ऊँट
ऊँट | |
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एक कुबड़ ऊँट | |
दो कुबड़ ऊँट | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | कौरडेटा (Chordata) |
वर्ग: | स्तनधारी (Mammalia) |
गण: | आर्टियोडैकटिला (Artiodactyla) |
कुल: | कैमलिडाए (Camelidae) |
वंश समूह: | कैमलिनाए (Camelini) |
वंश: | कैमेलस (Camelus) लीनियस, १७५८ |
चित्र:Afro-asiatic camelid Range.png | |
एक और दो कुब्बे वाले ऊँटों का विस्तार कॅमलस बॅक्ट्रिऍनस |
ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैक्ट्रियन ऊंट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है |
ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अल्पाका, गुआनाको और विकुना।
एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। ऊट का गर्भकाल लगभग 400 दिनों का होता है
जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
ऊँट की नस्ल
ऊंट राजस्थान के रेगिस्तान का एक महत्वपूर्ण पशु है। इसका उपयोग कई कार्यों में होता है। इसे सवारी करने, भार ढोने, हल जोतने, रहट चलाने, ईख पेरने तथा गाड़ियों में जोतने के काम में लाया जाता है। सवारी करने हल जोतने रहट चलाने व गाड़ी में भार ढोने के लिए रेगिस्तानी क्षेत्रों में इसे सबसे ज्यादा उपयुक्त माना गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसे भार ढोने के लिए काम में लेते हैं। एक ऊंट एक बैल जोड़ी के बराबर काम कर सकता है। ऊंट के बालों से कंबल बनाए जाते हैं। ऊंट में बहुत विशेषताएं हैं। वह शुष्क क्षेत्रों में सुगमता से रखा जा सकता है। बारी बोझ ढो सकता है और कई दिन तक बिना पानी के भी रह सकता है। इन विशेषताओं के कारण सूखे क्षेत्रों में भारवाही पशु के रूप में बहुत उपयोगी है। सन 2012 में पशु गणना के अनुसार राजस्थान में ऊंटों की संख्या 0.32 मिलियन है। ऊंट दो प्रकार के होते हैं भारत में पाई जाने वाली ऊंटों की मुख्य प्रजातियां बीकानेरी, जैसलमेरी, मेवाड़ी, कच्ची और सांचौरी है। नर ऊंट का भार लगभग 500 से 700 किग्रा और मादा ऊंट का औसत भार लगभग 400-600 किग्रा. होता है। जन्म के समय बच्चे का बार 35 से 40 किग्रा होता है। कार्य के आधार पर भारतीय ऊंटों को दो भागों में बांटा जा सकता है सामान ढोने वाले और सवारी करने वाले सामान ढोने वाला ऊंट हट्टा-कट्टा और सवारी वाले का शरीर हल्का होता है राजस्थान में ऊंट की तीन मुख्य नस्लें पाई जाती है बीकानेर, जैसलमेर, मेवाड़ी ।
बीकानेरी नस्ल
इस नस्ल के ऊंट का मूल स्थान राजस्थान का बीकानेर क्षेत्र है और इस नस्ल के ऊंट बीकानेर से दूसरी जगह ले जाए जाते हैं। बीकानेर के जोहड़बीड़ में राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केंद्र अनुसंधान केंद्र है। यह नस्ल सिंधी एवं बलूची ऊंटों के संकरण से से तैयार हुई है।
इस नस्ल के ऊंट का रंग ज्यादातर गहरा भूरा यानी काले से रंग का होता है। ऊंट की ऊंचाई जमीन से थुई तक 10 से 12 फीट तक होती है। शरीर गठीला एवं मजबूत होता है। आंखें गोल व बड़ी होती हैं। खोपड़ी गोलाकार एवं उठी हुई होती है। जहां खोपड़ी आगे की और खत्म होती है वहां एक गड्ढा होता है जिसे 'स्टॉप' कहते हैं जो इस नस्ल की खास पहचान है। ऊंट की आंखों, कानों एवं गले पर लंबे लंबे काले बाल पाए जाते हैं। सिर मंझले दर्जे का एवं भारी होता है। आंखें चमकदार एवं बाहर निकली हुई होती है। आंखों के ऊपर की तरफ गड्ढा सा होता है जहां से नाक की हड्डी ऊपर उठी हुई दिखाई देती है इससे यह नस्ल सुंदर लगती है। वर्तमान में जो नस्ल बीकानेरी ऊंट की है वह विश्व के सबसे सुंदर ऊंटों में से है। आंखों की भौहों पर व पलकों पर घने काले बाल होते हैं। कान छोटे-छोटे और ऊपर से गोलाई