मा बुद्ध के काल में रचित ग्रन्थों में मिलता है। जिनके अनुसार महात्मा बुद्ध और उनके कुछ खास शिष्य अपने संकल्प शक्ति और स्पर्श से बीमारियों/परेशानियों का निदान करते थे। इन सभी प्रामाणिक वेदों-पुराणों और ग्रन्थों के अनुसार उस काल में इसे गुप्त और आध्यात्मिक विद्या माना जाता था। जिस कारण आम जनता को इस विद्या के बारे में जानकारी नहीं दी जाती थी। इस विद्या को जानने के लिये साधक को अपने तन मन से सम्पूर्ण तपस्या करनी होती थी, तत्पश्चात महात्मा बुद्ध साधक को (जब वह साधक इस विद्या को ग्रहण करने योग्य लगता तो) उसको सुसंगत किया करते थे। अगर कहीं से भी महात्मा बुद्ध को ये लगता कि अभी "इस साधक" में इस दिव्य विद्या को ग्रहण करने कि योग्यता नहीं आ सकी है तो उस साधक को पुनः साधना करने की आज्ञा दी जाती थी। इस गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह अपने काल के प्रत्येक गुरूजनों ने किया, इसका कभी उल्लंघन हुआ हो, ऐसा विदित नहीं है। इस तरह से अति इच्छुक साधक ही इस विद्या को ग्रहण कर पाते थे। कालांतर में महात्मा बुद्ध के शिष्य भी इस नियम का पालन करते रहे एवं धीरे-धीरे इस दिव्य विद्या को ग्रहण वाले साधकों की संख्या में कमी होती गयी, तब एक ऐसा समय आया जब इस दिव्य विद्या के जानकार नहीं रहे। मतलब ऊर्जा चिकित्सा कालांतर में काल के गर्भ में खो गई।[] भारत में इसके बाद ऊर्जा चिकित्सा पर कोई लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है।