लिए हुए होते हैं। गर्दन मंझलें आकार की नीचे से गोलाई लिए हुए होती है। थुई बड़ी एवं पीठ के बीच में होती है। छाती की गद्दी अच्छी सुदृढ़ होती है जो इसको बैठने में सहायक होती है। अगले पैर लंबे सीधे और मजबूत हड्डियों वाले होते हैं पिछले पैर अगले पैरों की अपेक्षा कमजोर है अंदर की ओर मुड़े हुए होते हैं । पूछ के दोनों तरफ नीचे की ओर लंबे काले बाल होते हैं। अंडकोष गोल एवं बड़े होते हैं एवं पीछे से देखने पर दिखाई देते हैं। मादा ऊंटों में थन बड़े-बड़े एवं चूचक के दो-दो छेद होते हैं। दूध की वाहिनी बड़ी व उन्नत होती है।
इस नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उपयुक्त है। ज्यादातर इसे बोझा ढोने एवं कृषि कार्य में काम में लिए जाते हैं।
जैसलमेरी नस्ल
इस नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उपयुक्त हैं। ज्यादातर इसे भार ढोने एवं कृषि कार्य में काम में लिया जाता है।
जैसलमेरी नस्ल के ऊंट का रंग हल्के भूरे रंग का होता है एवं ऊंचाई 7 से 9 फीट तक होती है। इस नस्ल के ऊंट का शरीर छोटा एवं पतला होता है। आंखें चमकदार एवं सिर के अनुपात से बड़ी होती है। इस नस्ल के ऊंटों का कपाल उठा हुआ नहीं होता एवं स्टॉप भी नहीं होता जो कि बीकानेरी नस्ल में होता है। कान छोटे पास पास होते हैं। पैर पतले बढ़िया छोटी छोटी होती है। पैरों के तलवे भी छोटे व हल्के होते हैं जो तेज चलने में सहायक होते हैं।
जैसलमेरी नेशनल फ्रूट सवारी के लिए उपयुक्त है एक प्रशिक्षित और एक रात में 100 से 140 किमी तक यात्रा कर सकता है। रेगिस्तान में सेना व पुलिस के जवान भी गश्त के लिए इस नस्ल के ऊंटो को काम में लेते हैं।
मेवाड़ी नस्ल
उदयपुर के आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहा जाता है जोकि अरावली की पहाड़ियों में बसा हुआ है। पुराने जमाने में सामान लाने ले जाने एवं यात्रा हेतु जहां पंजाब से लाए गए थे उन्होंने अपने आप को इस क्षेत्र के अनुकूल ढाल लिया एवं धीरे-धीरे एक नस्ल का रूप ले लिया जिससे क्षेत्र के लोग इन ऊंटों को मेवाड़ी कहने लगे। यह नस्ल राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर गुजरात तक फैली हुई है।
इस नस्ल के ऊंट की लंबाई मध्यम आकार की होती है। इनका हल्का भूरा रंग होता है। आंखें छोटी-छोटी होती है। पर छोटे हैं तब वे कठोर होते हैं। हड्डियां मोटी है मजबूत होती है। मुंह के नीचे का होंठ गिरा हुआ होता है। जो इस नस्ल की खास पहचान है। सिर बड़ा एवं भारी होता है। गर्दन भी छोटी मोटी होती है। शरीर पर बाल घने, सख्त एवं मोटे होते हैं। इस ऊंट की औसत गति 3 से 5 मील प्रति घंटा होती है।
इस नस्ल के ऊंटों को कृषि कार्य एवं भार को ढोने के लिए काम में लिया जाता है। इस नस्ल की मादा लगभग 4 से 6 लीटर दूध प्रतिदिन देती है।
ऊंट प्रबंधन
स्वभाव में एक धैर्यवान सहनशील प्राणी माना जाता है। अपने पालतू पशुओं की अपेक्षा से साधना यहां से खाना कठिन है। प्रजनन काल में उत्तेजित उत्पत्ति का होता है। ऊंट झुण्ड रहना पसंद करता है। इसमें अपना मार्ग याद रखने की अद्भुत क्षमता होती है। कई वर्षों के अंतराल के बाद भी और सरलता से अपने स्थान पर पहुंच जाता है अन्य पालतू पशुओं की भांति यह अपने पालक के साथ घनिष्ठ नहीं हो पाता है। सदियों से मरुस्थल प्रदेश में कठिन परिस्थितियों में रहते रहते इसकी शारीरिक बनावट भी उसी के अनुकूल हो गई है जिसका विवरण निम्न प्रकार है_
- विशाल शरीर के कारण यह तेज धूप से नहीं कर पाता किंतु बड़े आकार के ऊंट छोटे आकार के ऊंट की अपेक्षा दिन की गर्मी में धीरे-धीरे गर्म होता है। यह रेगिस्तान में पानी की खोज में दूर-दूर तक जा सकता है।
- कुबड़ ऊंट की एक विशेषता है। जो आकार में लगभग 50 सेंटीमीटर ऊंची और 200 सेंटीमीटर घेरदार होती है।
- ऊंट की त्वचा के नीचे वसा की तह नहीं के समान होने के कारण शरीर के अतिरिक्त ताप को निकालने में इसे सुविधा रहती हैं।
- इसके पैर के पंजों की हड्डियां चौड़ी वह चपटी होती है जो गद्देदार चमड़ी में धंसी होती है। ऊंट के चलने पर दबाव के कारण गद्देदार पंजा फैलता है जो रेत में सुदृढ़ पकड़ पैदा करता है इस कारण रेतीली भूमि पर सुगमता से चल सकता है। इसी क्षमता के कारण से रेगिस्तान का जहाज भी कहा जाता है।
- ऊंट के वक्ष स्थल एवं चारों पैरों के घुटनों पर मोटी कठोर त्वचा की गद्दी होती है । ऊंट जब बैठता है तब केवल यही भाग भूमि के संपर्क में आता है । शरीर के अन्य भाग उचाई पर रहते हैं।
- ऊंट की गर्दन व सिर का कठिन परिस्थितियों में जीवित रहे पाने में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके होंठ अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जिससे कटीली झाड़ियों एवं वृक्षों से पत्तियां चरते हुए कांटे चुभने से बचाव होता है। इसकी उभरी भौंहे सूर्य प्रकाश के चकाचौंध से आंखों को बचाती है।
ऊंट के बारे में रोचक तथ्य
- एक ऊँट सात फीट लम्बा, और 680 किलो का होता है।
- इन्हें रेगिस्तान में जीने की आदत है, और इस वातावरण के हिसाब से, इनकी भौहें 10 सेंटिमीटर लम्बे होते हैं, ताकि इनकी आँखों में रेत ना घुस जाए।
- उनके कान में भी बाल इसी वजह से होते हैं – ताकि रेत उनके कानों में ना घुस जाए।
- ऊँट के पैर बहुत ही अनोखे होते हैं, जिसके कारण वे आसानी से रेत पर चल पाते हैं।
- यह जानवर अपने कूबड़ के लिए जाना जाता है।
- लोग मानते हैं कि ऊँट अपने कूबड़ में पानी रखता है, लेकिन असल में ये फैट के लिए है। जब उन्हें खाना नहीं मिलता है, तो इसी फैट से उन्हें ऊर्जा मिलती है।
- बिना खाना और पानी के, एक ऊँट काफी लम्बे समय तक जीवित रह सकता है। कई जानवरों के शरीर में जब पानी 15% कम हो जाता है, तो वो मरियल से हो जाते हैं। लेकिन एक ऊँट, पानी की 25% कमी भी सहन कर पाता है।
- जब इन्हें पानी मिलता है, तब ये करीबन 151 लीटर पानी एक ही साथ में पी लेते हैं।
- रात के समय उनके शरीर का तापमान लगभग 34 डिग्री सेल्शियस होता है, और दिन के समय, 41 डिग्री सेल्शियस।
- ऊँट के दूध में बहुत सारा आइरन, विटामिन और मिनरल पाया जाता है।
- गाय के दूध से ज़्यादा, ऊँट का दूध हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, क्योंकि इसमें कम फैट पाया जाता है।
- एक घंटे में एक ऊँट, 40 मील दौड़ सकता है।
- अपने आप को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाने के लिए, ये अपने चारों पैर को लात मारने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
- जंग में, खासकर की वे जंग जो रेगिस्तान में लड़े जाते थे, राजा-महाराजा ऊँट का इस्तेमाल करते थे।
- जब ऊँट मर जाते हैं या बूढ़े हो जाते हैं, तो उनके मांस को खाना और कपड़ा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- एक ऊँटनी, उसे कितना खाना मिले उस पर आधारित, 9-14 महीने तक गर्भावस्था में रहती है।
- एक ऊँट का जीवन काल 40-50 साल तक का होता है।
- ऊँट के कुछ प्रकार के सिर्फ एक ऊबड़ होती है, और अन्य दूसरों के दो।
- ऊँट को पालकर, उन्हें सर्कस में लोगों के मनोरंजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- ऊँट बहुत कम अकेले रहते हैं। खाने की खोज में अक्सर 30 ऊँट एक साथ चलने लगते हैं।
- उन पौधों को खाने से जिनमें काँटें हों, एक ऊँट का मुँह घायल नहीं होता है।
- ऊँट के लगभग 14 मिलियन प्रकार होते हैं।
- एक ऊँट का मुँह दो भाग में बँटा हुआ है। इससे उसे अपने खाने को आराम से खाने की सुविधा मिलती है।
- कहा जाता है कि उम्र में जो ऊँट छोटे होते हैं, वे बड़े ऊँट से ज़्याद स्वादिष्ट होते हैं।
- ऊँट तब तक थकते नहीं, जब तक उन्हें उनकी तरफ कोई खतरा मेहसूस हो रहा हो।
ऊंट के बारे में और जानकारी
- ऊँट सिर्फ दिखने में धीरे चलने वाले दिखते हैं। ये भी काफी तेज़ दौड़ सकते हैं, लेकिन कम समय के लिए।
- इनका ऊबड़ जन्म से नहीं होता है। जब एक ऊँट खाना खाने जितना बड़ा हो जाता है, तब उसका ऊबड़ धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
- ऊँट को अपना नाम एक अरबी शब्द से मिला है जिसका अर्थ ”सुंदरता” होता है।
- लम्बी दूरी तक, बिना पानी या खाने के चल पाने का कारण है – ऊँट के रक्त वाहिकाओं का आकार।
- ऊँट लेटकर सोते हैं।
- गाय की तरह, ऊँट भी अपने खाए हुए खाने को फिर से मुँह में लाकर चबा सकता है।
- हरे पौधे खाने से, ऊँट को पानी का तत्त्व मिलता है।
- सर्दियों में भी, रेगिस्तान में ऊँट दिखते हैं।
- इंसान ऊँट को एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
- बच्चों को उँट की सवारी भी कराई जाती है।
- ऊँट कई धार्मिक बातों से जुड़ा हुआ है।
- बहुत साल पहले, लोग ऊँट के युरिन को चिकित्सक कारणों के लिए पीते थे।
- ऊँट एक शाकाहारी जानवर है। वह किसी भी प्रकार का मांस नहीं खाता है।
- ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है।
- ऊँट पर जो बाल होते हैं, वे धूप की किरणों को प्रतिबिम्बित कर देते हैं, जिसके कारण उनके शरीर में ठंडक कायम रहती है।
- ये जानवर अपने पीठ पर कम से कम 181 किलो जितना सामान उठा पाता है।
- ऊँट सस्तन प्राणी होते हैं।
- ये जानवर बहुत ही समझदार है। साथ ही, एक ऊँट की नज़र और सुनने की क्षमता बहुत ही अच्छी होती है।
- जब एक ऊँट के ऊबड़ का फैट खतम हो जाता है, तो उसका ऊबड़ छोटा हो जाता है।
- एक ऊँटनी एक बार में एक ही बच्छड़े को जन्म दे सकती है।
- एक ऊँट का बच्छड़ा करीबन 40 किलो का होता है।
- बच्छड़े अपने माँ का दूध ही पीते हैं।
- कभी-कभी ऊँट के बच्छड़े सफेद बालों के साथ पैदा होते हैं। जैसे जैसे वो बड़े होते हैं, वैसे वैसे उनके बाल भूरे रंग के हो जाते हैं।
- ऊँट के पैर लम्बे इसलिए होते हैं, क्योंकि वे ऊँट को तपती हुई धरती से दूर रखने में सक्षम होते हैं।
- अगर एक ऊँट का वज़न 40% से भी कम हो जाए, तो भी वो जीवित रहते हैं।
- सर्दियों के मौसम में एक ऊँट 6-7 महीने तक बिना पानी के रह सकता है।
सन्दर्भ
- ↑ Camelus gigas, ZipcodeZoo, BayScience Foundation Inc, Accessed: 7 दिसम्बर 2012
- ↑ Palæontological Memoirs and Notes of the Late Hugh Falconer: Fauna antiqua sivalensis, Hugh Falconer, R. Hardwicke, Page 231, 1868
- ↑ राजस्थान में ऊंट की नस्लें (2018 संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मण्डल 2-2ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. 2018. पृ॰ 204. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789387089778.
- ↑ बिकानेरी (2018 संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मण्डल 2-2ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. 2018. पृ॰ 204. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789387089778.
- ↑ जैसलमेरी (2018 संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मण्डल 2-2ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. 2018. पृ॰ 205. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789387089778.
- ↑ मेवाड़ी (2018 संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मण्डल 2-2ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. 2018. पपृ॰ 205–206. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789387089778.